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अंतरिक्ष पर लिखी गई 136 पन्ने की किताब में ऐसा क्या खास है, जिसे बुकर पुरस्कार मिला है?

किताब का नाम है, “ऑर्बिटल” और इसे लिखा है ब्रिटिश लेखिका सामंथा हार्वे ने. उनका उपन्यास इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर आधारित है. ये पृथ्वी की सुंदरता और नाजुकता के बारे में बताता है. हार्वे को 50,000 पाउंड यानी लगभग 53.4 लाख रुपये का पुरस्कार दिया गया.

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लेखक सामंथा हार्वे और उनकी किताब "ऑर्बिटल" जिसे 2024 का बुकर मिला है. (फोटो - Booker Prize)

“अपने अंतरिक्ष यान में पृथ्वी के चारों ओर घूमते हुए वे सब उस एक लम्हे में साथ भी हैं और अकेले भी. इस पूरे वक्त में उनके विचार, उनकी आस्थाएं भी कभी-कभी एक साथ मिल जाती हैं. कभी-कभी तो उन्हें सपने भी एक जैसे आने लगते हैं. नीले गोले और अंधेरे में डूबे जाने-पहचाने चेहरे, अंतरिक्ष के स्याह काले पटल के ख्व़ाब जो उनकी इंद्रियों को झकझोर देते हैं. नंगा अंतरिक्ष एक तेंदुआ है, जंगली और आदिम; वे सपने में देखते हैं कि यह उनके स्पेसयान के सुरक्षित घेरे में घूम रहा है.”

ये जो आपने अभी-अभी पढ़ा, ये एक किताब का हिस्सा है. किताब भी ऐसी-वैसी नहीं. ये वो किताब है, जिसे इस साल का बुकर पुरस्कार मिला है. किताब का नाम है, “ऑर्बिटल” और इसे लिखा है ब्रिटिश लेखिका सामंथा हार्वे ने. उनका उपन्यास इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर आधारित है. ये पृथ्वी की सुंदरता और नाजुकता के बारे में बताता है. हार्वे को 50,000 पाउंड यानी लगभग 53.4 लाख रुपये का पुरस्कार दिया गया. इस साल के बुकर के लिए 13 किताबें लॉन्ग-लिस्ट में आई थीं. इनमें से छ: किताबें शार्टलिस्ट की गईं. अगर आप भी उन लोगों में से हैं, जो किताब पढ़ने में कंसिस्टेंसी नहीं बना पाते, तो दोस्तों ये खबर आपके लिए, क्योंकि ये सिर्फ 136 पन्नों की किताब है. आज हम इसी किताब के बारे में आपको तफ़्सील से बताएंगे.

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16 बार सूरज के उगने और डूबने की सुन्दरता से प्रेरित उपन्यास है, “ऑर्बिटर”. अमेरिका, रूस, इटली, यू.के. और जापान के छह अंतरिक्ष यात्री अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में चक्कर लगा रहे हैं. वे सब वहां एक महत्वपूर्ण काम करने के लिए गए हैं, लेकिन धीरे-धीरे वे सोचने लगते हैं: पृथ्वी के बिना जीवन क्या है? मानवता के बिना पृथ्वी क्या है? जब वे सब लोग साथ में 17,000 मील प्रति घंटे से ज्यादा की रफ़्तार से यात्रा करते हैं, तो वे वहां से अपने शांत नीले ग्रह माने, पृथ्वी को देखते हैं. 16 बार उसके चक्कर लगाते हुए वे महाद्वीपों से गुजरते हैं, और मौसमों के हिसाब से, ग्लेशियरों और रेगिस्तानों, पहाड़ों की चोटियों और महासागरों की लहरों को देखते हैं. सब कुछ ठीक चल रहा है, और फिर वे एक दिन में धरती की इतनी सुन्दरता देख लेते हैं, जितनी एक दिन में आंखों में समाई जा सके.

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सामंथा हार्वे (बीच में) बुकर पुरस्कार 2024 के निर्णायकों के साथ सारा कोलिन्स, यियुन ली, एडमंड डी वाल, नितिन साहनी और जस्टिन जॉर्डन (बाएं से दाएं)

धरती से अलग होने के बावजूद वे इसके आकर्षण से बच नहीं पाते. उनमें से एक को अपनी मां की मृत्यु की खबर मिलती है. और, इसके साथ ही आता है खयाल, कि अब घर लौटा जाए. इसके बाद उन्हें दिखता है कि जिस टापू पर उनके अपने रहते हैं, वहां एक बड़ा तूफ़ान आने वाला है. वे इसकी भव्यता से विस्मित और इसके विनाश से भयभीत हैं.

किताब की कहानी को और साफ़ रूप से समझने के लिए बुकर पुरस्कार देने वाली समिति के अध्यक्ष एडमंड डी वाल की टिप्पणी मौजूं है. वे कहते हैं,

“अगर इस किताब का मुख्य विषय खोजने जाएंगे तो या तो सब कुछ ही इसका मूल विषय है, या कुछ भी नहीं. पूरे साल हम ऐसे उपन्यासों का जश्न मनाते हैं, जो मुद्दों पर बहस करने के बजाय विचारों में बसते हैं, जो सिर्फ सवालों के जवाब नहीं ढूंढते बल्कि हम जो खोजना चाहते थे उसके सवालों को बदलते हैं.”

इस उपन्यास का मर्म है, उन लोगों की आपसी बातचीत, जिसमें मानव जीवन की नाजुकता, उनके डर, उनके सपने केंद्र में हैं. धरती पर रहते हुए भी शायद ही उन्होंने कभी खुद को धरती का इतना गहरा हिस्सा माना हो. जितना अब वे इसके लिए चिंतित हैं. हम उन्हें बिना लिक्विड का भोजन बनाते, गुरुत्वाकर्षण-मुक्त नींद में तैरते और मांसपेशियों को कमजोर होने से बचाने के लिए व्यायाम करते देखते हैं. हम उन्हें ऐसे बंधन बनाते हुए देखते हैं जो उनके और उनके पूर्ण एकांत के बीच खड़े रहेंगे. ‘ऑर्बिटल’ अंतरिक्ष में सेट किए गए उन मुट्ठी भर उपन्यासों में से एक है, जिन्हें पिछले कुछ वर्षों में बुकर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया है. 136 पन्नों में छितरी, पन्नों के लिहाज से ये तक की दूसरी सबसे छोटी किताब है, जिसे बुकर मिला है. पहली थी 1979 में पेनेलोप फित्जेराल्ड का लिखा, “ऑफशोर”.

कौन हैं सामंथा?

इंग्लैंड के केंट शहर में जन्मीं सामंथा 49 साल की हैं. पिता पेशे से एक बिल्डर थे. दर्शनशास्त्र की पढ़ाई करने वाली सामंथा ने 2000 के दशक में हर्शल एस्ट्रॉनामी म्यूजियम में भी काम किया था. ये वही जगह है, जहां से यूरेनस ग्रह खोजा गया था. देखिए, कब के तजुर्बे कब काम आए. सामंथा की लिखाई की धमक उनकी पहली किताब के जरिए ही दुनिया ने सुन ली थी. साल 2009 में उनकी पहली किताब, “द वाइल्डरनेस” को बुकर के लिए नॉमिनेट किया गया था.

जब सामंथा से पूछा गया कि वे इस पुरस्कार राशि को कहां खर्च करेंगी? तो उन्होंने कहा कि उन्हें एक नई बाइक चाहिए और वे जापान घूमना चाहेंगी.

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यहां एक बात और गौर करने की है. पांच साल बाद किसी महिला के हिस्से बुकर आया है. आखिरी दफ़ा साल 2019 में मार्ग्रेट एटवुड और बर्नार्दिन एवारिस्टो को संयुक्त रूप से बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. हार्वे ने इस किताब की लिखाई के बारे में बीबीसी रेडियो को जो बात बताई है. किसी उदास दिन जब आपको फिर से खुद को ऊर्जा से सींचना हो तो इस पर लौटिएगा.

हार्वे ने लॉकडाउन से पहले इस किताब के लिए कुछ हज़ार शब्द लिखे थे, लेकिन फिर उन्होंने हिम्मत खो दी और इस प्रोजेक्ट को एक तरफ रख दिया. बकौल हार्वे, 

“मैं कभी अंतरिक्ष में नहीं गई, मैं कभी अंतरिक्ष में नहीं जा सकती. और कुछ ऐसे इंसान हैं, जो अंतरिक्ष में गए हैं और इसके बारे में लिख चुके हैं, तो मैं यह करने वाली कौन होती हूं? मेरा आत्मविश्वास हिल गया था और मुझे लगा कि मैं अपनी सीमाएं लांघ रही हूं. इसलिए मैंने हार मान ली. और इस किताब को लिखना छोड़ दिया.”

लेकिन, कुछ वक्त बाद आखिरकार हार्वे अपने शुरुआती मसौदे पर वापस आईं. इस पूरी प्रक्रिया को उन्होंने बहुत सुंदर शब्दों में ढाला है. कहती हैं, 

“मुझे उस पिछले ड्राफ्ट में एक किस्म की ऊर्जा, एक धड़कन महसूस हुई. जिससे मैं तुरंत जुड़ गई. इसलिए मैंने सोचा कि मैं इसे पूरा करूंगी. मुझे बस इसे अच्छे से करना था."

“ऑर्बिटल” का ज्यादातर हिस्सा कोविड लॉकडाउन के दौरान लिखा गया था. इस दौरान हार्वे ने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की कई घंटों तक ऑनलाइन फुटेज देखी. बीबीसी रेडियो को दिए एक इंटरव्यू में हार्वे ने कहा था- 

“जब मैं लिखती थी तो मेरे डेस्कटॉप पर पूरे टाइम धरती की तस्वीरें घूमती थी. यह मेरा मुख्य संदर्भ बिंदु था. हर दिन ऐसा कर पाना, एक सुंदर मुक्ति की तरह महसूस होता था, और साथ ही मैं एक टिन के डिब्बे में फंसे छह लोगों के बारे में लिख रही थी. ऐसा लगा कि मेरे आस-पास जो कुछ बीत रहा है, मेरे लिखे में उसकी गूंज शामिल हो गई है. मसलन, लॉकडाउन का हमारा अनुभव जिसमें न हम एक-दूसरे से बच पा रहे थे और न ही मिल पा रहे थे."

जाते-जाते एक मज़ेदार बात जानते जाइए. यूं तो हार्वे के इस उपन्यास का परिवेश एकदम हाई-टेक है. लेकिन खुद हार्वे का न तो कोई सोशल-मीडिया अकाउंट है और हां, न ही उनके पास कोई मोबाइल फोन है. वैसे मोबाइल फोन रखने वालों ने भी बुकर पुरस्कार पाया है. तो चिल, लोड नहीं लेना है.

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