तीन सदी पहले का एक राजा. जिसकी तस्वीर 2023 में लहराई जाती है या सोशल मीडिया पर स्टेटस शेयर किया जाता है, तो मसला कानून-व्यवस्था का बन जाता है. पथराव होने लगता है. तोड़फोड़ होने लगती है. पुलिस को कार्रवाई करनी पड़ती है. इस राजा के बरख्श एक और राजा को खड़ा किया जाता है और मामला अस्मिता और पहचान का बन जाता है. आज बात करेंगे महाराष्ट्र की. जहां पिछले कुछ दिनों में औरंगज़ेब को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है. आज कोल्हापुर में तोड़फोड़ और पथराव तक हो गई. राजनीतिक साजिशों की बात हो रही है और हुक्मरानों का कहना है कि छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्य में औरंगज़ेब का गुणगान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
औरंगजेब का पोस्टर दिखने पर कोल्हापुर में बवाल बढ़ता क्यों जा रहा है?
उप मुख्यमंत्री फड़नवीस का कहना है कि छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्य में औरंगज़ेब का गुणगान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
कोल्हापुर. महाराष्ट्र के दक्षिणी भाग में पंचगंगा नदी के तट पर बसा एक ज़िला. मुंबई से दक्षिण में 373 किमी और पुणे से दक्षिण में 228 किमी की दूरी पर स्थित है. आम बोलचाल में कोल्हापुर का जिक्र, यहां बनने वाले चप्पलों की वजह से आता है. अब यहां हुआ ये कि 6 जून को यहां 2 नाबालिग युवकों ने औरंगजेब की तारीफ़ वाला इंस्टाग्राम स्टेटस शेयर किया था. स्टेटस वायरल हो गया और इस पर हिंदूवादी संगठनों ने आपत्ति जताई. जिसके बाद पुलिस ने स्टेटस लगाने वाले युवकों के ख़िलाफ़ FIR दर्ज कर ली. अगले दिन यानी 7 जून को हिंदूवादी संगठनों ने कोल्हापुर बंद का ऐलान किया. आज सुबह 10 बजे के करीब हिंदू संगठनों के कार्यकर्ता छत्रपति शिवाजी महाराज चौक पर इकट्ठा हुए. इन लोगों की मांग थी कि औरंगजेब की तारीफ में स्टेटस लगाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए.
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, कुछ कार्यकर्ताओं ने पत्थरबाजी और तोड़फोड़ शुरू कर दी. कई दुकानों और वाहनों में तोड़फोड़ की गई. जिसके बाद पुलिस ने हालात को नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोड़े. फिलहाल मौके पर भारी संख्या में पुलिस फोर्स तैनात है. शांति बनाए रखने के लिए पुलिस की टीमें गश्त कर रही हैं. कोल्हापुर के एसपी महेंद्र पंडित ने बताया कि अब तक 20 प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया है जबकि 6 को गिरफ्तार किया गया है. उपद्रवियों पर दंगा, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, सरकारी कर्मचारी पर हमले की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है. हालात अब नियंत्रण में है. ऐसा पुलिस कप्तान का कहना है.
कोल्हापुर की घटना पर हो रही राजनीतिक बयानबाजी पर आएंगे लेकिन उससे पहले चलते हैं अहमदनगर. जिसका नाम बदलकर अहिल्याबाई नगर करने की घोषणा की जा चुकी है. अभी आधिकारिक नोटिफिकेशन आना बाकी है.
कोल्हापुर से करीब तीन सौ किलोमीटर दूर स्थित इस जिले में 2 दिन पहले ही औरंगजेब का पोस्टर लहराने की घटना सामने आई थी. 4 जून की रात फकीरवाड़ा इलाके में एक दरगाह के पास उर्स जुलूस निकाली जा रही थी. जुलूस के दौरान AIMIM के जिलाध्यक्ष और उनके कुछ साथियों ने औरंगजेब की तस्वीर लहरानी शुरू कर दी. अगले दिन इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा,
"अगर राज्य में कोई औरंगजेब का पोस्टर लहराता है तो इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. औरंगजेब का पोस्टर लहराने वालों के खिलाफ सख्त एक्शन लिया जाएगा. इस देश और राज्य में हमारे पूज्य छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रपति संभाजी महाराज हैं."
विपक्षी दलों की ओर से भी इस घटना पर प्रतिक्रिया आई. एनसीपी की राज्य इकाई के अध्यक्ष जयंत पाटिल ने कहा कि राज्य सरकार को कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए तो वहीं शिवसेना (उद्धव गुट) ने कहा कि राज्य सरकार दावे तो बड़े-बड़े करती है लेकिन इस तरह की घटनाओं के सामने आने पर सख्त कार्रवाई करने में विफल रहती है. राजनीतिक बयानबाजी शुरू हुई तो पुलिस ने 4 लोगों के खिलाफ एक समुदाय को दूसरे समुदाय के खिलाफ अपराध के लिए उकसाने, धार्मिक भावनाओं को आहत करने की धाराओं में केस दर्ज किया और आरोपियों को गिरफ़्तार कर लिया.
यानी कोल्हापुर में औरंगजेब को लेकर शुरू हुआ विवाद पहला नहीं था. इससे पहले अहमदनगर में भी इस तरह की घटना हो चुकी थी. एक के बाद एक लगातार मामले आए तो विपक्षी दलों ने सरकार पर निशाना साधा. NCP नेता अजित पवार ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के 350वीं बरसी पर युवा औरंगजेब का स्टेटस और पोस्टर क्यों लगा रहे ये बड़ा सवाल है?
शिवसेना (उद्धव गुट) के नेता अनिल परब ने कहा कि ये राजनीतिक साजिश भी हो सकती है, इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए.
हालांकि, NCP सांसद सुप्रिया सुले ने राज्य के गृहमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर निशाना साधते हुए कहा कि ये सीधा-सीधा इंटेलिजेंस का फेल्योर है.
वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कानून-व्यवस्था का उल्लंघन करने वालों पर कड़ी कार्रवाई की बात कही है. फडणवीस ने कहा कि अचानक से महाराष्ट्र में औरंगजेब की कुछ औलादें पैदा हो गई हैं. हम इनको ढूंढ़ निकालेंगे.
आपने नेताओं को सुना अब चलते हैं जानकारों की ओर. और समझते हैं कि अचानक से औरंगजेब महाराष्ट्र की राजनीति केंद्र में कैसे आ गया और औरंगजेब की तस्वीर लहराना या तारीफ करना, कानून-व्यवस्था का प्रश्न क्यों बन गया?
ताज महल के बग़ल में मुग़लों से जुड़ा एक म्यूज़ीयम बन रहा है. सितंबर 2020 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस म्यूज़ीयम का नाम छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर रखने का एलान किया. कहा, मुग़ल हमारे नायक नहीं हो सकते. शिवाजी हमारे राष्ट्रवाद की पहचान हैं. इसी लहजे की बात आज देवेंद्र फडनवीस कह रहे हैं. यानी एक साफ़ बाइनरी है: औरंगज़ेब बनाम शिवाजी.
मुग़लों और मराठों के बीच कई छोटी-बड़ी लड़ाइयां लड़ी गईं. दोनों ने जीत का जश्न भी मनाया और हार का शोक भी. इस बीच समझौता और कूटनीति का खेल चलता रहा. शिवाजी, एक फ़ारसी दुनिया में रहते थे, जब दिल्ली पर मुग़ल क़ाबिज़ थे. उनकी मां जीजाबाई का परिवार मुग़लों के ख़ेमे में था और पिता - बीजापुर के जनरल शाहजी भोंसले - ने भी एक वक़्त मुग़लों के आधीन काम किया था. पिता को ही क़ैद किए जाने के बाद शिवाजी ने औरंगज़ेंब के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला. भगवा परचम तले समर्थन जुटाया. अपनी सेना तैयार की और औरंगज़ेब के शासन का सबसे बड़ा विद्रोह खड़ा किया. यहां तक कि जब शिवाजी ने ख़ुद को संप्रभु घोषित किया और छत्रपति की उपाधि ले ली, औरंगज़ेब के लिए, वो अराजकता पैदा करने वाला एक "पहाड़ का चूहा" ही थे. शिवाजी और औरंगजेब के संबंधों को समझने के लिए हमें कुछ घटनाओं पर नजर डालना ज़रूरी है.
- 1663 में शिवाजी महाराज ने शाइस्ता ख़ां पर पूना के लाल महल में हमला किया. 1664 में सूरत पर हमला किया. इन दो घटनाओं से औरंगज़ेब बौखला उठा. उसने राजा जय सिंह को शिवाजी पर हमला करने के लिए भेजा. जय सिंह ने मराठों के कई किलों पर कब्जा कर लिया.
- 1665 में जय सिंह और शिवाजी के बीच संधि हुई. जिसे पुरंदर की संधि के नाम से जाना जाता है. संधि के हिसाब से शिवाजी को अपने 23 किले मुग़लों को सौंपने पड़े. शिवाजी के कहने पर संधि में एक ख़ास बिंदु जुड़वाया गया, कि शिवाजी मुग़लों की तरफ़ से लड़ने को बाध्य नहीं थे. ना ही उन्हें मुग़ल दरबार में पेश होने के लिए मजबूर किया जा सकता था. लेकिन इसके बावजूद औरंगज़ेब शिवाजी को ये मनवाना चाहता था कि वह मुग़लों के अधीन हैं. इसलिए 1666 में उसने शिवाजी को आगरा आने का बुलावा भेजा. शिवाजी महाराज ने इनकार कर दिया तो औरंगज़ेब ने खत भेजकर कहा कि आपको बतौर शाही सम्मान आगरे का न्योता दिया जाता है. मन में बिना कोई संकोच रखे आप यहां आएं.
- 9 मई 1666 को शिवाजी आगरा पहुंचे. 12 मई को शिवाजी, औरंगजेब की दरबार में पहुंचे. औरंगजेब ने शिवाजी को दरबार में पीछे खड़ा करवा दिया. तीसरे दर्जे के मनसबदारों के साथ. बाद में उन्हें आगरे से बाहर जयपुर सराय में नजरबंद करा दिया गया. शिवाजी को इसका अंदेशा पहले से ही था, इसलिए उन्होंने ऐसा दर्शाया जैसे कि वो बहुत खुश हैं. औरंगज़ेब उनकी तरफ़ से आश्वस्त हो गया कि वो आगरे में ही बने रहेंगे. अगले कुछ दिनों में शिवाजी की तबीयत ख़राब हो गई. मुग़ल हकीमों से उनकी दवा-दारू का इंतज़ाम करवाया गया. इस दौरान शिवाजी अपने बिस्तर पर ही लेटे रहते. उनकी सलामती के लिए रोज़ सराय से साधुओं को मिठाई और फलों की टोकरियां भेजी जातीं. ऐसा कई हफ़्ते चला. और 19 अगस्त 1666 के दिन शिवाजी इन्हीं टोकरी में छिपकर बाहर निकल गए. और वापस राजगढ़ पहुंच गए.
हमने आपको पूरी राजनीति बताई. शिवाजी और औरंगज़ेब के बीच का संघर्ष बताया. लेकिन एक सवाल ये भी है कि ये औरंगज़ेब क्या बला है, जो गाहे-बगाहे उग आता है? तो पहले थोड़ा उसका प्रीटेक्सट जान लेते हैं.
आज के उज़्बेकिस्तान का एक क़बीलाई सरदार हुआ करता था, ज़हीर-उद्दीन. उसने 1526 में दिल्ली के सुल्तान इबारहिम लोदी को पानीपत की पहली जंग में हरा दिया और वहां से शुरू हुआ मुग़ल सम्राज्य. जिस वॉर-लॉर्ड की बात हमने कही, उसे हम बाबर के नाम से जानते हैं. हालांकि, तथ्य तो एक ये भी है कि जिन्हें हम मुग़ल कहते हैं, वो ख़ुद को तैमुरिया कहते थे. ख़ैर, मुग़लों - या तैमुरियाओं - ने 16वीं और 19वीं शताब्दी तक दक्षिण एशिया के ज़्यादातर हिस्सों पर शासन किया. अब हम फ़ास्ट फ़ॉरवर्ड करते हैं. बाबर के पोते का पोता था शाह-जहां. जिसके नाम पर जामा मस्जिद, लाल क़िला और ताजमहल जैसे आर्किटेक्चर के करिश्मे भी हैं. और ये तोहमत भी, कि इश्क़ का इतना भव्य मक़बरा बनवाकर उसने ग़रीबों की मुहब्बत का मज़ाक उड़ाया है. इसी शाह जहां का बेटा था औरंगज़ेब -- सबसे विवादास्पद मुग़ल. हालांकि, औरंगज़ेब और उनके दादा अकबर के बीच ये कॉम्पटीशन रहता है कि कौन ज़्यादा विवादास्पद है? मगर इस रेस में औरंगज़ेब आगे निकल ही जाता है.
औरंगजेब को एक अच्छे सैनिक और रणनीतिकार के तौर पर देखा जाता है. एक विस्तारवादी के तौर पर, जिसने अपनी आख़िरी सांस तक अपने शासन की सीमाओं को फैलाया. लेकिन उसके हाथ पर बहुत ख़ून भी है. वो एक भयानक गृहयुद्ध के बाद तख़्त पर बैठा था. अपने भाइयों का क़त्ल करवा दिया और पिता को मरते-दम तक कै़द में रखा. अलग-अलग मीज़ान के इतिहासकार उसे अलग-अलग नज़रिए से देखते हैं. उसकी शौर्यगाथाओं पर भी किताबें और लेख मिल जाएंगे और उसकी बरबरता पर भी.
मेडिवल इतिहास के प्रसिद्ध इतिहासकार इरफ़ान हबीब कहते हैं, "He is not everyone’s cup of tea, certainly not mine. मिली-जुली पिक्चर है. हमें उसकी क्रूरता के साथ ये भी याद रखना चाहिए कि उसी के समय मुग़ल साम्राज्य केरल से लेकर पूर्वोत्तर तक फैला. और इस वजह से भारत को एक देश के रूप में चीन्हने की चेतना मज़बूत हुई, क्योंकि राजनीतिक एकता सांस्कृतिक एकता के साथ जुड़ गई. और अगर, आप इतिहास में क्रूरता की जांच करेंगे, तो कौन बच पाएगा?"
क्रूरता के अलावा उस पर एक बड़ा आरोप ये लगता है कि उसने हिंदुओं पर ज़ुल्म करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ा. सख़्त शरिया क़ानून लागू किए. हिंदूओं पर जज़िया टैक्स लगाए और मंदिर तोड़े. सोशल मीडिया पर तो यहां तक लिखा गया है कि औरंगज़ेब ने 46 लाख हिंदुओं को मारा. हालांकि, इन हत्याओं और कितने मंदिर तोड़े गए, इसका कोई पुख़्ता नंबर नहीं मिलता. बहरहाल, उसने मंदिर बनवाए भी. ये बात कम लोग बताते हैं. जैसे चित्रकूट का बालाजी मंदिर.
औरंगज़ेब के 49 साल के राज में मुग़ल राज की सरहदें जहां तक गईं, वहां तक कोई और मुग़ल फिर नहीं पहुंचा. लेकिन शासक को याद कैसे करें, ये बस इतने से तय नहीं किया जा सकता कि उसने ज़मीन कितनी क़ब्ज़ाई. उसके शासन में लोग कितने पुरसुकून हैं? तरक्की कितनी हुई? तरक्की आख़िरी आदमी तक कितनी पहुंची? ये भी चेक-मार्क्स हैं. तो हम औरंगज़ेब को कैसे याद करें? एक महान राजा की तरह या एक आताताई कि तरह.
देखिए. जितना हमें समझ आया है, वर्तमान की तरह ही इतिहास भी ब्लैक ऐंड वाइट नहीं है. ग्रे है. बहुत हद तक ग्रे है. वर्तमान से ज़्यादा. क्योंकि हम तक पहुंची आख्यान, घटनाएं और क़िस्से कई नज़रों से होते हुए आए हैं. जिनकी नज़रों के अपने आग्रह थे. इसीलिए किसी को भी इतिहास पर सोल अथॉरिटी मान लिया जाए, ये बेमानी है. हमेशा तरफ़ें रहेंगी, लेकिन ज़रूरी है कि हम इतिहास को बिना पक्ष पकड़े पढ़ें. पढ़ें.. ख़ूब पढ़ें. किसी शासक का पूरा तिया-पांचा समझें. उसकी अपनी ढंग से समीक्षा करें. उसके लिए आज लड़ना कितना सार्थक है, इस पर भी गंभीरता से सोचें.
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