The Lallantop

बूंद-बूंद को तरस रहा बेंगलुरु शहर

शहर वाटर सप्लाई की समस्या से जूझ रहा है. दिन में पानी नहीं आता है. रात में जो पानी आता है उसमें मिट्टी होती है. सोसायटी एसोसिएशन ने खाने-पीने के लिए डिस्पोजेबल बर्तन का इस्तेमाल करने को कहा है.

post-main-image
पानी के लिए कतार में खड़े लोग (फोटो-एक्स)

मानस. मूलतः बनारस से हैं. लेकिन पिछले 12 सालों सेबेंगलुरु में रह रहे हैं. पहले पाँच साल इलेक्ट्रॉनिक सिटी स्थित किसी स्टार्टअप में काम किया. अब भी वहां काम करते हैं, लेकिन वो स्टार्टअप, अब स्टार्टअप नहीं रहा. यूनिकॉर्न हो चुका. बहरहाल. अपनी वाइफ और बच्चों के साथ मानस अबबेंगलुरु में ही बस गए हैं. अच्छा कमाते हैं. वहाँ के पॉश इलाके, कोरामंगला में, खुद का आलीशान 4 BHK फ्लैट खरीद लिया है. कम्यूनिटी भी उनके जॉब, उनके स्टेटस की तरह ही आलीशान है. मात्र अट्ठारह किलोमीटर के ऑफिस का सफर तय करने में जान हलक तक आ जाती है. सेंट्रल सिल्क बोर्ड में लगने वाले जाम के चलते. हालांकि ये जाम मराठहल्ली या हेब्बल ट्रैफिक जाम जितना लंबा नहीं है, लेकिन कभी-कभी देर मानस को मडिवाला, ट्रैफिक जाम के चलते भी हो जाती है. यूं मानस का ऑफ़िस 10 बजे शुरू होता है, लेकिन शिफ़्ट 08 बजे से. और रोज़ की तरह ही मानस को आज भी जल्दी है. और उठते ही मानस  कूच करते हैं बाथरूम. लेकिन बाथरूम में जरूरत होती है पानी की. जो कि अभी नहीं आ रहा. क्यूँकि अब दिनभर में सिर्फ़ दो घंटे के लिए ही आता है. आज शायद वो भी नहीं आया. टंकी नहीं भरी. पड़ोस से एक बाल्टी पानी उधार लेने गए पर पता चला मानस के घर की स्थिति पूरी सोसायटी की स्थिति है. और फिर पता चला पूरेबेंगलुरु में ही ट्रैफ़िक से भी बड़ी आफ़त पांव पसार रही है.

शहर वाटर सप्लाई की समस्या से जूझ रहा है. दिन में पानी नहीं आता है. रात में जो पानी आता है उसमें मिट्टी होती है. ऐसे पानी से तो नहाया भी नहीं जा सकता. सोसायटी एसोसिएशन ने खाने-पीने के लिए डिस्पोजेबल बर्तन का इस्तेमाल करने को कहा है. कुछ लोग तो जिम में अपने एक्स्ट्रा कपड़े लेकर जा रहे हैं जिससे कि वहीं नहा सकें. हालात इतने खराब हैं को मजबूरन पास के फोरम मॉल में टॉयलेट इस्तेमाल करने जाना पड़ता है. 1 करोड़ से ज्यादा का हाउसिंग लोन लेकर एक पॉश इलाके में घर खरीदा था. और अब ये कंडीशन है कि पानी के लिए टैंकर के सामने लाइन लगानी पड़ रही है.

हालात ऐसे  हैं कि डिप्टी CM डीके शिवकुमार और सीएम सिद्धारमैया के घरों में भी पानी के टैंकर जाते देखे गए. पर जब हालात इतने खराब हो जाएं की प्रदेश के सीएम तक को बेसिक सुविधाएं न मिल पाएं, तो सवाल तो उठेंगे ही. अगर किसी राज्य का मुखिया ही टैंकर के पानी पर जीने लगे तो सोचिए, समाज के निचले तबकों का क्या हाल होगा? 
बेंगलुरु. नाम सुनते ही जेहन में सबसे पहली तस्वीर क्या आती है? चमचमाती सड़कें, गगनचुंबी इमारतें, उच्च स्तर का इन्फ्रास्ट्रक्चर, आईटी कंपनियों का पसंदीदा शहर. कमाल का मौसम, अच्छा AQI. इस शहर को भारत का 'सिलिकॉन सिटी' कहा जाता है. भारत में सबसे ज्यादा स्टार्टअप्स इसी शहर में हैं. माने कुल मिलाकर ग्रोथ और डेवलपमेंट के मामले में देश का सबसे उन्नत शहर. लेकिन फिलहाल ये शहर पानी जैसी मूलभूत आवश्यकता की कमी से जूझ रहा है.  

सबसे पहले जानिएबेंगलुरु को कितने पानी की जरूरत है?

बेंगलुरु की जरूरतें?

-बेंगलुरु की कुल आबादी करीब एक करोड़ चालीस लाख के आसपास है.

-रोजाना पानी की खपत या यूं कहें की जरूरत 260 से 280 करोड़ लीटर प्रतिदिन है.

-इसमें करीब 170  करोड़ लीटर पानी कावेरी नदी से आता है. बाकी जरूरतों के लिए यहाँ के निवासी बोरवेल पर निर्भर हैं.  

-वर्तमान समय में सिर्फ 100 से 120 करोड़ लीटर पानी की सप्लाइ हो रही है.

-माने इस वक्त जरूरत से लगभग 150 करोड़ लीटर पानी कम मिल रहा है.  

-बेंगलुरु के तीन हजार से ज्यादा बोरवेल सूख चुके हैं.

-पूरे कर्नाटक में सूखे की वजह से 236 में से 223 तालुके प्रभावित हुए हैं.

ये समस्या पैदा कैसे हुई?

बेंगलुरु में पानी की किल्लत के लिए मुख्य तीन कारण बताए जा रहे हैं. अलग अलग मीडिया रिपोर्ट्स में अलग-अलग कारणों का दावा किया जा रहा है पर उन सभी का सार इन तीन वजहों में आकर सिमट जाता है. कोई इसके लिए बारिश में कमी को जिम्मेदार बता रहा है. कोई बढ़ती आबादी को. पर सब कुछ इतना सीधा नहीं होता जितना दिखता है. इस समस्या के कारण क्या है?

-पहला है बारिश की कमी

-दूसरा कारण है भूजल यानी जमीन के नीचे, पानी के स्तर में गिरावट

-और तीसरा है अपर्याप्त और अनप्लांड इन्फ्रास्ट्रक्चर

ध्यान से देखें तो इनमें से दो कारण, बारिश में कमी और भूजल का स्तर गिरना,दोनों एक दूसरे से कनेक्टेड हैं. अगर बारिश कम होती है तो निश्चित तौर पर पानी को स्टोर करने वाली नेचुरल जगहें जैसे; नदी, झील, कुएं, तालाब आदि में पानी कम होना शुरू होगा. पानी के ये  नैचुरल स्टोरेज सीधे तौर पर ग्राउन्डवाटर माने भूजल से जुड़े होते हैं. भूजल स्तर के नीचे जाने की एक बड़ी वजह ये भी है कि समुद्र तल से बेंगलुरु की ऊंचाई 920 मीटर है. इतनी ऊंचाई पर  ज़मीन के नीचे का पानी और भी नीचे चला जाता है

-अगली वजह जो तमाम एक्स्पर्ट्स भी मजबूती से गिना रहे हैं वो है बिना प्लानिंग के बिल्डिंग्स और इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास. पिछले कुछ दशकों में बिल्डिंग्स और हाऊसिंग सोसाइटीज़ बनाने के लिए बेंगलुरू और उसके आसपास के तमाम जलाशयों को पाटकर समतल कर दिया गया. लिहाजा समय के साथ जलाशयों की संख्या कम होती गई. पर शहरीकरण इस कदर ज़ोरों पर था कि न सरकार, न उन बिल्डर्स को ये ध्यान रहा कि आबादी बढ़ने के बाद उनकी पानी की जरूरत को कैसे पूरा किया जाएगा? और आज इसका खामियाजा पूरी आबादी भुगत रही है.

हमारे एक्सपर्ट ने हमें बताया कि बेंगलुरु में पहले जंगल ठीक-ठाक मात्रा में थे. जंगल के एरिया को साइंटिफिक भाषा में फॉरेस्ट कवर कहा जाता है.  पिछले एक दशक में बेंगलुरु ने जिस तरह से विस्तार किया है उसका फॉरेस्ट कवर 38% से घटकर 20% से भी कम हो गया है. लिहाजा मानसून से पहले अप्रैल में जो बारिश हुआ करती थी, वो अब नहीं होती. पानी के नेचुरल स्टोरेज और उनकी घटती संख्या भी एक बहुत बड़ा चिंता का विषय है.

आगे का रास्ता क्या है ? 

क्या बेंगलुरु के निवासियों को शहर छोड़ना पड़ेगा? शायद ये नौबत तो न आए पर आने वाले समय में अगर इसपर ध्यान नहीं दिया गया तो बेंगलुरु भारत के लिए एक बुरे सपने की तरह हो सकता है. सरकार इस समस्या से लड़ने के लिए कई कदम उठा रही है. हमने कोविड में ऑक्सीजन सिलेंडर की कालाबाजारी देखी थी. अब बेंगलुरु में पानी के टैंकरों की कालाबाजारी हो रही है. सरकार इस पर सख्ती करने की बात तो कह रही है. इसके लिए सभी टैंकर मालिकों को 7 मार्च तक उनके सारे टैंकर्स को रजिस्टर कराने को कहा गया है. राज्य के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (BBMP) के मुख्य कार्यालय में एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा,


“बेंगलुरु शहर में कुल 3,500 पानी के टैंकरों में से केवल 10 प्रतिशत, यानी 219 टैंकरों ने अधिकारियों के साथ रजिस्टर कराया है. यदि वे समय सीमा से पहले पंजीकरण नहीं कराते हैं तो सरकार उन्हें जब्त कर लेगी.”

डिप्टी सीएम के मुताबिक सरकार उन सभी जगहों को चिन्हित कर रही है जहां से पानी मिल सकता है. साथ ही कर्नाटक सरकार का लक्ष्य  हर किसी को उचित रेट पानी उपलब्ध कराना है. मौसम के अनुमान बता रहे हैं कि साल 2024 में कर्नाटक में और भी ज्यादा गर्मी पड़ने वाली है. सरकार के आकलन के मुताबिक 10 फरवरी के बाद राज्य के सात हजार बयासी गांव और बेंगलुरु के एक हजार एक सौ तिरानवे वार्ड्स में पानी का संकट और गहरा सकता है. इसलिए जबतक वापस से बारिश नहीं होती तब तक किसी भी बड़ी राहत की उम्मीद बेमानी है.

अंत में एक सवाल जो हम इंसानों को अपने आप से पूछना होगा. सवाल ये कि विकसित होने के लिए हम क्या कीमत चुकाने को तैयार हैं? जंगलों को काटकर हमने कंक्रीट के जंगल तो बसा लिए, पर ये कब तक टिकेंगे? और हम ये सवाल तभी क्यों उठाते हैं जब बेंगलुरु में संकट आता है? या जब केदारनाथ में झील का बांध टूटता है? ये सवाल नॉर्मल दिनों में हमें परेशान क्यों नहीं करते ? जवाब है कीमत. विकास की कीमत. जब तक खुद पर नहीं गुजरती. हमें समस्या समस्या नहीं लगती। उम्मीद हैबेंगलुरु की स्थिति देखकर भारत के बाकी राज्य सबक लेंगे. और पानी की समस्या पर गहन विचार करेंगे.