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इन 2 चमत्कारों की वजह से संत बनीं मदर टेरेसा

यहां जान लीजिए, वेटिकन सिटी में दी गई थी मदर टेरेसा को संत की उपाधि.

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मदर टेरेसा को मिल चुकी है संत की उपाधि
4 सितंबर 2016 को मदर टेरेसा को संत की उपाधि मिली थी. पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा को संत की उपाधि दी थी. इस मौके पर सुषमा स्वराज, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल भी वेटिकन सिटी में मौजूद थे.
चर्च के मुताबिक, संत बनने के लिए चमत्कार जरूरी होते हैं. चर्च ने मदर टेरेसा के कामों में चमत्कार खोज निकाले. चर्च द्वारा सम्मान की बात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश का सम्मान बताया था. आज मदर टेरेसा का जन्मदिन है. आप भी जानिए उनके चमत्कार.


मदर टेरेसा के दो 'चमत्कार' जिनको मानकर वैटिकन ने उनको संत बनाया

वैटिकन चर्च के मुताबिक 'संत' की उपाधि के लिए दो चमत्कार करने जरूरी होते हैं. किसी भी कैंडिडेट के लिए चर्च उसके मरने के 5 साल बाद चमत्कार की तलाश करता है. पर मदर टेरेसा के केस में इस नियम को तोड़ दिया गया. मदर टेरेसा के दो चमत्कार माने गए:
1.1997 में अपनी मौत के बाद मदर टेरेसा ने 2002 में मोनिका बेसरा नाम की एक लड़की का ट्यूमर ठीक कर दिया था. मोनिका को पेट में ट्यूमर था. उसने टेरेसा के फोटो की लॉकेट पेट पर रखी थी. उसके मुताबिक लॉकेट से तेज रोशनी निकली और धीरे-धीरे ट्यूमर ठीक हो गया.
2.2008 में ब्राज़ील के एक आदमी ने कहा कि मदर टेरेसा के चलते उसके कई ट्यूमर ठीक हो गए.
वैटिकन ने एक और नियम बदल दिया है. आम तौर पर चमत्कार खोजने के 50 साल बाद 'संत' का टाइटल मिलता है. पर इस बार इसको दरकिनार किया जा रहा है.
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गरीबों, कूड़ा बीनने वालों, कोढ़ियों की सेवा करने वाली मदर टेरेसा पर सवाल क्यों उठते हैं?

मदर टेरेसा ने हिंदुस्तान में अपने Missionaries of Charity में हर मजलूम को जगह दी. कोढ़ियों को समाज से निकाल दिया गया था, पर टेरेसा के पास उनके लिए जगह थी. हजारों लोगों को मरने से बचाया गया था. पर जो लोग उनके पास मरे थे, उनका अंतिम संस्कार क्रिश्चियन रिवाज से किया जाता था. इस बात से हिंदूवादी संगठन बड़े नाराज थे. फिर ये धारणा निकल गई कि टेरेसा मदद की आड़ में गरीबों को क्रिश्चियन बनाती हैं. ये बात कहां तक सही है, सीधे-सीधे नहीं बताई जा सकती. पर मदर टेरेसा से जुड़ी बातों को जरूर देखा-परखा जा सकता है.


1983 में इंडिया टुडे में मदर टेरेसा का एक इंटरव्यू छपा था. उस वक़्त असम में नरसंहार हुआ था. टेरेसा इसीलिए वहां गई थीं. उनके इंटरव्यू का एक अंश नीचे है:
प्रश्न: आपने असम जाने का निश्चय क्यों किया? उत्तर: जब मुझे नरसंहार के बारे में पता चला तो मुझे बस अनाथ बच्चों का ही ख्याल आया. वो तो दंगों के बारे में जानते भी नहीं.
प्रश्न: असम के मुस्लिम ऐसा मानते हैं कि आप उनके लिए बड़ा सोचती हैं? उत्तर: मैं इसलिए नहीं काम करती कि वो मुस्लिम हैं. सब भगवान के बच्चे हैं. मेरे लिए सब बराबर हैं.
प्रश्न: आप सबसे गरीब लोगों के लिए ही काम क्यों करती हैं? सारे गरीबों के लिए क्यों नहीं? उत्तर: गरीब लोग कम-से-कम खुद के लिए लड़ सकते हैं. जिनके लिए मैं काम करती हूं, वो एकदम असहाय हैं.
प्रश्न: उनके लिए क्या जरूरी है: प्यार या रोटी? उत्तर: प्यार. हां, जब कोई मुश्किल में होता है, तो सहायता की जरूरत होती है. पर अंत में प्यार की ही जरूरत होती है. एक बार मैंने एक कैंसर पीड़ित बच्ची से कहा था कि उसका कैंसर भगवान का चुम्मा है. लड़की ने कहा कि मदर, भगवान से कहिये कि वो चुम्मा देना बंद कर दें. मैं बस उसे देखती रह गई थी.
प्रश्न: लोग कहते हैं कि आप भिखारियों को खिलाकर उनको बिगाड़ रही हैं? उत्तर: (हंसते हुए) चलिए, कम से कम एक संगठन तो है जो भिखारियों को बिगाड़ रहा है. नहीं तो सारे संगठन अमीरों को ही बिगाड़ने वाले हैं.
प्रश्न: इंडिया में गरीबी की वजह क्या है? उत्तर: बराबरी की कमी. हर जगह यही है वजह. पर वेस्ट में गरीबी थोड़े दूसरी तरह की है. वहां आत्मा की गरीबी है. वहां पर लोग बेवजह एक-दूसरे को मार देते हैं. इंडिया में कम-से-कम एक वजह होती है हत्या के लिए.
प्रश्न: कम्युनिस्ट तो कहते हैं कि उन्होंने बराबरी ला दी है. उत्तर: ये सच नहीं है. हालांकि मुझे उनसे कोई दिक्कत नहीं है. सब अच्छे हैं.
प्रश्न: इंडिया में आपने जिंदगी गुजार दी. कैसा लगा इंडिया आपको? उत्तर: इंडिया मेरा देश है. मैं इंडियन हूं. हमें अब मान लेना चाहिए कि हमारे देश में प्यार की बड़ी कमी है. लेकिन इसके लिए मैं किसी भी धर्म को दोषी नहीं मानती. पर जाति जरूर कुछ हद तक दोषी है.
प्रश्न: आप धर्म मानती हैं? उत्तर: मैं न्यूट्रल नहीं हूं. मेरा धर्म है.
प्रश्न: आप धर्म बदलने में विश्वास रखती हैं? उत्तर: मेरे लिए बदलाव का मतलब प्यार से किसी का दिल बदलना है. जबरदस्ती या घूस देकर धर्म बदलना शर्मनाक है. एक प्लेट चावल के लिए किसी से उसका धर्म बदलवा देना उसका अपमान है.
प्रश्न:अगर आप मध्यकालीन युग में पैदा हुई होतीं तो गैलीलियो वाले मामले में किसका साथ देतीं? चर्च या गैलीलियो? उत्तर: चर्च का. (मुस्कुराते हुए.)
प्रश्न: आपको ऐसा नहीं लगता कि आपका काम समस्या की तुलना में बहुत ही छोटा है? उत्तर: मेरा काम समंदर में एक बूंद के समान है. अगर सालों पहले रोड से मैंने एक मरते आदमी को नहीं उठाया होता तो आज 43 हज़ार लोगों को नहीं बचा पाई होती. मेरे पास गरीबी और दुःख के बारे में सोचने का वक़्त नहीं है. पर गरीबों और दुखी लोगों के पास भी तो वक़्त नहीं है. हमें सोचने की जरूरत नहीं, काम करने की जरूरत है.


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बच्चों के लिए चितिंत रहती थीं मदर टेरेसा.

हिंदूवादी संगठनों को क्यों मदर टेरेसा और क्रिश्चियनिटी से दिक्कत है?

हिंदूवादी संगठन इस्लाम को तो लेकर ये मानते हैं कि मुसलमान शासकों ने हिंदुस्तान को गुलाम बनाकर रखा. जबरदस्ती धर्म बदलवाया. पर क्रिश्चियनिटी के बारे में ये ख्याल नहीं है. ब्रिटिश शासन को दूसरी तरह की गुलामी मानी जाती है. धर्म को लेकर उनसे दुराव नहीं था. पर क्रिश्चियनिटी एक नए तरह का नजरिया देती है. जिंदगी जीने का, और यही वो खतरा है. क्योंकि हिंदूवादी संगठनों के मुताबिक हिन्दू धर्म कोई धर्म नहीं, बल्कि जिंदगी जीने का नजरिया है. ये संगठन हर नई खोज के बारे में मानते हैं कि सब कुछ हिंदुस्तान के वेदों-पुराणों में दिया हुआ है. पर क्रिश्चियनिटी पर सवाल उठाना बड़ा लिमिटेड है. ये सिर्फ उस केस में उठाया जाता है जब आरोप लगता है कि 'बाहर से पैसा' आ रहा है देश में मिशनरी काम के नाम पर धर्म बदलने के लिए.


क्रिस्टोफर हिचेंस के मुताबिक मदर टेरेसा फ्रॉड थीं

वहीं तमाम 'बड़े लोगों' पर लिखने वाले क्रिस्टोफर हिचेंस ने 2003 में मदर टेरेसा के बारे में कहा था:
मदर टेरेसा गरीबों की दोस्त नहीं थीं. वो गरीबी की दोस्त थीं. वो तो कहती थीं कि दर्द भगवान का गिफ्ट है. पूरी जिंदगी वो एबॉर्शन का विरोध करती रहीं. पर ये एक तरीका था जो औरतों को उनका हक़ दिलाने में मदद करता. वो ऐसे धनी लोगों की भी दोस्त थीं. जो धनी होने के साथ झंडू भी थे. हैती के डुवलियर परिवार से भी इन्होंने पैसे लिए. जो कि अपने कारनामों के लिए जाने जाते हैं. चार्ल्स कीटिंग से भी लिए थे. फिर इतने सारे डोनेशन लिए थे. वो पैसे कहां गए?


हालांकि जो भी हो, भारत के संविधान में दिया है कि भारत एक वैज्ञानिक नजरिये का देश है. जहां अन्धविश्वास की कोई मान्यता नहीं है. तो चर्च के कहे 'चमत्कार' वाली बात को यूं मान कर उनके समारोह में शिरकत करना बड़ा ही अजीब है.


जावेद अख्तर का भी कुछ कहना है:

ए मां टेरेसा मुझको तेरी अज़मत से इनकार नहीं है जाने कितने सूखे लब और वीरां आंखें जाने कितने थके बदन और ज़ख़्मी रूहें कूड़ाघर में रोटी का इक टुकड़ा ढूंढते नंगे बच्चे फ़ुटपाथों पर गलते सड़ते बुड्ढे कोढ़ी जाने कितने बेघर बेदर बेकस इनसां जाने कितने टूटे कुचले बेबस इनसां तेरी छांवों में जीने की हिम्मत पाते हैं इनको अपने होने की जो सज़ा मिली है उस होने की सज़ा से थोड़ी सी ही सही मोहलत पाते हैं तेरा लम्स मसीहा है और तेरा करम है एक समंदर जिसका कोई पार नहीं है ए मां टेरेसा मुझको तेरी अज़मत से इनकार नहीं है

मैं ठहरा ख़ुदगर्ज़ बस इक अपनी ही ख़ातिर जीनेवाला मैं तुझसे किस मुंह से पूछूं  तूने कभी ये क्यूं नहीं पूछा किसने इन बदहालों को बदहाल किया है तुने कभी ये क्यूँ नहीं सोचा कौन-सी ताक़त इंसानों से जीने का हक़ छीन के उनको फ़ुटपाथों और कूड़ाघरों तक पहुंचाती है तूने कभी ये क्यूं नहीं देखा वही निज़ामे-ज़र जिसने इन भूखों से रोटी छीनी है तिरे कहने पर भूखों के आगे कुछ टुकड़े डाल रहा है तूने कभी ये क्यूं नहीं चाहा नंगे बच्चे बुड्ढे कोढ़ी बेबस इनसां इस दुनिया से अपने जीने का हक़ मांगें जीने की ख़ैरात न मांगें ऐसा क्यूं है इक जानिब मज़लूम से तुझको हमदर्दी है दूसरी जानिब ज़ालिम से भी आरनहीं है लेकिन सच है ऐसी बातें मैं तुझसे किस मुंह से पूछूं  पूछूंगा तो मुझ पर भी वो ज़िम्मेदारी आ जाएगी जिससे मैं बचता आया हूं

बेहतर है ख़ामोश रहूं मैं और अगर कुछ कहना हो तो यही कहूं मैं ए मां टेरेसा मुझको तेरी अज़मत से इनकार नहीं है




आज से कुछ रोज पीछे जाएं तो बीजेपी नेता बलबीर पुंज का भड़कना याद आ रहा है. बलबीर कहते हैं कि टेरेसा के सम्मान समारोह में जाना अन्धविश्वास को बढ़ावा देना है. वहीं आरएसएस के चीफ मोहन भागवत ने मदर टेरेसा के बारे में कहा था कि वो हिन्दू से क्रिश्चियन बनाने का काम करती थीं. वहीं टेरेसा के समर्थक अगर उनको भगवान नहीं, तो एक शानदार इंसान से नीचे मानने के लिए तैयार नहीं हैं. ये विवाद इंडिया तक ही सीमित नहीं है. मदर टेरेसा पर स्टडी करने वाले क्रिस्टोफर हिचेंस ने 2003 में टेरेसा को फ्रॉड बता दिया था.

ये स्टोरी 'दी लल्लनटॉप' के लिए ऋषभ ने की थी.




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