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ये हैं कांग्रेस पार्टी के वो 23 दिग्गज नेता, जिन्होंने चिट्ठी से 'बग़ावत' का बिगुल फूंका

इनमें कई ऐसे धुरंधर भी, जिनके बारे में किसी ने सोचा नहीं था कि ऐसा कदम उठा सकते हैं

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बग़ावत का बिगुल जैसा लगने वाला शोर कहीं वापस नक्कारखाने में तूती की आवाज़ ना लगने लगे.

कांग्रेस पार्टी में बड़े बदलाव की मांग उठी है. कांग्रेस वर्किंग कमेटी यानी सीडब्ल्यूसी के सदस्यों, पार्टी सांसदों और पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित पार्टी के शीर्ष 23 नेताओं ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पनत्र लिखा है. कहा जा रहा है कि पत्र दो सप्ताह पहले लिखा गया था. चिट्ठी में साफ तौर पर मांग की गई है कि पार्टी को संचालित करने के लिए प्रभावी केंद्रीय नेतृत्व होना चाहिए. ऐसी साफ-सुथरी प्रणाली होनी चाहिए, जो सक्रिय और जमीन से जुड़कर काम करे. कई दिक्कतें भी गिनवाई गई हैं. कई समाधान सुझाए गए हैं. इधर ये मांग भी तेज हो गई है कि कोई गैर नेहरू-गांधी ही कांग्रेस की कमान संभाले.

लेकिन जिन नेताओं ने चिट्ठी लिखी है, उन 23 के नाम जबर चर्चा में हैं. इनमें 5 पूर्व मुख्यमंत्री शामिल हैं. इनमें कांग्रेस पार्टी के वो सदस्य भी हैं, जिनसे ‘बग़ावत’ जैसी किसी चीज़ की उम्मीद कभी नहीं की गई थी. लेकिन पॉलिटिक्स है ना, कुछ भी हो सकता है. आइए जानते हैं कि ये 23 धुरंधर नाम कौन से हैं, जिन्होंने छुपा के ही सही, लेकिन ‘खुला ख़त’ टाइप डेयरिंग तो कर ही दी है.


1 # गुलाम नबी आज़ाद

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं. जम्मू कश्मीर से आते हैं. वर्तमान में राज्यसभा के नेता विपक्ष हैं. राजीव गांधी के समय के नेता हैं. यूथ कांग्रेस से होते हुए जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे थे. गुलाम नबी आज़ाद को केंद्र में कांग्रेस के चुनिंदा बड़े नेताओं में से माना जाता है. गांधी परिवार से कभी मुंह ना मोड़ने वाले गुलाम नबी पूर्व में यूपीए सरकार के दौरान कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं.

बीजेपी की शह पर लेटर लिखने के आरोपों पर गुलाम नबी आज़ाद ने सीडब्ल्यूसी मीटिंग में कह दिया था कि इल्जाम साबित हो जाएं तो वह त्यागपत्र देने को तैयार हैं, ऐसा सूत्रों ने मीडिया को बताया. हालांकि तुरंत ही आज़ाद ने ट्वीट करके कह दिया कि उन्हें राहुल, सोनिया से कोई दिक्कत नहीं है.


गुलाम नबी आज़ाद ने चिट्ठी लिखने पर कई मोड़ लिए.
गुलाम नबी आज़ाद ने चिट्ठी लिखने पर कई मोड़ लिए.

2 # भूपिंदर सिंह हुड्डा

हरियाणा कांग्रेस के नईया खेवईया हैं. फ़िलहाल हरियाणा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं. भूपिंदर सिंह हुड्डा 2005 से 2014 तक दो बार हरियाणा के सीएम रहे हैं. सोनिया गांधी के करीब माने जाते हैं. लेकिन राहुल गांधी से क़रीबी उतनी नहीं रही. इसका फ़ायदा अशोक तंवर जैसे इन्हीं की पाठशाला में पढ़े नेताओं ने उठाया और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष बन गए. हालांकि 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान इन्होंने बगावती तेवर दिखाए थे. यहां तक कह दिया था कि यह वो कांग्रेस नहीं रही, जो पहले हुआ करती थी। उसके बाद तंवर को हटाकर ऐन चुनाव के पहले इन्हें कमान सौंपी गई थी.


पार्टी हुड्डा से पहले ही नाराज़ चल रही थी. अभी पिछले चुनाव का हिसाब बाक़ी था.
पार्टी हुड्डा से पहले ही नाराज़ चल रही थी. अभी पिछले चुनाव का हिसाब बाक़ी था.

3 # पृथ्वीराज चव्हाण

2010 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने, इसकी वजह गांधी परिवार से नज़दीकी बताई जाती है. 2014 में एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन टूटा तो सीएम पद से इस्तीफ़ा दिया. केंद्र में मंत्री भी रहे हैं. महाराष्ट्र की वर्तमान सरकार के गठबंधन में बड़ा योगदान माना जाता है इनका. बिट्स पिलानी से पढ़े हुए मैकेनिकल इंजीनियर रहे हैं. साल 1974 में भारत लौटने से पहले पनडुब्बी तबाह करने वाले जहाज़ों के लिए हाई एंड ऑडियो रिकॉर्डर बनाते थे.


4 # राजिंदर कौर भट्टल

पंजाब कांग्रेस से आती हैं. 1996 में पंजाब की पहली महिला मुख्यमंत्री होने का गौरव हासिल है इन्हें. 25 साल पंजाब विधानसभा में विधायक रह चुकी हैं. भट्टल पंजाब के लहरा से 1992 में पहली बार चुनाव जीती थीं विधानसभा का. इसके बाद वो वहीं से 5 बार विधायक रहीं. भट्टल पंजाब की मुख्यमंत्री, उप-मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष भी रही हैं. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से 2019 में हुए लोकसभा चुनावों में इनकी खटास स्पष्ट दिखाई दी थी. चिट्ठी प्रकरण में भी दोनों के अलग सुर दिखे. भट्टल ने चिट्ठी लिखी, वहीं कैप्टन ने गांधी परिवार की ज़ोर-शोर से वकालत की है.


5 # एम वीरप्पा मोइली

सोनिया गांधी के खासमखास सलाहकारों में इनकी गिनती होती है. 1992 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे थे मोइली. पहले उडुपी सीट से विधानसभा पहुंचे. 2009 से 2019 तक लोकसभा में भी रहे. लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव हार गए. पहले की केंद्र सरकार में कानून मंत्री और पेट्रोलियम मंत्री रह चुके हैं. फ़िलहाल ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के महासचिव हैं. आंध्र प्रदेश कांग्रेस के इंचार्ज हैं.


मोइली को क़ानून का जानकार होने के बहुत फ़ायदे मिले.
मोइली को क़ानून का जानकार होने के बहुत फ़ायदे मिले.

6 # कपिल सिब्बल

जाने-माने वकील. केंद्रीय क़ानून मंत्री रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट बार असोसिएशन के अध्यक्ष के अलावा भारत के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल भी रह चुके हैं. यूपीए सरकार के दौरान मानव संसाधन मंत्रालय भी संभाला था. गांधी परिवार से क़रीबी जग जाहिर है. चिट्ठी लिखने पर मीडिया में जब राहुल गांधी के हवाले से 'भाजपा से मिलीभगत' का बयान वायरल हुआ तो सिब्बल ने भन्नाते हुए ट्वीट कर डाला कि 'कोई साबित करके दिखा दे'. लेकिन बाद में ट्वीट हटा लिया, ये कहते हुए कि 'राहुल गांधी ने उन्हें पर्सनली फोन करके कहा है कि उन्होंने वो कहा ही नहीं, जो बताया गया है.'


कपिल सिब्बल ने ट्वीट करके ट्वीट हटा भी लिया.
कपिल सिब्बल ने ट्वीट करके ट्वीट हटा भी लिया.

7 # मनीष तिवारी

पंजाब से आते हैं. इस समय अनंतपुर साहिब से लोकसभा सांसद हैं. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय बतौर मंत्री संभाल चुके हैं. जाने-माने वकील रहे हैं. फ़िलहाल सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं. पंजाब और हरियाणा में भी बतौर नेता अच्छा दखल रखते हैं. सरकार के ख़िलाफ़ कम बोलते हैं. गांधी परिवार के क़रीबी माने जाते हैं. कांग्रेस के प्रवक्ता के तौर पर पार्टी का पक्ष रखते हैं.


8 # विवेक तन्खा 

मध्य प्रदेश के जाने-माने व्यापम घोटाले के व्हिसिल ब्लोअर के वकील रहे हैं. मध्य प्रदेश से ही संबंध रखते हैं. फ़िलहाल राज्यसभा सांसद हैं. सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस के छोटे-बड़े मामलों में पार्टी की तरफ़ से अक्सर वकील होते हैं. कांग्रेस की वकील लॉबी में अच्छी-खासी पकड़ है. मध्य प्रदेश के सबसे युवा एडवोकेट जनरल रहे हैं. मध्य प्रदेश और छतीसगढ़ के कई विवादों में इन्होंने अदालत में दलीलें पेश की हैं.


9 # आनंद शर्मा

संजय गांधी की टीम के विश्वासपात्र नेता माने जाते थे. बाद में राजीव गांधी के साथ आए. कई पदों पर रहते हुए यूपीए सरकार में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री रहे. हिमाचल से आते हैं. हालांकि हिमाचल की राजनीति में सीधा दखल नहीं रखते. फ़िलहाल आनंद शर्मा राज्यसभा के सांसद हैं और सदन में कांग्रेस के उप नेता हैं. बताया जा रहा है कि अहमद पटेल ने आनंद शर्मा के चिट्ठी पर हस्ताक्षर को लेकर उन्हें CWC मीटिंग में खरी-खोटी सुनाई थी.


आनंद शर्मा के बारे में कहा जाता है कि ये राज्यसभा का रास्ता पक्का करना जानते हैं.
आनंद शर्मा के बारे में कहा जाता है कि ये राज्यसभा का रास्ता पक्का करना जानते हैं.

10 # शशि थरूर

अक्सर अपने अंग्रेज़ी के ज्ञान की वजह से चर्चा में रहते हैं. दुनिया की जाने कौन-सी डिक्शनरी से शब्द खोजकर लाते हैं. त्रिवेंद्रम से आते हैं. लोकसभा सांसद हैं. भारत और उसके इतिहास, संस्कृति, फिल्म, राजनीति, समाज, विदेश नीति और कई विषयों पर क़रीब 17 किताबें लिख चुके हैं. उपन्यासकार भी हैं. संयुक्त राष्ट्र में दो दशकों तक कार्यरत रहने के बाद 2006 चुनाव में संयुक्त राष्ट्र महासचिव बनते-बनते रह गए. 2009 में पहली बार कांग्रेस की तरफ़ से आम चुनाव लड़े. बाहरी आदमी का आरोप लगने पर भी चुनाव जीत गए. विदेश मामलों के राज्यमंत्री बने. सोशल मीडिया का इस्तेमाल तब भी करते थे, जब ये बेहद एलीट माना जाता था. 2013 तक ट्विटर पर स्टार थे. बाद में मोदी आ गए. थरूर अपनी पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत से भी चर्चा में रहे.


शशि थरूर का इस चिट्ठी पर दस्तख़त करना सट्टा के गलियारों में चर्चा का विषय है.
शशि थरूर का इस चिट्ठी पर दस्तख़त करना सट्टा के गलियारों में चर्चा का विषय है.

11 # रेणुका चौधरी

पूर्व केंद्रीय मंत्री रही हैं. कांग्रेस का लम्बे समय तक महिला चेहरा मानी जाती रहीं. गांधी परिवार के करीबियों में गिनी जाती रही हैं. अपने बयानों की वजह से चर्चा में रहीं रेणुका चौधरी के ठहाके भी प्रसिद्ध हैं. राज्यसभा में एक बार इनके ठहाकों पर पीएम मोदी ने कहा था ‘रामायण सीरियल के बाद ये हँसी सुनने का सौभाग्य आज मिला है.’ साल 1984 में तेलगू देशम पार्टी से राजनीति में शुरुआत करने वाली रेणुका दो बार राज्यसभा में चुनी गईं. केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री रहीं. और भी कई मंत्रालय संभाले. साल 1998 ख़त्म होते-होते टीडीपी से कांग्रेस में आ गईं. 2008 में रेणुका चौधरी महिला एवं बाल विकास मंत्री बनी. 2004 में जब सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से मना कर दिया था, तब रेणुका चौधरी रोती हुईं मीडिया के सामने आईं और कहा 'हम याद रखेंगे कि जब स्वार्थी कांग्रेसियों ने आपको अपने मतलब के लिए सत्ता से दूर कर दिया'


12 # मिलिंद देवड़ा

महाराष्ट्र के दिग्गज नेता रहे मुरली देवड़ा के बेटे हैं. चौदहवीं लोकसभा के सबसे युवा सांसद रहे हैं. 27 साल की उम्र में लोकसभा पहुंच गए थे. व्यापारियों के क़रीबी माने जाते रहे हैं. अंबानी घराने से नजदीकी बताई जाती है. कन्युनिकेशन एंड आईटी के स्टेट यूनियन मिनिस्टर रह चुके हैं. साल 2019 में कांग्रेस जब लोकसभा चुनाव हारी और राहुल गांधी ने इस्तीफ़ा दिया, तभी मिलिंद देवड़ा ने मुंबई कांग्रेस की अध्यक्षता से इस्तीफ़ा दे दिया था. कहा था कि 'राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के लिए ज़िम्मेदारी निभाना चाहते हैं.'


13 # राज बब्बर

अभिनेता से नेता बने राज बब्बर उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं. गांधी परिवार से क़रीबी हासिल करने में क़ामयाबी मिली लेकिन साथ में मिले ज़मीन पर काम ना करने के आरोप भी. फ़िल्मी सफ़र अच्छा ख़ासा रहा. जनता दल के सहारे वीपी सिंह के समय राजनीति में आए. बाद में समाजवादी पार्टी जॉइन कर ली. तीन बार सांसद हुए. राज्यसभा सदस्य भी रहे. 2006 में समाजवादी पार्टी से अनबन हुई और राज बब्बर चले गए कांग्रेस में. समाजवादी पार्टी के ही कैंडिडेट को हराकर सांसद बने. 2014 के आम चुनावों में गाज़ियाबाद से जनरल वीके सिंह के ख़िलाफ़ मैदान में उतरे लेकिन हार गए. इसके बाद उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए. लेकिन 2019 के आम चुनावों में अपनी सीट भी नहीं बचा पाए.


राजबब्बर को जिस तरह उत्तर प्रदेश छोड़ना पड़ा था वो पार्टी को अब भी याद होगा.
राजबब्बर को जिस तरह उत्तर प्रदेश छोड़ना पड़ा था वो पार्टी को अब भी याद होगा.

14 # अरविंदर सिंह लवली

दिल्ली में कांग्रेस का सिख चेहरा हैं. कांग्रेस से भाजपा में भी गए. फिर से कांग्रेस में आ गए. दिल्ली में ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर रह चुके हैं. इसके अलावा भी मंत्रालय संभाले हैं. शीला दीक्षित के सीएम रहते लवली ने कांग्रेस और दिल्ली की राजनीति दोनों में पकड़ मज़बूत बनाई. ऐसा माना जाता था कि शीला दीक्षित का इनके ऊपर ख़ासा भरोसा था. शीला दीक्षित की युवा टीम के भरोसेमंद सिपाही माने जाते थे. दिल्ली दरबार में भी लवली ने अपने लिए मज़बूत रास्ता बनाया था.


15 # कौल सिंह ठाकुर

हिमाचल कांग्रेस के नेता हैं. इससे पहले हिमाचल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं. मुख्यमंत्री बनने की चाहत कभी पूरी नहीं हुई. विधानसभा चुनाव में निराश हुए कौल सिंह ठाकुर पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और सुखविंदर सुक्खू के बीच इधर-उधर होते रहे हैं. 2019 में आम चुनावों में हिमाचल की चार लोकसभा सीटों में से एक मंडी लोकसभा सीट पर वीरभद्र सिंह और कौल सिंह ठाकुर दोनों की दावेदारी मानी जा रही थी. लेकिन आख़िरकार भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए पूर्व दूरसंचार मंत्री पंडित सुखराम के पोते आश्रय शर्मा को टिकट दे दिया गया था.


कौल सिंह ठाकुर हिमाचल कांग्रेस का बड़ा नाम हैं.
कौल सिंह ठाकुर हिमाचल कांग्रेस का बड़ा नाम हैं.

16 # संदीप दीक्षित

दिल्ली कांग्रेस की दिग्गज नेता रहीं और पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे हैं. संदीप दीक्षित को राजनीति में क़ामयाब नहीं माना जाता. सियासी हलकों में बात चलती है कि शीला दीक्षित की सोनिया गांधी से दोस्ती ही आख़िरकार संदीप के काम आती है. पंद्रहवीं लोकसभा में पूर्वी दिल्ली से सांसद रहे हैं. राजनीति से ज़्यादा क़ारोबार और शिक्षा के क्षेत्र में काम करते दिखाई देते रहे हैं. जिंदल यूनिवर्सिटी में मानव विकास भी पढ़ाते रहे हैं. इनका इस चिट्ठी पर दस्तख़त करना भी सियासी विद्वानों की समझ से बाहर है.


17 # मुकुल वासनिक

महाराष्ट्र से आते हैं. कांग्रेस पार्टी में आला कमान की ‘गुड बुक’ में हमेशा से ही रहे हैं. वासनिक केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं. उनका अच्छा खासा प्रशासनिक अनुभव भी रहा है. राजनीतिक जीवन की शुरुआत एनएसयूआई से हुई. पिता बालकृष्ण वासनिक महाराष्ट्र के दिग्गज नेताओं में से थे. पिता बालकृष्ण वासनिक बुलढाना से सिर्फ़ 28 साल की उम्र में सांसद चुने गए थे. अपने पिता का रिकॉर्ड तोड़ते हुए वासनिक ने महज़ 25 साल की आयु में लोकसभा का चुनाव जीता था. उस समय वह सबसे कम उम्र के सांसद थे. पिता के बाद मुकुल वासनिक ने बुलढाना की अपनी पारंपरिक सीट से 1984, 1991 और 1998 में लोकसभा चुनाव जीते. पिछले साल जब कांग्रेस के गांधी परिवार से बाहर का अध्यक्ष चुनने की बात उठी और सीडब्लूसी मीटिंग हुई तो दो नाम सबसे आगे चल रहे थे. पहला मल्लिकार्जुन खडगे और दूसरा मुकुल वासनिक.


18 # जितिन प्रसाद

भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, पी.वी नरसिम्हा राव के राजनैतिक सलाहकार रहे जितेंद्र प्रसाद के बेटे हैं जितिन प्रसाद. 2001 में यूथ कांग्रेस के सचिव पद से शुरुआत करके 2004 में शाहजहांपुर से चौदहवीं लोकसभा में किस्मत आजमाई और सांसद बने. साल 2008 में केंद्रीय राज्य इस्पात मंत्री बनाए गए. इसके अलावा जितिन प्रसाद ने सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय, पेट्रोलियम मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय भी सम्भाला था. आमतौर पर शांतिप्रिय व्यक्ति माने जाते हैं.


ख़ानदानी नेताओं की फ़ेहरिस्त में जितिन प्रसाद का नाम टॉप में आता है.
ख़ानदानी नेताओं की फ़ेहरिस्त में जितिन प्रसाद का नाम टॉप में आता है.

19 # पी.जे कुरियन

केरल कांग्रेस का भरोसेमंद चेहरा हैं. साल 1980 से 1999 तक लोकसभा सांसद रहे और जुलाई 2005 में राज्य सभा के लिए चुने गए. अगस्त 2012 में राज्यसभा का उपसभापति चुना गया. साल 2018 में कुरियन को दूसरा कार्यकाल राज्यसभा में देने के सवाल पर केरल कांग्रेस में युवा नेताओं ने बग़ावत कर दी थी. कुरियन जब राजनीति में आए, तब सेंट थॉमस कॉलेज में फिजिक्स के प्रोफ़ेसर थे. पहली बार सातवीं लोकसभा में सांसद बने और लोकसभा पहुंचे थे.


20 # अजय सिंह

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के बेटे हैं. मध्य प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता हैं. चुरहट विधानसभा सीट से लगातार 6 बार विधायक रहे हैं. चुरहट को उनकी पारिवारिक सीट माना जाता है. इनके पिता अर्जुन सिंह भी यहां से 4 बार विधायक रहे हैं. मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार आने से पहले अजय सिंह ने कई बार नरम-गरम रुख अपनाया. मीडिया से कहा कि 'पार्टी जो भी ज़िम्मेदारी देगी, उसे निभाऊंगा'. हालांकि अपनी सीट विधानसभा चुनाव में बचा नहीं पाए थे. भाजपा के शारदेंदु तिवारी से हार गए थे. कमलनाथ सरकार आई लेकिन अजय सिंह को मन माफ़िक नतीजे नहीं मिले.


मध्य प्रदेश में कभी पावर सेंटर रहा सिंह परिवार अब अजय तक आकर सिमट गया है.
मध्य प्रदेश में कभी पावर सेंटर रहा सिंह परिवार अब अजय तक आकर सिमट गया है.

21 # अखिलेश प्रसाद सिंह

संसद में राज्यसभा के सदस्य हैं. अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के सदस्य भी हैं. 15 मार्च 2018 को, बिहार से राज्य सभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित हुए थे. बिहार विधानसभा के पूर्व सदस्य एवं बिहार राज्य के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री हैं. 2004 में चौदहवी लोकसभा के सदस्य थे. भारत के कृषि, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण के मंत्री भी थे.


22 # कुलदीप शर्मा

हरियाणा के सोनीपत से आते हैं. हरियाणा की राजनीति में अच्छा नाम हैं. ऐसा नाम, जिसे दरकिनार नहीं किया जा सकता. हरियाणा कांग्रेस कई खेमों में बंटी नज़र आती है. सबसे मज़बूत धड़ा हुड्डा खेमा माना जाता है. और माना ये भी जाता है कि कुलदीप शर्मा हुड्डा खेमे के भरोसेमंद हैं. पिता चिरंजीलाल शर्मा 4 बार सांसद रहे. कुलदीप ने 2009 में गन्नौर से पहला विधानसभा चुनाव जीता था. हरियाणा विधानसभा के स्पीकर बने थे. हुड्डा खेमे के आला कमान से ख़िलाफ़त में कुलदीप शर्मा का सुर में सुर मिलाना कोई बहुत अलग बात नहीं दिखती.


हुड्डा के साथ कुलदीप शर्मा की वफ़ादारी निभती रही है.
हुड्डा के साथ कुलदीप शर्मा की वफ़ादारी निभती रही है.

23 # योगानंद शास्त्री

शीला दीक्षित के समय के कांग्रेसी नेता हैं शास्त्री. दिल्ली में शास्त्री को कांग्रेस का ब्राह्मण चेहरा माना जाता रहा. तीन बार दिल्ली विधानसभा पहुंचे. साल 2008 से 2013 तक दिल्ली विधानसभा के स्पीकर भी रहे. शीला दीक्षित की पहली कैबिनेट में विकास एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री रहे और दूसरी कैबिनेट में स्वास्थ्य एवं सामाजिक सहकारिता मंत्रालय सम्भाला. दो बार मालवीय नगर विधानसभा से और एक बार महरौली विधानसभा सीट से चुनाव जीते. हालांकि योगानंद शास्त्री की राजनैतिक महत्वाकांक्षा को कभी उस तरह दिल्ली कांग्रेस में जगह नहीं मिल पाई जैसा कि शास्त्री चाहते थे.




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