मोदी सरकार 1.0 की इकलौती मुस्लिम महिला मंत्री रहीं नजमा हेपतुल्ला की किताब आई है. किताब आत्मकथा की शक्ल में है, नाम है, “In Pursuit of Democracy.” इसे रूपा प्रकाशन ने छापा है. कीमत है, 695 रुपये. ढाई सौ पन्नों की किताब में नजमा उसी ट्रैप में फंसी हैं, जिसमें हर आत्मकथा एक बार तो फंसती ही हैं. खुदको को ज्यादातर महान घटनाओं के केंद्र में पाए जाने का आत्मबोध. पर Devil’s Advocate बनें तो एक आड़ ये ये भी हो सकती है कि जब अपनी कहानी लिख रहे हैं तो हर किरदार और वाकये को अपनी नजर और समझ से ही तो बांचेंगे न. बहरहाल, हमने किताब पढ़ी. और आपके लिए पांच सबसे रोचक किस्से बटोर लाए हैं. क्रैब को कट करते हैं और आपको सीधे किस्सों के करीब ले चलते हैं.
इंदिरा की वो दोस्त जिसने नरेंद्र मोदी को पैसा देने से मना कर दिया था
नजमा की किताब में कई किस्से हैं. जैसे एक बार नरेंद्र मोदी को उन्होंने पैसा देने से मना कर दिया था. और संजय गांधी की मौत के अगले दिन इंदिरा गांधी गांधी क्या कर रहीं थीं, इसका भी ब्यौरा है.
1. जब इंदिरा ने बताया कि उन्हें तो गधी का दूध पीना पड़ा था-
21 अप्रैल 1982. इंदिरा ने चार दिन की सऊदी अरब की यात्रा की शुरुआत की. नजमा भी इस यात्रा में इंदिरा के साथ थीं. एक शाम किंग खालिद की पत्नी ने दोनों को डिनर पर बुलाया. नजमा सऊदी के युवराज फहाद की पत्नी के बगल में बैठीं. नजमा के सामने एक गिलास रखा था, उन्हें लगा कि इसमें दूध होगा. जैसे ही उन्होंने टेस्ट किया, बगल में बैठीं फहाद की पत्नी ने पूछा, “आपको ये पसंद आया?” नजमा बोलीं, हां. तब उन्हें बताया गया कि ये ऊंटनी का दूध था. ये सुनना था कि नजमा का मुंह बन गया. मेहमान ने पूछा, “आपको पसंद नहीं आया?” नजमा ने मेहमाननवाजी का पूरा आदर रखते हुए कहा, कि अगर उन्हें ये न बताया जाता कि ये ऊंटनी का दूध है तो शायद उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती. इंदिरा ने ये बातचीत सुन ली थी. वे नजमा की तरफ मुड़ीं और हंसते हुए बोलीं,
"अब शिकायत मत करो, मुझे तो मंगोलिया में गधी का दूध पीना पड़ गया था. और लुत्फ लेना भी मेरी मजबूरी थी."
2.) जब केसरी बोले, मैं पार्टी अध्यक्ष हूं, कोई कार्यकर्ता नहीं-
साल 1997. इसी बरस सीताराम केसरी को कांग्रेस का निर्विरोध अध्यक्ष चुना गया. हालांकि इसके एक साल बाद उनका जैसा विरोध हुआ, वो कहानी कभी और. नजमा बताती हैं कि एक दिन वो दस जनपथ की लॉबी में बैठकर सोनिया का इन्तजार कर रही थीं. इसी बीच केसरी भी आ गए. बहुत देर इन्तजार करने के बाद भी जब सोनिया से मुलाकात नहीं हो पाई, तो केसरी गुस्सा गए. बोले-
“मैं पार्टी का कोषाध्यक्ष हूं, कोई आम कार्यकर्ता नहीं. ये राज्यसभा की उपसभापति हैं. हम यहां गुलदस्ता देने नहीं एक सीरियस बात करने आए हैं. और हमें इस तरह इन्तजार करवाया जा रहा है.”
उन्हें अपमानित महसूस हुआ और वो वहीं से बिना मिले चले गए. नजमा ने आगे लिखा है कि मुझे वसंतदादा पाटिल की याद आई. उन्हें माखनलाल फोतेदार ने इसी तरह अपमानित किया था, और इसके बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी.
3. जब नजमा ने नरसिम्हा राव की जान बचा ली
21 मई 1991. तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में राजीव गांधी की लिट्टे के आत्मघाती हमलावर दस्ते के हाथों हत्या कर दी गई थी. नजमा बताती हैं कि 10 जनपथ पर, जब सभी लोग राजीव के शव का इंतज़ार कर रहे थे, तो उन्होंने देखा कि नरसिम्हा राव अपनी दवाइयों के लिए परेशान हैं. उस वक्त वहां का माहौल ऐसा था कि कोई कुछ सोच पाने की स्थिति में नहीं था. नजमा ने उन्हें देखते ही एक गिलास पानी लाकर दिया. बाद में, उनके डॉक्टर डॉ. नरेश त्रेहान ने नजमा से कहा,
“आपने उनकी जान बचा ली है. उस वक्त उन्हें अपनी गोलियां लेने की सख्त ज़रूरत थी.”
4.) संजय की मौत के अगले दिन इंदिरा क्या कर रही थीं?
23 जून 1980. संजय गांधी की प्लेन क्रैश में मौत हो चुकी थी. नजमा उस दिन मुंबई में थीं क्योंकि उन्हें इंदिरा की ओर से संदेश था कि राज्यसभा के जरिए दिल्ली आओ. और 23 जून ही नामांकन का आखिरी दिन था. वे जब महाराष्ट्र के तबके मुख्यमंत्री ए. आर. अंतुले के घर पहुंची तो वहां मातम पसरा था. जैसे ही खबर मिली, अगले दिन नजमा दिल्ली चली आईं. प्रधानमंत्री आवास माने, 1 सफ़दरजंग रोड पहुंचते ही उन्होंने उस कलश को देखा, जिसमें संजय की अस्थियां रखी हुई थीं. किताब में नजमा लिखती हैं-
“पंडित अंतिम संस्कार के मंत्र पढ़ रहे थे. मैं घास पर बैठ गयी. थोड़ी देर बाद प्रधानमंत्री अपने बंगले से बाहर आईं, मुझे देखा और पास पड़ी दरी की तरफ इशारा किया. वहां मौजूद हर आंख नम थी. लेकिन इंदिरा गांधी एक मूर्ति की तरह खड़ी थीं. उनके चेहरे की उदासी से उनके दुःख को पढ़ा जा सकता था, इंदिरा जानती थीं कि वे सिर्फ एक मां नहीं, प्रधानमंत्री भी हैं. इसलिए उन्होंने बहुत काठ सा कलेजा कर सब कुछ डील किया.”
नजमा रेखांकित करती हैं कि इंदिरा रोई नहीं. जब संजय के दाह-संस्कार के बाद के सभी रिवाज पूरे हो गए. तो इंदिरा ने उन्हें घर के अंदर आने का इशारा किया. नजमा बताती हैं कि वे मुझे एक साइड दरवाजे से डायनिंग रूम में ले गईं. मैं टेबल पर झुक गई और रोने लगी. उन्होंने मुझे सांत्वना देने की कोशिश की और एक कमजोर आवाज में पूछा, "तुम सीधे एयरपोर्ट से आई हो, क्या तुम चाय पियोगी?" इतना सुनना था कि नजमा टेबल पर सर रखकर सुबकने लगीं. इंदिरा इसके बाद चाय ले आईं.
इंदिरा खुद अपने बेटे को खोने के दुःख में थीं, फिर भी वे नजमा को दिलासा देने की कोशिश कर रही थीं. इसके बाद इंदिरा, नजमा के पास बैठीं और बोलीं, "मैं चाहती हूं कि तुम वापस बॉम्बे जाओ और चुनाव लड़ो ताकि तुम मेरे साथ काम कर सको." नजमा को आदेश मिल चुके थे. वे मुंबई पहुंची और महाराष्ट्र से राज्यसभा के रास्ते दिल्ली आईं. यहीं से उनकी सक्रिय राजनीतिक यात्रा शुरू हुई, जो अनजाने में, उनके शब्दों में कहें तो उनकी खुद की उम्मीद से भी ज्यादा करीब 40 साल तक चली.
5.) जब नरेंद्र मोदी ने पैसा मांगा और नजमा ने मना कर दिया
26 जनवरी 2001. भुज के भूकंप ने गुजरात को तबाह कर दिया था. जिसमें 20 हज़ार लोगों की जान चली गई थी. और डेढ़ लाख से ज्यादा लोग घायल हुए थे. उसी दौरान नजमा की मुलाकात नरेंद्र मोदी से हुई, जो तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे. उस वक्त हर सांसद के पास दो करोड़ का फंड हुआ करता था. नजमा उस वक्त राज्यसभा की उपसभापति थीं. उन्होंने सभी सांसदों को अपनी-अपनी इच्छानुसार पैसा डोनेट करने के लिए खत लिखा. नजमा बताती हैं कि तबके केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री प्रमोद महाजन ने तो अपनी पूरी 2 करोड़ की फंड राशि गुजरात के लिए दे दी थी. इस तरह पूरी राहत राशि कुल 31 करोड़ रुपये हो गई. पैसा इकठ्ठा होने के बाद मई 2001 में, भूकंप से प्रभावित इलाकों का मौके पर जाकर मुआयना करने के लिए एक कमेटी बनाई गई.
उन्हीं दिनों की बात है, अहमदाबाद में नजमा और नरेंद्र मोदी की मुलाकात हुई. मीटिंग के बारे में बताते हुए नजमा कहती हैं कि मोदी ने कहा,
"आप हमें ये पैसा दे दीजिए, हम इसे विकास कार्यों पर खर्च करेंगे."
नजमा ने जवाब दिया,
"सर, मुझे पता है कि आप बहुत ईमानदार इंसान हैं और इस पैसे का अच्छा इस्तेमाल ही होगा. लेकिन इस प्रोजेक्ट का जिम्मा मेरे ऊपर है, और देशभर के सांसदों ने मुझे ये जिम्मेदारी दी है. मुझे लगता है कि मुझे खुद ही ये काम करना चाहिए."
नजमा ने आगे लिखा है कि नरेंद्र मोदी ने मेरी बात समझी और कहा, “ये अच्छी बात है.” और इस तरह MPLADS (माने Members of Parliament Local Area Development Scheme.) का पैसा गुजरात सरकार की नहीं, नजमा की देख-रेख में खर्च हुआ.
नजमा भारत के पहले शिक्षा मंत्री रहे मौलाना अबुल कलाम आजाद की पोती हैं. 17 साल तक राज्यसभा की उपसभापति थीं. मशहूर एक्टर आमिर खान रिश्ते में उनके भतीजे लगते हैं. 2004 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया था. उनका हालिया पॉलिटिकल असाइनमेंट था, अगस्त 2021 तक मणिपुर का राज्यपाल बनना. फिलहाल वे सक्रिय राजनीति से दूर हैं.
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