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प्लेन जमीन से 130 KM दूर, अचानक खत्म हो गया ईंधन, पायलट का हुनर फिर दुनिया ने देखा

ईंधन लीक हो रहा था, पायलट को इसकी भनक नहीं थी, अचानक इंजन ठप, पायलट के पास सिर्फ एक रास्ता था! फिर क्या हुआ? क्या पायलट प्लेन बचा पाया? पूरी कहानी...

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39 हजार फीट की ऊंचाई पर कनाडा से पुर्तगाल जा रही फ्लाइट 236 का फ्यूल ख़त्म हो गया (सांकेतिक तस्वीर: pexels)

रॉबर्ट पिशे ने कमाल की जिन्दगी जी. बड़ी मुश्किल से पायलट बने. बड़ी एयरलाइन्स में नौकरी लगी, लेकिन फिर निकाल दिए गए. प्लेन उड़ाना जारी रहा. बस अंतर इतना था कि अब वो प्लेन से ड्रग्स ले जाने लगे थे. एक देश से दूसरे देश. इसी चक्कर में एक रोज़ पकड़े गए. जेल हुई. पांच साल बाद बाहर आए. पुनर्वास में दिन गुजारे. तब जाकर समाज ने वापस अपनाया. इसके बाद शुरू हुई दूसरी पारी. किस्मत से दोबारा पायलट की नौकरी मिल गई. पिछली बार इस काम से जिल्लत मिली थी. लेकिन इस बार कुछ और होना था. 24 अगस्त 2001 की रात. 39 हजार फीट की ऊंचाई पर रॉबर्ट एक प्लेन उड़ा रहे थे. अटलांटिक महासागर के ठीक ऊपर पता चला कि प्लेन का ईधन पूरी तरह ख़त्म. सबसे नजदीकी हवाई अड्डा 130 किलोमीटर दूर था. और 300 लोगों की जिंदगी अब रॉबर्ट पिशे के हाथ में थी. क्या पिशे ये प्लेन लैंड करा पाए? तेल ख़त्म कैसे हुआ? चलिए जानते हैं. (air disaster story)

कनाडा से पुर्तगाल 

कहानी शुरू होती है कनाडा के टोरेंटो शहर से, यहां से एक प्लेन ने उड़ान भरी. फ्लाइट नंबर 236 (flight 236). ये एक एयरबस A330 विमान था. जिसमें रॉल्स रॉयस के दो ताकतवर इंजन लगे हुए थे. प्लेन में क्रूक और पायलट को मिलाकर कुल 306 लोग सवार थे. और इसका गंतव्य था, पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन. प्लेन जब उड़ा उसमें ईधन, जरुरत से पांच टन अधिक था. ये डीटेल क्यों बताई, आगे कहानी में समझेंगे.

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पायलट रॉबर्ट पिशे, फर्स्ट ऑफिसर  डर्क डीयेगर दोनों को हीरो का सम्मान मिला (तस्वीर: air transtat) 

तो हुआ यूं कि उड़ान भरने के कुछ घंटों बाद प्लेन 39 हजार फीट की ऊंचाई पर था. अटलांटिक महासागर के ठीक ऊपर. प्लेन को उड़ा रहे थे, पायलट रॉबर्ट पिशे. जिन्हें अपनी ड्रग्स वाली उड़ान सहित कुल 16 हजार आठ सौ घंटे उड़ान का अनुभव था. रॉबर्ट अपनी पिछली जिन्दगी को बहुत पीछे छोड़ आए थे. जिन्दगी की दूसरी पारी शुरू किए पांच साल गुजर गए थे. इन सालों में रॉबर्ट की ओर से कभी कोई शिकायत नहीं आई थी. प्लेन के फर्स्ट ऑफिसर का नाम था डर्क डीयेगर. जो अब तक 4800 घंटे की उड़ान भर चुके थे. दोनों अनुभवी थे. प्लेन आराम से अपनी यात्रा में आगे जा रहा था.

यात्रा के दौरान यात्रियों ने खाना खाया. सोने वाले नींद के आगोश में चले गए. कॉकपिट के अन्दर भी सब नॉर्मल था. आधी रात के करीब पायलट रॉबर्ट ने एक अजीब सी चीज़ नोट की. उन्होंने देखा कि इंजन नंबर 2 में ऑयल प्रेशर हाई और ऑयल टेम्प्रेचर लो दिखा रहा है. ऐसा होना नहीं चाहिए था. प्लेन के सारे उपकरण सही काम कर रहे थे. उन्हें इसका कारण समझ नहीं आया, तो उन्होंने फर्स्ट ऑफिसर को इस बारे में बताया. वो भी इस बात पर कन्फ्यूज़ थे. लिहाजा दोनों ने तय किया कि उन्हें इसकी जानकारी कंट्रोल सेंटर को दे देनी चाहिए. कंट्रोल सेंटर ने कारण पूछा तो पायलट ने जवाब दिया, शायद ये एक फाल्स अलार्म है. कंट्रोल सेंटर ने उन्हें स्थिति पर नज़र बनाए रखने की हिदायत दी. हालांकि, प्लेन अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ता रहा था.

लीक होता फ्यूल, अनजान पायलट  

कुछ देर बाद एक और अजीब चीज हुई. प्लेन की स्क्रीन पर एक मेसेज दिखाई दिया, जो बता रहा था कि फ्यूल इम्बैलेंस है. यानी बाईं और दाईं ओर के टैंकों में बराबर तेल नहीं है. ईधन का इम्बैलेंस अपने आप में कोई खतरा नहीं. लेकिन अगर दोनों इंजन बराबर काम कर रहे हों, तो ऐसा होना नहीं चाहिए. कैप्टन को अब भी समझ नहीं आया कि इस सब का कारण क्या है. प्लेन में कहीं कोई दिक्कत नहीं थी. लिहाजा अपने अनुभव के आधार पर उन्होंने फ्यूल इम्बैलेंस सही करने की कोशिश की. इसके लिए उन्होंने दोनों टैंक्स को आपस में जोड़ दिया. ताकि बाएं टैंक से दाएं टैंक में फ्यूल ट्रांसफर हो और एक बैलेंस बन जाए. ये एक भयानक गलती थी. जिसका अहसास पायलट को बहुत देर में हुआ.

असलियत ये थी कि आधी रात के बाद प्लेन के दाएं टैंक से फ्यूल लीक करने लगा था. जिसके कारण दाएं टैंक में तापमान और प्रेशर में बदलाव होने लगा. शुरुआत में प्लेन के पिछले हिस्से में मौजूद एक रिजर्व टैंक से दाएं टैंक में फ्यूल की आपूर्ति होती रही. लेकिन फिर वो भी खाली हो गया. नतीजा हुआ कि सिस्टम इम्बैलेंस दिखाने लगे. पायलट और फर्स्ट ऑफिसर को ईधन के लीक होने की कोई भनक नहीं थी. शक करने की कोई वजह भी नहीं थी. क्योंकि प्लेन का अभी-अभी मेंटेनेंस हुआ था. और एक हफ्ते पहले ही उसका इंजन बदला गया था. इसलिए फ्यूल का बैलेंस बनाने के लिए उन्होंने दोनों टैंकों को आपस में जोड़ दिया. ये एक बड़ी गलती थी. यहां किया ये जाना चाहिए था कि पायलट दाएं इंजन को बंद कर देते. 

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प्लेन का इंजन एक हफ्ते पहले बदला गया था (तस्वीर: FAA )

इसके बाद प्लेन एक इंजन के सहारे बाकी यात्रा पूरी कर सकता था. लेकिन दोनों टैंकों को जोड़ने के कारण हुआ ये कि दायां टैंक तो खाली हुआ ही हुआ, बाएं टैंक का ईंधन भी दाएं के रास्ते खाली होने लगा. इसके बाद भी पायलट को कुछ पता नहीं लगा. क्योंकि जैसे पहले बताया, ये प्लेन जरुरत से ज्यादा ईधन लेकर चल रहा था. इसलिए फ्यूल के पूरी तरह ख़त्म होने में कुछ वक्त लग गया. इस बीच पायलट यही मानकर चल रहे थे कि प्लेन के कम्प्यूटर में कुछ खराबी आ गयी है.

असलियत का पता तब चला जब प्लेन का दायां इंजन पूरी तरह बंद हो गया. दूसरे इंजन ने भी सिर्फ तीन मिनट और साथ दिया. इसके बाद प्लेन के कैबिन में अंधेरा छा गया. हजारों फीट की ऊंचाई पर हजारों टन की एक मशीन अब हवा के सहारे थी. प्लेन में फ्यूल पूरी तरह ख़त्म हो चुका था. सिर्फ एक इमरजेंसी बैटरी और एक एयर टरबाइन की बदौलत कुछ अति आवश्यक सिस्टम काम कर रहे थे. केबिन में लोग लाइफ जैकेट पहन रहे थे. क्योंकि प्लेन किसी भी वक्त समंदर से टकरा सकता था. इतनी ऊंचाई से नीचे गिरने पर मौत निश्चित थी. लेकिन प्लेन के पायलट रॉबर्ट पिशे ने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने नजदीकी एयर ट्रैफिक कंट्रोल सेंटर से नजदीकी एयरपोर्ट की जानकारी मांगी. सबसे नजदीक लाजेस नाम के एक द्वीप पर बना एक मिलिट्री एयरपोर्ट था, जो अभी भी 130 किलोमीटर दूर था.

पायलट रॉबर्ट ने प्लेन लाजेस की तरफ मोड़ दिया. उनका दिमाग एक कैलकुलेशन कर रहा था. इंजन बंद होते वक्त प्लेन 39 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ रहा था. इंजन बंद होने के बाद वो दो हजार फीट प्रति मिनट की रफ़्तार से गिरने लगा. हालांकि उसकी फॉरवर्ड स्पीड अभी भी बरक़रार थी. वो 6 किलोमीटर प्रति मिनट की रफ़्तार से आगे जा रहा था. ऐसे में पायलट ने सोचा कि अगर प्लेन को ग्लाइड कराते हुए लैंड कराने की कोशिश की जाए तो एक चांस बन सकता था. हालांकि इस दौरान उन्हें न्यूनतम उपकरणों की सहायता से प्लेन को कंट्रोल करना था. ब्रेक भी नाम मात्र के लिए काम कर रहे थे. और लैंडिंग में असिस्ट करने वाला और कोई उपकरण चालू नहीं था. 

कैसे लैंड हुआ प्लेन? 

पायलट रॉबर्ट की गणना सही साबित हुई. 13 हजार फीट पर उन्हें रनवे नज़र आने लगा था, जो अब सिर्फ 16 किलोमीटर दूर था. हालांकि तभी पायलट को अहसास हुआ कि एक और बड़ी मुसीबत उनके आगे है. प्लेन जिस गति से आ रहा था, अगर वो इसी गति से बढ़ता रहता तो वो रनवे से आगे निकल जाता. जरुरी था कि उसकी हाईट और कम की जाए. जो बिना कंट्रोल्स के करना असंभव था. ऐसे में पायलट रॉबर्ट ने एक तरकीब लगाई. उन्होंने प्लेन को मोड़कर एक 360 डिग्री का चक्कर लगाया. इस दौरान प्लेन और नीचे आ गया.

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प्लेन को 130 किलोमीटर तक हवा में ग्लाइड करते हुए लैंड कराया गया (तस्वीर: FAA)

प्लेन पिछले 19 मिनट से हवा में तैर रहा था. अब बारी थी उसे लैंड कराने की. पायलट को पता था कि उनके पास सिर्फ एक मौका है. उन्होंने प्लेन को ड्रैग करने के उसे आडा-तिरछा उड़ाने की कोशिश की. एकदम अंग्रेज़ी के लेटर S के आकार में. अंत में मौका देखकर उन्होंने प्लेन को रनवे पर उतार दिया. प्लेन रनवे से टकराकर एकदम बॉल की तरह उछला और फिर नीचे आ गया. स्पीड के कारण उसके पहिये फट गए. और बॉडी में दरार आ गई. प्लेन रनवे पर तीन चौथाई दूरी पार कर रुक गया. तुरंत बचाव कर्मचारी प्लेन तक पहुंचे. लोगों को बाहर निकाला गया. 16 लोगों को मामूली चोटें आईं, लेकिन अच्छी बात ये थी कि सब सही सलामत थे.

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इस घटना ने कैप्टन रॉबर्ट पिशे को रातों-रात हीरो बना दिया. हालांकि उनके खुद के अनुसार वो हीरो नहीं थे. बस अपना काम कर रहे थे. आखिर में इस प्लेन दुर्घटना की तहकीकात की गई. पता चला कि प्लेन का इंजन बदलते हुए उसमें गलत फ्यूल पाइप लगा दिया गया था, जिसके चलते बीच फ्लाइट में फ्यूल लीक करने लगा. गलती पायलट और को-पायलट की भी निकली. क्योंकि अगर उन्होंने सही प्रोसीजर का पालन किया होता तो प्लेन का सारा फ्यूल ख़त्म नहीं होता. कैप्टन रॉबर्ट पिशे को हालांकि इस गलती के लिए सजा नहीं दी गई. माना गया कि उन्होंने वही प्रोसीजर अपनाया जो सभी पायलट्स को सिखाया जाता है. रॉबर्ट पिशे इस घटना के बाद भी प्लेन उड़ाते रहे. साल 2017 में उन्होंने अपने इस पेशे को अलविदा कह दिया. 2023 की बात करें तो रॉबर्ट पिशे एक परोपकारी संस्था चलाते हैं. जिसका उद्देश्य नशे के आदि लोगों की मदद करना है.

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