"जिस लड़की से ये प्यार करता था वो किसी और से शादी कर लिहिस. ये एकदम गुस्सा हो गया. कट्टा लेकर गया और दोनों को गोली मार दी. वहां से सीधे थाने पहुंचा और सलेंडर कर दिया. अदालत इसको फांसी की सजा सुना दिहिस. ये उसके आखिरी गाने हैं. जो जेल में गाए. उसके बाद फांसी चढ़ा दिया गया. तभी तो इसके गाने में इत्ता दरद है."ये कहानी सुनकर हमारे आंसू निकल पड़े. कई लोगों से जानकारी की कि क्या ये सच है. तब जाकर खबर पक्की हुई कि हां ये मर चुका है. हमारे बड़े भाईसाब ने भी मोहर लगा दी. वो तो और चार जूता आगे निकल गए. बेवफा सनम फिल्म के गाने सुनाए. और जहां जहां सोनू निगम की आवाज रोतड़ी होती है, वहां बताया कि गाते टाइम ये भी रो रहा था. तब हमको लगा कि वो जो गाने मौत की कंडीशन की बाद के गाए हैं, जैसे "उनको पहुंची खबर जब मेरी मौत की" तो असल में ऐसा ही हुआ होगा. अपने सीने पर ये पत्थर लिए कई साल मैं दर्द ढोता रहा. उसके बाद घपड़चौथ में वो टेप पीछे छूटा. कैसेट छूटी. अताउल्ला खान भी छूट गए. मोबाइल का जमाना आया. तो उसमें रिंगटोन बनाने और स्नेक जिंजिया खेलकर टाइमपास होने लगा. लेकिन जब हाथ में इंटरनेट आया तब समझ लो कि बुद्धि खुली. एक दिन याद आया कि हमारे बचपन का पसंदीदा सिंगर हुआ करता था अताउल्ला खान. उसके बारे में यहां तो जानकारी मिलेगी. फिर गूगल किए. जो सामने निकल के आया तो मुंह खुला का खुला रह गया. पता चला कि इनका नाम उस्ताद अताउल्ला खां एस्साखेलवी है. पाकिस्तान के मशहूर गायक हैं. सबसे ज्यादा सैड सॉन्ग्स गाने का गिनीज बुक रिकॉर्ड इनके नाम है. इनका लड़का अमेरिका में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है. और ये कई बार इंडिया भी आते रहते हैं गाने के लिए. अब भी इनकी महफिलें जमती हैं. आगे कुछ न पूछो. एकदम भर गया हूं. अब बुवा को दुश्मन बराबर देखता हूं.
क्या है अताउल्ला खान की बीवी की बेवफाई का सच?
90s की एक बहुत बड़ी अफवाह थी. मेरे जैसे तमाम नाक बांह में पोंछने वाले बच्चों को नमक मिर्च लगाके सुनाई जाती थी.
बचपने तक रिश्तेदार किसको अच्छे नहीं लगते. आते हैं. हमारे टीवी, सोफे, बेड, कमरों पर कब्जा करते हैं. 12 का पहाड़ा सुनते हैं. लेकिन हमको पता होता है कि जाते जाते ये दस बीस रुपए दे गिरेंगे. उसी आस में अपना संतोष इनवेस्ट कर देते हैं हम. लेकिन उन्हीं रिश्तेदारों से चिढ़ पता है कब हो जाती है? जब हम समझदार होते हैं. हमें एक एक रिश्तेदार की करतूत याद आती है. अभी बाकी को छोड़ देता हूं. उन्नाव वाली बुवा का किस्सा बताता हूं. हंसी मजाक और बिस्किट टॉफी देने वाली बुवा हमारी फेवरेट थीं. इंतजार करते थे कि कब गर्मी की छुट्टियां हों और वो आएं. उनके साथ आ जाते थे उनके दुशासन, दुर्योधन और शिशुपाल के अवतार लड़के. कान इधर लाओ बहुत सीक्रेट बात बता रहे हैं. किसी को बताना नहीं. उन लड़कों को मार के भागने में कसम से बहुत मजा आता था. लेकिन लड़कों की कहानी छोड़ो. अभी तो बुवा का कांड बताते हैं हम. वो किस्सा सुन लोगे तो रिश्तेदारी और इंसानियत से भरोसा उठ जाएगा भाईसाब. तो कान में इयरफोन ठूंस के पढ़ो. नहीं तो कोई डिस्टर्ब कर देगा. ये वो वाली गर्मी की छुट्टियां थीं जब हमारे जिले में किसी के पास मोबाइल नहीं था. हमें पता भी नहीं था कि कोई ऐसी डिवाइस मार्केट में आने वाली है जो सारी छुट्टियां खा जाएगी. ब्लैक एंड व्हाइट टीवी था. गर्मियां कैसे पार होंगी, इसका विस्तृत वर्णन करके हमने एक वीडियो गेम मंगा लिया था. साथ में था एक रेडियो, एफएम, टेपरिकॉर्डर, कैसेट प्लेयर. उसके दोनों छोर पर दो स्पीकर थे. बीच में दो कैसेट खोंसने की जगह. पापा कहते हैं कि इसकी उम्र मुझसे ज्यादा है. मेरे पैदा होने से दो साल पहले आया था. फिलिप्स की उस मेड इन जापान चीज को हम 'बाजा' कहते थे. और उसमें इतने फीचर्स थे जिनका हमको आज तक पता नहीं है. बाद में उसकी बड़ी दुर्गति हुई. उसकी अंतड़ियां बाहर निकाल कर बजने पर मजबूर कर देता था इलेक्ट्रिक्स का कीड़ा हमारा बड़ा भाई. देखकर किसी का हार्ट अटैक न हो जाए इसलिए उसपर अंगौछा डाल देता था. मुद्दे पर अभी तक नहीं आया उसके लिए सॉरी. लेकिन पक्का है कि बोर नहीं हुए होगे. तो अब ल्यो. उस टेपरिकॉर्डर में बजने वाले तमाम कैसेट्स के बीच में चार पांच कैसेट थे अताउल्ला खान के. एकदम बैठी हुई आवाज में जब उनके गाने बजते थे. अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का, बेदर्दी से प्यार का सहारा न मिला, ओ दिल तोड़ के हंसती हो मेरा, मुझको दफनाकर वो जब वापस जाएंगे आदि आदि. भाईसाब कतई इमोशनलिया जाते थे. गानों में इतना भयानक दर्द होता था. तो इसी गर्मी की छुट्टी में आईं उन्नाव वाली बुवा. अपनी माइक्रो कौरव सेना भी साथ लाईं. हाल ये था कि दिन में कम से कम दो बार कैसेट पलट कर अताउल्ला खान सुन लेते थे हम. पता चला कि बुवा को भी पसंद हैं उसके गाने. लेकिन वो और ज्यादा दर्द बटोरे हुए थीं अपने सीने में. अताउल्ला खान के लिए. एक दिन वो पूरे ध्यान से भजन मोड में गाना सुन रही थीं. गाना खतम होने से दो सेकेंड पहले बोलीं "नासकाटे मार डाले इसको. फांसी चढ़ा दिए." हम कहेन "आंय का बात कर रही हो बुवा? अताउल्ला खान मर चुका है?" बुवा कहिन "हां. बहुत साल हुए. ये सब गाने इसने जेल की काल कोठरी में गाए हैं." फिर उन्होंने गुलशन कुमार की बेवफा सनम वाली स्क्रिप्ट में और मसाला डालकर हमको सुनाया. इस पिच्चर का नाम तक नहीं सुने थे हम. तो उनसे जो कहानी पता चली वो ये है.