तारीख़: 06 जनवरी.
टारगेट नंबर एक: पोप जॉन पॉल द्वितीय. उस वक़्त कैथोलिक चर्च के सबसे बड़े धर्मगुरू.
टारगेट नंबर एक: पोप जॉन पॉल द्वितीय. उस वक़्त कैथोलिक चर्च के सबसे बड़े धर्मगुरू.
टारगेट नंबर दो: एशिया से अमेरिका जाने वाले 11 यात्री विमान.
टारगेट नंबर तीन: सीआईए हेडक्वार्टर, वर्जीनिया.
तीनों हाई-प्रोफ़ाइल टारगेट सेट थे. पूरा प्लान भी. फंडिंग की कोई कमी नहीं थी. आतंकियों ने एक बम को टेस्ट भी कर लिया था. इस टेस्टिंग में एक व्यक्ति मारा गया, जबकि 10 लोग घायल हो गए थे. अगर फ़ाइनल प्लॉट पटरी पर चलता तो कम-से-कम चार हज़ार लोग मारे जाते. लेकिन उससे पहले एक चिनगारी सुलगी, एक कमरे में आग लगी और अमेरिकी इतिहास के सबसे वीभत्स आतंकी हमले की संभावना पर विराम लग गया.
आज की तारीख़ जुड़ी है ‘बोजिन्का प्लॉट’ से. ये एक कोडनेम था. इसका मतलब क्या है, ये आगे बताएंगे.
पहले एक फ़ोन की कहानी. तारीख़ 06 जनवरी. साल 1995. फ़िलिपींस की राजधानी मनीला. उस दिन सब नॉर्मल नहीं चल रहा था. पुलिस थोड़ी व्यस्त थी. कैथोलिक चर्च के मुखिया जॉन पॉल द्वितीय हफ्ते भर बाद मनीला आने वाले थे. उनकी सुरक्षा की तैयारियां जोरों पर थी.
06 जनवरी की शाम पुलिस की व्यस्तता बढ़ने अचानक बढ़ गई. उनके पास एक कॉल आया. ख़बर थी कि डोना जोसेफ़ अपार्टमेंट के ऊपरी फ़्लोर पर आग लगी है. जब फ़ायर ब्रिगेड की टीम आग बुझाने पहुंची तो किराएदार ने उन्हें बाहर ही रोक दिया. इसलिए पुलिस को मौके पर बुलाया गया था.
पुलिस टीम को लगा, थोड़ा समझाने से मामला सुलझ जाएगा. लेकिन सब इतना सीधा था नहीं. जब पुलिसवाले कमरे के अंदर गए, उनके होश उड़ गए. वहां अलग-अलग रंग के इलेक्ट्रिक वायर्स पड़े हुए थे. केमिकल्स के डिब्बे और अंदर उठता धुआं गहरा संदेह पैदा कर रहा था.
उस रोज़ संदिग्ध कमरे को सील कर दिया गया. अगले दिन पुलिस दोबारा उस जगह पर लौटी. सर्च वॉरन्ट के साथ. इस बार वे पूरे अधिकार के साथ अंदर घुसे. उन्हें खतरनाक केमिकल्स, इलेक्ट्रिक स्विच, टाइमर, आयरन समेत कई अजीबोगरीब सामान मिले. रेसिडेंशियल अपार्टमेंट में इनका होना समझ से परे था. पिछले महीने ही मनीला एक थिएटर में बम विस्फ़ोट हुआ था. पुलिस को बम का शक हुआ.
ये शक तब और पुख्ता हो गया, जब वहां उन्हें एक मैनुअल मिला. इसमें बम बनाने की विधि लिखी हुई थी. इसके अलावा दर्जन भर फ़र्ज़ी पासपोर्ट भी मिले. अलग-अलग नामों से. पुलिस ने अपार्टमेंट से अहमद सईद नामक एक शख़्स को अरेस्ट किया. वो बार-बार अपना बयान बदल रहा था.
अहमद सईद की सच्चाई बाद मेें पता चली. उसका असली नाम अब्दुल हकीम मुराद था. वो आग के कारण बिगड़े कंप्यूटर को ठीक करने आया था. और, वहां पुलिस के हत्थे चढ़ गया. वो एक बड़ी साज़िश का हिस्सा था.
खैर, ये फ़ाइल खोली गई. पुलिस को वहां पूरा ब्लूप्रिंट मौजूद मिल गया. इसमें उन तीनों टारगेट्स की पूरी डिटेल भी थी, जिसके बारे में शुरुआत में बताया जा चुका है.
पोप को मारने की साज़िश इसलिए रची गई, ताकि दुनिया को एक तरफ उलझाया जा सके. और, दूसरी तरफ़ प्लेन्स को बम से उड़ाकर तबाही मचा दी जाए. पोप की हत्या के लिए एक आत्मघाती हमलावर तैयार किया गया था. वो पादरी की पोशाक में पोप के पास जाकर ख़ुद को उड़ाने वाला था.
जबकि विमानों में विस्फ़ोट के लिए 21-22 जनवरी, 1995 की तारीख़ चुनी गई थी. उस दिन एशियाई एयरपोर्ट्स से अमेरिका जा रहे 11 प्लेन्स में टाइम बम लगाकर विस्फ़ोट करना था. यात्रियों को हवा में ही बम से उड़ाने की तैयारी थी. गिनती लगभग चार हज़ार.
इसी के तहत मनीला के उस अपार्टमेंट में बम तैयार हो रहा था. जहां तक सीआईए हेडक़्वार्टर की बात थी, उस इमारत पर एक प्लेन क्रैश कराने की योजना थी. लेकिन ऐन मौके पर एक्सपेरिमेंट में चूक हुई. इस वजह से आग लगी और पुलिस वहां पहुंच गई. आतंकियों का पूरा प्लान धरा-का-धरा रह गया.
अब्दुल हकीम मुराद तो बस एक मोहरा था. अब बाकी साज़िशकर्ताओं की तलाश शुरू हुई. उस कमरे में रह रहे दो लोग उसी दिन फिलीपींस से बाहर निकल आए थे. खालिद शेख़ मोहम्मद और रम्ज़ी युसुफ़. दोनों पाकिस्तानी थे. और, बोजिन्का प्लॉट के मास्टरमाइंड. ये दोनों अल-क़ायदा के संस्थापक ओसामा बिन लादेन से सीधे संपर्क में थे. लादेन इसके लिए पैसे मुहैया करा रहा था.
रम्ज़ी युसुफ़ फ़रवरी, 1995 में पाकिस्तान में पकड़ा गया. वली ख़ान अमीन शाह इस साज़िश के तीन फ़ाइनेंशर्स में से एक था. वो दिसंबर के महीने में मलेशिया में अरेस्ट हुआ. मुराद, रम्ज़ी और अमीन शाह, तीनों को अमेरिका में उम्रक़ैद की सज़ा मिली.
ख़ालिद शेख़ मोहम्मद उस समय अमेरिका के हत्थे नहीं चढ़ा. वो बोजिन्का प्लॉट की नस-नस से वाक़िफ था. उसे लगा, बम से प्लेन उड़ाने का प्लान खतरनाक है. कुछ सालों के बाद उसने ओसामा बिन लादेन के साथ मिलकर 9/11 के हमले को अंज़ाम दिया. जब आतंकियों ने यात्रियों से भरे विमानों को वर्ल्ड ट्रेड टॉवर से टकरा दिया था. इस हमले में लगभग तीन हज़ार लोग मारे गए थे. ये अमेरिका पर हुआ सबसे बड़ा आतंकी हमला था.
ख़ालिद शेख़ की तलाश एक बार फिर तेज़ हुई. 2003 में उसे रावलपिंडी के एक गेस्ट हाउस से उठाया गया. फिलहाल, वो अमेरिका की गुआंतनामो जेल में बंद है. उसकी डेथ पेनल्टी पर 11 जनवरी को सुनवाई होने वाली है.