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दिल्ली की हवा फिर हुई 'जहरीली', इस बार जिम्मेदार कौन?

पंजाब और हरियाणा के किसानों ने पारली जालना शुरू कर दिया है. यही नहीं पाकिस्तान के खेतों में भी आग लगी है. और ये सारा धुआं दिल्ली-NCR के लोगों के लिए मुसीबत बन गया है.

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पिछले सालों के मुकाबले इस साल पराली जलाने के मामलों में कमी आई है, लेकिन पराली अब भी जलाई जा रही है.

बात शुरू करने के पहले एक टर्म को अच्छे से समझ लीजिये. क्योंकि ये टर्म बार-बार इस्तेमाल होगा. ये टर्म है AQI. यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स. AQI हवा की गुणवत्ता का एक सूचकांक होता है. इसको सबसे पहले अमरीका की एनवायर्नमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी यानी USEPA ने बनाया था, जिसका इस्तेमाल अब दुनिया के बहुत सारे देश करते हैं.

AQI का मतलब क्या होता है? हवा में मौजूद प्रदूषण की वजह से AQI बदलता है. जितना ज़्यादा AQI, यानी उतना ज़्यादा प्रदूषण. इसकी रेंज होती है शून्य से 500 तक. और इसी रेंज में हवा को तमाम उपमाएं दी जाती हैं.

AQI 0 से 50 है - हवा की क्वालिटी GOOD है

51 से 100 - संतोषजनक यानी SATIFACTORY है

101-200 - कम प्रदूषित यानी MODERATELY POLLUTED है

201-300 - मतलब हवा ख़राब यानी POOR है

301-400 - हवा बहुत ख़राब यानी VERY POOR है

401 के ऊपर हवा का स्तर - ख़तरनाक यानी SEVERE स्थिति में चला जाता है

बता दें कि इसी AQI के बढ़ने-घटने पर तमाम सरकारें प्रदूषण रोकने-थामने की कोशिश में जुट जाती हैं.

इसको नापता कौन है? और कौन बताता है कि हवा ख़राब है? हमारे देश में एक एजेंसी है. सेंट्रल पोल्युशन कंट्रोल बोर्ड. इस एजेंसी के पास देश में हर जगह फैले या सुधरे प्रदूषण का लेखाजोखा या कहें डेटा होता है. ये डेटा एजेंसी को शहरों में अलग-अलग जगह पर लगे पोल्युशन मॉनिटरिंग सिस्टम से मिलता है. और ये जो सिस्टम होते हैं, कुछ बार उन्हें ये एजेंसी ही इनस्टॉल करती है, और कुछ बार मौसम विज्ञान विभाग या राज्यों के प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड इनस्टॉल करते हैं. बस सिस्टम से डेटा सीधे एजेंसी के पास जाता है, जो उनकी वेबसाइट या ऐप्प पर जाकर आसानी से देखा जा सकता है.

सामान्य ज्ञान की बात हो गई. अब खबर पर वापिस लौटते हैं. 24 अक्तूबर का जब दिन शुरू हुआ, तो सुबह 7 बजे दिल्ली में AQI 303 रिकॉर्ड किया गया. यानी हवा - वैरी पुअर की श्रेणी में चली गई थी. लेकिन 8 बजते-बजते AQI कुछ प्वाइंट गिर गया. 227 तक चला आया, यानी हवा वैरी पुअर से पुअर की श्रेणी में आ गई. लेकिन हवा का हाल बस दिल्ली में ख़राब नहीं था.

दिल्ली से सटे हरियाणा के फ़रीदाबाद और गुरुग्राम में AQI का स्तर औसतन 200 से ऊपर की रिकॉर्ड किया गया. और यूपी के नोएडा और गाज़ियाबाद में भी हवा की हालत मिलती जुलती रही. ग़ाज़ियाबाद के लोनी के इलाक़े में लगे सेंसर तो AQI 300 के भी पार बता रहे थे. यानी हवा वेरी पुअर की स्थिति में थी.

लेकिन इक्का-दुक्का इलाक़ों में हवा का वेरी पुअर से गिरकर पुअर की स्थिति में आना कोई राहत की बात नहीं है. क्योंकि मौसम वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाये हैं कि शाम होते-होते हवा की हालत फिर से ख़राब हो जाएगी. क्योंकि देश के अलग-अलग इलाक़ों में दशहरा मनाया जाएग, रावण जलाया जाएगा. दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन भी होंगे. आतिशबाजी भी होगी. और मौसम भी प्रदूषण के लिहाज़ से अच्छा नहीं है. लिहाज़ा संभावना विकट है.

आपने समस्या का स्केल जान लिया. विशेषज्ञ साफ़ बता रहे हैं कि आगे आने वाले दिनों में प्रदूषण की समस्या और बढ़ेगी. लेकिन सवाल ये भी है कि साल के 10 महीने तक दिल्ली में प्रदूषण इतनी बड़ी समस्या क्यों नहीं होती है? और अक्टूबर आते-आते हर साल ये समस्या बढ़ कैसे जाती है?

दरअसल उत्तर भारत में प्रदूषण बढ़ने के कई कारण हैं. एक तो देश के इस हिस्से में अर्बन आबादी ज़्यादा है. इस आबादी के पास कारें हैं. वाहन हैं. उनसे होने वाला प्रदूषण तो होता ही है. इसके बाद आता है नंबर कंस्ट्रक्शन का. अर्बन आबादी को रहने के लिए घर चाहिये. जब घर बनाए जाते हैं तो ईंट, बालू, मिट्टी, सीमेंट का इस्तेमाल होता है. और भवन निर्माण के समय ये चीज़ें उड़ने लगती हैं, तो हवा में बैठ जाती हैं.

इसके अलावा इन्हीं मौसमों में देश के बड़े त्यौहार पड़ते हैं. दुर्गापूजा, दशहरा, दीवाली. आतिशबाजी और उत्सवसंबंधी दूसरी चीज़ें भी प्रदूषण बढ़ाती हैं. दिवाली पर दिल्ली सरकार हर साल आतिशबाजी पर बैन लगाती है, लेकिन सच ये भी है कि समाज का बड़ा हिस्सा पटाखे फोड़ता है. प्रदूषण के इस कारण पर धार्मिक क़िस्म की बहसें होती हैं, ‘हिंदुओं के ही त्यौहार से दिक़्क़त क्यों” मार्का सवाल पूछे जाते हैं. जबकि ये कलेक्टिव ज़िम्मेदारी की बहस है. इस पर एक समाज के तौर पर हमारा ध्यान होना चाहिये.

लेकिन इन कारणों के अलावा एक और कारण है. जो ज़्यादा बड़ा है. वो है पराली. धान की फ़सल में से जब चावल के दाने निकाल लिए जाते हैं तो ठूंठ बच जाती है, जो मिट्टी में लगी रहती है. उसे कहते हैं पराली. अब अगली फसल तभी लग पाएगी, जब इस पराली को हटा न लिया जाए. इसके लिए किसान एक सस्ता और आसान रास्ता अपनाते हैं. वो पराली लगे खेत को आग के हवाले कर देते हैं. आग से पराली जल जाती है. और खेत अगली बुवाई के लिए किसानों को ख़ाली मिल जाता है.

लेकिन ये इक्का-दुक्का किसान नहीं करते हैं. पंजाब, हरियाणा, उतर प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखण्ड के बहुतेरे किसान ये काम करते हैं. वो खेतों के एक कोने में आग लगाते हैं. आग धीरे-धीरे पूरे खेत में बढ़ती जाती है. ये खेत के साइज़ पर डिपेंड करता है कि उसमें लगी आग कितनी देर जलेगी. कभी कभी एक दो दिन. और कभी कभी कुछेक हफ़्तों तक आग जलती रहती है. धुआं फैलता रहता है. और हमने अभी जिन राज्यों का ज़िक्र किया, ये राज्य दिल्ली को चारों ओर से घेरे रहते हैं लिहाज़ा यहां के खेतों से उठी धुएं की चादर दिल्ली को ढंक लेती है. इसे प्रदूषण से उपजा कोहरा या स्मॉग कहते हैं. जब सर्दियां आती हैं तो हवा की गति भी कम होती है. लिहाज़ा ये धुआं या कोहरा हवा के साथ बहने में समय लेता है. और कई दिनों तक आसमान में छाया रहता है. इसमें बहुत सारे ऐसे पार्टिकल होते, जिन्हें सिर्फ़ माइक्रोस्कोप की मदद से ही देखा जा सकता है. इन्हें पार्टीकुलेट मैटर कहा जाता है. ये हवा में सस्पेंडेड रहते हैं. यानी न ज़मीन पर बैठते हैं, न गैस की तरह ऊपर उठते हैं. इतने हल्के होते हैं कि हवा में लटके ही रहते हैं. जब हम सांस लेते हैं तो ये सांसों के साथ अंदर फेफड़े तक जाते हैं और दिक़्क़त पैदा करते हैं.

लेकिन जनाब ऐसा तो होगा नहीं कि हम अपनी सांस-दवा पर लगाम लगाते रहे, घर से बाहर निकलने पर बचते रहें, और पोल्युशन बदस्तूर जारी रहे. जिनकी ज़िम्मेदारी है, उन्हें अपनी ज़िम्मेदारी निभानी होगी ताकि हम सभी कम से कम सांस के लिए न तरसें.

तो क्या कदम उठाए जा रहे हैं -

दिल्ली में 21 अक्तूबर को ही GRAP यानी Graded Response Action Plan का दूसरा फ़ैज़ लागू कर दिया गया है. क्या है ये GRAP? ये केंद्र सरकार के अधीन आने वाले Commission for Air Quality Management का बनाया हुआ एक्शन प्लान है, जो दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए लागू किया जाता है. इसका दूसरा फेज तब लागू किया जाता है, जब AQI का स्तर वैरी पुअर की स्थिति में चला जाए या उस स्थिति में जाने की आशंका हो.

GRAP के फेज में किया क्या जाता है? इसके लिए आप इसका पूरा खाका जान लीजिए.

GRAP फेज 1 - जब AQI 201-300 हो, और हवा POOR स्थिति में हो

इस फेज में होटल और रेस्तरां में तंदूर में कोयले और लकड़ी के इस्तेमाल पर रोक लगा दी जाती है. दिल्ली के आसपास के 300 किलोमीटर के इलाक़े में किसी प्लांट या फैक्ट्री से प्रदूषण हो रहा है, तो उस पर कार्रवाई की जाती है.

GRAP फ़ेज़ 2 - जब AQI 301-400 हो, यानी वैरी पुअर की स्थिति

इस फेज में फेज 1 की चीज़ों को लागू करने के अलावा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पार्किंग की फ़ीस बढ़ा दी जाती है. साथ ही CNG बसों, पब्लिक ट्रांसपोर्ट और मेट्रो की संख्या बढ़ा दी जाती है. इन कदमों से लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करने पर बाध्य होते हैं या हो सकते हैं.

GRAP फ़ेज़ 3 - जब AQI 401-450 के बीच हो यानी गंभीर स्थिति

फेज 1 और 2 के कदमों के अलावा इस फेज में दिल्ली-एनसीआर में बीएस फोर डीज़ल गाड़ियों पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है. ज़रूरी सरकारी कामों को छोड़कर बाक़ी कंस्ट्रक्शन और डेमोलिशन की गतिविधियों को पूरी तरह रोक दिया जाता है. एसेंशियल सर्विस को छोड़ दें तो उन माल उठाने वाली हल्की गाड़ियों को दिल्ली NCR के बाहर रोक दिया जाता है, जिनका रजिस्ट्रेशन NCR के बाहर का है.

GRAP फेज 4 - जब AQI 450 के ऊपर हो

फेज 1, 2 और 3 के सारे एक्शन लिए जाते हैं. इनके अलावा सारे कंस्ट्रक्शन के काम रोक दिये जाते हैं. ज़िलाधिकारियों और सरकारों को ये अधिकार मिल जाते हैं कि वो स्कूलों की छुट्टियाँ घोषित करें. दफ़्तरों में वर्क फ्रॉम होम लागू करने के लिए भी कंपनियों से बात करे.

दिल्ली में दिवाली के आसपास AQI का स्तर अक्सर 900 के आसपास रहता है. साफ़ है कि ये ऐसी स्थिति है, जिसके लिए पैमाने में भी कोई सूचकांक नहीं बनाया गया है. ये बस दिवाली की वजह से हुआ प्रदूषण नहीं है. पराली जलाने से और बाक़ी दूसरे कारणों से हुआ प्रदूषण है, जो दिवाली पर आतिशबाज़ी से और बढ़ जाता है.

अब वापिस आते हैं रोकथाम वाली बात पर. और हमारा ज़्यादा फ़ोकस होगा पंजाब और हरियाणा पर. क्योंकि इन दोनों राज्यों में सबसे अधिक संख्या में पराली जलाई जाती है. बीते कुछेक सालों में पंजाब और हरियाणा की सरकारों ने पराली को लेकर थोड़ी मुस्तैदी दिखाई है. दावे किए हैं कि इनसे निबटने की कोशिश की जा रही है. फिर भी स्थिति गंभीर है. पहले आप पंजाब का हाल देखिए. वहां आम आदमी पार्टी की सरकार है. आप के कन्वेनर अरविंद केजरीवाल ने साल 2022 में अहमदाबाद में इंडिया टुडे से बातचीत में कहा था कि पंजाब में पराली जलाई जा रही है और वो इसके लिए ज़िम्मेदार हैं.

वहीं भगवंत मान सरकार के दूसरे दावे भी हैं. उन्होंने पिछले साल एलान किया था कि वो किसानों से पराली ख़रीदेंगे. उसे बायोफ़्यूल में बदलेंगे. और इसका इस्तेमाल तमाम कारख़ानों और औद्योगिक इकाइयों में किया जाएगा. साल 2022 में इसका असर देखने को मिला. सरकार ने दावा किया कि इस साल पराली जलाने की घटनाओं में 20 प्रतिशत के कमी आई. अब लेकिन घड़ी एक साल आगे आ गई है. साल 2023 में. अभी क्या हो रहा है? हिंदुस्तान टाइम्स में 24 अक्तूबर को छपी रिपोर्ट बताती है कि पिछले साल के मुक़ाबिले इस साल पराली जलाने की घटनाओं में लगभग 50 फ़ीसद की कमी आई है. साल 2022 में पंजाब में 15 सितंबर से 22 अक्तूबर तक पराली जलाने के 3 हज़ार 696 केस रिपोर्ट किए गये थे. लेकिन साल 2023 में इसी टाइम पीरियड में ये संख्या 1 हज़ार 794 के आसपास है. इसके अलावा आप के और आप के समर्थकों के यूट्यूब और एक्स हैंडल से कई ऐसे वीडियो पोस्ट किए जा रहे हैं, जिन्हें देखने पर लगता है कि पंजाब में पराली की समस्या लगभग समाप्ति की ओर है.

पंजाब के बाद हरियाणा के बात करते हैं. यहां है भाजपा की सरकार. सीएम मनोहर लाल खट्टर ने यहां भी साल 2022 में पराली प्रोत्साहन स्कीम शुरू की थी. इस स्कीम के तहत सरकार किसानों से एक हज़ार रुपये प्रति एकड़ के रेट पर पराली ख़रीदती है. इसके लिए किसानों को पराली का गट्ठर बनाना होता है. पोर्टल पर रजिस्टर करने के साथ ही पराली को बीच देना होता है. साथ ही सरकार ने ये भी एलान किया है कि कोई किसान अगर पराली जलाते हुए पकड़ा जाता है तो उसका चालान काटा जाएगा. इन कदमों के साथ ही 23 अक्तूबर को खबर आई कि पराली जलाने की घटनाओं में निर्णायक रूप से कमी आई है. खट्टर सरकार ने दावा किया कि राज्य में अब तक पराली जलाने के 714 मामले सामने आये थे. जबकि साल 2022 में 893 मामले आए थे और इसके पहले यानी साल 2021 में 1508 मामले सामने आए थे. 

यानी दोनों राज्य कह रहे हैं कि उनके यहां पराली कम जलने लगी है. और दोनों राज्य एक दूसरे पर अपने आरोप तान देते हैं. तो सवाल उठता है कि जब दोनों ही जगह पराली कम जल रही है तो दिल्ली की हवा ख़राब कौन कर रहा है?

इसको जानने के लिए चलते हैं अंतरिक्ष में. वहां NASA के उपग्रह धरती के चक्कर काट रहे हैं. इनकी मदद से नासा एक्टिव फ़ायर डेटा कम्पाइल करके वेबसाइट पर डालता है. कहां-कहां कब से कब तक आग लगी हुई मिली, ये उसका डेटा होता है.इसे कहते हैं FIRMS यानी Fire Information For Resource Management System.

पराली जलाने की अमूमन शुरुआत होती है 15 सितंबर के आसपास. अगर इस FIRMS में 15 सितंबर से एक हफ़्ते के फ़िल्टर के हिसाब से आग का डेटा जुटाना शुरू करें तो आपको कुछ चीज़ें समझ में आती हैं.

15-21 सितंबर वाले पीरियड में आपको इस मैप में छिटपुट आग दिखाई देती है. पंजाब में अमृतसर के आसपास इक्के-दुक्के इलाक़ों में और हरियाणा में पानीपत के इलाक़े में कहीं-कहीं आग दिखाई देती है.

हफ़्ता बदलता है.

21-27 सितंबर के हफ़्ते में आग घनी हो जाती है. अमृतसर के इलाक़े में आग का घनत्व बढ़ जाता है और इधर हरियाणा में कुरुक्षेत्र, करनाल और सोनीपत के इलाक़े में आग बढ़ी दिखाई देती है.

28 सितंबर से 4 अक्तूबर के हफ़्ते में आग और फैल जाती है. पंजाब में अमृतसर से बटाला के इलाक़े तक आग फैलती है और इधर हरियाणा में सोनीपत, अंबाला और पलवल के इलाक़े तक.

5 अक्तूबर से 11 अक्तूबर तक के हफ़्ते में स्थिति और गंभीर होती है. पंजाब में अमृतसर का पाकिस्तान की सीमा से सटा पूरा हिस्सा लाल हो जाता है. और हरियाणा बॉर्डर से सटे संगरूर, पटियाला, राजपुरा के इलाक़ों में आग दिखाई देने लगती है. चंडीगढ़ ने आसपास खेत जलने लगते हैं. इधर हरियाणा का उत्तरी हिस्सा जलने लगता है. सिरसा, हिसार, जिंद, कैथल के इलाक़े, अंबाला, पानीपत और सोनीपत के खेत जलते दिखाई देते हैं.

12 से 18 अक्तूबर के हफ़्ते में पंजाब के अमृतसर वाले हिस्से में आग में कमी दिखाई देने लगती है. और हरियाणा सीमा के पास आग में फुटकर बढ़ोतरी दिखाई देती है. हरियाणा के अंदर सिरसा, नरवाना, कैथल, अंबाला के पास आग अभी भी दिखाई देती है.

19 से 23 अक्तूबर के टाइम फ़्रेम में भी यही ट्रेंड कमोबेश दिखाई देता है. पंजाब में आग घटती हुई, और हरियाणा में किंचित् बढ़ती हुई दिखाई देती है.

यानी दोनों ही राज्यों में खेत जलाए जा रहे हैं. और ये क्रम बदस्तूर जारी है. कोई पहले जला रहा है. और कोई बाद में. लेकिन ख़राब हवा के लिए ज़िम्मेदारी बराबरी की है.

लेकिन इन सभी तस्वीरों में एक बात और है जो कॉमन है, और जिस पर दोनों ही राज्यों का और भारत सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है. वो है पाकिस्तान में लगी हुई आग. जी हां. पाकिस्तान के भी खेतों में आग लगी हुई इन सभी सॅटॅलाइट इमेज में दिखाई देती है. जिसका अर्थ है कि वहां की आबोहवा में हो रहे बदलावों का ख़ामियाजा भी हमें भुगतना पड़ रहा है.