पॉलिटिक्स को थैंक्यू कहो. कि उसने भारत माता की जय बोलने को विवादित बना दिया. साथ ही इंस्पायर किया हमको हिस्ट्री पढ़ने के लिए. पता चला कि भारत माता का जो फोटो है, उसमें कुछ चीजें क्रिएटिव हैं. कुछ 'कॉपी पेस्टित'. इससे पहले कि हम माता-मम्मी-अम्मी पर कटखौवल करें. चलो इतिहास की सैर कर आएं.
जब संघ की शाखा में जाता था तो माननीय प्रचारक जी अपने बौद्धिक में कहते थे कि दुनिया में भारतीयों को छोड़कर कोई भी अपने देश को माता का दर्जा नहीं देते. ऐसे सिर्फ हमीं हम हैं और ये बड़े गौरव की बात है.
लेकिन बाद में पता चला हम सबने- भारत ने भी- दूसरे देशों को देखकर डेमोक्रेसी और राष्ट्र-राज्य के सलीके सीखे हैं. भारत माता का कॉन्सेप्ट भी ओरिजिनल नहीं हैं. उनकी भी एक मम्मी थीं. नाम था, ब्रिटानिया.
दूसरी सदी में ब्रिटानिया देवी बन चुकी थीं
ईसा से एक सेंचुरी पहले तक रोमन साम्राज्य के समय ब्रिटेन की जमीन के लिए 'ब्रिटानिया' नाम का इस्तेमाल होता था. आज आप इस नाम का बिस्कुट खाते हैं. पांचवीं सदी थी, जब ब्रिटानिया का एक हिस्सा अलग होकर ग्रेट ब्रिटेन बन गया. लेकिन रोमन एम्पायर ने ब्रिटानिया नाम नहीं छोड़ा. 43वीं ईसवी में उन्होंने ये नाम दिया अपने अंडर आने वाले टापुओं को.लेकिन दूसरी सदी में ही रोमन ब्रिटानिया को देवी का रूप दे दिया गया था. हाथ में भी त्रिशूल, सिर पर लड़ाई वाला हेलमेट और बाजू में खड़ा शेर खड़ा. पीछे नक्शे पर बना ब्रिटिश झंडा- जिसे आप यूनियन जैक कहते हैं.

भारत माता से बहुत मिलती है तस्वीर
ब्रिटानिया का नाम तो चलता ही रहा. साथ में देवी का रूप भी. जो हमारी भारत माता से बहुत मिलता जुलता है. एक और पोर्ट्रेट था, 1576 के आस-पास का. इसमें ब्रिटानिया घुटनों के बल बैठी ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ से रिक्वेस्ट कर रही हैं. कि वो अपनी नेवी की मदद से उनके ब्रिटिश साम्राज्य को बचा लें.ये 19वीं सदी का चित्र है. जिसमें ब्रिटानिया एकदम भारत माता सी दिखती हैं.

सिक्कों, नोटों और स्टैंप में इस्तेमाल
सन 1672 में देवी ब्रिटानिया का पोर्ट्रेट सिक्कों में यूज होने लगा था. जब वहां का सम्राट था चार्ल्स. 1707 में जब इंग्लैंड और स्कॉटलैंड का साम्राज्य एक में मिल गया, तब इन सिक्कों की दुनिया और फैली. और ज्यादा पीछे न जाइए, मॉडर्न ब्रिटिश सिक्कों में 2008 तक देवी ब्रिटानिया की फोटो इस्तेमाल होती आई है. बाद में वो सिक्के बंद हो गए. लेकिन सोने और चांदी के सिक्के साल में एक बार निकाले जाते हैं, जिसमें ब्रिटानिया का चित्र अंकित होता है.साल 2013 का ब्रिटानिया माता वाला ये सिक्का देखिए. इसे डिजाइन किया है रॉबर्ट हंट ने.

Source: Wikipedia
1855 में पांच पाउंड के नोट में ब्रिटानिया माता दिखी थीं. तब नोट ब्लैंक एंड व्हाइट होता था. और फिर 1993 में पहली बार ब्रिटानिया का फोटो स्टैंप में छापा गया. ये नोट है 25 सेंट्स का. हाथ में त्रिशूल, मस्तक पर लड़ाई वाला हेलमेट. शेर गायब.

ये तस्वीरें उनकी ब्रिटानिया की हैं.

अब हमारी भारत माता की बात
अब भारत माता की तस्वीर का रुख करते हैं. जो तस्वीर अभी दिखती है उसका सबसे पुराना रूप मिलता है 1905 में. आजादी का आंदोलन चल रहा था. बंगाल के आर्टिस्ट अबनींद्र नाथ टैगोर ने बनाई भारत माता की ये पहली तस्वीर. बेहद सादे लिबास में थीं. गहने वहने नहीं थे. चार हाथ थे. एक में गेहूं की बाली, दूसरे में कपड़ा. तीसरे में किताब और चौथे में माला. जिनका मतलब था कि "माता! देश में रोटी कपड़ा शिक्षा और धरम करम बनाए रखें." ये तस्वीर उस जमाने में वायरल टाइप हो गई. स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले क्रांतिकारी इसे अपने पास रखते थे. लेकिन सिर्फ ये पोर्ट्रेट रखने की वजह से अंग्रेज किसी को भी पकड़ लेते थे.अब हम अपनी भारत माता की तरफ आते हैं. भारत को माता मानने के पीछे हर खोपड़ी की अपनी थ्योरी है. एक धड़े का कहना है कि भरत के नाम पर भारत देश का नाम है. तो भारत माता कैसे हो गई? भारत पिता क्यों नहीं? उस मामले को तूल नहीं देंगे अपन. जो मानना है वो अपने दिल की सुने और माने. लेकिन भारत को माता जिसने बनाया है वो RSS नहीं है. या कोई पंथ नहीं है. भारत को माता बहुत..बहुत माने सैकड़ों हजारों साल पहले मान लिया गया था. वाल्मीकि रामायण में एक श्लोक है. जब राम लक्ष्मण से बताते हैं कि इस सोने की लंका में क्या धरा है. मातृभूमि के सामने स्वर्ग भी दो कौड़ी का है. श्लोक ये थाः
"अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥"
ये श्लोक है रामायण का. लेकिन अपने पड़ोसी देश नेपाल से इसका तगड़ा कनेक्शन है. वहां का जो राष्ट्रीय निशान है उसमें नीचे ये श्लोक लिखा है.
अब मामला ये है कि धरती को धरती कहते हैं क्योंकि वह समूची दुनिया को अपने पर धारण किए है. जैसे हमको धारण करती हैं हमारी मम्मी. अपने पेट में. और जमीन का कनेक्शन इंसान से पैदा होने से मरने तक है. पुराने जमाने से अब तक देहातों में जो बच्चे की डिलिवरी होती है घर या अस्पताल में. तो बच्चे की नाल काटी जाती है. वो पहला कनेक्शन होता है मां से. वो नाल जहां गाड़ी जाती है उससे मोह आदमी नहीं छोड़ पाता था पहले. अब भी अगर कोई आदमी किसी जगह दौड़ दौड़ पहुंचता है तो गंव घर वाले ताना देते हैं "हुंवां नार गाड़ी है का तुमई?" तो पैदाइश से शुरू हुआ ये खेल आदमी के जमीन में दफ्न होने तक, या राख होने तक रहता है. इसलिए जमीन के उस टुकड़े को, जहां आप पैदा हुए, मां का दर्जा दिया गया. तो आज अगर कोई भारत माता को अपने पर्सनल एकाउंट की चीज कहता है या देशभक्ति साबित करने का जरिया मानता है तो उसके घोंचपने पर हंसो. गुस्साओ नहीं.

अपडेटेट मदर-नेशन
आजादी के बाद भी भारत माता की फोटो में बदलाव आते रहते हैं. पुरानी भारत माता के चार हाथ थे. अब दो रह जाते हैं. एक में त्रिशूल एक में झंडा. साथ में खड़ा हुआ शेर. अब ये जो भारत माता का पोर्ट्रेट है, ये ब्रिटानिया की फोटोकॉपी लगता है. एक पेच और है. किसी भारत माता के हाथ में तिरंगा है तो किसी के हाथ में भगवा झंडा.
माता तेरे रूप अनेक?
अब सरकारी ऑफिसेज में लगने के लिए भारत माता के कैलेंडर बनते हैं. उनमें भारत माता इतने रूपों में हैं कि गिनती चुक जाए. किसी में पूरे भारत पर उनका अक्स होगा. किसी में महापुरुषों को आशीर्वाद देती. लेकिन भारत माता के मौजूदा पोर्ट्रेट कहां से इंस्पायर्ड हैं. ये कहने की कोई जरूरत बचती है क्या?
बहस जब शुरू हुई तो सबने अपने अपने दिमाग चलाए. सबको अपनी भारत माता चाहिए. अब चूंकि सबके दिमाग में जो मां की छवि है. वो उसके हिसाब से भारत मां का पोर्ट्रेट बना रहा है. यहां देखिए. ये नई भारत मां हैं. सिर पर कलशा रखकर पानी भरने जाती एक सांवली ग्रामीण महिला. गहने बहुत ही कम. और हिंसक शेर की जगह है शांतिप्रिय भैंस. ये फोटो सोशल मीडिया पर खूब शेयर हो रहा है. किसने बनाया है उसके पीछे नहीं भागते हैं. लेकिन जो बनाया है उस पर गौर करना जरूरी है.

चुन लीजिए भाई अपनी अपनी भारत माता. अपन बस इतना कहेंगे.
तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहें न रहें