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अडानी-हिंडनबर्ग मामले में SEBI की कार्रवाई पर सवाल क्यों उठ रहे हैं?

इंसाइडर ट्रेडिंग जैसी गतिविधियों पर नजर रखने वाली SEBI की कमेटी के एक सदस्य गौतम अडानी के समधी हैं.

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2014 से अडानी समूह पर शेयरों के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लग रहा है. (फोटो: इंडिया टुडे)

आज हम आपसे तीन मुद्दों पर बात करेंगे. एक अडानी - जिनको लेकर सुप्रीम कोर्ट में कुछ आरोप लगाए गए हैं और उनके मामले की जांच कर रहे सेबी पर Conflict of interest के आरोप हैं, फिर हैं भारत और सऊदी अरब के रिश्ते पर थोड़ी बात कि भारत के लिए सऊदी अरब के साथ बेहतर व्यापारिक संबंध क्यों जरूरी हैं? इतिहास क्या है? और आखिर में है मणिपुर का ताज़ा घटनाक्रम जहां हाल ही में तीन हत्याएं हुई हैं. आज इन्हीं मुद्दों पर बात करेंगे.

बात शुरु करते हैं अडानी से. अडानी पर हमने कुछ दिनों पहले के शो में बताया था कि पत्रकारों के एक संगठन ने अडानी समूह पर बहुतेरे आरोप लगाए थे. आरोप थे कि अडानी समूह शेयरों में छेड़छाड़ कर रहा है. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचा है तो मामले में हुई है एक रोचक बढ़त. एक याचिकाकर्ता हैं. अनामिका जायसवाल. उन्होंने अपनी याचिका में एक एफ़िडेविट दाखिल किया है. बार एंड बेंच की खबर के मुताबिक इस एफ़िडेविट में कुछ बातें प्रमुखता से लिखी गई हैं. एफ़िडेविट में कहा गया है कि साल 2014 में डिपार्टमेंट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस यानी DRI ने  सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) को लेटर लिखा. इस लेटर में अडानी पर आरोप लगाए गए थे कि वो शेयर मार्केट को मैनिपुलेट कर रहे हैं. ऐसा करने के लिए अडानी पैसे साइफन कर रहे हैं.

याचिकाकर्ताओं ने आगे लिखा है कि लेटर में बातें लिखी थीं, और साथ में दी गई सीडी में प्रूफ शामिल थे. फिर लिखा है कि सेबी ने इस लेटर और इन सबूतों के बारे में सुप्रीम कोर्ट को कोई जानकारी नहीं दी. न ही DRI द्वारा की गई जांच के बारे में, जिसके बाद DRI ने सेबी को चिट्ठी लिखकर संदेह ज़ाहिर किया. एफ़िडेविट में लिखा है -

"ये आश्चर्य भरी बात है कि सेबी ने DRI के एलर्ट के बाद कोई जांच नहीं की और इस जानकारी को दबा दिया और कोर्ट से छुपा लिया...बजाय ऐसा करने के, उन्होंने एक्सपर्ट कमिटी के सामने बताया है कि अडानी समूह की कंपनियों द्वारा जो नियम-कानून तोड़ने की बात है, उसकी जांच सबसे पहले 23 अक्टूबर साल 2020 में शुरु की गई थी."

इसके अलावा सेबी पर ये भी आरोप लगाए गए हैं कि सेबी ने नियमों में बदलाव किए, ताकि अडानी समूह को फायदा पहुंचाया जा सके. जनवरी 2014 में DRI ने जब ये लेटर दिया था, उस समय सेबी के चेयरमैन थे यूके सिन्हा. उपेन्द्र कुमार सिन्हा. बिहार काडर के आईएएस अधिकारी. यूके सिन्हा साल 2011 में चेयरमैन की कुर्सी पर बैठे थे, 2017 तक वो इसी कुर्सी पर रहे. एफ़िडेविट में कहा गया है कि यूके सिन्हा ने इन शिकायतों पर एक्ट करने के बजाय इस पर चुप्पी साधना जरूरी समझा. इस एफीडेविट में कहा गया कि अब यूके सिन्हा अडानी के मालिकाने हक वाले समाचार चैनल NDTV में  Non-executive independent director की कुर्सी पर बैठे. बता दें कि साल 2022 में जब अडानी समूह ने एनडीटीवी का अधिग्रहण किया था, उसके कुछ दिनों बाद सिन्हा इस पोस्ट पर बैठे. लेकिन अडानी समूह के साथ उनकी कहानी यहीं नहीं रुकी. साल 2023 में  एनडीटीवी वो एक दूसरी महत्त्वपूर्ण पोस्ट पर बैठे. independent director की पोस्ट पर.

लेकिन इस पूरी बहस को देखने का एक और नजरिया हो सकता है. हो सकता है कि आप कहें कि उपेन्द्र सिन्हा भले सेबी में उस समय थे, लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने हिंडनबर्ग मामला आने के बाद सेबी को इंडिपेंडेंट जांच करने का आदेश दिया, उस समय तो उपेन्द्र सेबी में नहीं थे. अभी सेबी आराम से जांच कर सकता है. उपेन्द्र वहां पहले थे, अब नहीं. लेकिन एक और संबंध और उससे जुड़ा समीकरण है, जिसको लेकर इस एफ़िडेविट में आरोप लगाए गए हैं. और उसे देखने पर स्थिति थोड़ी और गंभीर समझ में आती है.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, इस एफीडेविट में ये भी कहा गया है कि अडानी समूह की जांच करने में सेबी के हितों का टकराव हो सकता है. अंग्रेजी में कान्फ्लिक्ट ऑफ इंटेरेस्ट कहते हैं इसे. ऐसा है अडानी के बेटे करण अडानी की वजह से. रिपोर्ट के मुताबिक, करण अडानी का ब्याह हुआ है सायरिल श्रॉफ की बेटी से. कौन हैं सायरिल श्रॉफ? एक लॉ फर्म है सायरिल अमरचंद मंगलदास, वहां पर मैनिजिंग पार्टनर हैं। लेकिन एफ़िडेविट के मुताबिक, वो सेबी की कॉर्पोरेट गवर्नन्स की कमिटी के भी सदस्य हैं। यही कमिटी है जो इन्साइडर ट्रेडिंग जैसी गतिविधियों पर नजर रखती है या उनकी जांच करती है. आपको भदेस भाषा में समझाते हैं. एफ़िडेविट कहता है कि गौतम अडानी के समधी सेबी के जांच संबंधी कमिटी में हैं. ऐसे में ये बात सही है तो सेबी, यूके सिन्हा, सायरिल श्रॉफ और करण अडानी का ये नेक्सस और संदेहास्पद दिखने लगता है.

हम यहां पर ये साफ कर दें कि ये बस आरोप ही हैं, इन पर अभी अडानी समूह का रीस्पान्स आना बचा है. साथ ही सेबी से भी जवाब मांगा जाए, ये भी संभावना बनती है. जैसे ही ये जवाब हमारे सामने आएंगे, हम आपको जरूर बताएंगे. लेकिन आरोपों की इस नई फेहरिस्त में सेबी की स्वायत्तता भी सवालों के घेरे में है. अगर ये बातें सही हुईं तो क्या अडानी समूह पर शेयरों के साथ छेड़छाड़ के आरोप लग रहे हैं, सेबी द्वारा की जा रही उसकी जांच सही दिशा में जाएगी? क्योंकि खबरों की मानें तो सेबी ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी स्टेटस रिपोर्ट में कह ही दिया है कि कुल 24 जांचों में से 22 पूरी हो चुकी हैं और बची हुई दो जांच चल रही हैं, इसमें दो बाहरी एजेंसियों की मदद ली जा रही है.

दूसरी बड़ी खबर है भारत और सऊदी अरब के बीच हुए कई अहम समझौतों की. G20 समिट में हिस्सा लेने आए सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ द्विपक्षीय बैठक की है. ये उनकी राजकीय यात्रा भी थी. 11 सितंबर को ये बैठक दिल्ली के हैदराबाद हाउस में हुई. फोटो-वीडियो वायरल हैं. लोग अपने हिसाब से चला रहे हैं. लेकिन इसी मौके पर इस मीटिंग का फलसफा जानना जरूरी है. दोनों देशों के बीच बहुत सारे समझौते हुए हैं.  एनर्जी, डिफेंस, बिजनेस और हेल्थ को लेकर. ध्यान देने वाली बात ये है कि ये समझौते तब हुए जब दो दिन पहले ही G20 समिट में भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप के बीच इकनॉमिक कॉरिडोर का एलान हुआ था. द्विपक्षीय बैठक के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने इस कॉरिडोर की चर्चा करते हुए कहा कि इससे सिर्फ भारत और सऊदी अरब आपस में नहीं जुड़ेगा, बल्कि एशिया, पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच आर्थिक सहयोग, उर्जा के विकास और डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ावा मिलेगा.

दोनों देशों के बीच 45 से अधिक समझौतों पर साइन हुए. दावा सामने आया है कि इन समझौतों के लागू होने से दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध और अधिक मजबूत होंगे. साथ ही इससे निवेश में भी तेजी आने की संभावना है.

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, सऊदी अरब के निवेश मंत्री खालिद अल फलीह ने बताया कि सऊदी गुजरात में एक इन्वेस्टमेंट फंड का दफ्तर भी खोल सकता है. दरअसल, सऊदी क्राउन प्रिंस ने साल 2019 में भारत में 100 अरब डॉलर निवेश करने की घोषणा की थी. द्विपक्षीय बैठक में दोनों देश इसी निवेश को लाने के लिए साझा टास्क फ़ोर्स के गठन पर भी तैयार हुए हैं.

भारत और सऊदी अरब का संबंध काफी पुराना है.1947 में ही दोनों देशों के बीच डिप्लोमेटिक संबंध बनने शुरू हो गए. साल 1955 आया तो सऊदी अरब के किंग सऊद बिन अब्दुल-अजीज पहली बार 17 दिन के लंबे दौरे पर भारत आए थे. इसके बाद अगले साल तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू वहां गए. उनके बाद इंदिरा गांधी, फिर मनमोहन सिंह भी गए. फिर प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार साल 2016 में PM मोदी सऊदी के दौरे पर गए. साल 2019 में जब प्रधानमंत्री मोदी ने सऊदी का दूसरा दौरा किया तो उसी दौरान भारत-सऊदी अरब स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप काउंसिल (SPC) बनाने का एलान हुआ था. इस काउंसिल का गठन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य के लिए किया गया था. इसके बाद कल दोनों देशों के बीच इस काउंसिल की पहली लीडर्स मीटिंग भी थी.

सऊदी अरब, भारत का चौथा सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर भी है. पहले तीन नंबर पर अमेरिका, चीन और संयुक्त अरब अमीरात हैं.

दोनों देशों का बिजनेस भी लंबा चौड़ा है. साल 2022-23 में भारत के कुल अंतरराष्ट्रीय व्यापार का साढ़े चार फीसदी से ज्यादा सऊदी अरब के साथ हुआ. और ये व्यापार पिछले कुछ सालों में बढ़ा है. व्यापार की बात आ रही है तो कुछ लेन-देन के आंकड़ों पर नजर डालते हैं. पिछले साल सऊदी से हमने करीब  3.5 लाख करोड़ का आयात किया और लगभग  89 हजार करोड़ का निर्यात किया. आम भाषा में कहें तो हमारे बीच व्यापार बढ़ तो रहा है, लेकिन हम खरीद ज्यादा रहे हैं.

भारतीय अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाली संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (CMIE) के आंकड़े बताते हैं पिछले 20 सालों में भारत और सऊदी अरब के बीच ये सबसे खराब व्यापारिक संतुलन है. पिछले साल जो व्यापार हुआ, उसमें आयात-निर्यात के बीच ये सबसे बड़ा गैप है. करीब ढाई लाख करोड़ का व्यापार घाटा. इस सदी की शुरुआत में हम चार-पांच सालों तक सरप्लस में रहे थे. यानी हमने खरीदने से ज्यादा सामान बेचा था. ये क्यों है इसे भी समझ लीजिये. भारत, सऊदी अरब से मुख्य रूप से कच्चे तेल का आयात करता है. हमारे कुल आयात में एक बड़ी हिस्सेदारी इसी में है. करीब पौने तीन लाख करोड़ के आसपास. ये तब है जब हमने सऊदी से पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स खरीदने में कमी की है. CMIE के ही अनुसार, साल 2009-10 में सऊदी अरब से हमारे कुल आयात में 90 फीसदी हिस्सेदारी पेट्रोलियम की थी, जो अब 78 फीसदी के करीब है.

आखिरी खबर मणिपुर से. मणिपुर में पत्रकारों पर केस किया गया था. ये पत्रकार एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के पदाधिकारी थे. एडिटर्स गिल्ड एक ऐसी संस्था है, जो भारत में पत्रकारों और पत्रकारिता संस्थानों के कामधाम पर नजर रखती है. उनकी वेबसाइट के हिसाब से बात करें तो इसके दो प्रमुख उद्देश्य हैं  - भारत में प्रेस फ़्रीडम की रक्षा करना और दूसरा - अखबारों और पत्रिकाओं की एडिटोरीअल लीडरशिप का स्टैन्डर्ड बढ़ाना. बीते दिनों एडिटर्स गिल्ड की एक टीम मणिपुर गई थी.मणिपुर के दौरे के बाद इस टीम ने 2 सितंबर को अपनी फ़ैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट प्रकाशित की. इस रिपोर्ट में कहा गया कि मणिपुर में मौजूद अखबार और न्यूज़पेपर एक खास समुदाय की तरफ बायस हैं. इस रिपोर्ट में साफ-साफ कहा गया कि मणिपुर के पत्रकारों ने एकतरफा रिपोर्टिंग की. साथ ही ये भी कहा कि मैतेईबहुल मीडिया एक पार्टी में तब्दील हो गए, और उन्होंने सुरक्षा बलों के खिलाफ लिखना शुरु कर दिया. वो तथ्यों की पड़ताल करने में असफल रहे.

इसके बाद मणिपुर पुलिस ने एडिटर्स गिल्ड और इसके पदाधिकारियों सीमा गुहा, संजय कपूर और भारत भूषण के खिलाफ केस दर्ज कर लिया. एडिटर्स गिल्ड और पदाधिकारी सुप्रीम कोर्ट में पहुंचे थे. सुप्रीम कोर्ट ने अरेस्ट से राहत दे दी. सुनवाई तो चालू है. ये बातें कमोबेश आपको मालूम होंगी, लेकिन इसमें रोचक तथ्य आता है अब.एडिटर्स गिल्ड ने 11 सितंबर को हुई सुनवाई में कहा कि वो खुद से मणिपुर नहीं गए थे, वो इंडियन आर्मी के इन्विटेशन पर मणिपुर गए थे. फिर एडिटर्स गिल्ड ने आर्मी ने एक लेटर सामने रखा, जिस पर डेट 12 जुलाई 2023 की पड़ी हुई थी. ये लेटर जारी किया गया था भारतीय सेना के इनफार्मेशन वॉरफेयर विंग की ओर से. अड्रेस किया गया था एडिटर्स गिल्ड की अध्यक्ष सीमा मुस्तफा को. इस लेटर को एडिटर्स गिल्ड ने बतौर बुलावा कोर्ट के सामने रखा.

क्या था इस लेटर में?

इस लेटर में कुछ खबरों के स्क्रीनशॉट हैं, और इस लेटर के आखिर में एडिटर्स गिल्ड से आग्रह किया गया है कि वो इन रिपोर्ट की पड़ताल करें और इस बात की तसदीक करें कि क्या पत्रकारों ने एथिक्स का पालन किया है? लेकिन रिपोर्ट की पड़ताल की बात पर एडिटर्स गिल्ड ने कहा कि वो आर्मी का बुलावा है. जबकि अपनी खुद की रिपोर्ट के पहले पेज पर एडिटर्स गिल्ड ने कहा है कि आर्मी की तरफ से कंप्लेन की गई थी. बुलावे की बात रिपोर्ट में कहीं नहीं थी.

इस पर भारतीय सेना से जुड़े हमारे सूत्रों का कहना है कि सेना ने बुलावा नहीं भेजा, लेकिन एक जिम्मेदार बॉडी के तहत एडिटर्स गिल्ड से आग्रह किया गया कि वो हिंसा से जुड़ी घटनाओं की खबरों की पड़ताल करें. और ये आग्रह आर्मी की पूरी चेन ऑफ कमांड से पास होने के बाद ही की गई. साथ ही ये भी सवाल उठता है कि क्या सेना ऐसे पत्रकारों को पहले भी खत लिखती रही है?जवाब है कि नहीं. लेकिन एक अधिकारी एक फ्रेज कहते हैं  - Desperate time calls for desperate measures.

तो स्थितियां कितनी खराब हैं? कुछ दिनों पहले मणिपुर के पलेल के इलाके में फायरिंग हुई, जो इस पूरी घटना के दरम्यान एक शांत इलाका रहा. हथियारों से लैस हमलावर आए और उन्होंने कुकी-जो समुदाय के घरों पर फायरिंग शुरु की. फिर आज यानी 12 सितंबर को खबर आई कि कांगपोकपी के इलाके में फायरिंग हुई. खबरों की मानें तो इस फायरिंग में कुकी समुदाय के 3 लोगों की मौत हो गई. इसके अलावा मणिपुर से एक और चिंताजनक खबर ने सुर्खियां बटोरी हैं. कई संगठनों के साथ ही रक्षा सूत्रों का कहना है कि मणिपुर में एक खास समुदाय मणिपुर पुलिस की यूनिफॉर्म का इस्तेमाल कर रहा है. वे हमला करने के लिए या असम राइफल्स व आर्मी से बहस करने के लिए मणिपुर पुलिस और मणिपुर पुलिस के तहत आने वाले मणिपुर कमांडो की ड्रेस पहनकर आते हैं. सूत्र बताते हैं कि अभी इसका अंतर करना कठिन हो गया है कि सामने से हथियार लेकर आ रहा इंसान उग्रवादी है, हमलावर है या मणिपुर पुलिस का जवान है. खाई गहरी है.