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विज़िबिलटी पुअर रखिएगा तो फॉरगेट हो जाइएगा

मनोहर श्याम जोशी जी के व्यंग-उपन्यास 'नेताजी कहिन' से राजनीति के 30 लल्लनटॉप कोट्स!

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एक जगह के चुनाव परिणाम आ चुके हैं, एक जगह चुनाव हो चुके हैं और एक जगह चुनाव होने वाले हैं. यानी कुल मिलकर देश में राजनीति 'ट्रेंड' कर रही है.
वैसे भारत में राजनीति, कब अख़बारों के मुखपृष्ठ से और हमारे दिल से आउट हुई है? सेक्स, क्रिकेट और बॉलीवुड से भी ज़्यादा जिसकी पूछ बनी रहती है और हमेशा बनी रहती है वो राजनीति ही तो है. और, इन तीनों ही (सेक्स, क्रिकेट और बॉलीवुड) का 'सब सेट' राजनीति है और राजनीति के ये तीनों. खालिस राजनीति तो फिर अपने आप में अलग ही 'विशाल समंदर' ठहरा फिर. मतलब कहने का ये कि सौ में से अस्सी 'अड्डों' पर राजनीति की बातें होती हैं. और बाकी बचे बीस अड्डों में? वहां पर राजनीति 'होती' है. राजनीति से बहुत अलहदा एक ऐसी चीज़ है जिसकी टीआरपी हमेश डाउन रहती है - साहित्य. इतने डल सब्जेक्ट यानी 'साहित्य' में भी राजनीति अंदर खाने तक बसी हुई है. बहरहाल 'साहित्य' में 'राजनीति' तो बहुत देखी होगी आपने, लेकिन आज आपको 'राजनीति' के ऊपर एक उम्दा साहित्य की जानकारी देते हैं. वो भी सबसे प्यारी विधा - व्यंग! तो पुस्तक का नाम है - नेताजी कहिन. इस पर एक धारावाहिक भी दूरदर्शन में आ चुका है, ओम पुरी अभिनीत. बासु चटर्जी ने बनाया था. नाम था - कक्का जी कहिन. और जो पुस्तक है, वो लिखी है मनोहर श्याम जोशी जी ने. पुस्तक क्या पहले एक कॉलम लिखते थे इस नाम से. लोगों ने कहा संपादन बहुत हुआ इसे ही जारी रखो. तो अंततः ये किताब के रूप में आया. क्या कहा? आप मनोहर श्याम जोशी जी को नहीं चीन्हते? अरे 'हम लोग', 'बुनियाद' के लेखक. महेश भट्ट के बहुत अच्छे दोस्त थे. उनके लिए 'पापा कहते हैं' भी लिखी थी. और जो थोड़े बहुत साहित्य वाले लोग हैं उनके लिए तो खैर जोश्ज्यू (जोशी जी) बहुत ऊंची यानी 'पहुंचेली' चीज़ हैं. 'क्याप' के लिए साहित्य अकादमी पुरूस्कार मिला. 40 दिन में लिखी गई 'कसप' को 'मैला आंचल' की तरह ही भारत के सर्वोत्तम 'आंचलिक उपन्यासों' में से एक कहा जाता है. अज्ञेय का आशीर्वाद जिसको मिल जाए फिर उसकी बात ही क्या है.
खैर, मैं 'कैरिड अवे' हो जाऊं इससे पहले ही उनकी इस किताब यानी 'नेताजी कहिन' के तीस कोट्स आपको पढ़वा देता हूं. ज़्यादातर कोट्स बिहार की आंचलिक भाषा में थे इसलिए उनका हिंदी में अनुवाद किया है, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोगो तक पहुंच सके. वैसे तो अंततः ये है तो साहित्य ही, कितने लोगों तक पहुंच लेगा आखिर?

#1

आप कहेंगे 'ऐसा' करते हैं, तो अलां कहेंगे हमारे वेस्टेड-इंट्रेस्ट की ऐसी-तैसी हुई जा रही है.


#2

MSJ - 1

#3

जब घटियापन का राज हो तो श्रेष्ठता के स्वप्न देखना राजद्रोह है.


#4

MSJ - 2

#5

लाठी चलाई नहीं जाती असली पॉलिटिक्स में. उठा ज़रूर ली जाती है कभी कभी, और इस स्टाइल से कि सांप ससुरा खुद इस्तीफ़ा देकर बिल में घुस जाय.


#6

MSJ - 3

#7

इकॉनमी दो स्तर पर चलती है. संकट-फंकट एक नंबर की इकॉनमी में होता है, दो नंबर की इकॉनमी फलती फूलती रहती है भगवान की दया से.


#8

MSJ - 5

#9

बैताल जैसे ही ऑउट-ऑफ़-पावर हुआ फिर उसी पेड़ पर - जनता का सेवक.


#10

MSJ - 6

#11

इस देश में आपको हर आदमी यही कहता मिलेगा कि दो दिन के लिए हमें पावर दी जाए, हम सब ठीक कर देंगे.


#12

MSJ - 7

#13

रहिमन सिट साइलेंटली, वॉचिंग वर्डली-वेज़     बेटरमेंट व्हेन कम्स, देन मेकिंग नेवर डिलेज़.


#14

MSJ - 8

#15

डिप्लोमैसी तो फाइव स्टार में ही हुआ करती है.


#16

MSJ - 9

#17

लॉ ऐंड ऑर्डर और मौसम में किसी का बस नहीं.


#18

MSJ - 10

#19

हर नेता फुरसत के समय तीन में से एक जगह बैठा होता है इस देश में - पाखाने में, प्राइवेट में या पूजाघर में.


#20

MSJ - 11

#21

आपने कहा कि नेता लोग लूट-खसोट न करें तो देश स्वर्ग बन जाए. तो कक्का पहले देश के लोगों से पूछ तो लो कि वो स्वर्गवासी होना चाहते हैं कि नहीं?


#22

MSJ - 15

#23

इस देश में कोई इतना अमीर नहीं कि फ्री-फंड के माल को नहीं कर दे.


#24

MSJ - 13

#25

यह देश ससुरा अनादि काल से जल रहा है. धधकना इसका सेकंड नेचर है.


#26

MSJ - 14

#27

सनी-सिज़्म रास्ट्र के लिए सनी-ग्रह से ज़्यादा घातक है.


#28

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#29

आदर्श यदि व्यवहारिक होता तो क्या 'यथार्थ' शब्द का स्कोप रहता भाषा में?


#30

MSJ - 16
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