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एक नहीं कई विवादों से घिरी रहीं नेहरू की बहन, जानिए क्यों

विजयलक्ष्मी पंडित की डेथ एनिवर्सरी है आज.

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आज जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित की बरसी है. और भारत के इतिहास में भाई-बहन की इतनी ताकतवर जोड़ी हुई नहीं है. फिर नेहरू की तरह विजया का जीवन भी कई तरह के विवादों में रहा.
भारत की पहली औरत, जो मंत्री बनी
'गांधी परिवार' की औरतों ने राजनीति में अपनी धमक हमेशा बनाई रखी है. इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी ने तो पूरी राजनीति की है. फिर अभी जब कांग्रेस तकलीफ में आती है, तो लोग तुरंत कहने लगते हैं कि प्रियंका को बुलाओ. पर इन लोगों से पहले विजयलक्ष्मी पंडित 1937 में ही ब्रिटिश इंडिया के यूनाइटेड प्रोविन्सेज में कैबिनेट मंत्री बनी थीं.
नेहरू से 11 साल छोटी और अपनी बहन कृष्णा से 7 साल बड़ी थीं विजया. इलाहाबाद से अपनी पढ़ाई शुरू की. बाद में गांधी और नेहरू के साथ स्वतंत्रता संग्राम में लड़ीं. पहले डैडी मोतीलाल नेहरू और बाद में भाई जवाहरलाल नेहरू के साथ राजनीति में सक्रिय रहीं.
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विजया, नेहरू और इंदिरा

राजनीति में इतने वैरायटी के पोस्ट संभाले, जो हैरान कर देते हैं:
1.


1937 से 1939 तक यूनाइटेड प्रोविन्सेज में 'लोकल सेल्फ-गवर्नमेंट' और 'पब्लिक हेल्थ' का डिपार्टमेंट संभाला. दोनों ही डिपार्टमेंट गुलाम भारत में आज के भारत की नींव रख रहे थे.
2.


1946 में संविधान सभा में चुनी गईं. औरतों की बराबरी से जुड़े मुद्दों पर अपनी राय रखी और बातें मनवाईं.
3.


आज़ादी के बाद 1947 से 1949 तक रूस में राजदूत रहीं. ये दौर भारत के लिए बड़ा सनसनीखेज था. क्योंकि सुभाषचंद्र बोस के रूस में होने की अफवाह उड़ती रहती.
4.


अगले दो साल अमेरिका की राजदूत रहीं. मतलब कम्युनिस्ट देश से सीधा कैपिटलिस्ट देश में! वो भी तब, जब दोनों देशों में कोल्ड वॉर चल रहा था.
5.


फिर 1953 में यूएन जनरल असेंबली की प्रेसिडेंट रहीं. मतलब पहली औरत, जो वहां तक पहुंची भारत का सिक्का जमाने.
6.


1955 से 1961 तक इंग्लैंड, आयरलैंड और स्पेन में हाई कमिश्नर रहीं. 1962 से 1964 तक महाराष्ट्र की गवर्नर रहीं.
7.


1964 में नेहरू का निधन हुआ. और विजया नेहरू के क्षेत्र फूलपुर से लोकसभा में चुनी गईं.
यहां तक सब कुछ होने के बाद नेहरू की बहन होने के नाते ऐसा अंदाज़ा लगाया जा रहा था कि विजया प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हो सकती हैं. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. क्योंकि इंदिरा गांधी से इनकी नहीं बनती थी.
आइये पढ़ते हैं विजया के जीवन की तीन विवादस्पद बातें:
1.


डैडी मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद में अखबार चलाते थे The Independent. 1919 में इस अखबार के एडिटर के लिए उन्होंने सैय्यद हुसैन नाम के धांसू लड़के को बुलाया. हुसैन के बारे में कम लोग जानते हैं. पर अपने समय में हुसैन जैसा बोलने वाला कोई था नहीं. लड़के ने अमेरिका में जाकर गांधी के ऊपर लिखकर और लेक्चर देकर इंडिया का डंका बजा दिया था.
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फिर वही हुआ. दो शानदार लोग एक जगह रहते हैं, तो आकर्षण स्वाभाविक है. कहते हैं कि 19 की विजया और 31 के हुसैन एक-दूसरे से बंध गए. समाजवाद और धार्मिक एकता का ड्रम बजाने वाला नेहरू परिवार इस रिश्ते को स्वीकार नहीं कर पाया. ठीक उसी तरह जैसे इंदिरा-फिरोज के रिश्ते को नेहरू ने नकार दिया था. और शायद इसीलिए इन्दिरा ने अपने दोनों बेटों को इस बात के लिए खुला छोड़ दिया. तो 1922 में हुसैन ने इलाहाबाद छोड़ दिया. ये बिल्कुल एकलव्य वाला किस्सा था. हुसैन गांधी के भक्त थे. और गांधी ने खिलाफत आन्दोलन का प्रवक्ता बनाकर हुसैन को इंग्लैंड भेज दिया. पर अफवाह उड़ती रहती कि दोनों ने शादी कर ली है.
सईद नकवी अपनी किताब 'बीइंग द अदर्स' में अपने अंकल वसी नकवी, जो रायबरेली से MLA थे और 50 के दशक में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे चंद्र भान गुप्ता के हवाले से बताते हैं कि उस समय के सबसे बड़े आदमी, भारत की एकता के प्रतीक महात्मा गांधी भी इस रिश्ते के खिलाफ थे. उनको लगता था कि इससे आन्दोलन पर असर पड़ेगा. शायद इंडिया में हर आदमी अपने घर में कम्युनल हो जाता है. और विजया की शादी कर दी गई महाराष्ट्र के एक 'ब्राह्मण' से. जो तीन बच्चों के बाद 1944 में दुनिया छोड़ गए.
पर हुसैन से नेहरू का रिश्ता ख़त्म हुआ नहीं था. नेहरू की रिश्ते रखने की आदत शायद बेहद शानदार थी. उन्होंने हुसैन को मिस्र का राजदूत बना के भेज दिया. कहते हैं कि विजया और हुसैन एक-दूसरे को भूल नहीं पाए थे. कभी-कभी मिल लेते थे. उस समय इंटरनेशनल मीडिया में इस बात की बड़ी चर्चा होती थी. मिस्र में ही हुसैन मर गए. उनके नजदीकी लोग कहते थे कि हुसैन एक टूटे हुए दिल के साथ मरे थे. अपनी उदास जिंदगी को शानदार अंदाज में जीते थे. वो उदासी उनके बड़े से कमरे में झलकती थी. किसी फिल्म के स्टार की तरह रहते थे. पर उदास. विजया उनकी कब्र पर फूल चढ़ाने जाती रहती थीं.
2.


विजया के साथ दूसरा विवाद जुड़ा सुभाष चन्द्र बोस को लेकर. हमेशा ऐसा कहा जाता रहा कि बोस मरे नहीं हैं. उनको रूस में रखा गया है. मॉस्को में रामकृष्ण मिशन के मुखिया स्वामी ज्योतिरूपानंद ने कहा था कि एक बार विजया को रूसी अधिकारी ले गए थे सुभाष के पास. एक छेद से दिखाया गया सुभाष को. जब विजया इंडिया आईं, तो एक जगह कहा था कि मेरे पास ऐसी खबर है कि हिंदुस्तान में तहलका मच जाएगा. शायद आज़ादी से भी बड़ी खबर. पर नेहरू ने उनको मना कर दिया कुछ भी कहने से.
नेताजी सुभाष चंद्र बोस. Photo: Reuters
नेताजी सुभाष चंद्र बोस. Photo: Reuters

3.


विजया के साथ तीसरा विवाद था इंदिरा से. ये एक तेज-तर्रार बुआ और मां के अपमान से जली हुई भतीजी के बीच की जंग थी. इंदिरा की मां कमला नेहरू एक साधारण परिवार से आती थीं. नेहरू परिवार बहुत हाई-फाई था. इसमें कमला का हमेशा मजाक बनता. भाई-बहन के आगे कमला निरीह रहतीं. इंदिरा ने इस चीज को बड़ी शिद्दत से महसूस किया था. फिर बुआ विजया हमेशा इंदिरा को बदसूरत कहतीं. ये चीज इंदिरा के दिमाग में धंस गई थी. इतनी कि अपने अंतिम दिनों में भी इंदिरा इस बात का जिक्र कर देतीं. प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा ने बुआ को एकदम साइड कर दिया. भाई के सामने ताकतवर रहने वाली विजया लाचार हो गईं. जब इंदिरा ने देश में इमरजेंसी लगाई, तो विजया खुल के इंदिरा के खिलाफ आ गईं. चैन तब आया उनको, जब इंदिरा 1977 का चुनाव हार गईं.
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1990 में विजया की मौत हुई. नयनतारा सहगल विजया की ही बेटी हैं. वही नयनतारा, जिन्होंने 2015 में अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया था. जो भी हो. हिंदुस्तान की सबसे बेहतरीन औरतों में विजय लक्ष्मी पंडित का नाम हमेशा आगे रहेगा. इनके साथ ही हम सैय्यद हुसैन को भी याद करेंगे. एक शानदार आदमी, जिसके बारे में लोगों को कम पता है. वो आदमी, जिसे देखकर ब्रिटेन में कहा गया कि जब हिंदुस्तान में ऐसे लोग हैं, तो देश पिछड़ा कैसे है?

ये आर्टिकल ऋषभ ने लिखा है.




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