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तो इसलिए लालू यादव ने ममता बनर्जी को 'INDIA' ब्लॉक का मुखिया बनाने की बात कही

अगले साल होने वाले Bihar Vidhansabha Chunav के लिए राजनीतिक पार्टियों ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है. Lalu Yadav ने इंडिया ब्लॉक में Mamata Banerjee की लीडरशिप का समर्थन किया है. जिसके बाद से बिहार कांग्रेस ने भी मोर्चा खोल दिया है. और 70 सीटों पर अपनी दावेदारी जता दी है.

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लालू यादव पहले भी कांग्रेस पर प्रेशर पॉलिटिक्स का दांव आजमाते रहे हैं. (इंडिया टुडे)

बिहार विधानसभा चुनाव 2025. आमने-सामने होंगे दो गठबंधन. NDA और महागठबंधन. मुख्यमंत्री पद के दो दावेदार. दोनों ही बिहार साधने के लिए यात्रा का एलान कर चुके है. तेजस्वी यादव जहां ‘कार्यकर्ता संवाद यात्रा’ निकाल रहे हैं, वहीं 23 दिसंबर से नीतीश कुमार ‘प्रगति यात्रा’ के जरिये महिलाओं से संवाद करेंगे. फिलवक्त नीतीश कुमार के साथ NDA का कुनबा एकजुट दिख रहा है. लेकिन तेजस्वी के साथ स्थिति उलट नजर आ रही है. लेफ्ट पार्टियां पहले ही RJD के नेतृत्व पर सवाल उठा रही थी, अब उनकी सबसे भरोसेमंद पार्टनर कांग्रेस से भी उनके रिश्ते में असहजता नजर आ रही है. 

इस असहजता को लालू यादव के एक बयान से डिकोड किया जा सकता है. इसमें उन्होंने ममता बनर्जी को INDIA ब्लॉक का नेतृत्व सौंपने की बात कही है. जबकि साल भर पहले वो राहुल गांधी को 'INDIA ब्लॉक का दूल्हा' बताते नहीं थक रहे थे.

ममता बनर्जी को नेतृत्व सौंपने की बात क्यों?

कुछ दिन पहले ममता बनर्जी की ओर से INDIA ब्लॉक का नेतृत्व करने की इच्छा जताई गई थी. मीडिया ने जब लालू यादव से इस बारे में सवाल किया तो उन्होंने कहा,

“ठीक है, दे देना चाहिए हम सहमत हैं.”

यह पूछे जाने पर कि क्या कांग्रेस इस पर आपत्ति करेगी, लालू यादव ने कहा, 

“इससे कोई फर्क नहीं पड़ता... ममता को दे दो.”

लालू यादव की प्रेशर पॉलिटिक्स

लालू यादव की इस टिप्पणी को राजनीतिक हलकों में बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस पर दबाव बनाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है. मकसद, ताकि कांग्रेस को चुनाव में कम से कम सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए मनाया जा सके. RJD के एक सीनियर नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बताया कि 2020 के चुनावों में महागठबंधन को 243 में से 112 सीटें मिली थी, जोकि बहुमत से सिर्फ दस सीट कम थीं. आरजेडी ने 144 सीटों पर चुनाव लड़कर 75 सीट जीतीं, जबकि उसकी एक और सहयोगी CPI ML (Liberation) ने 20 में से 12 सीटें जीती थीं. वहीं कांग्रेस 70 सीटों पर लड़कर सिर्फ 19 सीटें जीत पाई थी. इस तरह कांग्रेस को गठबंधन की ‘कमजोर कड़ी’ की तरह देखा जाता रहा है. गठबंधन की सरकार नहीं बन पाने के लिए भी कुछ हद तक कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया गया.

उपचुनाव में खराब प्रदर्शन भी बना वजह

हाल ही में बिहार विधानसभा की चार सीटों के लिए उपचुनाव हुए थे. चारों सीटों पर RJD को शिकस्त मिली थी. उधर लोकसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस की स्थिति मजबूत हुई है. चर्चा है कि इसके चलते RJD नेतृत्व एक तरह का दबाव महसूस कर रही थी. लालू यादव भले ही राजनीतिक रूप से उतने सक्रिय नहीं हों, लेकिन जोड़-तोड़ और दबाव की राजनीति के माहिर खिलाड़ी रहे हैं. वे कांग्रेस को राष्ट्रीय नेतृत्व के मुद्दे पर उलझा कर रखना चाहते हैं, क्योंकि कहीं न कहीं उनको पता है कि कांग्रेस नेतृत्व के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करेगी. और इसी बहाने बिहार में उनकी ‘बारगेनिंग पावर’ मजबूत बनी रहेगी. 

लालू यादव की बयानबाजी को लेकर राष्ट्रीय सहारा से जुड़े रहे वरिष्ठ पत्रकार रमाकांत चंदन बताते हैं, 

“लालू यादव के इस बयान का मकसद ही है कांग्रेस को बिहार की राजनीति से दूर रखना. दरअसल कांग्रेस को यह आभास है कि इस बार 70 सीट नहीं मिलने वाली. बिहार विधानसभा चुनाव में वाम दलों का स्ट्राइक रेट बेहतर था. RJD इस बार उनको ज्यादा सीट देने के पक्ष में है. लेकिन कांग्रेस 2024 लोकसभा चुनाव के स्ट्राइक रेट का हवाला देकर RJD पर दबाव बनाने में जुट गई है. इसलिए लालू यादव, ममता बनर्जी का समर्थन कर कांग्रेस को केंद्र की राजनीति में ही फंसा कर रखना चाहते हैं.”

कांग्रेस भी आर-पार के मूड में

लालू यादव अपने दांव चल रहे हैं तो बिहार कांग्रेस भी घुटने टेकने के मूड में नहीं दिख रही है. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने कहा कि बिहार में कांग्रेस 2020 के विधानसभा चुनाव से कम सीटों पर नहीं लड़ेगी. इससे पहले कांग्रेस के बिहार प्रभारी शाहनवाज आलम भी कह चुके हैं कि बिहार में न कोई बड़ा भाई है और न कोई छोटा भाई, सीट बंटवारा लोकसभा में जीत के स्ट्राइक रेट के मुताबिक होगा. 

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 9 में से 3 सीटें जीती थी. और RJD 23 सीटों पर लड़कर चार सीटें जीत पाई थी. एक सीट पर निर्दलीय पप्पू यादव को जीत मिली थी. उनकी जीत को भी कांग्रेस अपने खाते में ही मानकर चल रही है. इस लेकर दैनिक जागरण से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शर्मा बताते हैं,

“विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के बाद शिवानंद तिवारी, जगदानंद सिंह और खुद तेजस्वी यादव की ओर से कांग्रेस को खराब स्ट्राइक रेट का ताना दिया जाता था. लेकिन लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद अब स्थिति बदल गई है. कोई भी RJD नेता स्ट्राइक रेट की बात नहीं कर रहा है. लालू यादव इस बात को समझ रहे हैं कि कांग्रेस फिर से 70 प्लस सीटें मांगेगी. इसीलिए पहले से ही उन्होंने दाएं-बाएं चलना शुरू कर दिया है.” 

कांग्रेस बिहार में पिछड़ती क्यों गई?

कांग्रेस 1990 तक अधिकतर समय सत्ता में रही. लेकिन इस दौरान पार्टी का नेतृत्व अधिकतर सवर्ण नेताओं के हाथ में ही रहा. पार्टी राज्य में ओबीसी नेतृत्व के उभार को भांप नहीं पाई. या फिर पार्टी के सवर्ण नेताओं ने जानबूझकर इसकी अनदेखी की. मंडल की राजनीति के दौर में लालू यादव, रामविलास पासवान और नीतीश कुमार जैसे नेताओं का उभार हुआ. इससे कांग्रेस बैकफुट पर जाती गई. 

वहीं 1989 में कांग्रेस के राज में हुए भागलपुर दंगे के बाद मुस्लिम वोट उनसे छिटक गया, जो लालकृष्ण  आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद लालू यादव की ओर शिफ्ट कर गया. वहीं कांग्रेस का आधार रहे सवर्ण वोटर्स बीजेपी की तरफ चले गए. 1990 की हार के बाद कुछ समय तक तो कांग्रेस अपने दम पर चुनाव लड़ी, लेकिन फिर लालू यादव के पीछे चलना मंजूर किया. अरविंद शर्मा बताते हैं, 

कांग्रेस के कमजोर रहने में ही क्षेत्रीय दलों की भलाई है. कांग्रेस अगर बिहार में मजबूत होगी तो इसका सबसे बड़ा डेंट RJD को लगेगा. उनका M-Y (मतलब मुस्लिम-यादव) समीकरण पूरी तरह से टूट जाएगा. कांग्रेस मजबूत होगी तो मुस्लिम वोट बैंक RJD के साथ नहीं रह जाएगा. लालू यादव के सामने सबसे बड़ा खतरा यही है. इसलिए उन्होंने प्रेशर बनाना शुरू कर दिया है.”

कांग्रेस और RJD के रिश्ते में कई उतार-चढ़ाव

आजादी के बाद से 1967-1972 और 1977-1980 को छोड़ दें तो कांग्रेस ने 1990 तक बिहार पर राज किया है. 1990 के चुनाव में कांग्रेस को जनता दल से शिकस्त मिली. जिसका नेतृत्व लालू यादव कर रहे थे. तब लालू अक्सर तत्कालीन कांग्रेस मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा पर कटाक्ष करते थे- “ये उड़नखटोला डॉक्टर साहब खरीदे हैं. लेकिन इसमें जल्दी ही हम उड़ेंगे.” 

लालू यादव की यह टिप्पणी सच साबित हुई. अगले 15 सालों तक उन्होंने और उनकी पत्नी राबड़ी यादव ने बिहार में राज किया. 1999 में लालू यादव ने जनता दल से अलग होकर RJD का गठन कर लिया था.

1998 में पहली बार साथ आईं RJD-कांग्रेस

बिहार में पिछले 26 सालों में RJD और कांग्रेस 9 बार साथ और 4 बार अलग-अलग चुनाव लड़ चुकी हैं. साल 1998 में कांग्रेस ने पहली बार लालू यादव से हाथ मिलाया. और लोकसभा चुनाव में RJD (तब जनता दल) के साथ लड़ी. इसके बाद 1999 का लोकसभा चुनाव भी RJD और कांग्रेस एक साथ लड़ी. लेकिन 2000 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अकेली लड़ी. और उसको 23 सीटें मिलीं. उधर लालू यादव की पार्टी भी बहुमत से दूर रह गई. इस बीच सात दिन के लिए नीतीश कुमार सीएम बने. लेकिन फिर RJD ने कांग्रेस की मदद से सरकार बनाई. 

इसके बाद 2004 का लोकसभा चुनाव RJD-कांग्रेस ने एक साथ लड़ा. लेकिन फरवरी, 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में दोनों दल एक बार फिर से अलग हो गए. कांग्रेस लोजपा के साथ मैदान में उतरी. इस बार भी किसी दल को बहुमत नहीं मिला और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा. अक्तूबर, 2005 में होनेवाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और RJD फिर से साथ आए. इस चुनाव में कांग्रेस के खाते में 9 सीटें गईं. 2009 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस फिर से अकेले लड़ी. लेकिन दो ही सीटें जीत पाई.

अगले साल 2010 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस फिर अकेले लड़ी और सिर्फ चार सीटों पर सिमट गई. इसके बाद कांग्रेस को लगने लगा कि RJD की बैसाखी के बिना बिहार में उसकी राजनीति नहीं चल सकती. 2014 के लोकसभा चुनाव में दोनों दल फिर से साथ आए और तब से अब तक हुए सारे चुनाव एक साथ लड़े हैं. 

2015 विधानसभा चुनाव में मिला टॉनिक

2015 में RJD और कांग्रेस को एक नया साथी मिला नीतीश कुमार. इस चुनाव ने कांग्रेस के लिए बूस्टर डोज का काम किया. बिहार में जनाधार खो रही पार्टी को फिर से ऑक्सीजन मिली. पार्टी 41 सीटों पर लड़ी जिनमें से 27 पर जीती. सीटों की संख्या और स्ट्राइक रेट के लिहाज से यह 1995 के बाद से कांग्रेस का सबसे बेहतर प्रदर्शन था.

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