1992 की बात है. अहमदाबाद के एक क्लब के सामने 4 लड़के कार से उतरते हैं. उनके हाथ में स्टेनगन है और एके-47 भी. अंदर घुसकर वो गोलियां चलाना शुरू करते हैं. 5 मिनट गोलियां चलतीं हैं, कुल 9 लोग मारे जाते हैं. वो वापस मारुति में चढ़ते हैं, गायब हो जाते हैं.
हमला करने वाला ये अब्दुल लतीफ शेख का गिरोह था. वही आदमी जिसके लिए कहा गया कि शाहरुख खान की अगली फिल्म बन रही है. रईस. मरने वाला आदमी था हंसराज त्रिवेदी. ये लतीफ के खिलाफ मजबूत होने लगा था. इसलिए उसको मार डाला गया. लेकिन उस रोज हंसराज और उसके लोगों के अलावा 6 बेगुनाह भी मारे गए थे.अब्दुल लतीफ अहमदाबाद के दरियापुर इलाके में रहा करता था. उसके घर की हालत ठीक नहीं थी. परिवार बड़ा था इसलिए घर के सब लोग काम करते. इसी चक्कर में उसकी पढ़ाई भी नहीं हो पाई. कालूपुर ओवरब्रिज के पास देशी दारु बेचने से लतीफ ने क्राइम की दुनिया में प्रवेश किया. 70 के दशक तक वो छुटभैय्या ही था. फिर वो शराब के धंधे में उतर गया. वो विदेशी शराब की स्मगलिंग और सप्लाई करता. धीरे-धीरे अहमदाबाद के साथ उसका दबदबा पूरे गुजरात में फैल गया. लतीफ का ऐसा भौकाल था कि कोई भी बुटलेगर बिना उसकी मर्जी के शराब नहीं बेच सकता था. उसे शराब लतीफ से ही खरीदनी पड़ती थी.


उसने अपनी मसीहाई इमेज बना ली थी. बड़े सलीके से मुसलमानों को बरगलाए रखा. उनकी कमजोरी का फायदा उठाया. दंगों में उनकी मदद की. इसीलिए वो उसको संरक्षण देते. बेसिकली वो एक हत्यारा था जिस पर 40 से ज्यादा हत्याओं के केस थे.खुद गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री अमर सिंह चौधरी ने उसके लिए कहा था कि बड़ी चतुराई से उसने मुसलमानों की कमजोरी को भुनाया है और उनका मसीहा बन बैठा है.

लतीफ़ अपने तौर-तरीकों के लिए भी फेमस था. लोग उसे मसीहा तो मानते ही, कुछ उसको 'गुजरात का किंग' कहते. बताते हैं कि वो गुजरात की सड़कों पर 50 की स्पीड से कार दौड़ाता था. रिवर्स गियर में. उसके बारे में ये किस्सा भी चलता है कि उसके और दाऊद के बीच गैंगवार चलता था. एक बार लतीफ के आदमियों ने दाऊद को घेर लिया और उस रोज़ दाऊद को गुजरात छोड़कर भागना पड़ा.हालांकि बाद में साल 1995 में वो दिल्ली में धरा गया. साबरमती जेल अहमदाबाद में बंद था. वहां से भागने की कोशिश की और मारा गया.