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जब नरसिम्हा राव ने मनमोहन से कहा, गड़बड़ हुई तो तुम पर थोप दूंगा

नरसिम्हा राव 28 जून, 1921 को पैदा हुए थे. 23 दिसंबर, 2004 को वो नहीं रहे.

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1991 में भारत में आर्थिक सुधार हुए थे. कोटा-कंट्रोल का सिस्टम ख़त्म किया गया था. लाइसेंस-राज की जगह ओपन कम्पटीशन ने ले ली. डॉलर के मुकाबले रुपया गिराया गया. ताकि एक्सपोर्ट ज्यादा हो सके. भारत के मार्केट को विदेशी कंपनियों के लिए खोला गया. वही, जिसे FDI कहते हैं.
 

 
पर ये सारे फैसले लेना आसान नहीं था. अभी हाल-फिलहाल में FDI को लेकर कितना बवाल हो गया था. 1991 में तो सरकार जाने की नौबत आ जाती. तुरंत जनता कहती कि 'लुटेरों ने देश को विदेशियों के हाथ बेच दिया'. खैर, जो भी हो. फैसले लिए गए.

पर उस दौरान कुछ रोचक वाकये भी हुए थे...

1. जनता का डर इतना था कि नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह से साफ़ कह दिया था, अगर ये फैसला सफल रहा तो सारा क्रेडिट 'हम लोगों' का रहेगा. अगर जनता ने बवाल किया तो मैं बोल दूंगा कि ये फैसला सिर्फ तुम्हारा था.'
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2.मनमोहन सिंह पहले रिज़र्व बैंक में गवर्नर रह चुके थे. इसके अलावा पार्टी-पॉलिटिक्स में भी बहुत काम कर चुके थे. इसलिए नरसिम्हा राव उनको अपनी सरकार में फाइनेंस मिनिस्टर बनाना चाहते थे. इस बारे में बात करने जब जयराम रमेश मनमोहन सिंह के घर पहुंचे, तब उनके PA ने मुंह पे बोल दिया: 'जाइये, अभी सर सो रहे हैं. और हां, अब सर कहीं काम नहीं करेंगे. डिस्टर्ब मत करिए. सर कल ही फ्लाइट से आए हैं. बहुत थके हैं.'
जयराम रमेश ने कई बार कोशिश की. पर बात नहीं हो पाई. अगले दिन रमेश ने सुबह 5 बजे फोन कर दिया. इमरजेंसी समझकर PA ने मनमोहन सिंह को फोन दे दिया. मनमोहन सिंह ने रमेश की बात सुनकर बस इतना कहा, अच्छा? फिर रमेश ने पूछा, तो मैं घर आऊं ना? तब कहा, हां. फिर जब रमेश पहुंचे तब मनमोहन सिंह फिर सो रहे थे. दो घंटे बाद उठे.
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3.1991 में जब नरसिम्हा राव की सरकार ने सुधार किए, तब डॉलर के मुकाबले रुपये के कीमत कम हो गई थी. इस नेक काम के वक्त फाइनेंस मिनिस्टर मनमोहन सिंह थे.
पर फाइनेंस मिनिस्टर बनने से पहले मनमोहन सिंह जेनेवा में दो साल रहे थे. उस दौरान उनको डॉलर में पेमेंट होता था. अब उनको कोई नशा-पते का शौक तो है नहीं. क्लब जाना नहीं है. संत आदमी. सारा डॉलर अकाउंट में ही जमा था.
अब फाइनेंस मिनिस्टर बनने के बाद मनमोहन सिंह को बड़ी चिंता सताने लगी. जो डॉलर अकाउंट में था, वो तो रुपए में लगभग दोगुना हो गया था. बिना कुछ किये.
एक दिन शाम को उनको इसका ख्याल आया. टेंशन में आ गए. तुरंत प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को फोन लगाया. कहा, 'सर.  देखिए, ऐसा है कि मैंने कुछ किया नहीं है. और बिना किए ही मेरे अकाउंट में प्रॉफिट हो गया है. डॉलर का भाव बढ़ने से मुझे 'Windfall Gains' हुआ है. मैं चाहता हूं कि इस प्रॉफिट को प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा कर दिया जाए. मनमोहन सिंह की ईमानदारी का ये लेवल था!
4. सुधार होने से पहले की बात है. देश में बड़ी दिक्कत हो गई थी. प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को खाली खजाना मिला था. बड़ी चिंता में थे. ऐसे में उनके फ्रेंड उस समय के 'महान राजनीतिक तांत्रिक' चंद्रास्वामी उनके घर आये.
चंद्रास्वामी
चंद्रास्वामी

चंद्रास्वामी ने राव की लकीरों को देखा और कहा,  'दोस्त, चिंता मत करो. मैंने अपने मित्र ब्रुनेई के शाह से बात की है. उन्होंने कहा है कि जितना पैसा चाहिए, उधार देंगे. बिना सवाल पूछे.' राव ने इस बात को एकदम सीरियसली ले लिया. तुरंत एक प्लेन तैयार किया गया. ब्रुनेई से माल मंगवाने के लिए. जब बाकी नेताओं और अफसरों को पता चला तो भागे-भागे आए. राव को समझाया.
लल्लन के ख़ुफ़िया पंछियों के मुताबिक, उस वक्त कहा गया था, 'सर, ऐसे थोड़ी ना होता है! देश-विदेश का मामला है. नाक कट जाएगी. शाह अपना मामा थोड़े है जो जेबें और बगली भर के गिन्नियां दे देगा.'
(जयराम रमेश की किताब 'To The Brink & Back' से)

नरसिम्हा राव 28 जून, 1921 को पैदा हुए थे. 23 दिसंबर, 2004 को वो नहीं रहे.