The Lallantop

सीरियल किलर की डायरी क्यों जला दी गई?

1980 के दशक में मद्रास में आतंक मचाने वाले सीरियल किलार ऑटो शंकर की कहानी.

post-main-image
सीरियल किलर ऑटो शंकर उर्फ़ गौरी शंकर जिसका आतंक 80 के दशक में पूरे तमिलनाडु में फैला हुआ था (तस्वीर-vocal.media/cinema.vikatan)

फिल्मों का शौक़ीन एक ऑटो वाला जिसने पहले शराब बेची फिर लड़कियां. और जब इतने से मन न भरा तो सीरियल किलर बन गया. ये कहानी शुरू होती है साल 1955 से. तमिनाडु के वेल्लोर जिले में पैदाइश हुई गौरी शंकर की. बचपन वेल्लोर में गुजारने के बाद गौरी शंकर पहुंचा मद्रास(Madras). फ़िल्में उसका पहला प्यार थीं और उसे लगता था मद्रास जाकर फिल्मों में एंट्री मिल जाएगी. उसके पास पेंटिंग का हुनर था. पेरियार नगर नाम की एक जगह पर वो पेंटर का काम करने लगा. रंग जमा, काम चलने लगा. गौरी शंकर ने शादी कर ली, चार बच्चे भी हो गए. फिर एक रोज़ एक हादसे में पत्नी की मौत हो गई. यहां से गौरी शंकर की जिन्दगी ने एक नया मोड़ लिया. (Auto Shankar Criminal)

यहां पढ़ें- एक खतरनाक कल्ट जिसने कालों-गोरों की जंग कराने के लिए प्रेग्नेंट एक्ट्रेस की हत्या कर डाली!

मयकदे से जिस्मफरोशी तक

80 के दशक के शुरुआती सालों की बात है. तमिलनाडु की सरकार ने शराब पर बैन लगा दिया. पीने वाले प्यासे थे. सो एक नया मयकदा ढूंढा गया. मछुवारों की बस्ती में. तिरुवनमयूर से महाबलीपुरम तक ताड़ के पेड़ों की लाइन लगती थी. ताड़ से बनती थी ताड़ी. इलाका सुनसान था. सो पुलिस का भी कोई डर नहीं था. जल्द ही धंधा फलने-फूलने लगा. गाड़ियों में भर कर ताड़ी शहर में पहुंचाई जाने लगी. इस काम में थोड़ा रिस्क था. पुलिसवाले गाड़ियों की तलाशी लेते थे. एक नया तरीका ढूंढा गया. (Serial killer Auto Shankar)

यहां पढ़ें- रूस के इस गड्ढे को क्यों कहते हैं 'नर्क का दरवाज़ा'?

Auto shankar
सेक्स रैकेट चलाने से पहले शंकर ऑटो के जरिए अवैध शराब सप्लाई करता था, इसके बाद कुछ नेताओं को वह लड़कियां भी सप्लाई करने लगा (तस्वीर- indiatoday)


ऑटो रिक्शा कम ही रोके जाते थे. सो ताड़ी सप्लाई करने के लिए ऑटो इस्तेमाल किये जाने लगे. एंटर - गौरी शंकर. पत्नी की मौत के बाद गौरी शंकर पेंटिंग छोड़कर ऑटो चलाने लगा था. ताड़ी के धंधे में फायदा देख वो भी इससे जुड़ गया. मुनाफा तगड़ा था. उसने अपने भाई और कुछ और लोगों को भी इस धंधे में जोड़ा और कुछ ही सालों में एक छोटे मोटे गैंग का लीडर बन गया. काम अच्छा चल रहा था लेकिन गौरी शंकर को और तरक्की करनी थी. उसे अहसास हुआ कि गैरकानूनी धंधे चलाने के लिए कानून के हाथ मुलायम करने जरुरी हैं. उसने पुलिस वालों से पहचान जोड़ी. ये पहचान उसे ले गयी कानून बनाने वालों के दर तक. नेताओं तक.

शराब का धंधा जल्द ही जिस्म के धंधे में तब्दील हो गया. ऑटो रिक्शाओं की संख्या अब एकवचन से बहुवचन में तब्दील हो चुकी थी. लेकिन अब उनसे ताड़ी नहीं लड़कियां सप्लाई होती थीं. इस धंधे ने गौरी शंकर को एक नया नाम नई पहचान दी. ऑटो शंकर -अंडरवर्ल्ड डॉन(Gangster Auto Shankar). डॉन के तीन हाथ- मोहन,  एल्डिन और शिवाजी. तीनों ने मिलकर जल्द ही ऑटो शंकर को तिरुवनमयूर का सबसे बड़ा डॉन बना दिया. पेरियार नगर अभी भी शंकर का गढ़ था. यहां झोपड़पट्टियों में सेक्स का कारोबार होता था. इस कारोबार के लिए लड़कियां कुछ अपनी मर्जी से आती तो कुछ ज़बरदस्ती लाई जाती.

तीसरी शादी पहली हत्या

निजी जिन्दगी में शंकर अब तक तीसरी शादी कर चुका था. इंडियन एक्सप्रेस में सितम्बर 1990 में छपी पत्रकार KM थॉमस की रिपोर्ट के अनुसार उसकी तीसरी बीवी का नाम ललिता था. और ललिता ही वो पहली शख्स थी जिसका उसने क़त्ल किया था. हुआ यूं कि एक रोज़ ललिता शंकर के दोस्त और उसके लिए दलाल का काम करने वाले सुदालाईमुथु के साथ भाग गई. दोनों ने मिलकर सेक्स का नया धंधा शुरू कर दिया. ये देखकर शंकर बौखला उठा. 
अक्टूबर 1987 की एक रात की बात है. शंकर ने ललिता को अपने पेरियार नगर वाले घर में बुलाया और मारकर उसकी लाश ठिकाने लगा दी. करामात देखिए की उसने यही कमरा फिर एक बूढ़ी विधवा को 150 किराए पर रहने के लिए दे दिया. इस बीच सुदालाईमुथु ललिता के गायब होने से परेशान था. उसने शंकर से पूछा तो जवाब मिला कि वो इंडिया टूर पर है. कुछ VIP लोगों को स्पेशल सर्विसेज़ देने के लिए.

Auto shankar family
ऑटो शंकर उर्फ़ गौरी शंकर 1955 में वेल्लोर, तमिलनाडु में पैदा हुआ, काम कि तलाश में वो मद्रास चला गया और पेरियार नगर में पेंटर का काम करने लगा (तस्वीर-tamil.oneindia.com)


कुछ दो महीने बाद शंकर ने सुदालाई को भी अपने घर डिनर पर बुलाया और उसकी भी हत्या कर डाली. सुदालाई को ढूंढते हुए उसका एक दोस्त जिसका नाम रवि था,  शंकर के पास आया तो उसने उसे भी ठिकाने लगा दिया. और उसने रवि पत्नी को एक ख़त भेज दिया कि रवि मुंबई चला गया है. शंकर ने रवि की लाश को जमीन के एक प्लाट में छुपा कर ऊपर से सीमेंट डाल दिया और साथ वालों को बताया की पुलिस से बचने के लिए शराब छुपा रहा है.

अख़बार में छपी रिपोर्ट से हुआ खेल ख़त्म

इतने कांड करने के बाद भी शंकर पुलिस की पहुंच से दूर था. और शायद दूर ही रहता अगर अखबार में एक आर्टिकल में उसका नाम न छपता. 29 मई 1988 की घटना है. तीन लड़कों ने शंकर की लड़कियों का इस्तेमाल किया लेकिन पैसा देने से इन्कार करने लगे. इतना ही नहीं उन्होंने शंकर के लड़कों से हफ्ता वसूलने की कोशिश भी की. शंकर ने एक बार फिर से वही चाल अपनाई. उसने तीनों लड़कों को अपने घर बुलाया और उनकी हत्या कर उनकी लाश को सीमेंट में चुनवा दिया.

मारे गए तीन लड़कों में से एक का नाम संपत था. संपत की बीवी विजया ने अपने पति कि गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस के पास दर्ज करवाई. पुलिस ने शंकर को गिरफ्तार तो किया लेकिन फिर कुछ दिनों में छोड़ भी दिया. विजया ने अपने एक जानकार के कहने पर सीधे तमिलनाडु के गवर्नर को अर्जी लिखी. गवर्नर को क्यों?

दरअसल इन दिनों तमिलनाडु राजनैतिक उथ-पुथल से गुजर रहा था. मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन की मौत हो गई थी. इसलिए राज्य में गवर्नर शासन लागू था. विजया ने गवर्नर पीसी एलेक्जैंडर के पास अपनी समस्या पहुंचाई. गवर्नर ऑफिस से पुलिस को लताड़ लगी लेकिन पुलिसवाले उल्टा विजया को धमकाने पहुंच गए की वो ऐसी शिकायतों से बाज आए. विजया ने अपने एक जानकार से मदद मांगी जो पेशे से पत्रकार था. उसने ये पूरी कहानी अपने अखबार में छाप दी. मजबूरी में पुलिस को केस दुबारा खोलना पड़ा.

शंकर ने राज़ उगले

पुलिस ने शंकर के पूरे गैंग को रिमांड पे लिया और भरपूर खातिरदारी की. शंकर का दायां हाथ एल्डिन सबसे पहले टूटा. उसने ज़ुर्म कुबूल किए और सरकारी गवाह बनने को राज़ी हो गया. शह पाकर पुलिस शंकर के पास पहुंची और फिर से अरेस्ट किया. इस बार उसने भी जुर्म कुबूल लिए. पुलिस ने पेरियार नगर से पांच लाशें बरामद की. शंकर ने उन्हें सीमेंट की दीवारों में चुनवा दिया था. ये महज़ शुरुआत थी. जब शंकर की प्रॉपर्टी खंगाली गई तो एक डायरी मिली. डायरी में तमाम पुलिसवालों के नाम थे. कुछ के साथ उसकी फोटो भी थीं. पुलिस की इतनी फजीहत हुई कि दो पुलिसवाले सस्पेंड करने पड़े. एक डिप्टी सुप्रिटेंडेंट को लम्बी छुट्टी पर भेज दिया गया. और बाद में उसे भी सस्पेंड कर दिया गया.

Auto shankar serial killer
शंकर ने अदालत में बताया कि उसके क्राइम के पीछे सिनेमा का हाथ था, वो फ़िल्मी विलेनों जैसा बनना चाहता था (तस्वीर- The Hindu)

अदालत में शंकर ने बताया कि क्राइम की दुनिया में आने का कारण सिनेमा था. बहुत पहले जब वो शराब का धंधा कर रहा था. उसे बाबू नाम के एक दलाल की हत्या की खबर सुनी. पुलिस ने एक फिल्म ऐक्ट्रेस के भाई को गिरफ्तार किया. पता चला कि एक्ट्रेस जिस्म फरोशी के कारोबार में शामिल थी. और सारा झगड़ा रेट को लेकर हुआ था. इसी से शंकर को सेक्स के कारोबार में उतरने का आईडिया मिला. क़त्ल के आईडिया भी उसे फिल्मों से मिले थे. उसे फ़िल्मी विलेनों जैसा बनना था.

नेताओं के विडियो बनाकर रखता था

उस वक़्त के एडिशनल डायरेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस ने एक सेमिनार में कहा था कि शंकर के मॉरल करप्शन की वजह भी सिनेमा ही था. शंकर ने एक और खुलासा किया था. उसके अनुसार जिन लड़कियों को वो किडनैप करता था, वो नेताओं के लिए भेजी जाती थीं. कई बार लड़कियों का रेप होता था. जिसके बाद शंकर उनकी हत्या कर उन्हें समंदर में फेंक देता था. 
ये राजनेता कौन थे? द न्यूज़ मिनट के एक आर्टिकल में पत्रकार बाबू जयकुमार बताते हैं कि कई बड़े नेताओं का नाम उछला था. वे सब उसके कस्टमर थे. शंकर उनकी तस्वीरें और विडियो बनाकर रखता था. शायद ब्लैक मेल करने के लिए. बाबू के अनुसार संभवतः पुलिस ने वो सब तस्वीरें और विडियो नष्ट कर डाले थे. बाबू ये भी बताते हैं कि शंकर की पहुंच काफी ऊपर तक थी. अगर आज वो जिन्दा होता तो शायद मंत्री बन गया होता. लेकिन गवर्नर रूल और बदलते राजनैतिक हालात ने उसका गेम ओवर कर दिया.

Auto shankar jail
27 अप्रैल साल 1995 में ऑटो शंकर को उसके गुनाहों की सजा मिली, सालेम जेल में गौरी शंकर उर्फ़ ऑटो शंकर को फांसी पर लटका दिया गया (तस्वीर-vocal.medi)

तमाम गुनाहों के लिए शंकर और उसके दो साथियों को फांसी की सजा मिली. हालांकि मौत से पहले एक और ड्रामा हुआ. शंकर को मद्रास सेन्ट्रल जेल में रखा गया था. एक रोज़ मौका देखकर वो अपने चार साथियों के साथ भाग निकला. जांच में पता चला कि तीन जेल वॉर्डन ने उसकी मदद की थी. तीनों जेल वॉर्डन को 6-6 महीनों की सज़ा दी गयी. कुछ महीनों बाद शंकर को भी पकड़ लिया गया. उसे दुबारा जेल में डाला गया. यहां भी उसकी ऐश थी. जब वो चाहता जेल में उसे खाने को पीने को, जो चाहे मिल जाता. ये सब जिन राजनैतिक कॉन्टेक्ट्स के बदौलत हो रहा था, उनकी मदद से शायद वो फिर भी बच जाता लेकिन जेल से भागने की वजह से उसकी सज़ा में छूट के सभी रास्ते बंद हो गए. उस वक़्त राष्ट्रपति की कुर्सी में शंकर दयाल शर्मा बैठते थे. उन्होंने शंकर की मर्सी पिटीशन रिजेक्ट कर दी. 27 अप्रैल 1995. सालेम जेल में जल्लाद ने फांसी का लीवर खींचा और गौरी शंकर उर्फ़ ऑटो शंकर की फ़िल्मी कहानी का पटाक्षेप हो गया.

वीडियो: तारीख: पाकिस्तान आर्मी ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी!