गर्मियां आते ही ‘पारा पार’, ‘शिकार’ और 'हाहाकार' जैसे शब्द सुनाई देने लगते हैं. लेकिन आज कार की बात करते हैं. या कहें कार के भीतर चार दिन से पड़ी प्लास्टिक की बोतल की. क्या उस बोतल को दोबारा मुंह लगाना चाहिए? बताते हैं कि कार की गर्मी, प्लास्टिक की बोतल में भरे पानी पर क्या असर डालती है.(Harmful side effects of drinking water from plastic bottles)
कार में रखी प्लास्टिक की बोतल से पानी पीते हैं? तो ये एक काम बिल्कुल न करें, कैंसर भी हो सकता है
इंसान के शरीर के तमाम हिस्से, चाहे वो दिमाग हो, खून हो या फिर फेफड़े, सब में Microplastic पाया गया है. हाल ही में आई एक रिसर्च बताती है कि यहां तक पुरुषों के अंडकोष में भी माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है. कार में काफी समय से रखी प्लास्टिक की बोतल कैसे इसका बड़ा कारण बन सकती है? आज सब जान लीजिए.
बिसफिनॉल-ए (BPA) एक तरह का केमिकल है. जिससे कुछ तरह के प्लास्टिक बनाए जाते हैं. इसका इस्तेमाल 1950 के दशक से होता आ रहा है. इससे बने प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल ज्यादातर खाने-पीने की चीजों को स्टोर करने के लिए किया जाता है. हमारी पानी पीने की प्लास्टिक की बोतल भी इसी से बनी हो सकती है.
लेकिन ये बोतल कई बार, बार-बार इस्तेमाल की जाती हैं. माना जाता है कि प्लास्टिक की बोतल कुछ दिनों में खराब हो जाती हैं. तभी उसमें एक्सपायरी डेट भी लिखी होती हैं. लेकिन सूरज की रोशनी की UV किरणें और गर्मी इसे जल्दी खराब कर सकती है. ऐसे कुछ हालात, कार के भीतर रखी बोतल को भी झेलने पड़ सकते हैं. आइए समझते हैं, ऐसी बोतल में भरा पानी हमें कैसे नुकसान पहुंचा सकता है? (Why is it bad to drink water from plastic bottles)
नेशनल जियोग्राफिक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ज्यादातर बोतल पॉलीइथाइलीन टेरेप्थालेट या PET से बनी होती हैं. इस पर ज्यादातर रिसाइकल नम्बर 1 लिखा होता है. इस बारे में एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी में एक रिसर्च हुई. पता चला जब प्लास्टिक की बोतल में पानी भरकर ज्यादा समय के लिए रखा जाता है. तो एंटीमनी जैसे कुछ केमिकल बोतल से पीने के पानी में मिल सकते हैं. वहीं अगर बोतल ज्यादा तापमान पर रखी हो, तब ये केमिकल और ज्यादा मात्रा में रिसते हैं.
चीन और मेक्सिको में बिक रही पानी की बोतलों पर हुई रिसर्च में पाया गया. कि वहां की बोतलों में एंटीमनी और BPA जैसे केमिकल पानी में ज्यादा मिल गए. दोनों ही जगहों में गर्म माहौल इसके पीछे की वजह बताई गई.
वहीं इस पर इंटरनेशनल वॉटर बॉटल एसोसिएशन का कहना है कि पानी की प्लास्टिक बोतलों को भी उसी तापमान पर रखा जाना चाहिए. जिस तापमान पर हम खाने पीने की बाकी चीजों को रखते हैं. समझा जा सकता है, ये कोई जीवन भर खराब ना होने वाली चीज नहीं है.
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इन केमिकल से सेहत को क्या नुकसान है?एक्सपर्ट्स का कहना है कि कभी आपातकाल में ऐसी बोतलों से पानी पिया जा सकता है, लेकिन रोजमर्रा में ऐसी बोतलों से कोई फायदा नहीं. BPA को एक तरह का एंडोक्राइन डिसरप्टर माना जाता है. मतलब यह हमारे हार्मोन्स के सामान्य कामों को नुकसान पहुंचा सकता है. जिसकी वजह से स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. वहीं कुछ रिसर्च में इसे ब्रेस्ट कैंसर के साथ भी जोड़ा गया है.
इस सब से क्या मतलब निकाला जा सकता है?दुनिया में तमाम फूड सेफ्टी एजेंसी पानी की प्लास्टिक की बोतलों को सेफ मानती हैं. लेकिन एक सीमा तक ही. इस बारे में एक्सपर्ट्स का कहना है कि दिन में कभी-कभार प्लास्टिक की बोतल से पानी पी लेने से शायद स्वास्थ्य पर तुरंत कोई असर ना पड़े. लेकिन जैसा कि हम जानते हैं कि हम प्लास्टिक से चारों तरफ से घिरे हैं. इससे बचना मुश्किल है. खाने-पीने की तमाम चीजें इसमें पैक होकर आती हैं.
ऐसे में मामला अलग हो जाता है. इंसान लगातार प्लास्टिक के केमिकल और माइक्रोप्लास्टिक अपने भीतर जमा कर रहे हैं. माइक्रोप्लास्टिक नग्न आंखों से ना देखे जा सकने वाले प्लास्टिक कण हैं. इंसान के शरीर के तमाम हिस्से, चाहे वो दिमाग हो, खून हो या फिर फेफड़े, सब में माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है. हाल ही में आई एक रिसर्च बताती है कि यहां तक पुरुषों के अंडकोष में भी माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है.
ऐसे में अगर कभी-कभार प्लास्टिक की बोतल से पानी पिया जा रहा है, तब तो ठीक माना जा सकता है. पर अगर वो बोतल कार जैसी किसी गर्म जगह में पानी के साथ लंबे समय से पड़ी है. तब उसमें ज्यादा केमिकल हो सकते हैं. ऐसे में कोशिश यही करें कि एक ही बोतल में बार-बार या फिर काफी दिनों का रखा पानी ना पिया जाए. एक्सपर्ट्स प्लास्टिक को पर्यावरण के लिए भी खतरनाक मानते हैं.
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