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कहानी उस एयरसेल कंपनी की, जो बिकी तो केंद्रीय मंंत्री को इस्तीफा देना पड़ा

देश की छठी सबसे बड़ी मोबाइल कंपनी के बनने से लेकर बंद होने तक की पूरी कहानी.

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चिन्नाकनन शिवशंकरन ने 1999 में एयरसेल शुरू की थी. 2005 में एयरसेल ने मैक्सिस को 74 फीसदी शेयर बेच दिए. इसके बाद 2011 में मारन को इस्तीफा देना पड़ा था.
साल था 1999. भारत में मोबाइल की शुरुआत हो चुकी थी. बीएसएनएल और एमटीएनएल जैसी सरकारी कंपनियों ने लोगों के घरों में दस्तक देनी शुरू कर दी थी. रिलायंस जैसी निजी कंपनियां भी मोबाइल सेवा देने के लिए मैदान में उतर चुकी थी. उसी वक्त तमिलनाडु में चिन्नाकनन शिवशंकरन नाम के शख्स ने मोबाइल की दुनिया में कदम रखा. उन्होंने एक कंपनी बनाई एयरसेल और इसके जरिए उन्होंने तमिलनाडु सर्किल में मोबाइल की सर्विस देनी शुरू कर दी. जल्दी ही एयरसेल तमिलनाडु की सबसे बड़ी मोबाइल कंपनी बन गई. जब 2004-05 में देश में मोबाइल का विस्तार और तेज हो गया, तो मलयेशिया की एक कंपनी मैक्सिस कम्युनिकेशन ने 2005 में एयरसेल के 74 फीसदी शेयर खरीद लिए. इसके बाद मैक्सिस की ओर से इस कंपनी में करीब 45, 000 करोड़ रुपये का निवेश किया गया, ताकि इस कंपनी को पूरे देश में विस्तार दिया जा सके. बचे हुए 26 फीसदी शेयर भी शिवशंकरन ने 2012 में बेच दिए. इसे सिन्द्या सिक्युरिटीज एंड इन्वेस्टमेंट कंपनी ने खरीद लिया. ये वो कंपनी है, जो पूरे देश में अपोलो हॉस्पिटल चलाती है और इसकी प्रमोटर हैं सुनीता रेड्डी. वो अपोलो हॉस्पिटल की मैनेजिंग डायरेक्टर भी हैं.

एयरसेल के संस्थापक शिवशंकरन (बीच में) ने मलयेशिया की कंपनी मैक्सिस के हाथों 74 फीसदी शेयर बेच दिए. बाकी बचे 24 फीसदी शेयर अपोलो को बेच दिए गए.

2012 में कंपनी के शेयर सुनीता रेड्डी के पास आने के बाद कंपनी में भारी फेरबदल हुआ और फिर कंपनी ने मध्यप्रदेश, गुजरात, हरियाणा, केरल और पंजाब में अपनी सेवाएं देनी बंद कर दीं. एक बार फिर अप्रैल 2015 में एयरसेल ने केरल में अपनी सेवाएं शुरू कीं. 14 सितंबर 2016 को देश की एक बड़ी मोबाइल कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशन और एयरसेल का विलय हो गया और इसके बाद ये कंपनी देश की चौथी सबसे बड़ी मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी बन गई. हालांकि एक साल बाद ही 2017 में रिलायंस और एयरसेल दोनों ने ही एक दूसरे से नाता तोड़ लिया और अलग हो गईं. इसके बाद एयरसेल ने 30 जनवरी 2018 को तय किया कि वो नुकसान में चल रहे सर्किल गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सेवाएं बंद कर देगा. इसके बाद एयरसेल और एयरटेल के बीच विलय की भी बातें शुरू हुईं, लेकिन ये डील भी कामयाब नहीं हो पाई और नतीजा ये है कि 28 दिसंबर को एयरसेल ने अब कंपनी को दिवालिया घोषित करने के लिए आवेदन दिया है.
क्यों आई ऐसी नौबत
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21 फरवरी और 22 फरवरी 2018 को तमिलनाडु में एयरसेल के करीब 34 लाख सब्सक्राइबर्स को मोबाइल फोन अचानक से बंद हो गए. जो वजह बताई गई, वो कंपनी की हालत बताने के लिए काफी है. कंपनी की ओर से बताया गया कि कंपनी पर कुल 15, 550 करोड़ रुपये का बकाया है. कंपनी इस बकाए का भुगतान करने में सक्षम नहीं है. वहीं रिजर्व बैंक ने एक नया आदेश जारी किया था. इसके तहत जिस कंपनी ने लोन लिया है, उसे हर हाल में तय वक्त में ही चुकाना होगा. पहले लोन लेने वाली कंपनी तय वक्त पर पैसे नहीं चुका पाती थी, तो बैंक और वक्त दे देता था. लेकिन रिजर्व बैंक के नए आदेश से एयरसेल मुसीबत में पड़ गई. सितंबर 2017 के बाद से ही एयरसेल ने किसी भी बैंक के कर्ज की किस्त नहीं चुकाई है, इसलिए अब इस कंपनी को नई तारीख नहीं दी जा सकती थी. कंपनी के पास पैसा नहीं था और बड़ी रकम चुकानी थी. ऐसे में उसके पास दूसरा कोई उपाय नहीं था. मैक्सिस कंपनी ने इसमें और पैसे निवेश करने की बात कही थी, लेकिन ऐन वक्त पर मैक्सिस ने भी हाथ खींच लिए और पैसे देने से इन्कार कर दिया.
हर महीने 400 करोड़ रुपये कमाती है कंपनी
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एयरसेल को हर महीने करीब 400 करोड़ रुपये की आमदनी होती है. इसमें से 100 करोड़ रुपये दूसरी कंपनियों को टर्मिनेशन चार्ज के तौर पर देना पड़ता है. टर्मिनेशन चार्जेज का मतलब उस पैसे से है, जो कॉल के लिए एक कंपनी दूसरी कंपनी को देती है. उदाहरण के लिए अगर आपके पास जियो का फोन है और आपने अपने दोस्त के एयरसेल नंबर पर फोन किया है, तो एयरसेल को जियो को कुछ पैसे देने होंगे, जिसे टर्मिनेशन चार्जेज कहा जाता है. इसके अलावा एयरसेल 280 करोड़ रुपये वेंडर्स और नेटवर्क अपटाइम के लिए चुकाती है. और पैसे लाइसेंस फी, टैक्स और इंट्रेस्ट पेमेंट में चला जाता है. इसकी वजह से एयरसेल कर्ज चुकाने में नाकाम रही है.
कर्ज की वजह से कंपनियों ने रोकी सेवा
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एयरसेल कंपनी पश्चिमी यूपी और गुजरात जैसे सर्किल में आइडिया और दूसरी कंपनियों के टावर के जरिए नेटवर्क दे रही थी. इसके एवज में एयरसेल को आइडिया को पैसे देने होते थे. कर्ज की वजह से एयरसेल पिछले तीन महीने से आइडिया को 60 करोड़ रुपये नहीं दे पाई. इसकी वजह से आइडिया ने अपने टावर का इस्तेमाल करने से इन्कार कर दिया. फिर तो कई जगहों पर लोगों के मोबाइल से नेटवर्क गायब हो गया. एयरसेल में काम करने वाले एक कर्मचारी ने कहा कि एयरसेल को सबसे ज्यादा नुकसान जियो की वजह से पहुंचा है. जियो के आउटगोइंग फ्री होने की वजह से देश की सारी मोबाइल कंपनियों पर असर पड़ा. बड़ी कपनियां तो बच गईं, लेकिन छोटी कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ा. इतना ही नहीं, एयरसेल को दूसरी सारी कंपनियों को टर्मिनेटिंग चार्ज भी देना था, जिसे वो नहीं चुका पाई.
एयरसेल-मैक्सिस डील की हुई थी सीबीआई जांच
सीबीआई ने पूरे मामले की जांच की थी और चार्जशीट दाखिल की थी.
सीबीआई ने पूरे मामले की जांच की थी और चार्जशीट दाखिल की थी.

एयरसेल ने जब मैक्सिस को अपने 74 फीसदी शेयर बेच  दिए, तो उसमें विवाद भी हुआ. कहा गया कि उस वक्त के दूर संचार मंत्री रहे दयानिधि मारन ने एयरसेल के मालिक शिवशंकरन पर दबाव डाला कि वो अपनी कंपनी के शेयर मैक्सिस को बेच दें. 6 जून 2011 को शिवशंकरन सीबीआई के पास पहुंचे और कहा कि दूर संचार मंत्री रहे दयानिधि मारन ने उनकी कंपनी का लाइसेंस लंबे समय तक रोके रखा. जब शिवशंकरन ने कंपनी मैक्सिस को बेच दी, दो दयानिधि मारन ने तुरंत ही लाइसेंस जारी कर दिया. सीबीआई ने केस दर्ज किया और जांच शुरू की. सीबीआई ने चार्जशीट में कहा कि इस डील को करवाने के लिए दयानिधि मारन की कंपनी सन नेटवर्क को एस्ट्रो नेटवर्क के जरिए पैसे दिए हैं. आरोप लगे तो 7 जुलाई 2011 को दयानिधि मारन ने इस्तीफा दे दिया.
मामले में दयानिधि मारन को इस्तीफा देना पड़ा था.
मामले में दयानिधि मारन को इस्तीफा देना पड़ा था.

10 अक्टूबर को सीबीआई ने मारन और उनकी कंपनियों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया. मारन की संपत्तियों पर रेड की गई. इसके बाद 8 फरवरी 2012 को प्रवर्तन निदेशालय ने मारन बंधुओं के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज कर लिया और आरोप लगाया कि दयानिधि मारन ने एयरसेल-मैक्सिस डील में साढ़े पांच सौ करोड़ रुपये लिए हैं. सीबीआई की जांच के दौरान शिवशंकरन ने सीबीआई से कहा था कि कंपनी न बेचने पर मारन ने उसे जान से मारने की धमकी दी थी. 29 अगस्त 2014 को सीबीआई ने दयानिधि मारन, उनके भाई कलानिधि मारन, मलयेशिया के बिजनेस मैन और मैक्सिस के मालिक टी आनंदकृष्णन और सात और लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी. मुकदमा सीबीआई की विशेष अदातल में चला और 29 अक्टूबर 2014 को सीबीआई कोर्ट के विशेष जज ओपी सैनी ने केस चलाने की मंजूरी दे दी. केस शुरू हुआ और इसी दौरान 1 अप्रैल 2015 को ईडी ने मारन के भाई की 742 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त कर ली. इस मामले में सुब्रमण्यन स्वामी ने वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ती चिदंबरम पर भी आरोप लगाया कि उन्हें इस डील में एयरसेल के पांच फीसदी शेयर मिले हैं. हालांकि 21 दिसंबर 2017 को सीबीआई की विशेष अदालत ने मारन को आरोपों से बरी कर दिया.
दिवालिया घोषित होने का मतलब क्या?
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एयरसेल ने खुद को दिवालिया घोषित करने के लिए नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में अपील की है. अगर सामान्य भाषा में समझें तो इसका मतलब ये है कि कंपनी ने कहा है कि अब उसके पास कर्ज चुकाने और कंपनी चलाने के लिए पैसे नहीं हैं. ये उस कंपनी ने कहा है जिसके मालिक कृष्णन मलयेशिया के तीसरे सबसे धनी आदमी हैं. इसके लिए कंपनी ने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में अपील की है. आसान भाषा में समझें तो नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल अदालत के जैसी एक संस्था है, जो कंपनियों के मामलों की देखभाल करती है. इसे कंपनी एक्ट 2013 के तहत बनाया गया था और 1 जून 2016 से ये अस्तित्व में आया है. इस संस्था के पास 11 बेंच हैं, जिनमें से दो दिल्ली में हैं. इसके अलावा अहमदाबाद, इलाहाबाद, बेंगलुरु, चंडीगढ़, चेन्नई, गुवाहाटी, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई में एक-एक बेंच है. जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस जस्टिस एम.एम. कुमार इसके प्रेसिडेंट हैं.
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एनसीएलटी में दिवालिया होने की एक प्रक्रिया है. इसके तहत एनसीएलटी की ओर से कुछ लोगों की नियुक्ति की जाएगी. इन लोगों को 270 दिनों का वक्त दिया जाएगा. इतने दिनों में ये लोग कोशिश करेंगे कि किस तरह से कंपनी का बैंकों पर बकाया कर्ज वसूल किया जा सकता है. अगर 270 दिनों के अंदर कोई हल नहीं निकलता है तो फिर कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाएगा और फिर उसे बेचकर जो भी पैसे मिलेंगे, वो बैंकों को दे दिया जाएगा.
कंपनी ने खर्च किए थे अनाप-शनाप पैसे
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जब एयरसेल कंपनी भारत में अपना विस्तार कर रही थी, तो इसने विज्ञापन पर खूब पैसे खर्च किए थे. देश में जब इंडियन प्रिमीयर लीग शुरू हुई, तो एयरसेल चेन्नई सुपर किंग्स का मुख्य विज्ञापनदाता था. इसके अलावा कंपनी नेन शिलांग लजांग फुटबाल टीम को भी विज्ञापन दिए थे. एटीपी टेनिस टूर्नामेंट के लिए भी कंपनी ने खूब विज्ञापन दिया था. इसके अलावा भारत में बाघों को बचाने के लिए सेव द टाइकर कैंपेन भी चलाया था. क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी और दक्षिण भारत की फिल्मों के सुपर स्टार सूर्या के साथ ही बॉक्सर मैरी कॉम, तमिल ऐक्टर और कोलावरी डी फेम धनुष के साथ ही समीरा रेड्डी को अपना ब्रांड ऐम्बेस्डर बनाया था. इसके लिए कंपनी ने मोटी रकम खर्च की थी.


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