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वो सात हाई प्रोफाइल वकील, जिन्होंने आसाराम का केस लड़ा

बहुत बड़े-बड़े नाम हैं ये.

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बड़े-बड़े वकीलों ने आसाराम की पैरवी की.
आसाराम बापू. स्वयंघोषित भगवान. जब भगवान के नाम कई सारे रेप केस दर्ज हुए तो दुनिया दो समूहों में बंट गई. एक वो जिनका ऐसे संतों की संतई से भरोसा उठ गया. दूसरी तरफ वो जिनका बस चले तो 'बापू निर्दोष है' का नारा अपनी कलाइयों पर गुदवा लें. जब भक्तों की भक्ति क़ानून को अपना काम करने से न रोक सकी तो बापू को जेल जाना ही पड़ा.
जेल जाते आसाराम.
जेल जाते आसाराम.

ऐसे में बापू ने अथाह दौलत और रसूख को काम में लाना चाहा. अपना केस लड़ने के लिए देश के एक से बढ़कर एक नामी वकीलों की सेवाएं ली. वकीलों की इस भीड़ में सात वकील ऐसे हैं, जिनको पूरा हिंदुस्तान जानता है. लॉ की दुनिया के ये बड़े नाम हैं. आइए जानते हैं इनके बारे में.


# राम जेठमलानी

आसाराम के केस को हाथ में लेने वाले पहले बड़े वकील. राम जेठमलानी के कद से कोई नावाकिफ नहीं. इनसे ज़्यादा हाई-प्रोफाइल केसेस भारत में शायद ही किसी और वकील के पास रहे हो. कुछेक केसेस बता देते हैं. इससे आप खुद ही अंदाज़ा लगा लीजिए. राम जेठमलानी ने जिन लोगों की तरफ से कानूनी लड़ाई लड़ी, वो हैं:
राजीव गांधी के हत्यारे, इंदिरा गांधी के हत्यारे, हर्षद मेहता (स्टॉक मार्केट स्कैम), अंडरवर्ल्ड डॉन हाजी मस्तान, लालकृष्ण अडवाणी (हवाला केस), मनु शर्मा (जेसिका लाल केस), अमित शाह (सोहराबुद्दीन केस), कनिमोझी (टू जी स्कैम), लालू प्रसाद यादव (चारा घोटाला), अरविंद केजरीवाल (अरुण जेटली का मानहानि केस).
इतने बड़े-बड़े केसों से जुड़े राम जेठमलानी ने आसाराम बापू का केस हाथ में लिया तो बापू के भक्तों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई. उन्हें लगा कि अब आए बापू बाहर. मगर ये हो न सका. राम जेठमलानी के बाद और भी कई सारे वकील सीन में आएं लेकिन बापू अंदर ही रहे. जेठमलानी जब जोधपुर कोर्ट में आसाराम की बेल की अर्ज़ी पर जिरह कर रहे थे, उनकी पॉइंट दर पॉइंट हार हुई.
राम जेठमलानी.
राम जेठमलानी.

पहले उन्होंने ये दलील दी कि लड़की नाबालिग़ थी ही नहीं. इसलिए पॉक्सो (POCSO) एक्ट इस केस में अप्लाई नहीं होगा. जब उनका ये दावा झूठा साबित हुआ तो वो अगला तीर लेकर आएं. कहा कि लिंग प्रवेश न होने के कारण इसे रेप नहीं माना जा सकता. तब उन्हें याद दिलाया गया कि पॉक्सो एक्ट ने रेप की परिभाषा को विस्तार दिया है. अब प्रवेश हो ही ये कानूनन ज़रूरी नहीं.
राम जेठमलानी का अगला नुक्ता ये था कि लड़की का मेडिकल एग्जामिनेशन FIR दर्ज होने से पहले किया गया था. जो कि असाधारण बात थी. पहले जज इस नुक्ते से कंवीन्स होते नज़र आएं. बाद में ये स्पष्ट हुआ कि पॉक्सो एक्ट के मुताबिक़ जांच अधिकारी FIR फाइल होने से पहले मेडिकल करवा सकता है. जेठमलानी के सारे तर्क धाराशायी हुए और आसाराम की बेल अर्ज़ी निरस्त हो गई.


# के टी एस तुलसी 

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद. इन्होने भी आसाराम केस में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. के टी एस तुलसी बहुत ही प्रतिष्ठित अधिवक्ता और क़ानून विशेषज्ञ हैं. तुलसी एडिशनल सॉलिसिटर जनरल भी रह चुके हैं. कई टाडा केसेस में उन्होंने भारत सरकार का प्रतिनिधित्व किया. उन्होंने रॉबर्ट वाड्रा का केस लड़ा. उपहार सिनेमा अग्निकाण्ड के पीड़ितों को रिप्रेजेंट किया. दिल्ली टेरर अटैक में सज़ा प्राप्त देविंदर पाल सिंह भुल्लर का केस लड़ा और उसकी मौत की सज़ा को बदलने में कामयाबी पाई.
के टी एस तुलसी.
के टी एस तुलसी.

एक दिलचस्प बात ये कि एडवोकेट तुलसी ने सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व करने से मना कर दिया था. 2014 में वो राज्यसभा सदस्य के तौर पर नामांकित हुए.
आसाराम केस में उन्होंने भी अपना वक़्त खर्च किया लेकिन बापू को ज़मानत नहीं दिलवा सके.


# यू यू ललित

आसाराम केस एडवोकेट उदय उमेश ललित का वकील के तौर पर आखिरी केसों में से एक था. इसमें बाद वो सुप्रीम कोर्ट में जज बन गए. जस्टिस ललित उस ऐतिहासिक बेंच का हिस्सा थे जिसने विवादित ट्रिपल तलाक केस की सुनवाई की थी. जज बनने से पहले ललित काफी सेलिब्रेटेड वकील रहे हैं. उन्होंने भारत के एटर्नी जनरल सोली सोराबजी के साथ काम किया. टूजी घोटाला केस में वो सीबीआई के स्पेशल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर थे. उनके बारे में ये कहा गया था कि वो सोहराबुद्दीन एनकाउंटर और तुलसीराम प्रजापति केस में अमित शाह के वकील थे. बाद में ये सब अफवाहें निकलीं.
यू यू ललित.
यू यू ललित.

आसाराम केस में उनका भी लाइन ऑफ़ डिफेन्स यही था कि लड़की नाबालिग़ नहीं है. उसके स्कूल सर्टिफिकेट के हिसाब से वो बालिग़ है. दूसरी आपत्ति जो उन्होंने पेश की वो ये कि पॉक्सो एक्ट और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में विसंगति है. दोनों में 'चाइल्ड' की परिभाषा और उम्र निर्धारित करने का प्रोसीजर अलग-अलग है. कोर्ट ने इन मुद्दों पर विचार करने की बात तो कही लेकिन बेल देने से साफ़ मना कर दिया.


# सलमान खुर्शीद

कद्दावर कांग्रेसी नेता. भारत के भूतपूर्व विदेश मंत्री. जो इस बात पर ख़ूब ट्रोल हुए कि जब उनकी पार्टी ने आसाराम की आलोचना की थी, तो उन्होंने उनका केस ले कैसे लिया.
सलमान खुर्शीद.
सलमान खुर्शीद.

आसाराम केस में उन्होंने मेडिकल ग्राउंड्स पर आसाराम को ज़मानत दिलवाने की कोशिश की थी. आसाराम ने दावा किया था कि उन्हें ट्राईगेमिनल न्यूरैल्जिया की बीमारी है जिसकी वजह से माथे और चेहरे में भयानक दर्द रहता है. उन्हें इसके ट्रीटमेंट के लिए बेल दी जाए. सलमान खुर्शीद ने कोर्ट से कहा था कि उनके क्लाइंट को गामा-नाइफ प्रोसीजर नाम की सर्जिकल ट्रीटमेंट की ज़रूरत है. इसके लिए उन्हें ज़मानत दिया जाना ज़रूरी है. कोर्ट ने जोधपुर के एस.एन.मेडिकल कॉलेज को एक मेडिकल टीम बनाने का निर्देश दिया. सलमान खुर्शीद से कहा कि जब तक महत्वपूर्ण गवाहों की गवाही हो नहीं जाती, आसाराम को बेल देने का कोई मतलब ही नहीं.


# सिद्धार्थ लूथरा

एक और सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट. सिद्धार्थ लूथरा भारत के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल रह चुके हैं. क्रिमिनल लॉ में स्पेशलाइज्ड सिद्धार्थ लूथरा ने देश-विदेश में पढ़ाते भी रहे हैं. 2002 में उन्होंने तहलका मैगज़ीन को वेस्ट एंड स्टिंग ऑपरेशन केस में रिप्रेजेंट किया था. 2011 में उन्हें फेसबुक ने भी हायर किया था. इसके अलावा वो एक और चर्चित केस का हिस्सा रहे हैं. अरुण जेटली ने जो अरविंद केजरीवाल पर मानहानि का दावा किया था उसमें जेटली के वकील सिद्धार्थ लूथरा ही थे. 2015 के कैश फॉर वोट स्कैम में में उन्होंने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू का प्रतिनिधित्व किया था.
सिद्धार्थ लूथरा.
सिद्धार्थ लूथरा.

सिद्धार्थ लूथरा ने भी आसाराम को बीमारी के आधार पर ही ज़मानत दिलवाने की कोशिश की थी. इसी सन्दर्भ में उन्होंने कोर्ट से प्रार्थना की थी कि आसाराम को जोधपुर जेल से कोर्ट लाते वक़्त एक्स्ट्रा सावधानी बरती जाए. जिसपर कोर्ट ने पूछा था कि क्या ख़ास लोगों के लिए क़ानून में अलग प्रावधान हैं क्या? कोर्ट ने ये भी साफ़ किया था कि एम्स के डॉक्टरों की एक टीम आसाराम का मेडिकल एग्जामिनेशन करेगी. उसके बाद और कुछ ख़ास गवाहों की गवाही के बाद ही आसाराम की ज़मानत अर्ज़ी पर विचार किया जाएगा.


# राजू रामचंद्रन

राजू रामचंद्रन भी सुप्रीम कोर्ट के सीनियर अधिवक्ता हैं. वो एडिशनल सॉलिसिटर जनरल भी रह चुके हैं. 2002 दंगा और अजमल कसाब केस में वो एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) रह चुके हैं. मुंबई अटैक केस में उन्होंने अपनी फीस लीगल सर्विस अथॉरिटी को दान कर दी थी जिसे 18 पुलिसवालों और सुरक्षा अधिकारियों के परिवारों में बांटा गया था. इस कार्य की सुप्रीम कोर्ट तक ने तारीफ़ की थी और इसे 'हाई प्रोफेशनल एथिक्स' बताया था. रामचंद्रन ने मशहूर कावेरी जल विवाद केस में केरला राज्य को रिप्रेजेंट किया था.
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राजू रामचंद्रन.

आसाराम केस में राजू रामचंद्रन ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि हाई-कोर्ट के निर्देशानुसार गठित किए मेडिकल बोर्ड की राय में आसाराम की तबियत दिन ब दिन बिगड़ती जा रही है. ऐसे में उन्हें एक या दो महीने की ज़मानत तुरंत दी जाए. सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया.


# सुब्रमण्यन स्वामी

विकिपीडिया पेज के अनुसार अर्थशास्त्री, वकील, गणितज्ञ, राजनेता. राज्यसभा सांसद. प्लानिंग कमीशन के मेंबर भी रह चुके हैं. 2 जी स्कैम को एक्सपोज करने में इनकी बड़ी भूमिका रही है. भारतीय राजनीति में एक चर्चित हस्ती हैं सुब्रमण्यन स्वामी.
आसाराम केस में वो जोधपुर जेल में आसाराम से जाकर मिले थे. बाहर आकर उन्होंने घोषणा की कि आसाराम के खिलाफ सारा केस फ़र्ज़ी है. इसके पीछे उन्होंने सोनिया गांधी का हाथ बताया. वजह ये बताई कि आसाराम गुजरात में मिशनरीज़ के धर्मपरिवर्तन वाले कार्यों के खिलाफ काम कर रहे थे. इसीलिए उन्हें फ्रेम किया गया.
सुब्रमनियम स्वामी.

आसाराम केस में स्वामी की कोर्ट अपियरंस का किस्सा दिलचस्प है. स्वामी ने ज़मानत अर्ज़ी की सुनवाई की शुरुआत में ही अपने रसूख का ज़िक्र करना शुरू कर दिया था. उन्होंने कोर्ट से कहा कि वो भूतपूर्व चीफ जस्टिस आर.एम.लोढ़ा को – जो जोधपुर से ही हैं – को जानते हैं और उन्होंने ही क़ानून मंत्री रहते हुए उनका नाम रेकमेंड किया था. कोर्ट पर प्रभाव डालने की इस कोशिश को दरकिनार करते हुए सरकारी वकीलों ने पूछा कि क्या स्वामी आसाराम केस को रिप्रेजेंट करने के लिए कानूनी तौर पर पात्र हैं? क्योंकि वकीलों की लिस्ट में उनका नाम नहीं था. इस पर स्वामी ने बताया शुरू किया कि कैसे उन्होंने टू जी स्कैम का पर्दाफाश किया था और सरकार गिरा दी थी. वकीलों ने इसे नज़रअंदाज़ करते हुए कोर्ट के पास अपना ऐतराज़ दर्ज करा दिया.
आसाराम ने कोर्ट को लिखित या मौखिक किसी रूप से नहीं बताया था कि स्वामी उनका केस देखेंगे. प्रॉसिक्यूशन को स्वामी से ऐतराज़ नहीं था बस वो चाहते थे कि प्रोसीजर फॉलो किया जाए. नतीजतन पौने घंटे तक स्वामी को इंतज़ार करना पड़ा. इस दौरान आननफानन जोधपुर जेल में बंदा भेजकर आसाराम से एप्लीकेशन मंगवाई गई.
बहरहाल, अपने तमाम रसूख के बावजूद सुब्रमण्यन स्वामी भी आसाराम को ज़मानत नहीं दिलवा सके.


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