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अयोध्या केस की टाइमलाइन: 1857 से अब तक, जो भी बड़ी चीजें हुईं सब जानिए

कब क्या हुआ, जानिए शुरुआत से अब तक का घटनाक्रम.

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अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट के अंदर सभी पक्षों की दलीलें सुनी जा चुकी हैं. कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था. फैसला 9 नवंबर को सुबह 10:30 बजे आएगा. तस्वीर में नज़र आ रही है बाबरी मस्जिद. ये 6 दिसंबर, 1992 से पहले की फोटो है (फोटो: इंडिया टुडे आर्काइव्ज़)
अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित ज़मीन के मालिकाना हक़ पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला 9 नवंबर को आने वाला है. ये विवाद कब शुरू हुआ? कौन से बड़े साल, अहम पॉइंट रहे इस विवाद से जुड़े? ये सब हम यहां बता रहे हैं आपको.
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पढ़िए दी लल्लनटॉप पर अयोध्या भूमि विवाद की टॉप टू बॉटम कवरेज.

जनवरी 1885: जब पहली बार विवाद कोर्ट पहुंचा
1857 में गदर के बाद के दिनों में हनुमानगढ़ी के महंत ने बाबरी मस्जिद के आंगन के पूर्वी हिस्से में एक राम चबूतरे का निर्माण करवाया. इसी साल बाबरी मस्जिद के मुअज्जिन मौलवी मुहम्मद असगर ने एक पटीशन डालकर इस बात की शिकायत मैजिस्ट्रेट से की. उन्होंने कहा कि मस्जिद के आंगन पर जबरन कब्ज़ा कर लिया गया है. साल 1859 में ब्रिटिश हुकूमत ने एक दीवार बनाकर मुस्लिमों और हिंदुओं के इबादत की जगहों का बंटवारा कर दिया. मुस्लिमों की तरफ से 1860, 1877, 1882 और 1884 के सालों में भी याचिका फैजाबाद सिविल कोर्ट में डाली गई. मगर ये सारी अपीलें रद्द कर दी गईं.
साल 1885 में निर्मोही अखाड़ा के महंत रघुबर दास ने उस ज़मीन के कानूनी हक़ और राम चबूतरे पर मंदिर बनाने की इजाज़त मांगते हुए फ़ैजाबाद के सब जज हरि किशन की कोर्ट में एक याचिका (suit no 61/280) दायर की. इस याचिका में महंत रघुबर दास ने दावा किया था कि वो जन्मस्थान अयोध्या के महंत हैं. याचिका में राम चबूतरे को जन्मस्थान बताया गया था. इस दावे में ये बात नहीं थी कि जहां मस्जिद है, वहां पहले कोई मंदिर थी. ये अपील 1886 में खारिज़ कर दी गई. साल 1934: बाबरी मस्जिद पर भीड़ ने हमला किया
1934 में बकरीद के दौरान अयोध्या के पास शाहजहांपुर इलाके में गोकशी की अफ़वाह पर दंगा भड़का. एक भीड़ ने बाबरी मस्जिद पर भी हमला किया. मस्जिद को नुकसान पहुंचा. इसकी गुंबदों को काफी क्षति हुई. मगर फिर सरकार ने मस्जिद की मरम्मत करवा दी.
साल 1936: संपत्ति के मालिकाना हक़ पर जांच बैठी वक्फ़ बोर्ड के कमिश्नर ने इन्क्वॉयरी बैठाई. संपत्ति पर मालिकाना हक़ किसका है, इस बात की जांच के लिए. जांच बैठी UP मुस्लिम वक्फ ऐक्ट के अंतर्गत. जांच के बाद ऐलान किया गया कि 1528 में बाबर ने बाबरी मस्जिद बनवाई थी.
साल 1949- बाबरी मस्जिद में रामलला की मूर्ति बाबरी मस्जिद में तीन गुंबद थे. 22 और 23 दिसंबर की दरमियानी रात. मस्जिद की मध्य गुंबद के नीचे रामलला की मूर्ति रख दी गई. रामलला की एक मूर्ति, चांदी का एक सिंहासन, कुछ और देवी-देवताओं की तस्वीरें और पूजा-पाठ का कुछ सामान. ये सारी चीजें लेकर मुख्य आरोपी अभिराम दास और उसके कुछ सहयोगी रात के अंधेरे में बाबरी मस्जिद के अंदर घुसे. फिर सुबह के चार बजे इन्होंने घड़ी-घंटाल बजाकर आरती गाना शुरू किया. 23 दिसंबर की सुबह 9 बजे इस मामले में FIR दर्ज़ हुई. सुबह साढ़े 10 बजे फ़ैजाबाद के तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट केकेके नय्यर ने UP (उस समय यूनाइटेड प्रोविंस) के प्रीमियर गोविंद वल्लभ पंत को एक रेडियो मेसेज भेजा. इसमें इस रात की घटना के बारे में जानकारी देते हुए कहा गया था-
रात के समय कुछ हिंदू बाबरी मस्जिद में घुस आए. इस समय मस्जिद खाली था. उन्होंने मस्जिद के अंदर मूर्ति रख दी. DM,SP और फोर्स मौके पर तैनात हैं. स्थिति नियंत्रण में है. रात के समय पुलिस के 15 लोग ड्यूटी पर मौजूद थे, मगर उन्होंने कई कार्रवाई नहीं की.
रामलला की मूर्ति रखे जाने को उनका 'प्रकट' होना बताया गया. कहा गया, भगवान राम अपनी जगह पर अपना दावा पेश कर रहे हैं. इस घटना से जुड़ी पर्चियां बांटकर भीड़ जमा की गई. प्रशासन ने कहा, मूर्ति को हटाना जोखिम भरा काम है. इतनी भीड़ जमा है. अगर मूर्ति हटाई गई, तो दंगे जैसे हालात बन सकते हैं. 29 दिसंबर को फ़ैजाबाद कोर्ट ने विवादित जगह को स्टेट की कस्टोडियल जिम्मेदारी में रख दिया. अडिशनल मैजिस्ट्रेट ने CRPC, 1898 के सेक्शन 145 के अंतर्गत आदेश जारी किया और इस जगह को म्यूनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन की रिसीवरशिप में रख दिया. मतलब सरकारी रखवाला. परिसर के गेट पर ताला लगा दिया गया. और इसके साथ ही बाबरी मस्जिद का बतौर मस्जिद इस्तेमाल बंद हो गया.
साल 1950: मूर्तियों को हटाए जाने पर रोक लगाने की याचिकाएं पहली याचिका डाली थी 'ऑल इंडिया रामायण महासभा' के जनरल सेक्रटरी गोपाल सिंह विषारद ने. जनवरी 1950 में. फ़ैजाबाद के सिविल जज की कोर्ट में. इसी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में भी फैसला आने वाला है.
इस याचिका में 'जन्मभूमि स्थान' में रखी गई मूर्ति की पूजा-पाठ करने की इजाज़त मांगी गई थी. इसपर एक अंतरिम निषेधाज्ञा जारी की गई, जिसमें मुस्लिमों को मूर्ति हटाने से रोका गया था. इसके बाद दिसंबर 1950 में रामचंद्र दास परमहंस ने भी याचिका दायर की. इसमें मांग की गई कि लोगों को बिना किसी पाबंदी या दखलंदाजी के वहां पर पूजा और दर्शन की इजाज़त दी जाए. फरवरी 1951 में फ़ैजाबाद सिविल जज ने विषारद और परमहंस की याचिकाओं को एक में जोड़ दिया.
साल 1959: निर्मोही अखाड़ा के नाम का हल्ला बाबरी मस्जिद के अंदर रामलला की मूर्ति रखे जाने के बाद मैजिस्ट्रेट एम सिंह ने प्रिय दत्त राम को उस संपत्ति का रिसीवर नियुक्त किया था. दिसंबर, 1959 में निर्मोही अखाड़ा की ओर से महंत रघुनाथ ने फ़ैजाबाद सिविल जज की अदालत में एक याचिका डाली. इसमें दावा किया गया जिस जगह पर बाबरी मस्जिद है, वहीं प्राचीन काल में एक मंदिर हुआ करता था. और, वो ज़मीन अखाड़ा की थी. इस याचिका में अपील की गई कि 'मंदिर' के प्रबंधन संबंधी कामों से प्रिय दत्त राम को हटा दिया जाए और ये जिम्मेदारी अखाड़ा को सौंप दी जाए. इनका दावा था कि ये राम जन्मभूमि के कस्टोडियन हैं. और यही वो समय है, जब से निर्मोही अखाड़ा इस पूरे केस में एक मजबूत पार्टी बनकर उभरा.
साल 1961: सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की याचिका दिसंबर 1961. UP सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने विषारद की याचिका के विरुद्ध एक याचिका डाली. इसमें मस्जिद और इसके पास की ज़मीन पर पर बने कब्रिस्तान पर वक्फ बोर्ड ने अपना दावा किया. मस्जिद के अंदर रखी गई मूर्ति और पूजा-पाठ से जुड़ी चीजों को हटाने की अपील की गई. अप्रैल 1964 में हिंदू पक्ष की तरफ से दाखिल तीनों याचिकाएं और वक्फ़ बोर्ड की तरफ से डाली गई याचिका को कन्सॉलिडेट कर दिया गया. ये बन गए मुकदमा संख्या 12/1961. ये अयोध्या विवाद से जुड़ा मुख्य केस है.
साल 1984: राम मंदिर के लिए विश्व हिंदू परिषद (VHP) का अभियान शुरू इस बरस अप्रैल में VHP ने दिल्ली के विज्ञान भवन में विशाल धर्म संसद बुलाई. वहां एक आंदोलन शुरू किया गया. इसका मकसद तय हुआ- विवादित ज़मीन (जिसे राम जन्मभूमि बताया जा रहा था) को 'आज़ाद' कराना. इसी साल जून में 'राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति' बनाई गई. गोरखनाथ मठ के महंत अवैद्यनाथ इसका नेतृत्त्व कर रहे थे. इसी समय 'राम जानकी रथ यात्रा' की भी शुरुआत हुई. लोगों को राम मंदिर आंदोलन के लिए उत्साहित किया जाने लगा. ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को मोबलाइज़ किया जाने लगा. मांग की जाने लगी कि बाबरी मस्जिद के गेट पर लगा ताला खोला जाए. साल 1986: जब ताला खुला इस साल फरवरी महीने में फ़ैजाबाद जिला न्यायालय ने मस्जिद पर लगा ताला खोले जाने का आदेश दिया. 37 सालों बाद ये ताला खुला. कहा जाता है कि इसके पीछे राजीव गांधी की सरकार की केंद्रीय भूमिका थी. उनकी सरकार ने तत्कालीन प्रदेश सरकार को बरगलाया और प्रशासन ने कोर्ट में कह दिया कि ताला खुलने से शांति और क़ानून व्यवस्था में कोई भी दिक्कत नहीं पैदा होगी. लिहाज़ा, ताला खोल दिया गया. लोगों को मूर्ति की पूजा करने की भी इजाज़त दे दी गई. मुस्लिमों ने इसका विरोध किया. क्योंकि अब तक यहां ये व्यवस्था थी कि 1949 में जो मूर्तियां स्थापित की गईं थीं, उनकी साल में एक बार पूजा होती थी. भाजपा और VHP के तमाम नेता इस घटना के बारे में ये दलील देते हैं कि अगर राजीव गांधी ने हिंदू तुष्टिकरण के लिए ये कदम नहीं उठाया होता, तो साल 1992 में मस्जिद का विध्वंस नहीं हुआ होता.
देशभर से, शहरों-शहरों गांवों-गांवों से अयोध्या में प्रस्तावित राम मंदिर के लिए ईंटे आईं. भगवा कपड़े में लपेटकर इन ईंटों की पूजा की जाती. जुलूस निकाला जाता. इन जुलूसों ने न केवल राम जन्मभूमि आंदोलन के लिए माहौल बनाया, बल्कि कई जगहों पर हिंसा और दंगे भी भड़काए. तस्वीर में एक महिला सिर पर रामशिला लेकर चलती हुई दिख रही है (फोटो: इंडिया टुडे आर्काइव्ज़) देशभर से, शहरों-शहरों गांवों-गांवों से अयोध्या में प्रस्तावित राम मंदिर के लिए ईंटे आईं. भगवा कपड़े में लपेटकर इन ईंटों की पूजा की जाती. जुलूस निकाला जाता. इन जुलूसों ने न केवल राम जन्मभूमि आंदोलन के लिए माहौल बनाया, बल्कि कई जगहों पर हिंसा और दंगे भी भड़काए. तस्वीर में एक महिला सिर पर रामशिला लेकर चलती हुई दिख रही है (फोटो: इंडिया टुडे आर्काइव्ज़)

साल 1989: रामशिला, शिलान्यास राजीव गांधी सरकार ने विवादित ज़मीन के पास राम मंदिर के शिलान्यास की अनुमति दे दी.  9 नवंबर, 1989. प्रस्तावित राम मंदिर के शिलान्यास की तारीख़. RSS और VHP अयोध्या में प्रस्तावित राम जन्मस्थान मंदिर की नींव के लिए रामशिलाएं जमा कर रहे थे. लोकल मिट्टी से बनी ईंटों को गांव-गांव, शहर-शहर ले जाया जाने लगा. भगवा रंग के कपड़े में लिपटी इन ईंटों की पूजा की जाती. पुजारी उसे पवित्र करते. फिर इन्हें लेकर जुलूस निकाला जाता. अयोध्या की मिट्टी भी देश के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचाई जाती. तकरीबन दो लाख गांवों से ईंटें आईं मंदिर के लिए. भयंकर ध्रुवीकरण का माहौल बन गया था. कई जगहों पर दंगे हुए. तय तारीख़ को VHP और RSS के हज़ारों कार्यकर्ताओं ने अयोध्या में विवादित स्थल के पास राम मंदिर का शिलान्यास कर दिया. VHP के जॉइंट सेक्रटरी थे कामेश्वर चौपाल. दलित समुदाय से आते थे. उनके हाथों राम मंदिर के नींव की पहली ईंट रखवाई गई.
साल 1989: इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा केस श्री राम जन्मभूमि अयोध्या के रामलला विराजमान ने इस विवाद से जुड़ी पांचवीं याचिका दाखिल की. इस याचिका को रेप्रजेंट किया इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज देवकी नंदन अग्रवाल ने. देवकी नंदन अग्रवाल ने बाद में VHP जॉइन कर लिया और संगठन के उपाध्यक्ष बने. जुलाई में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तीन जजों की एक बेंच बनाई. फैसला दिया कि ये बेंच निचली अदालत में दाखिल की गईं पांचों याचिकाओं की सुनवाई करेगी. इसी साल अगस्त में कोर्ट ने कहा कि सभी पक्ष यथास्थिति बनाए रखें. साथ ही, संबंधित पक्षों को संपत्ति के नेचर, उसके स्वरूप में किसी तरह का बदलाव न करने की भी हिदायत दी गई. मगर राम मंदिर आन्दोलन की हवा बहती ही रही, बदस्तूर.
आडवाणी की ये रथ यात्रा गुजरात के सोमनाथ से शुरू होकर अयोध्या में पूरी होनी थी. मगर आडवाणी बिहार के समस्तीपुर में गिरफ़्तार कर लिए गए. ये रथ यात्रा के दौरान की तस्वीर है. आडवाणी के साथ दिख रही हैं उनकी पत्नी कमला आडवाणी (फोटो: इंडिया टुडे आर्काइव्ज़)
आडवाणी की ये रथ यात्रा गुजरात के सोमनाथ से शुरू होकर अयोध्या में पूरी होनी थी. मगर आडवाणी बिहार के समस्तीपुर में गिरफ़्तार कर लिए गए. ये रथ यात्रा के दौरान की तस्वीर है. आडवाणी के साथ दिख रही हैं उनकी पत्नी कमला आडवाणी (फोटो: इंडिया टुडे आर्काइव्ज़)

साल 1990: आडवाणी की रथ यात्रा, कारसेवकों पर फायरिंग BJP के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर के लिए माहौल बनाते हुए सोमनाथ से रथ यात्रा शुरू की. इस यात्रा का समापन अयोध्या में होना था. UP के मुख्यमंत्री थे मुलायम सिंह यादव. उन्होंने इस रथ यात्रा का विरोध देते हुए चेतावनी दी. कहा-
उन्हें अयोध्या में घुसने की कोशिश करने दो. हम उन्हें सिखाएंगे कि कानून का मतलब क्या होता है. कोई मस्जिद नहीं गिराई जाएगी.
मगर आडवाणी बिहार के समस्तीपुर में ही गिरफ़्तार कर लिए गए. वहां लालू यादव थे मुख्यमंत्री. आडवाणी अरेस्ट हो गए, मगर इस पूरे आंदोलन के कारण अयोध्या में पहले से ही बहुत सारे कारसेवक मौजूद थे. वो बाबरी मस्जिद की ओर बढ़ने की कोशिश कर रहे थे.
30 अक्टूबर, 1990. पुलिस ने बाबरी मस्जिद तक जाने वाले करीब डेढ़ किलोमीटर के रास्ते की बैरिकेडिंग की हुई थी. कर्फ्यू लगा दिया गया था. मगर फिर भी कारसेवक और साधु बाबरी मस्जिद की ओर बढ़ने की कोशिश करते रहे. दोपहर को CM मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर फायरिंग का आदेश दिया. पुलिस ने गोलीबारी की. भगदड़ मच गई. कई लोग मारे गए.
ये 30 अक्टूबर, 1990 की तस्वीर है. रथ यात्रा के कार्यक्रम के मुताबिक, इस दिन अयोध्या में आडवाणी की रथ यात्रा ख़त्म होनी थी. VHP, RSS और BJP की अपील पर लाखों कारसेवक अयोध्या में जमा हो गए थे. कारसेवक कर्फ्यू के बीच बाबरी मस्जिद की ओर बढ़ने की कोशिश कर रहे थे. पुलिस ने गोलीबारी की. भगदड़ मच गई. ये उसी समय की तस्वीर है (फोटो: इंडिया टुडे आर्काइव्ज़)
ये 30 अक्टूबर, 1990 की तस्वीर है. VHP, RSS और BJP की अपील पर लाखों कारसेवक अयोध्या में जमा हो गए थे. कारसेवक कर्फ्यू के बीच बाबरी मस्जिद की ओर बढ़ने की कोशिश कर रहे थे. पुलिस ने गोलीबारी की. भगदड़ मच गई. ये उसी समय की तस्वीर है (फोटो: इंडिया टुडे आर्काइव्ज़)

2 नवंबर को भी कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद की तरफ बढ़ने की कोशिश की. फिर फसाद हुआ. पुलिस ने उन्हें चेतावनी दी. मगर कारसेवक नहीं रुके. पुलिस ने फिर फायरिंग की. इस रोज़ भी कई लोग मारे गए. पुलिस फायरिंग में मारे गए लोगों की आधिकारिक संख्या 17 बताई जाती है. मगर BJP मृतकों की संख्या इससे कहीं ज़्यादा बताती है. 2017 में अपने 79वें जन्मदिन पर बोलते हुए मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि इन फायरिंग्स पर उनकी अटल बिहारी वाजपेयी से बात हुई थी. वाजपेयी का कहना था कि 56 मौतें हुई थीं. जबकि मुलायम ने ये संख्या 28 बताई.
साल 1992: बाबरी मस्जिद विध्वंस 1992 का दिसंबर महीना. कारसेवकों के जत्थे-के-जत्थे अयोध्या पहुंच रहे थे. उस समय वहां मौजूद पत्रकार बताते हैं कि अयोध्या इतनी भर गई थी कि पुलिस के गाड़ियों के चलने तक की जगह नहीं थी. भीड़ नारे लगाती- जय श्री राम. भड़काऊ नारे लगाए जाते- जिस हिंदू का खून न उबला, खून नहीं वो पानी है. आंदोलन को चरम पर पहुंचाने की ज़मीन तैयार कर ली गई थी. 'पायनियर' में काम कर रहे फोटोजर्नलिस्ट प्रवीण जैन 5 दिसंबर की सुबह भगवा कपड़े पहनकर भीड़ में मिल गए. गले में VHP का बैज डाले. उन्होंने बताया कि कैसे बाबरी मस्जिद से बस आधा किलोमीटर दूर भीड़ ने मस्जिद गिराने की रिहर्सल की. मस्जिद गिराने के लिए उनकी बाकायदा प्रैक्टिस करवाई गई. प्रवीण जैन ने रिहर्सल की तस्वीरें खींची. उन्होंने अपने सहयोगियों को इस बारे में बताया, मगर किसी ने यकीन नहीं किया.
अगले दिन, यानी 6 दिसंबर. ऐलान किया जा चुका था कि सांकेतिक कारसेवा होगी. अंदर-अंदर तैयारियां पूरी थीं. कारसेवक बाबरी मस्जिद के ऊपर चढ़ गए. दोपहर बाद मस्जिद के तीनों गुंबद नीचे गिराए जा चुके थे. चश्मदीद बताते हैं कि पुलिस ने भीड़ को रोकने की कोशिश भी नहीं की. पत्रकारों को मारा-पीटा गया. ताकि चीजें रिपोर्ट न हो सकें. ताकि मस्जिद गिराने से जुड़ा कोई सबूत न रहे. प्रवीण जैन बताते हैं कि भीड़ के नारों में एक नारा ये भी था- सुप्रीम कोर्ट की आज्ञा का पालन करो. सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद की हिफ़ाजत का आदेश दिया था. भीड़ ये नारा लगाने के बाद मज़ाक उड़ाते हुए हंसती.
मस्जिद गिराए जाने के 10 रोज़ बाद, यानी 16 दिसंबर को. इस मामले में जांच के लिए जस्टिस मनमोहन सिंह लिब्राहन आयोग गठित किया गया. लिब्राहन पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के सिटिंग जज थे तब.
साल 2003: ASI ने अपनी रिपोर्ट दी
साल 2002 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने कोर्ट-कमिश्नर के मार्फ़त भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) से कहा कि वो विवादित स्थल की खुदाई करे. ये पता लगाए कि क्या बाबरी मस्जिद किसी मंदिर को गिराकर उसकी जगह बनाई गई थी. कोर्ट के आदेश पर ASI ने एक सर्वे शुरू किया. ये ASI का चौथा सर्वे था. ASI ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बाबरी मस्जिद के ठीक नीचे एक बहुत बड़ा स्ट्रक्चर होने के सबूत मिले हैं. इसके मुताबिक, यहां किसी मंदिर जैसी संरचना की दीवारें और खंभे मिले. हालांकि खुदाई की प्रक्रिया में शामिल कुछ अन्य सदस्यों ने इस दावे का विरोध किया.
साल 2009: लिब्रहान कमीशन ने रिपोर्ट सौंपी जब आयोग गठित हुआ था, 16 दिसम्बर 1992 को, तब केंद्रीय गृह सचिव थे माधव गोडबोले. गृहमंत्री थे एसबी चव्हाण. गृह मंत्रालय से एक नोटिफिकेशन आया -
कमीशन वुड सबमिट इट्स रिपोर्ट टू द सेंट्रल गवर्नमेंट एज़ सून एज़ पॉसिबल, बट नॉट लेटर देन थ्री मंथ्स.
कहां तो कमीशन को जल्द-से-जल्द रिपोर्ट जमा करनी थी. और कहां इसको 48 एक्सटेंशन मिले. आज़ाद भारत के इतिहास की सबसे लंबी जांच कमीशन हुई ये. 900 से ऊपर पन्नों की रिपोर्ट देने में आयोग को 17 साल लग गए. 30 जून, 2009 को उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को रिपोर्ट सौंपी गई. मगर ये रिपोर्ट कभी पूरी पब्लिक नहीं की गई.
साल 2010: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच का फैसला
तीन जजों की खंडपीठ. जस्टिस एस यू खान. जस्टिस सुधीर अग्रवाल. और, जस्टिस डी वी शर्मा. इन्होंने 2:1 की मेजॉरिटी से फैसला सुनाया. 2.77 एकड़ की विवादित ज़मीन में रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और UP सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, तीनों का मालिकाना हक़ माना अदालत ने. इन तीनों के बीच ज़मीन का बंटवारा करने का निर्देश दिया. एक तिहाई रामलला को. एक तिहाई निर्मोही अखाड़ा को. और एक तिहाई मुस्लिम पक्ष को. जहां बाबरी मस्जिद का बीच वाला गुंबद हुआ करता था, वो जगह रामलला को मिली. राम चबूतरा और सीता रसोई निर्मोही अखाड़ा को दी गई. सभी पक्षों ने इस फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की और इसपर स्टे लग गया.
साल 2017: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की प्रक्रिया शुरू हुई. उस समय चीफ जस्टिस थे दीपक मिश्रा. दीपक मिश्रा के बाद रंजन गोगोई हुए CJI. 8 जनवरी, 2019 को रंजन गोगोई ने ये मामला पांच जजों की एक खंडपीठ के सुपुर्द किया. 8 मार्च, 2019 को अदालत ने सभी मुख्य पक्षों को आठ हफ़्ते का समय देते हुए कहा कि वो आपसी बातचीत से मध्सस्थता की कोशिश करें. 13 मार्च को मध्यस्थता की कार्रवाई शुरू हुई. मई में कोर्ट ने इसका समय बढ़ाकर 15 अगस्त तक कर दिया. मगर मध्यस्थता की कोशिशें कामयाब नहीं हुईं. 6 अगस्त से कोर्ट ने फाइनल दलीलें सुननी शुरू कीं. 16 अक्टूबर को कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा. साल 2019: फाइनली फाइनल सितंबर-अक्टूबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने 40 दिनों तक अपीलें सुनीं और अपना फैसला सुरक्षित कर लिया. अब 9 नवंबर को इस मामले में फैसला सुनाया जाएगा.


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