# कोयला खनन और उससे जुड़े कारोबार में अब 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश होगा.
# डि़जिटल मीडिया में 26 फीसदी का विदेशी निवेश हो सकेगा.
# कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग में 100 फीसदी का विदेशी निवेश होगा.
# सिंगल ब्रांड रिटेल में विदेशी निवेश में छूट दी जाएगी.
तो आखिर होता क्या है एफडीआई?
एफडीआई माने फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट. हिंदी में कहते हैं प्रत्यक्ष विदेशी निवेश. यानी विदेश की कोई कंपनी भारत की किसी कंपनी में सीधे पैसा लगा दे. जैसे वॉलमार्ट ने हाल ही में फ्लिपकार्ट में पैसा लगाया है. तो ये एक सीधा विदेशी निवेश है. पर अभी कई ऐसे सेक्टर या क्षेत्र हैं, जिनमें विदेशी कंपनियां भारत में पैसा नहीं लगा सकती हैं. या भारत की कंपनियां विदेश से पैसा नहीं जुटा सकती हैं. अभी कुछ सेक्टर ऐसे हैं, जिनमें विदेशी निवेश की सीमा 100 फीसदी तक खुली है. और कुछ ऐसे हैं, जिनमें अलग-अलग सीमाएं हैं.
प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने एफडीआई की शुरुआत की थी.
देश में कब से इसकी शुरुआत हुई?
साल था 1991. प्रधानमंत्री थे पीवी नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री थे मनमोहन सिंह. देश की अर्थव्यवस्था लगातार खऱाब होती जा रही थी. इससे उबरने के लिए मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की. और वही वो वक्त था, जब देश में विदेशी कंपनियों को कुछ शर्तों के साथ पैसे लगाने की छूट दी गई. इसे ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कहा गया. तब से लेकर अब तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लगातार बढ़ता जा रहा है. 2015 वो साल था, जब भारत ने चीन और अमेरिका को भी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में पीछे छोड़ दिया. तब सत्ता में बीजेपी थी और एफडीआई के रास्ते खुलते जा रहे थे. लेकिन यही बीजेपी जब विपक्ष में थी, तो उसने एफडीआई का पुरजोर विरोध किया था. और एफडीआई का विरोध करने वालों में उस वक्त के गुजरात के मुख्यमंत्री और अब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबसे आगे थे.
कितनी तरह का होता है एफडीआई?
एफडीआई दो तरह का होता है. पहला है ग्रीन फील्ड निवेश और दूसरा है पोर्टफोलियो निवेश.
# ग्रीन फिल्ड निवेश- इसके तहत दूसरे देश का कोई शख्स या कंपनी भारत में नई कंपनी खोल सकती है.
# पोर्टफोलियो निवेश- इसके तहत विदेश की कोई कंपनी या कोई शख्स भारत की किसी कंपनी के शेयर खरीद सकता है या फिर किसी कंपनी का अधिग्रहण कर सकता है.
किस तरह से देश में आता है एफडीआई?
देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कितना होगा और किस सेक्टर में होगा, इसको तय करने की जिम्मेदारी सरकार की है. केंद्र की कैबिनेट एफडीआई के लिए सेक्टर और उसकी सीमा का निर्धारण करती है. एक बार कैबिनेट की मंजूरी के बाद देश में एफडीआई का रास्ता साफ हो जाता है. देश में एफडीआई आने के दो रास्ते हैं-
1. ऑटोमेटिक रूट- अगर कैबिनेट की ओर से तय हो जाता है कि किसी सेक्टर में एफडीआई की सीमा कितनी होगी, तो विदेश की कोई कंपनी सीधे भारत की किसी कंपनी या किसी सेक्टर में पैसे लगा सकती है.
2. सरकारी रूट- अगर कैबिनेट किसी सेक्टर में एफडीआई की सीमा तय कर देती है और साथ में ये कहती है कि ये एफडीआई ऑटोमेटिक रूट के जरिए नहीं आएगा, तो फिर इसके लिए सरकार की मंजूरी लेनी होती है. सरकार की मंजूरी का मतलब है कि जिस सेक्टर में सरकारी रूट के जरिए विदेश से पैसे आने हैं, उस सेक्टर से जुड़े मंत्रालय से इसकी मंजूरी लेनी होती है.
एफडीआई पर फैसला कैबिनेट लेती है.
किस-किस फिल्ड में सरकार की मंजूरी है ज़रूरी?
आम तौर पर देश में एफडीआई के लिए ऑटोमेटिक रूट का ही इस्तेमाल होता है. लेकिन अब भी 17 ऐसे सेक्टर हैं, जिनमें एफडीआई के लिए सरकार की मंजूरी ज़रूरी है.
1. खनिज और अयस्क वाले टाइटेनियम की खुदाई और उससे खनिज को अलग करना 2. खाद्य पदार्थ का खुदरा कारोबार 3. रक्षा 4. विज्ञान और तकनीक संबंधी मैगज़ीन या स्पेशल जनरल या पत्र पत्रिकाओं के प्रकाशन और उनको छापने में 5. विदेशी अखबारों की प्रतिकृति को छापना 6. प्रिंट मीडिया- खबरों और समसामयिक मामलों से जुड़े अखबार या पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन 7. प्रिंट मीडिया- खबरों और समसामयिक मामलों से जुड़ी विदेशी पत्रिकाओं के भारतीय संस्करण का प्रकाशन 8. एयर ट्रांसपोर्ट सर्विस- शेड्यूल्ड एंड रीज़नल एयर ट्रांसपोर्ट सर्विस 9. विदेशी एयरलाइंस का निवेश 10. सैटेलाइट- स्थापना और ऑपरेशन 11. टेलिकॉम सर्विसेज 12. फार्मास्युटिकल 13. बैंकिंग- प्राइवेट सेक्टर 14. बैंकिंग-पब्लिक सेक्टर 15. प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसी 16. ब्राडकास्टिंग कंटेंट सर्विस, जैसे एफएम रेडियो, खबरों और समसामयिक घटनाओं से जुड़ा न्यूज़ चैनल 17. मल्टी ब्रांड रिटेल ट्रेडिंग
अभी क्या हुआ है और इससे क्या होगा?
# कोयला खनन और उससे जुड़े कारोबार में 100 फीसदी एफडीआई होगी.
कोयले का खनन और उससे जुड़ी और भी सारी चीज़ों पर 100 फीसदी एफडीआई होगी.
इससे पहले कोयले के सीमित उपभोग पर ही 100 फीसदी एफडीआई होता था. माने कि किसी कंपनी को जितने कोयले का इस्तेमाल है, उतने ही कोयले की खुदाई पर 100 फीसदी एफडीआई मिलता था. सीमित उपभोग को खत्म करके सीधे 100 फीसदी एफडीआई से होगा ये कि अब कोयले की खानों पर कंपटीशन बढ़ेगा. अब विदेशी कंपनियां पैसे लगाएंगी और इसका सीधा फायदा आम लोगों को होगा. लेकिन अभी इसमें वक्त लगेगा. वजह ये है कि अब सरकार को खदानों की नीलामी करनी होगी. विदेशी कंपनियां या जिन कंपनियों में एफडीआई आया है, वो बोली लगाएंगी. और इस पूरी प्रक्रिया के दौरान सरकार को फायदा हासिल करने में कम से कम चार से पांच साल का वक्त लगेगा.
# डिजिटल मीडिया में 26 फीसदी का विदेशी निवेश होगा.
और ये निवेश सरकार की मंजूरी वाले रूट से होगा. इससे पहले डिजिटल मीडिया में एफडीआई की कोई सीमा नहीं थी. और इसे सरकार का निगेटिव फैसला माना जा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि जब डिजिटल मीडिया पर एफडीआई की कोई सीमा नहीं थी, तो 26 फीसदी से भी ज्यादा निवेश होता रहा है. इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक बेंगलुरु में एक डिजिटल पब्लिकेशन है 'द केन', जिसमें 26 फीसदी से ज्यादा एफडीआई है.
# कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग में 100 फीसदी एफडीआई होगा.
इससे पहले सिर्फ मैन्युफैक्चरिंग में ही 100 फीसदी का एफडीआई होता था. मतलब ये है कि अब दुनिया भर की कंपनियां जो खुद से सामान नहीं बनाती हैं, बल्कि कॉन्ट्रैक्ट पर सामान बनवाती हैं, वो भी अब अपने देश में रिटेल और ऑनलाइन स्टोर खोल सकेंगी. जैसे एपल. ये कंपनी कॉन्ट्रैक्ट पर फोन बनवाती है और दुनिया भर के देशों में बेचती है. अब कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग में 100 फीसदी एफडीआई आने से एपल भारत में अपने ऑनलाइन स्टोर खोल सकता है. अभी भारत में एपल के जो फोन मिलते हैं, वो किसी दूसरी ऑनलाइन शॉपिंग कंपनी के जरिए मिलते हैं.
# सिंगल ब्रांड रिटेल में विदेशी निवेश में छूट दी जाएगी.
इससे पहले सिंगल ब्रांड रिटेल में नियम था कि सिंगल ब्रांड रिटेल के लिए 30 फीसदी सोर्स स्थानीय होना चाहिए था. इससे होता ये था कि अगर कोई कंपनी भारत में सिंगल ब्रांड रिटेल की कोई ऑनलाइन शॉप खोलना चाहती थी, तो उसे पहले उसे फिजिकल स्टोर भी खोलना पड़ता था और उसमें 30 फीसदी लोकल सोर्स का इस्तेमाल करना पड़ता था. अब छूट मिलने की वजह से बिना फिजिकल स्टोर खोले कंपनियां ऑनलाइन स्टोर खोल सकती हैं.
इसका क्या असर पड़ेगा?
सीधी बात है. जब देश की अर्थव्यवस्था लगातार गिर रही है, विदेश से आया हुआ पैसा अर्थव्यस्था को मज़बूती देगा. मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था को बूम देने के लिए रिजर्व बैंक से पैसे लिए हैं. अब जब विदेशी कंपनियां भारत में निवेश बढ़ाएंगी, तो जाहिर है कि देश की अर्थव्यवस्था में इजाफा होगा.
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