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गुजराती गैंगस्टर जो रिवर्स गियर पर 50 की स्पीड में कार दौड़ाता था

कहते हैं, उसने दाऊद को गुजरात से भगा दिया था, 'रईस' उसी की जिंदगी पर बनी बताई जा रही थी.

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रईस अपने आने की आहट और न आने के कहीं पहले ही चर्चा और विवादों में रही फिल्म है. रिलीज के ठीक पहले कैलाश विजयवर्गीय का मामला आया. जब ट्रेलर आया. तो एक सीन था. शिया समुदाय के पवित्र अलम-ए-मुबारक के जुलूस के ऊपर से शाहरुख कूद रहे थे. भावनाएं आहत होनी ही थीं. फिल्म में पाकिस्तानी एक्ट्रेस माहिरा खान भी हैं, उसका बवाल अलग हुआ. वहीं शाहरुख, रितेश सिधवानी, फरहान अख्तर और निर्देशक राहुल ढोलकिया को एक संयुक्त बयान देकर कहना पड़ा था कि फिल्म अब्दुल लतीफ़ शेख की लाइफ पर नहीं बनी है. पर है कौन ये लतीफ़?
1992 की बात है. अहमदाबाद के एक क्लब के सामने 4 लड़के कार से उतरते हैं. उनके हाथ में स्टेनगन है और एके-47 भी. अंदर घुसकर वो गोलियां चलाना शुरू करते हैं. 5 मिनट गोलियां चलतीं हैं, कुल 9 लोग मारे जाते हैं. वो वापस मारुति में चढ़ते हैं, गायब हो जाते हैं.
हमला करने वाला ये अब्दुल लतीफ शेख का गिरोह था. वही आदमी जिसके लिए कहा गया कि शाहरुख खान की अगली फिल्म बन रही है. रईस. मरने वाला आदमी था हंसराज त्रिवेदी. ये लतीफ के खिलाफ मजबूत होने लगा था. इसलिए उसको मार डाला गया. लेकिन उस रोज हंसराज और उसके लोगों के अलावा 6 बेगुनाह भी मारे गए थे.
अब्दुल लतीफ अहमदाबाद के दरियापुर इलाके में रहा करता था. उसके घर की हालत ठीक नहीं थी. परिवार बड़ा था इसलिए घर के सब लोग काम करते. इसी चक्कर में उसकी पढ़ाई भी नहीं हो पाई. कालूपुर ओवरब्रिज के पास देशी दारु बेचने से लतीफ ने क्राइम की दुनिया में प्रवेश किया. 70 के दशक तक वो छुटभैय्या ही था. फिर वो शराब के धंधे में उतर गया. वो विदेशी शराब की स्मगलिंग और सप्लाई करता. धीरे-धीरे अहमदाबाद के साथ उसका दबदबा पूरे गुजरात में फैल गया. लतीफ का ऐसा भौकाल था कि कोई भी बुटलेगर बिना उसकी मर्जी के शराब नहीं बेच सकता था. उसे शराब लतीफ से ही खरीदनी पड़ती थी. raees4_042916024704_042916061354 बाद के दिनों में लतीफ ने हथियार स्मगल करने वाले शरीफ खान से जा मिला. अब वो शराब के साथ-साथ हथियारों की भी तस्करी करने लगा. फिरौती के लिए अपहरण, बंदूक की स्मगलिंग, सुपारी लेकर मर्डर करना यही उसके काम थे. इसकी कमाई से शहर कोट इलाके में रहने वाले बदमाशों को इकठ्ठा किया. अपनी गैंग बना ली. 1992 आते-आते उसके गैंग में 50 बदमाश थे. 500 छोटे-मोटे गुंडे उसकी मदद करते. उसके गिरोह के पास 4 एके-47 थी. 8 स्टेनगन थी. अर 100 के लगभग ऑटोमेटिक- नॉन ऑटोमेटिक हथियार थे. तब गुजरात के पुलिस उपायुक्त कहा करते थे. अगर इसको जल्द ही नहीं रोका गया तो ये अगला दाऊद इब्राहिम बन जाएगा. raees5_042916024755_042916061354 1985 में उसने निकाय चुनाव में चुनाव लड़ा. पांच सीटों पर. वो भी जेल में रहते हुए. ताज्जुब ये कि सारी सीटों पर चुनाव जीत गया. ये अपने में ही बड़ी अजीब सी बात थी.  1992 में लतीफ को तड़ीपार कर दिया गया. उसके सिर पर तब तक 8 मर्डर और 24 दूसरे अपराध लग चुके थे. लेकिन अहमदाबाद में उसका आना-जाना बेखटके चलता. वो किसी से नहीं डरता था क्योंकि उसके पीछे मुसलमानों का हाथ था. वो भी बेवजह नहीं.
उसने अपनी मसीहाई इमेज बना ली थी. बड़े सलीके से मुसलमानों को बरगलाए रखा. उनकी कमजोरी का फायदा उठाया. दंगों में उनकी मदद की. इसीलिए वो उसको संरक्षण देते. बेसिकली वो एक हत्यारा था जिस पर 40 से ज्यादा हत्याओं के केस थे.
खुद गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री अमर सिंह चौधरी ने उसके लिए कहा था कि बड़ी चतुराई से उसने मुसलमानों की कमजोरी को भुनाया है और उनका मसीहा बन बैठा है. raees2_042916024649_042916061354
लतीफ़ अपने तौर-तरीकों के लिए भी फेमस था. लोग उसे मसीहा तो मानते ही, कुछ उसको 'गुजरात का किंग' कहते. बताते हैं कि वो गुजरात की सड़कों पर 50 की स्पीड से कार दौड़ाता था. रिवर्स गियर में. उसके बारे में ये किस्सा भी चलता है कि उसके और दाऊद के बीच गैंगवार चलता था. एक बार लतीफ के आदमियों ने दाऊद को घेर लिया और उस रोज़ दाऊद को गुजरात छोड़कर भागना पड़ा.
हालांकि बाद में साल 1995 में वो दिल्ली में धरा गया. साबरमती जेल अहमदाबाद में बंद था. वहां से भागने की कोशिश की और मारा गया.