कुछ लोग पद्मावती का नाम पद्मिनी भी जानते हैं. साथ ही अभी राजस्थान स्टेट टूरिज्म ने एक विज्ञापन भी जारी किया था जिसमें अलाउद्दीन खिलज़ी को लवर बॉय बताया गया था. हालांकि बाद में स्टेट टूरिज्म ने वो विज्ञापन हटा भी लिया था. पर तबसे अलाउद्दीन और पद्मिनी की कहानी सबके दिमाग में चल रही है. आज हम खंगाल के सच्चाई ले आए है. खुदै पढ़ो -
चलो शुरू से शुरू करते हैं. खिलजी वंश के सबसे धांसू शासक अलाउद्दीन खिलज़ी ने 1303 में चित्तौड़गढ़ के किले पर आक्रमण करके उसे अपने कब्ज़े में ले लिया था. तब तक कुछ दिन ही गुजरे थे 1302 में मेवाड़ के राजा समर सिंह रावल के मरने के और उनके बेटे रतन सिंह रावल ने गद्दी संभाली थी.

मानते हैं कि रतन सिंह की पत्नी रानी पद्मिनी की खूबसूरती के चर्चे दूर-दूर तक फैले हुए थे.
मानते हैं कि रतन सिंह की पत्नी रानी पद्मिनी की खूबसूरती के चर्चे दूर-दूर तक फैले हुए थे. जब इतना फैल चुके थे तो एक दिन अलाउद्दीन खिलजी को भी इसका पता चलना ही था. पता चला भी. और बस अलाउद्दीन भागता चित्तौड़गढ़ चला आया. कहा जाता है कि अलाउद्दीन रानी पद्मिनी को देखकर उसे पाने के लिए पागल हो उठा. पर उसका ये पागलपन रानी के साथ ही बहुत सी और राजपूत औरतों के जौहर लेने का रीजन बना. क्योंकि उन्हें ऐसा न करने पर अपने साथ बहुत बुरा सलूक किए जाने का डर था.
बहुत से लोग इस कहानी पर बिलीव करते हैं, पर बहुत से इसे झूठ भी मानते हैं. आओ रियल्टी चेक कर ही लेते हैं कि इस बात में कितनी सच्चाई है और कितना झूठ. वैसे लगभग सारे हिस्टोरियन इस कहानी को झूठ मानते हैं. समझो क्यों?
1. सुने-सुनाए पे मत जाओ, घटना का इतिहास में कहीं कोई जिक्र नहीं है
अलाउद्दीन खिलज़ी के चित्तौड़गढ़ अभियान का एकमात्र उस वक्त का लिखा स्रोत अमीर ख़ुसरो का खज़ा’इनउल फुतूह है, जिसमें इसे बस एक सैनिक अभियान की तरह दर्ज किया गया है. चूंकि मेवाड़ में अभी-अभी नया राजा गद्दी पर बैठा था तो उसे काबू में करने को ये अभियान किया गया था. ख़ुसरो ने किसी भी रानी पद्मिनी की कोई चर्चा नहीं की है.
चित्तौड़गढ़
हालांकि इस अभियान की बात करते हुए एक जगह खुसरो कुरान शरीफ में आई सोलोमन और राजकुमारी बिलकिस की कहानी हुदहुद चिड़िया के मुंह से सुनाते हैं. इस कहानी में सोलोमन के बिलकिस के ऊपर बुरी नज़र रखने का जिक्र हुआ है. बाद की सारी कहानियां बस चच्चा-बब्बा की सुनाई हुई हैं. इन्हीं के दम पे लोग अलाउद्दीन-पद्मिनी की कहानी को ऐतिहासिक मान लेते हैं. पर आज तक ऐसा कुछ नहीं मिला है, जिससे लगता हो कि ये बात सच हो सकती है.
2. पद्मावत को सच्चा मान रहे हो तो रहिने ही दो
इस घटना के 237 साल गुजर गए थे जब मलिक मोहम्मद जायसी ने पद्मावत नाम की लंबी सी कविता लिखी, अवधी भाषा में. इसमें ही सबसे पहले अलाउद्दीन का पद्मिनी को देखकर उस पर दिल आ जाने की बात लिखी गई है. जायसी पहले का कोई ख़ास इंट्रोडक्शन नहीं देते, सीधे पद्मिनी की कहानी पर आते हैं. और उन्हें एक चौहान राजपूत हमीर शंक चौहान, जो श्रीलंका का राजा है, उनकी बेटी बताते हैं. ये तो इतिहास की ऐसी-तैसी करने जैसा है क्योंकि कभी किसी राजपूत स्रोत ने राजपूतों के श्रीलंका में होने की पुष्टि नहीं की है.
मलिक मोहम्मद जायसी ने 'पद्मावत' कविता लिखी.
3. जैसे मन आया, वैसे कहानी सुना गए लोग
एक बात तो ये है कि ये कहानी जहां-जहां सुनाई गई. सब जगह अलग-अलग. जायसी के अनुसार अलाउद्दीन पद्मिनी को अपने विजयी अभियान के पहले खुद देखने आता है, तो वह अपने साथ एक शीशा लेकर आता है और उसमें पद्मिनी को देखता है. वो रतन सिंह से कहता है कि वो पद्मिनी को अपनी बहन की तरह मानता है. वहीं आइन-ए-अकबरी के लेखक अबुल फ़जल जायसी शीशे की कहानी को बदलते हुए बताते हैं कि खुद रतन सिंह ने वह शीशा महल में रखवाया था. कहानी में एक और बड़ा अंतर यहां पर है कि किले पर हमला कैसे हुआ?
रानी पद्मावती की कई कहानियां मशहूर हैं.
जायसी के हिसाब से अलाउद्दीन रतन सिंह को बंदी बनाकर दिल्ली ले जाता है. और इसी बीच एक और पड़ोस का राजा देवपाल पद्मिनी के साथ रेप करने की कोशिश करता है. पद्मिनी के दो रिलेटिव गोरह और बादल दिल्ली पर धावा बोल देते हैं और रतन सिंह को रिहा करने में सफल हो जाते हैं. रतन सिंह वापस लौट कर देवपाल से पद्मिनी की बेइज्जती का बदला लेता है और इस लड़ाई में दोनों एक-दूसरे को मार डालते हैं.
वहीं एक और स्रोत 'गोलशन-ए- इब्राहिमी' (1589) जो फ़रिश्ता नाम के इतिहासकार की रचना है, एक अलग रास्ते पर जाती है. फ़रिश्ता बताते हैं कि अलाउद्दीन अपने अभियान में आसानी से सफल हो जाता है और वहां के राजा को क़ैद कर लेता है. हालांकि परिवार के और लोग और राजा की बेटी पद्मिनी वहां से भाग निकलते हैं और अरावली के पहाड़ों में जा छुपते हैं. यह जानने के बाद कि राजा की बेटी पद्मिनी कितनी सुन्दर है, अलाउद्दीन राजा को रिहा करने के बदले उसकी मांग करता है. पर पद्मिनी और राजपूत महिलाओं के साथ पालकी में छिपकर अपने पापा को रिहा करा लेती है.

संजय लीला भंसाली की फिल्म 'पद्मावती' आ रही है.
4. राजपूत खुद कहानी के बारे में डेफनिट नहीं, बताओ हम कैसे मानें
महाराणा प्रताप के वक्त गुहिलौतों और सिसौदियों का इतिहास फिर से लिखा गया था. गुहिलौतों और सिसौदिया राजपूतों का 9वीं सदी का इतिहास है, खुमान रायसा. जिसमें पद्मिनी को शीशे में दिखाने का जिक्र है. लेकिन इसके साथ ही ये भी कहा गया है कि सिसौदिया वंश की औरतें किसी गैर मर्द के सामने सपने में भी नहीं आ सकतीं. यानी कि एक तो बाद में लिखा, ऊपर से क्लियर भी नहीं है. इसको सच कैसे मानें? यानी ये भी ख़ारिज.अब जब भंसाली की पिक्चर आ जाये तो देख के आना. और ज्ञान बांटते फिरना. सब बता दिए हैं तुमको. कोट कर-कर के बताना, कहां क्या लिखा है. तब देखना भौकाल सेट हो जाएगा यार तुम्हारा.
(वैसे जो ज्ञान अभी आपने पाया. इसके लिए हिस्ट्री वाले फैक्ट्स का जुगाड़ हमारे लिए जेएनयू में मॉडर्न हिस्ट्री के एम. ए. के स्टूडेंट शान कश्यप ने किया है तो उनको थैंक यू.)
ये स्टोरी 'दी लल्लनटॉप' के लिए अविनाश ने की थी.