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वो म्यूज़िक डायरेक्टर जो अपने संगीत को बचाने के लिए फिल्म डायरेक्टर बना

'ओमकारा' का लंगड़ा त्यागी इनके साथ स्कूल में पढ़ता था.

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विशाल भारद्वाज बॉलीवुड डायरेक्टर हैं. फ़िल्में बनाते हैं. म्यूज़िक कंपोज़ करते हैं. लिखते हैं. गाते भी हैं. अभी हाल ही में फिल्म 'रंगून' बनाई थी. जो कुछ खास चली नहीं. लेकिन उनकी पिछली फिल्मों जैसे 'मकड़ी', 'मक़बूल', 'ओमकारा', 'कमीने', और 'हैदर' को दर्शकों और समीक्षकों दोनों ने ही पसंद किया है. 4 अगस्त 1965 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में पैदा हुए विशाल  4 श्रेणियों में 7 नेशनल अवॉर्ड जीत चुके हैं. इन्होने अपने बॉलीवुड करियर की शुरुआत 1995 में आई फिल्म 'अभय' से एक म्यूज़िक डायरेक्टर के तौर पर की थी. डायरेक्टर के तौर पर फिल्म 'मकड़ी' उनकी पहली फिल्म थी. बचपन से ही म्यूज़िक डायरेक्टर बनने का सपना देखने वाले विशाल डायरेक्टर कैसे बन गए? डॉ बशीर बद्र से उनका कनेक्शन और गुलज़ार को लेकर उनका दीवानापन. आज ये सारी बातें हम आपको बताएंगे. गौर फ़रमाइए:
अपने संगीत को बचाने के लिए बनाते हैं फ़िल्में
विशाल बचपन से ही म्यूज़िक डायरेक्टर बनने का सपना देखते आ रहे थे. 18 साल की उम्र से म्यूज़िक करना भी शुरू कर दिया था. लेकिन वक़्त की मार से उन्हें भी जूझना पड़ा. उनके बड़े भाई जो उनसे पहले प्रोड्यूसर बनने मुंबई आए थे, बहुत सालों तक इस शहर की आबो-हवा और नाकामयाबी बर्दाश्त न कर पाने के कारण हार्ट अटैक से मर गए. पापा यूं तो सरकारी कर्मचारी थे लेकिन संगीत में उनकी भी दिलचस्पी थी. विशाल की पहली ट्यून उनके पिता की दोस्त और बॉलीवुड की मशहूर म्यूज़िक डायरेक्टर उषा खन्ना की फिल्म 'यार कसम' में ली गई थी. विशाल को जब मुंबई आकर ये लगने लगा कि यहां सिर्फ म्यूज़िक करने से कुछ नहीं होगा तो उन्होंने निर्देशन का काम शुरू किया.
 
फिल्म 'यार कसम' का पोस्टर.(फ़ोटो:लिरिक्सबोगी)
'यार कसम' का पोस्टर.(फ़ोटो:लिरिक्सबोगी)


पहली फिल्म 'मकड़ी' प्रोड्यूसर को पसंद नहीं आई थी
विशाल ने डायरेक्शन में अपना करियर चिल्ड्रेन फिल्म सोसाइटी ऑफ़ इंडिया (Children Film Society of India) की फिल्म 'मकड़ी' से शुरू किया था. हालांकि इसके पहले वो कई फिल्मों में म्यूज़िक दे चुके थे. उन्हें 1999 में आई फिल्म 'गॉडमदर' के लिए बेस्ट म्यूज़िक डायरेक्टर के लिए नेशनल अवॉर्ड भी मिल चुका था. बावजूद इसके उनका करियर रफ़्तार नहीं पकड़ पा रहा था. जब उन्होंने 'मकड़ी' बनाकर चिल्ड्रेन फिल्म सोसाइटी को दिखाई तो उन्हें वो फिल्म बिलकुल पसंद नहीं आई. विशाल ने उनसे वो फिल्म खरीद ली और उसे बेहतर करके खुद ही रिलीज़ कर दिया.
मशहूर कवि डॉ बशीर बद्र की छत्र-छाया में पले-बढ़े हैं
विशाल का जन्म उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में हुआ था लेकिन उनका परिवार मेरठ में रहता था. उनके घर के पास ही बशीर बद्र का भी घर था. विशाल अपने बचपन के दिनों में उनके घर जाया करते थे और उनकी कृतियां पढ़ते और सुनते थे. बशीर साहब की बहुत सी ग़ज़लें और नज़्में उन्हें रट गईं थी. यूपी में हुए दंगों में बशीर साहब का घर जला दिया गया था. घर के साथ ही उनकी वो डायरियां भी जल गईं जिसमें उन्होंने अपनी ग़ज़लें लिखी थीं. उस दौर में विशाल ने उनकी बहुत मदद की थी. अपनी याद की हुई कई गज़लें उन्होंने बोल कर दोबारा से बशीर साहब को लिखवाई थीं. विशाल बशीर बद्र को इस सदी का सर्वश्रेठ कवि मानते हैं.
अपने मुशायरे के दौरान डॉ. बशीर बद्र.(फ़ोटो:यूट्यूब)
एक मुशायरे में डॉ. बशीर बद्र.(फ़ोटो:यूट्यूब)


'मक़बूल' बनाने का आईडिया एक बच्चे की किताब से आया था
विशाल बंबई अंडरवर्ल्ड पर एक फिल्म बनाना चाहते थे लेकिन कोई ढंग की कहानी नहीं मिल पा रही थी. ऐसे ही एक दिन बैठे विशाल एक बच्चे की इंग्लिश किताब उठाकर कर पढ़ने लगे. वो किताब मशहूर अंग्रेजी साहित्कार शेक्सपीयर की कहानी 'मैक्बेथ' का शॉर्ट वर्जन थी. उन्होंने वो कहानी पढ़ने के बाद तय कर लिया कि वो इसी कहानी को अपने हिसाब से बनाएंगे. उन्होंने उस कहानी में कई बदलाव किए, उसे अपने अंदाज में ढाला और आज 'मक़बूल' आपके सामने है.
फिल्म 'मक़बूल' के एक सीन में इरफ़ान और तब्बू.
फिल्म 'मक़बूल' के एक सीन में इरफ़ान और तब्बू.


गुलज़ार ने कैसे लिखा 'बीड़ी जलईले' जैसा गाना
विशाल फिल्म 'ओमकारा' के लिए म्यूज़िक कंपोज़ कर रहे थे. लेकिन उन्हें एक ऐसे गाने की दरकार थी जो ना फूहड़ हो लेकिन तेज़ रिदम वाला 'आइटम नंबर' हो. जिससे उनकी फिल्म का म्यूज़िक भी हिट हो जाए और उनकी इमेज भी ख़राब ना हो. उन्होंने ऐसा कोई गाना लिखवाने के लिए अपने पसंदीदा लिरिसिस्ट गुलज़ार के घर का रुख किया. गुलज़ार को ब्रीफ करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी फिल्म के लिए भी 'पान खाएं सैयां' गाने जैसा कुछ चाहिए. उस वक़्त वो फिल्म में इतने डूब गए थे कि यूपी फ़ोक सॉन्ग्स की एक किताब अपनी जेब में लेकर चलते थे. उसी किताब में से उन्होंने कुछ लाइनें गुलज़ार को सुनाई, वो लाइनें कुछ ऐसे थी -
तुम सिगरेट का छोड़ो ख़याल बाबू, सिगरेट पियोगे तो होठ जलेंगे, मूछों के जल जाएंगे बाल बाबू.
ये सुनने के बाद गुलज़ार ने उनसे वादा किया कि वो उन्हें इससे भी अच्छा गाना लिख कर देंगे और तब जाकर गाना बना 'बीड़ी जलई ले जिगर से पिया'.
गुलज़ार के साथ विशाल भारद्वाज.(फ़ोटो:टॉपयाप्स)
गुलज़ार के साथ विशाल भारद्वाज.(फ़ोटो:टॉपयाप्स)


लंगड़ा त्यागी का किरदार विशाल के सीनियर से प्रेरित था
विशाल भारद्वाज यूपी में पैदा हुए और उनकी स्कूलिंग मेरठ शहर के सरकारी स्कूल से हुई थी. उनके स्कूल में उनक एक सीनियर था जो लंगड़ा था. वो लंगड़ा होने के बावजूद स्कूल के दिनों से ही इलाके का बड़ा गुंडा माना जाता था. अपनी फिल्म 'ओमकारा' में उन्होंने लंगड़ा त्यागी का किरदार उसी सीनियर से प्रेरित होकर गढ़ा था. फिल्म के लिए रिसर्च के दौरान विशाल ने जब उसके बारे में पता लगाया तब तक वो किसी कॉलेज में प्रोफेसर बन गया था. ओमकारा का किरदार भी उनके ही इलाके के एक 'बाहुबली' से प्रेरित था.
फिल्म 'ओमकारा' में लंगड़ा त्यागी के किरदार में सैफ अली खान.
फिल्म 'ओमकारा' में लंगड़ा त्यागी के किरदार में सैफ अली खान.


रस्किन बॉन्ड के बगल वाले घर में रहते हैं
रस्किन बांड और विशाल भारद्वाज के बॉन्ड
  के बारे में तो सबको पता ही है. अगर नहीं पता तो जान लीजिए कि वशाल भरद्वाज ने अपनी दो फ़िल्में 'द ब्लू अम्ब्रेला' और '7 खून माफ़' रस्किन की कहानियों पर ही बनाई हैं. लेकिन अब उनकी दोस्ती और भी गहरी हो गई है, क्योंकि मसूरी में रहने वाले रस्किन के घर के बगल वाला घर विशाल ने ख़रीद लिया है. अपनी कहानियां लिखने और छुट्टियां मनाने विशाल जब भी मसूरी जाते हैं तो वो रस्किन के साथ काफी वक़्त बिताते हैं. विशाल के मुताबिक़ रस्किन को कहानियों की बहुत जानकारी है और उनकी काफी मदद कर देते हैं.
मशहूर लेखक रस्किन बांड.
रस्किन बांड.
उनके बारे में मशहूर लेखक और फिल्म डायरेक्टर गुलज़ार कहते हैं-
''विशाल की कोई भी कहानी शेक्सपीयर से प्रेरित नहीं है बल्कि वो ओरिजिनल कहानियां हैं, शेक्सपीयर का नाम वो सिर्फ सस्ती पब्लिसिटी के लिए इस्तेमाल करता है.''
अब आप खुद ही तय कर लें कि गुलज़ार का कहना किस हद तक सही है. वैसे विशाल ने इस कॉम्प्लीमेंट को स्वीकार कर लिया है.


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