IPO के बेसिक्स जानने के लिए हमारी ये स्टोरी पढ़ सकते हैं, जो हमने तब की थी जब IRCTC का IPO आया था:
क्यूं IRCTC के IPO के लिए अप्लाई करना फायदे का सौदा है?
अब इस 'नज़ारा टेक्नॉलजीज़' वाली स्टोरी को अगर आप गूगल करेंगे, या किसी न्यूज़-पेपर में पढ़ेंगे तो पाएंगे कि उसमें ‘राकेश झुनझुनवाला’ का नाम ज़रूर होगा. और इसके दो कारण हैं-
# पहला, राकेश झुनझुनवाला ने ‘नज़ारा टेक्नॉलज़ीज़’ में अच्छा ख़ासा इन्वेस्टमेंट किया हुआ है.तो आज कहानी इन्हीं इंडियन वॉरेन बफ़ेट या बिग-बुल माने जाने वाले राकेश झुनझुनवाला की. # बिग-बुल 2.0 सोनी लिव पर स्ट्रीम हो रही वेब सीरीज़ ‘स्कैम 1992’ तो आपने देख ही ली होगी. और अगर नहीं भी देखी तो इसके बारे में सुना ज़रूर होगा. कुछ नहीं भी तो इसके मुख्य किरदार के बारे में तो सुना ही होगा. हर्षद मेहता. अपने जमाने का सबसे बड़ा तेजड़िया. और उसके सामने हुआ करता था बियर (bear) कार्टल. उसी बियर कार्टल के एक सदस्य थे राकेश झुनझुनवाला. स्कैम 1992 में राकेश झुनझुनवाला के किरदार से इंस्पायर्ड एक कैरेक्टर 'राकेश मेहता' का भी था. स्टोरी आगे बढ़ाने से पहले आइए ये समझ लेते हैं कि तेजड़िए और मंदड़िए होते क्या हैं.
# दूसरा राकेश झुनझुनवाला को इंडिया का वॉरेन बफ़ेट कहा जाता है.

# बियर-बुल आपने देखा होगा कि जब मार्केट ऊपर जाता है तो शेयर मार्केट में उत्सव सा माहौल होता है. ऐसी कई न्यूज़ स्टोरीज़ के साथ आपने मिठाइयों के बंटने की तस्वीरें भी देखी होंगी. क्यूंकि जब मार्केट ऊपर जाता है तो मार्केट के दिग्गजों को लाखों-करोड़ों का फ़ायदा होता है.
लेकिन ज़रूरी नहीं है कि आपका फ़ायदा सिर्फ़ तभी हो, जब मार्केट ऊपर जा रहा हो. आप तब भी करोड़ों कमा सकते हैं जब मार्केट नीचे आए. कैसे? इसकी एक बानगी आप हमारी इस स्टोरी में देख सकते हैं, जिसमें बताया गया है कि शेयर्स को ‘शॉर्ट’ करके आप कैसे मार्केट के नीचे जाने पर भी कमाई कर सकते हैं-
इन्साइडर ट्रेडिंग करके शेयरों से करोड़ों कमाने की सोच रहे हैं तो ज़रा इसकी मंज़िल भी जान लीजिए.
तो यूं कुछ लोग मार्केट के बढ़ने पर पैसा कमाते हैं और चाहते हैं कि मार्केट हमेशा बढ़ता रहे, और कुछ लोग मार्केट के गिरने पर पैसा कमाते हैं और चाहते हैं कि मार्केट हमेशा नीचे आता रहे. दोनों तरह की चाहतों में और उसके हिसाब से अपना दांव लगाने में तो ख़ैर कोई दिक्कत नहीं. लेकिन कई लोग मार्केट को अपनी इस ‘चाहत’ के हिसाब मूव करवाने के लिए अनैतिक तरीक़ों का प्रयोग करते हैं. ऐसे ही मेन्यूप्लेशन हर्षद मेहता किया करता था. उसने ACC सीमेंट जैसे कई शेयर्स के दाम अर्श से फ़र्श तक पहुंचा दिए थे. वो एक तेजड़िया था. मतलब शेयर्स के दाम बढ़ने पर कमाता था. दूसरी ओर, राकेश झुनझुनवाला ‘कथित’ मंदड़िया-कार्टेल के एक सदस्य थे. मतलब एक ऐसे ग्रुप के सदस्य, जो शेयर मार्केट के नीचे (साउथ-वर्ड) जाने पर कमाई के मौक़े ढूंढते थे.

यहां कथित मंदड़िया-कार्टेल इसलिए कहा जाता है क्यूंकि इस बारे में कुछ भी ऑफ़िशियल नहीं है. ‘कथित’ इसलिए भी यूज़ किया है क्यूंकि ज़रूरी नहीं कि जो व्यक्ति या ग्रुप मंदड़िया है, वो हमेशा मंदड़िया रहे, और जो तेजड़िया है वो हमेशा तेजड़िया रहेगा. और हर कोई जो शेयर मार्केट से पैसे कमाने की चाह रखता है, वो एक ही वक्त में किसी एक शेयर के लिए तेजड़िया और किसी दूसरे के लिए मंदड़िया हो सकता है.
तेज़ी के कॉन्सेप्ट को बुल (bull) के साथ और मंदी के कॉन्सेप्ट को बियर (Bear) के साथ जोड़कर देखा जाता है. जैसे अगर मार्केट में तेज़ी है तो कहेंगे कि बुल-रन चल रहा. ऐसे ही अगर कोई टीम, बंदा या मान लीजिए कार्टेल, तेज़ी करके या तेज़ी में (यानी शेयर मार्केट के ऊपर जाने पर) पैसे कमा रहा है तो उसे बुल या बुल-कार्टेल कहेंगे. और ऐसा ही हिसाब बियर का भी है.
बुल यानी बैल, जब किसी पर हमला करता है तो उसे ऊपर उछाल देता है. आपने कभी उसके हमले को देखा होगा तो पाया होगा कि बुल नीचे से ऊपर की ओर वार करता है. दूसरी तरफ़ बियर अपने पंजों से वार करता है ऊपर से नीचे की ओर. इसलिए ही तेज़ी के लिए बुल और मंदी के लिए बियर.# कहानी पर वापस लौटते हैं तो राकेश झुनझुनवाला की स्टोरी को आगे बढ़ाते हैं. देखिए, जैसा कि हमने पहले ही कहा कि बियर और बुल, दोनों कॉन्सेप्ट किताबों और एकेडमिक्स में तो अलग-अलग रखे जाते हैं लेकिन व्यवहार में दोनों एक दूसरे से बहुत अच्छे से घुले मिले हैं. और प्रॉफ़िट कमाने की चाह रखने वाले दोनों ही तरह के दांव बदल-बदल कर या एक साथ खेलते हैं. तो ऐसे ही कभी बियर कार्टेल के सदस्य रहे राकेश झुनझुनवाला आज के दौर में 'बिग-बुल' कहलाने लगे हैं.
एक इंटरव्यू के दौरान राकेश ने कहा था-
हूं तो मैं एक सीनियर ऑफ़िसर का बेटा, लेकिन मारवाड़ी अग्रवाल हूं.5 जुलाई, 1960 को एक मारवाड़ी फ़ैमली में जन्मे राकेश झुनझुनवाला के पिता और अरविंद केजरीवाल में क्या कॉमन है? यही कि दोनों IRS (इंडियन रेवेन्यू सर्विस) ऑफ़िसर थे. लेकिन राकेश के पिता को राजनीति नहीं शेयर मार्केट का शौक़ था. लेकिन इतना नहीं कि सब कुछ दांव पर लगा दें. बस वो शेयर मार्केट की खबरों से हमेशा अपडेटेड रहा करते थे. अपने दोस्तों के साथ डिस्कस किया करते थे, कौनसा शेयर ऊपर चढ़ा, कौनसा नीचे गया. इनकी बातें सुनकर राकेश पर भी शेयर मार्केट का भूत सवार हो गया. तब कुछ भी ऑनलाइन तो होता नहीं था. शेयर्स के भाव अगले दिन अख़बार में ही लिखे आते. ये 12 साल का लड़का रोज़ पेपर में शेयर के भाव देखता. पापा ने उसके इस शौक़ को देखकर कहा कि तुम कल के भाव प्रिडिक्ट करो.

लड़के की भविष्यवाणियां सही रहतीं या ग़लत, ये महत्वपूर्ण नहीं है. महत्वपूर्ण ये है कि उसका शौक़ बढ़ता चला गया. वह शेयर और उनकी कंपनी के फ़ंडामेंटल्स पढ़ने और फ़ॉलो करने लगा. एक दिन पिता से कहा कि मैं शेयर मार्केट में अपने करियर बनाना चाहता हूं. जैसा कि राकेश झुनझुनवाला ने खुद अपने एक इंटरव्यू में बताया कि उनके पिता काफ़ी डेमोक्रेटिक थे. लेकिन फिर भी उनके पिता ने उन्हें शेयर मार्केट में अपना करियर बनाने से पहले कोई प्रोफ़ेशनल कोर्स कर लेने की सलाह दी. साथ ही उस वक्त ट्रेडिंग करने के लिए मना कर दिया. दोस्तों से पैसे उधार लेकर न करने लग जाए, इसलिए दोस्तों को भी उधार देने से मना कर दिया.
चाल काम आई. बेटे ने अपने बड़े भाई की तरह ही सीए का कोर्स किया, और फिर पिताजी बोले, यहां मुंबई में हमारा घर है तो तुम्हें रहने की दिक्कत होगी नहीं. हालांकि पैसा, मैं तुमने एक फूटी कौड़ी नहीं देने वाला.
1985 का साल. बेटा राकेश, दलाल स्ट्रीट में अकेला. न कोई जॉब न कोई क्लाइंट. अपने भाई से संपर्क किया. भाई ने अपने क्लाइंट में से कुछ को राकेश से कनेक्ट करवाया. राकेश इन क्लाइंट्स से बोले, मैं 18% रिटर्न दूंगा. जबकि अच्छे से जानते थे कि अच्छी से अच्छी इन्वेस्टमेंट स्कीम भी 10-12% रिटर्न नहीं देती. पर फिर भी कोई नए घोड़े पर दांव क्यूं ही लगाएगा. ख़ैर, एक लेडी क्लाइंट मिली. ढाई लाख का इन्वेस्टमेंट करने को तैयार थी. लेकिन एकमुश्त नहीं. फिर अगला क्लाइंट मिला 10 लाख रुपए इन्वेस्ट करने थे उसके. इस 10 लाख रुपए से राकेश झुनझुनवाला ने सिर्फ़ एक साल में 30 लाख बना डाले. और यही से उनकी गाड़ी चल पड़ी.
राकेश झुनझुनवाला 1990 का बड़ा इंट्रेस्टिंग किस्सा बताते हैं. उनकी पत्नी रेखा ने उनसे कभी किसी चीज़ की मांग नहीं रखी. बस पिछले कुछ सालों से चाह रही थीं कि उनके कमरे में AC लग जाए. उस साल मधु दंडवते का बजट था. लोगों को लगा कि अच्छा नहीं होगा. पर राकेश झुनझुनवाला को इससे अलग लग रहा था. उन्होंने तत्कालीन PM वीपी सिंह के निर्णयों को भी क्लोज़ली ऑब्ज़र्व किया था. तीन करोड़ रुपए थे उनके पास. बजट वाले दिन, सारे मार्केट में लगा दिए.

जैसे-जैसे बजट आता रहा, राकेश के पैसे बढ़ते रहे. रात के नौ बजे नेटवर्थ देखी तो पता चला अंटी में 20 करोड़ रुपए आ चुके. रात को 2 बजे घर पहुंचे और अपनी पत्नी रेखा से बोले-
अपना AC आ गया.# रिस्क लेने से मत डरो, लेकिन.. ऐसा नहीं है कि उनके पैसे हमेशा बढ़ते ही रहे. ऐसा भी नहीं है कि उन्हें सिर्फ़ सफलताएं ही हाथ लगीं. वो खुद कहते हैं, ‘मैंने बहुत बार शेयर बेचे हैं. सिर्फ़ नुक़सान भरने के लिए.’ 2012 में जब उन्होंने एप्टेक में अपनी हिस्सेदारी बेचनी चाही तो अंतिम समय में डील कैन्सल हो गयी. ऐसे ही A2Z कंपनी में भी उन्हें 150 करोड़ रुपए का घाटा उठाना पड़ा.
2011 में उनकी नेटवर्थ 30% तक कम हो गई थी. हालांकि उन्होंने पूरे रुपये अगले साल के ख़त्म होते-होते रिकवर भी कर लिए. 2020 में फिर से उनको बड़ा घाटा हुआ.
लेकिन आज इतने सेटबैक झेल चुकने के बावज़ूद राकेश झुनझुनवाला शेयर मार्केट के बिग बुल कहे जाते हैं. इस स्टोरी के लिखे जाने तक उनकी नेटवर्थ 3.2 अरब डॉलर या 320 करोड़ डॉलर हो चुकी थी. लगभग 23.4 हज़ार करोड़ रुपए. यूं वो दुनिया के अमीरों की लिस्ट में 926th स्थान पर और भारत की अमीरों की लिस्ट में 38th स्थान पर हैं. शेयर्स की ख़रीद-फ़रोख़्त करके, उनको धीरे-धीरे एक्यूमलेट कर-करके कई कंपनियों में निर्णायक भूमिका में आ गए हैं. ’एप्टेक लिमिटेड’ और ‘हंगामा डिजिटल मीडिया लिमिटेड’ के चेयरमेन हैं. अब झुनझुनवाला अपना पोर्टफ़ोलियो तो मैनेज करते ही हैं, साथ ही उनकी एक फाइनेंशियल मैनेजमेंट फ़र्म भी है, 'रेयर एंटरप्राइज़ेज' नाम से. सफलता-असफलता को लेकर उनका फ़ंडा क्लियर है-
रिस्क लेने से डरो मत. लेकिन उतना ही रिस्क लो, जितना एफ़ोर्ड कर सकते हो ताकि दूसरा रिस्क लेने की जगह बची रहे.# इन्वेस्टमेंट की सलाह राकेश झुनझुनवाला ने कुछ बढ़िया इन्वेस्टमेंट टिप्स भी गाहे बगाहे दिए हैं. उनमें से कुछ ऐसी टिप्स, जो हमें लल्लनटॉप लगीं, ये रहीं-
# अगर एक्सपर्ट नहीं हो तो म्यूचल फंड के रास्ते शेयर में इन्वेस्ट करो. हां अगर खेलना ही है तो 5% कैपिटल से जुआ खेलो. बाक़ी म्यूचल फंड में इन्वेस्ट करो. या फिर फुल टाइम इन्वेस्टर बन जाओ. स्टडी करो.
# टिप्स इन्वेस्टमेंट के लिए सबसे ख़तरनाक हैं. ‘मैंने क्या लिया, या किसी बड़े इन्वेस्टर ने क्या लिया’ ये सब अव्वल तो अफ़वाहें होती हैं. और अगर सही भी हैं तो भी मेरे इन शेयर्स को बेचने पर मैं इसकी जानकरी आपको देने थोड़ी न आऊंगा.

# केवल इन्वेस्ट ही नहीं करना, अपने इन्वेस्टमेंट को लगातर रिव्यू भी करते रहना चाहिए.
# ‘छह महीने में पैसे दुगने, एक साल में चार गुने’ हो जाने की न उम्मीद रखिए न ही ऐसी उम्मीद दिलाने वाले के झांसे में आइए. अगर ऐसी उम्मीद है तो शेयर मार्केट नहीं घोड़ों की रेस में पैसे लगाइए. इसी लालच के चलते कोई भी कुछ समझाता है, कर लेते हैं. सच्चाई ये है कि 18-20 प्रतिशत से ज़्यादा रिटर्न आना बहुत मुश्किल है.
# मैंने शेयर मार्केट के बारे में बहुत कुछ सीखा है. लेकिन अभी जो सीखना है वो उससे भी कहीं-कहीं ज़्यादा है.
# किसी को फ़ॉलो करके आप शेयर मार्केट नहीं सीख सकते. # विवादों से नाता # राकेश झुनझुनवाला ने एक बार कहा था-
नेहरू जी का सोशलिज़्म नहीं रहता तो हिंदुस्तान कुछ और होता.# एक बार निवेश की सलाह देते-देते भटककर उन्होंने सेक्सिस्ट रेफ़रेंस भी दे डाला था, जिसके बाद उनकी काफ़ी फ़ज़ीहत हुई थी. उन्होंने कहा था कि-
लंबी अवधि के निवेश 'पत्नी' और अल्पकालिक सट्टेबाज़ी 'रखैल' सरीखी है.

एक बार ऐसे ही राकेश ने CNBC से बात करते हुए कहा था-
बाज़ार औरतों की तरह होते हैं, आपको धैर्य रखना पड़ता है.और एक बार कैजुअल सेक्सिस्ट टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा था-
अगर कोई लड़की सुंदर है तो एक प्रेमी उसके पीछे पड़ेगा ही. अगर कोई स्टॉक सुंदर है तो उसके पीछे भी एक प्रेमी पड़ेगा ही पड़ेगा.# एक बार एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने ये भी स्वीकार किया कि धर्म को लेकर उनकी काफ़ी 'स्ट्रॉन्ग ऑपिनियन' हैं-
# उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि मोदी के सत्ता में आने के बाद शेयर मार्केट में ऐसी तेज़ी आएगी, जैसी आज तक नहीं आई. 'मदर ऑफ़ ऑल बुल मार्केट'. और जब ये बात ग़लत निकली तो उन्होंने स्वीकार करते हुए कहा कि बेशक वो ग़लत निकले हों लेकिन ये तेज़ी कैन्सल नहीं पोस्टपॉन हुई है.मेरे पास अधिकार है ये कहने का कि मैं अयोध्या में मंदिर बनाऊंगा. अगर हिंदू को मुसलमान बना सकते हो, तो मैं मुसलमान को हिंदू नहीं बना सकता? क्या ग़लती है इसमें?
# नरेंद्र मोदी को लेकर उन्होंने एक बार कहा था कि नरेंद्र मोदी का बुलेट ट्रेन वाला निर्णय बेशक ग़लत है लेकिन वो मोदी के इतने बड़े फ़ैन हैं कि कोई उन्हें नींद में चार थप्पड़ मार दे तो वो 'मोदी, मोदी..' कहते हुए फिर से सो जाएंगे.