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Aditya-L1 मिशन सूरज के पास कैसे पहुंचेगा? लॉन्च डेट के साथ-साथ ISRO ने सब बताया

आगामी 2 सितंबर को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित लॉन्चिंग साइट से आदित्य-L1 को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा.

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Aditya-L1 मिशन को ले जाने वाला स्पेसक्राफ्ट (बाएं), इसरो द्वारा बताया गया रास्ता (दाएं), जिससे होते हुए आदित्य मिशन L1 तक पहुंचेगा (फोटो सोर्स- इसरो)

ISRO ने सूरज की सतह की स्टडी करने वाले आदित्य-L1 मिशन (Aditya-L1) की लॉन्चिंग डेट बता दी है. ISRO ने X पर पोस्ट करके बताया है कि आगामी 2 सितंबर को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित लॉन्चिंग साइट से आदित्य-L1 को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा. यहीं से चंद्रयान-3 मिशन को लॉन्च किया गया था.

ISRO ने पोस्ट में कहा,

“पहली स्पेस बेस्ड इंडियन ऑब्जर्वेटरी (वेधशाला) आदित्य-L1 को 2 सितंबर, सुबह 11 बजकर 50 मिनट पर लॉन्च किया जाएगा.”

ISRO ने लोगों को श्रीहरिकोटा में बने स्पेस थीम पार्क से लॉन्च को लाइव देखने के लिए आमंत्रित भी किया है. बता दें कि स्पेस थीम पार्क में रॉकेट गार्डन, लॉन्च व्यू गैलरी और स्पेस म्यूजियम है. लॉन्च व्यू गैलरी से आदित्य-L1 मिशन का लॉन्च देखने के लिए 29 अगस्त से रजिस्ट्रेशन कराया जा सकता है.

आदित्य-L1 मिशन के उद्देश्य क्या हैं, इससे क्या हासिल होगा, ये जानने के लिए आप हमारी ये रिपोर्ट पढ़ सकते हैं.

मिशन के बारे में कुछ तस्वीरें जारी करके, ISRO ने कुछ और जानकारियां भी साझा की हैं. इन्हें संक्षित में जान लेते हैं.

ISRO ने और क्या बताया?

#आदित्य-L1 मिशन, देश का पहला स्पेस बेस्ड ऑब्जर्वेटरी क्लास का सोलर मिशन है. माने इसके तहत सूरज के रहस्यों को समझने के उद्देश्य से उसकी सतह को ऑब्जर्व किया जाएगा. सूरज की सतह तक कोई सैटलाइट नहीं जाएगी. सही-सलामत तरीके से कोई सैटलाइट सूरज की सतह तक पहुंच सके, ऐसा अभी तक मुमकिन भी नहीं है. वजह है सूरज का अथाह तापमान.

#आदित्य-L1 मिशन के तहत, सैटलाइट पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर, लॉन्च की जाएगी. ये दूरी पृथ्वी से चांद तक की दूरी की करीब 4 गुना है. लेकिन हम ये भी स्पष्ट कर दें कि सूरज के पास पहुंचने का मतलब, सूरज तक पहुंचना बिल्कुल नहीं है. सूरज और पृथ्वी के बीच की दूरी 15 करोड़ किलोमीटर है. आदित्य-L1 मिशन, सूरज की दिशा में इसकी सिर्फ सौवीं दूरी ही चलेगा. माने इतना ही 99 बार और चले तो सूरज की सतह मिलेगी.

# सैटलाइट को ISRO के PSLV XL रॉकेट से श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया जाएगा.

ISRO ने ये भी बताया कि सैटलाइट सूरज के पास कहां और कितने वक़्त में पहुंचेगा-

#सबसे पहले सैटलाइट को पृथ्वी के चारों ओर एक लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) में लॉन्च किया जाएगा. उसके बाद जैसे चंद्रयान को चांद की तरह भेजा गया था, उसी तरह धीरे-धीरे इस सैटलाइट के चक्कर बड़े होते जाएंगे. माने हर दूसरी कक्षा, पहली से ज्यादा अंडाकार और पृथ्वी से दूर होती जाएगी. बाद में इसे लैग्रेंज पॉइंट (L1) की तरफ भेजा जाएगा. पृथ्वी और सूरज के बीच अगर एक सीधी रेखा खींचे, तो उस रेखा पर ही लैग्रेंज पॉइंट (L1) आता है. ये ऐसी जगह है जहां पर सूरज और पृथ्वी दोनों का गुरुत्वाकर्षण एक-दूसरे को संतुलित करता है. जिसके चलते सैटलाइट को न ही सूरज अपनी तरफ खींचेगा और न ही पृथ्वी अपनी तरफ. इससे ईंधन की कम खपत होगी और सैटलाइट L1 पॉइंट के चारों ओर के ऑर्बिट में चक्कर लगाता रहेगा.

#पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने के बाद जब सैटलाइट L1 की तरफ बढ़ेगा तो ये पृथ्वी के गुरुत्वीय प्रभाव के घेरे (Earth's gravitational sphere of influence, SOI) से बाहर निकल जाएगा.

#SOI से बाहर आने के बाद मिशन का क्रूज़ फेज़ शुरू होगा. इस फेज़ में सैटलाइट पृथ्वी से दूर और L1 पॉइंट की तरफ जाएगा. इसके लिए सैटलाइट में लगे प्रोपल्शन का इस्तेमाल होगा. माने इंजन इसे आगे की तरफ धक्का देंगे.

#क्रूज़ फेज़ के बाद सैटलाइट को एक ऑर्बिट में लॉन्च किया जाएगा. ये ऑर्बिट, L1 पॉइंट के चारों ओर है.

#मिशन को लॉन्च किए जाने के बाद, L1 के ऑर्बिट तक पहुंचने में करीब 4 महीने का वक़्त लगेगा.

मिशन का उद्देश्य क्या है, संक्षिप्त में ये भी जान लीजिए.

ISRO के मुताबिक मिशन के प्रमुख वैज्ञानिक उद्देश्य हैं- 

- सूरज की सतह की ऊपरी परत कोरोना की गर्मी और सोलर वाइंड (सौर हवा) की स्पीड बढ़ने के पीछे के रहस्य जानना,
- सूरज के वातावरण को समझना,
- अलग-अलग दिशाओं में मापने पर सूरज के तापमान में आने वाले बदलाव (Anisotropy) का अध्ययन करना,
- कोरोनल मास इंजेक्शन (CME), सोलर फ्लेयर आदि कैसे बनते हैं, इसे समझना.

सूरज की सतह पर कई घटनाएं होती हैं, इनमें सबसे ख़ास है- सोलर स्टॉर्म. ये पृथ्वी को भी प्रभावित करता है. आसान भाषा में इसे समझने के लिए आप मास्टरक्लास का ये वीडियो देख सकते हैं.

वीडियो: मास्टरक्लास: सोलर स्ट्रॉम आ गया, क्या पूरी दुनिया संकट में है?