तारीख़- 15 दिसंबर.
आज की तारीख़ जुड़ी है एक अदालती फ़ैसले से. जिसके तहत एक हैवान को मौत की सज़ा सुनाई गई थी. उसका गुनाह था, 60 लाख बेगुनाह यहूदियों की हत्या. वो हिटलर का बेहद खास कारिंदा था. हिटलर की हार के बाद वो गिरफ्तार हुआ. लेकिन जल्दी ही जेल से भाग निकला. अगले दस सालों तक मोसाद ने उसका पीछा किया. फिर उसे किडनैप कर इजरायल लाया गया. और, तब जाकर न्याय हुआ.ये कहानी एडोल्फ़ आइखमैन की है. ‘फ़ाइनल सॉल्यूशन’ का आयोजक. फ़ाइनल स़ॉल्यूशन क्या था? ये एक कोडनेम था. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जो भी इलाके जर्मनी के कब्ज़े में आए थे, वहां के यहूदियों को ठिकाने लगाने का ऑपरेशन. फ़ाइनल सॉल्यूशन की पॉलिसी 1942 के वांजी कॉन्फ़्रेस में बनी थी.
आइखमैन का काम था- यहूदियों की पहचान करना, उन्हें इकट्ठा करना और फिर ट्रेन में भरकर डेथ कैंप्स की तरफ भेजना. जहां गैस चेम्बर उनका इंतज़ार कर रहे होते. आइखमैन ने अपना काम मुस्तैदी से किया था. यहूदियों को मारने का उसका अनुभव पुराना था. वो इससे पहले ऑस्ट्रिया और पराग्वे में यही काम कर चुका था.
सेकंड वर्ल्ड वॉर खत्म होते-होते तकरीबन 60 लाख यहूदी मारे जा चुके थे. बर्लिन के ढहते ही नाज़ी साम्राज्य बिखर गया. हिटलर ने अपने बंकर में ख़ुद को गोली मार ली. नाज़ी पार्टी के बड़े नेता हर्मन गोयरिंग और जोसेफ़ गोयबल्स भी आत्महत्या कर चुके थे. उन्हें अपने अंत का अंदाज़ा हो चुका था.
नाज़ियों की हार के बाद हिटलर ने अपने बंकर में आत्महत्या कर ली थी.
जो बच गए, उन्हें मित्र सेनाओं ने अरेस्ट किया. न्यूरेम्बर्ग में उनपर मुकदमा चला. और, गुनाह के मुताबिक सज़ा दी गई. लेकिन इन ट्रायल्स में आइख़मैन कहीं नहीं था. उसको अरेस्ट किया गया था. लेकिन वो चकमा देकर जेल से भाग निकला था. भागने के बाद से उसका कोई अता-पता नहीं था.
फिर साल आया 1948 का. यहूदियों के लिए नया देश बना. इजरायल. डेविड बेन-गुरियन पहले प्रधानमंत्री बने. गुरियन एक ऐसी सेंट्रल एजेंसी बनाना चाहते थे, जो बाकी सिक्योरिटी सर्विसेज के साथ को-ऑर्डिनेट करे. मार्च, 1951 में मोसाद का स्ट्रक्चर बदला गया. तब से ये एजेंसी सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करने लगी. समय के साथ-साथ मोसाद की भूमिका बदलती गई.
1957 में मोसाद को एक टिप मिली. अर्जेंटीना से. ख़बर थी कि आइखमैन जैसा एक शख़्स वहां रह रहा है. ख़बर पक्की थी. अब मोसाद ने अपना ऑपरेशन शुरू किया. एजेंट्स को अर्जेंटीना भेजा गया. कई महीनों तक रेकी करने के बाद पूरी जानकारी मिल गई. आइख़मैन राजधानी ब्यूनस आयर्स के पास रह रहा था. रिकार्डो क्लीमेंट के नाम से.
60 लाख यहूदियों का हत्यारा चैन की ज़िंदगी जी रहा था. अर्जेंटीना और इजरायल में कोई प्रत्यर्पण संधि नहीं थी. इसलिए, कानूनी तरीके से आइख़मैन को इजरायल ले जाना संभव नहीं था. लेकिन उसे ले जाना ज़रूरी था. मोसाद मौके की तलाश में जुट गई. वो मौका आया, मई 1960 में. अर्जेंटीना, स्पेन के ख़िलाफ़ क्रांति की 150वीं सालगिरह मना रहा था. पूरी दुनिया से टूरिस्ट अर्जेंटीना पहुंच रहे थे. मोसाद के कुछ और एजेंट टूरिस्ट का वेश धरकर घुसे.
आइख़मैन अर्जेंटीना में नए नाम के साथ रह रहा था. उसने अपना घर बसा लिया था.
पूरी प्लानिंग की गई. ऑपरेशन का दिन रखा गया 11 मई. आइख़मैन रोज शाम को बस से अपने घर आता था. जहां पर बस रुकती थी, वहां से कुछ सौ मीटर अंदर उसका घर था. तय हुआ कि इसी रास्ते पर आइखमैन को बेहोश करके किडनैप किया जाएगा. एजेंट्स वहीं रुककर इंतज़ार करने लगे. दो गाड़ियां तैयार रखी गई थी. अब बस का इंतज़ार था. तय समय पर बस आई. पर उसमें आइखमैन नहीं था. क्या ये प्लान फ़ेल होने वाला था? एजेंट्स ने कुछ समय और इंतज़ार करने का फ़ैसला किया. अगली बस आधे घंटे बाद आई. तब तक सबकी धुकधुकी काफी तेज़ हो चुकी थी.
वो बेसब्री से नज़रें गड़ाए थे. इस बार एक नाटे कद का अधेड़ उतरा. और, उसी रास्ते की तरफ़ बढ़ा, जहां मोसाद के एजेंट्स की गाड़ियां खड़ी थीं. वो आइख़मैन ही था. एजेंट्स तुरंत अपने काम पर लग गए. उन्होंने उसे पकड़ा, गाड़ी में डाला और फौरन वहां से निकल गए.
आइख़मैन को मोसाद के सेफ़ हाउस में रखा गया. अगले नौ दिनों तक इस ऑपरेशन को छिपा कर रखना पड़ा. अर्जेंटीना से इजरायल की अगली फ़्लाइट 20 मई को तय थी. अगर इस बीच में अर्जेंटीना सरकार को सेफ़ हाउस का पता चल जाता, तो न सिर्फ़ मोसाद एजेंट्स की जान खतरे में आ जाती, बल्कि इतना बड़ा टारगेट हाथ से हमेशा के लिए निकल जाता.
कई मौके आए, जब पूरा ऑपरेशन फ़ेल होने की कगार पर पहुंच गया था. लेकिन एजेंट्स ने अपनी सूझ-बूझ से मामला संभाल लिया. 20 मई को सब लोग फ़्लाइट में सवार हुए. आइख़मैन का हुलिया बदल दिया गया था. उसको दवा देकर बेहोश कर दिया गया था. एयरपोर्ट सिक्योरिटी को बताया गया कि ये एक इजरायली एयरलाइन वर्कर है और उसके सिर पर गहरी चोट लगी है. इस तरह एडोल्फ़ आइख़मैन को इजरायल ले जाया गया.
इस ऑपरेशन के बारे में विस्तार से जानना हो तो एक फ़िल्म है ‘ऑपरेशन फ़िनाले’. आप वो देख सकते हैं. इसमें आइख़मैन का किरदार बेन किंग्सले ने निभाया है.