“नीरज पेप्सू दिल में बसे जाणै से भाई णे सारा जहां.” यह गाना इन दिनों रील्स पर खूब वायरल है. इस गाने में एक नाम है- नीरज पेप्सू. पेशे से यह शख़्स बॉडी बिल्डर था. इन्हें दुनिया से मरहूम हुए पांच साल से ज़्यादा हो चुके हैं. लेकिन इनकी पॉपुलैरिटी इतनी है कि जो नहीं भी जानता था वह भी इन्हें जानने लगा है. लेकिन ऐसा क्या हुआ कि अचानक यह शख़्स सोशल मीडिया सेंसेशन बन गया. नीरज की मौत की असली कहानी क्या है? सब जानते हैं.
कौन था नीरज पेप्सू? क्यों उसकी मौत सालों बाद भी चर्चा में है? जानें सबसे विशाल बाउंसर की कहानी
पेशे से यह शख़्स बॉडी बिल्डर था. इन्हें दुनिया से मरहूम हुए पांच साल से ज़्यादा हो चुके हैं. लेकिन इनकी पॉपुलैरिटी इतनी है कि जो नहीं भी जानता था वह भी इन्हें जानने लगा है.

दिल्ली NCR के किसी भी क्लब या बार का सीन उठा लीजिए. आंखें चुंधिया देने वाली रोशनियां ही दिखाई देंगी. पेट तक में महसूस होने वाला संगीत और ज़्यादा दाम पर लगातार बह रही शराब. आसपास नाचते मदहोश लोग. ये दृश्य किसी भी वीकेंड पर ज़्यादा ऊंचाई पर चले जाते हैं. लेकिन इन दृश्यों में आपने एक और किरदार को ध्यान से देखा होगा. काली टीशर्ट, काली पैंट पहने और लगातार पहरा देते बलिष्ठ युवा.
उनकी नज़र डांस फ्लोर पर नाचते लोगों पर होती है. वो लगातार ये देखते रहते हैं कि पूरे क्लब में कहीं कोई अभद्रता तो नहीं कर रहा, कहीं कोई लड़ाई, बलवा या भद्दगी तो नहीं जन्म ले रही है. अव्वल तो लोग इन बाउंसर्स को देखकर पहले ही से कायदे में आ जाते हैं. क्यों देश के किसी अन्य हिस्से से दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आकर किसी मुस्टंडे से पंगा लेना? फिर भी किसी ने फैलने की कोशिश की तो उसे उठाकर क्लब से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है.
क्लब बंद होते-होते बाउंसर्स अपनी बाइकें उठाते और अपने घरों की ओर निकल पड़ते. अधिकांश बाउंसर्स का घर एक ही गांव होता है. साउथ दिल्ली में बसा यह गांव जिसका नाम गूगल पर World's Strongest Village डालकर सर्च करने पर मिल जाता है. गांव का नाम है फतेहपुर बेरी. ये सारे बाउंसर फतेहपुर बेरी पहुंचकर सो जाते हैं. और फिर शुरू होता है अगला दिन. रियाज़-कसरत-दूध दही. और फिर सारे अपने-अपने क्लब्स की ड्यूटी पर.
फतेहपुर बेरी की चाल ऐसी ही है. यहां के लगभग हरेक घर में पहलवान हैं. अधिकांश युवा या तो जिम ट्रेनर हैं, या बाउंसर. ये लोग शाम से लेकर रात तक काम करते हैं और दिन में वर्जिश. कहानियां हैं कि गुर्जर बहुल इस गांव के लोगों ने कभी मुगलों से लड़ाई की थी. तो कभी एक ब्रिटिश अधिकारी को घोड़े से गिराकर हीकभर कूटा था. अपने खेत तक जोतवाए थे. फिर भड़के अंग्रेजों ने गांव के युवाओं को गोलियों से भून दिया था. लेकिन अब फतेहपुर बेरी अत्याधुनिक शराब घरों और रेस्तरां की रक्षा में शुमार है. वो बात अलग है कि अब इस गांव के लोगों में आपस में मार-पिटाई भी होती है. वजह घर, संपत्ति, गाड़ी आदि हैं.
लेकिन फतेहपुर बेरी में बाउंसरी और बॉडी बिल्डिंग का सफर शुरू कैसे हुआ? इसका जवाब हैं विजय तंवर, जिसको गांव के लोग विजय पहलवान कहते हैं. विजय पहलवान छोटे थे तो गांव के ही अखाड़े में पहलवानी शुरू की. शाकाहारी खाना, और दूध दही घी का सेवन. साथ में और लड़के भी पहलवानी की शागिर्दी लेते थे. समय बचता तो विजय तंवर खेती भी कर लेते थे.

फिर साल 1996 में एक रेस्तरां मालिक, विजय पहलवान के दरवाजे पर आए. उन्होंने दरखास्त की कि कुछ मजबूत लड़के चाहिए. उन्हें रेस्तरां के दरवाजे पर खड़ा करना है. विजय पहलवान शुरू में थोड़ा अचकचाए, लेकिन फिर रेडी हो गए. न्यूयॉर्क टाइम्स की पत्रकार एलेन बेरी के लेख के मुताबिक, शुरुआत में इस गांव के लोगों को क्लबों में दिक्कत हुई. वो शराब, कम कपड़ों और तड़क-भड़क के आदी नहीं थे. इसकी आदत उन्हें धीरे-धीरे बनी. दसेक साल बीतते-बीतते उन्होंने स्टॉर्म ग्रुप नाम की कंपनी शुरू कर दी. इस कंपनी से गांव के 50 से ज्यादा युवा जुड़े हैं, जो रेस्तरां, होटल, अस्पताल और राजनेताओं को बाउंसर सर्विस देते हैं.
नीरज पेप्सू का बचपनविजय तंवर तो थे एक बड़े ‘प्रेरणास्रोत’. लेकिन कालखंड में एक और शख्स सामने आया, जिसने इस गांव का नाम थोड़ा और ऊंचा किया. लोग बताते हैं कि ख्याति इतनी फैली कि गुर्जर समुदाय ही नहीं, बड़ी संख्या में अन्य समुदायों के युवा, इस नाम को अपना आदर्श मानने लगे हैं. हम बात कर रहे हैं नीरज तंवर उर्फ नीरज पेप्सू की.
7 जनवरी, 1987 को फतेहपुर बेरी में नीरज का जन्म हुआ. शुरुआती पढ़ाई लिखाई हुई, लेकिन नीरज का मन पढ़ाई में लगता नहीं था. मन था कबूतरबाज़ी का. नीरज के भाई प्रीत पेप्सू एक पॉडकास्ट में बताते हैं कि घर से पैसे लेकर नीरज कबूतर ले आता. छत पर खड़े होकर कबूतर उड़ाता. मम्मी पापा ने बहुत समझाया, लेकिन नीरज नहीं माने. आखिरकार जमकर पिटाई हुई, तब जाकर कबूतरबाज़ी का भूत उतरा.
ऐसे शुरू हुई बॉडी बिल्डिंगइसके बाद नीरज ने स्कूल में कबड्डी खेलना शुरू किया. शरीर में थोड़ी जान आई. फिर वही लाइन पकड़ी, जो गांव के दूसरे युवा पकड़ चुके थे. सबसे पहले अखाड़े में पहलवानी शुरू की. कान तुड़वाए. और फिर अगला ठिकाना फतेहपुर बेरी में मौजूद जिम. यहां शरीर बनाना शुरू किया. शुरुआत में नीरज पेप्सू अपने साथियों के साथ इन कामों में शरीक हुआ.
लेकिन अपने साथियों की तुलना में नीरज पेप्सू बीस छूटता था. उसकी हाइट और शरीर का माप बाकी साथियों के मुकाबले किंचित ज्यादा था. नीरज को इसका लाभ मिला. उसने अपना बाउंसर ग्रुप बनाया. लेकिन वक्त के साथ नीरज को लगने लगा कि बिजनेस को बढ़ाना चाहिए. नीरज ने गुड़गांव में एक ढाबा खोल लिया. दिल्ली से गुड़गांव आना-जाना शुरू हो गया.
यह वो समय था, जब लोगों के हाथों में स्मार्टफोन और सस्ते डेटा पैक आ गए थे. ऑनलाइन दुनिया में इन्फ्लुएंसर्स का कामधाम शुरू हो गया था. तब समाज में रील नाम की बीमारी नहीं थी. तब के सोशल संक्रमण का नाम हुआ करता था टिकटॉक. नीरज पेप्सू ने भी इन्फ्लुएंसर्स की दुनिया में कदम रखा. जिम में कसरत करते, 220 किलो की डेडलिफ्ट करते, बाइसेप्स-ट्रैप्स फ्लेक्स करते तस्वीरें वीडियो वायरल हुए.
ध्यान रखिए कि ये ऑनलाइन दुनिया में देह की भाषा थी. इस भाषा में अकूत पौरुष होने की बातें थीं, इसलिए देखते-देखते नीरज पेप्सू, गुर्जर समाज के लड़कों का आइकन बन गया. उसके नाम के स्टेटस लगाए जाने लगे. कॉलैब करने की कोशिशें शुरू हुईं. ऐसे नीरज का कद बढ़ा नहीं, बल्कि वायरल हुआ. वो गुर्जर समाज के आइकन से एक पायदान ऊपर उठा, और यूथ आइकन में तब्दील हुआ. लोग सेल्फी लेने के लिए उसके आगे-पीछे दौड़ने लगे थे.
बदनामियों के किस्सेख्याति के साथ नीरज के हिस्से कुछ बदनामियां भी आईं. उसे जानने वाले कुछ लोग बताते हैं कि नीरज के झगड़े शुरू हो गए थे. मारपीट और गुंडागर्दी की घटनाओं में उसका नाम आ गया था. ये सारी टशन की लड़ाइयां थीं. कुछ बार जातीय वर्चस्व से भी इन संघर्षों की सिंचाई होती थी. जानकार बताते हैं कि कभी-कभार ही ऐसा कोई हफ्ता बीतता था, जब नीरज की किसी से लड़ाई न हुई हो. मारपीट के केस पुलिस तक भी पहुंचे. साथी, पुलिस की पकड़ और नीरज के पुलिस से बचने के भी किस्से सुनाते हैं.
उनके भाई प्रीत पॉडकास्ट में बताते हैं कि एकाध केसों में पुलिस घर तक चली आई थी. उसके दुश्मन बने. दोस्तों-रिश्तेदारों ने चिंता जताई - “लोग तुम्हें मारने का प्लान बना रहे हैं.”
नीरज ने तब दोस्तों को जवाब दिया, “नीरज को बस नीरज मार सकता है.” नीरज सही कह रहा था. उसके इस अतिआत्मविश्वास और बिगड़ैल-गुंडई भरे नेचर ने उसे एक दबंग शख्सियत में भी तब्दील कर दिया था. ठेकों-नाकों पर उसके नाम लिए जाते, हर दूसरा, नीरज पेप्सू का भाई होने की दुहाई देता.
कैसे बिगड़ने लगी हालत?इन तमाम किस्म की ख्यातियों से घिरे नीरज पेप्सू का मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य अब गिरने लगा था. इसके कुछ कारण भी दोस्त-यार बताते हैं. दरअसल, फतेहपुर बेरी के ही रहने वाले प्रदीप तंवर की साल 2015 में एक हादसे में मौत हो गई थी. प्रदीप और नीरज के बीच गहरी दोस्ती थी. दोस्ती इतनी अच्छी कि प्रदीप उन कुछेक लोगों में एक था, जिसकी बात नीरज मानता था. प्रदीप की मौत से नीरज पर असर पड़ा था.
दूसरी ओर गुड़गांव में खोला गया ढाबा भी बहुत अच्छी स्थिति में नहीं था. कामधाम को सपोर्ट करने के लिए नीरज ने कुछेक दोस्तों से उधार भी ले रखा था. लेकिन साल 2020 की शुरुआत और भी बुरी खबरें लेकर आई. नीरज के पिता को कैंसर डिटेक्ट हो गया. नीरज को भी पेट में अल्सर हुआ. स्थिति और बदतर हुई, जब नीरज के पैर में फ्रैक्चर हो गया. जब खुद पर आई, तो नीरज का मनोबल टूटने लगा.
उसके भाई प्रीत एक पॉडकास्ट में बताते हैं कि वो अब तक अपने शरीर के दम पर अर्जित लोकप्रियता पर क़ाबिज़ था. चोट-नुकसान-घाव के बाद उसे लगने लगा कि अब शरीर की ताकत खत्म हो रही है. वैसा शरीर कभी नहीं बन सकेगा, जैसा पहले था. नीरज अकेले कमरे में बैठकर हरियाणवी गाना “बता मेरे यार सुदामा रे” फुल साउंड में सुना करता था. उसका मानसिक स्वास्थ्य उसके आखिरी वक्त की रील्स और वीडियोज़ में समझ आने लगा था. उसके चेहरे पर दाढ़ी और आंखों के नीचे कालापन दिखने लगा था. आवाज में पहले जैसी बात नहीं थी.
जब दे दी अपनी जान15 मार्च, 2020 का दिन. नीरज अपने घर पर ही था. घरवालों को भान था कि वो मानसिक रूप से परेशान है. इसलिए, वो लगातार उस पर नज़र बनाए रखते थे. नीरज का छोटा भाई प्रीत नहाने गया हुआ था. उस बीच ही नीरज ने अपने एक अन्य रिश्तेदार से कहा - “मैं जूस पीने जा रहा हूं.” और नीरज घर से चला गया. और उस समय ही नीरज की मां और भाई ने पूछा, “नीरज कहां है?”
पता चला कि नीरज जूस पीने गया है. प्रीत ने गाड़ी निकाली और मां से कहा कि अपने बेटे को फोन करना शुरू करो. प्रीत ने उसे कई ठिकानों पर खोजना शुरू किया. नीरज पेप्सू ने अपनी मां, भाई और किसी भी रिश्तेदार का एक भी फोन नहीं उठाया. कुछ देर बाद मां ने प्रीत को फोन किया, कहा, “घर आ जाओ.”
जब प्रीत घर पहुंचा, सामने नीरज कुर्सी पर बैठा हुआ था. मां ने बताया कि वो बाहर से आया, उसके बाद पानी मांगकर पिया और तब बैठ गया. घरवालों को समझ आ गया कि नीरज ने कुछ कर लिया है. फिर नीरज को उल्टियां शुरू हो गईं. घरवाले उसे लेकर अस्पताल भागे. उसे गाड़ी में भी उल्टियां होती रहीं. जैसे ही अस्पताल पहुंचे, शुरुआती जांच में पता चला, “नीरज ने सल्फास खा लिया है.”
प्रीत भागकर अपने भाई के पास पहुंचा. पूछा, “यह क्या कर लिया?” नीरज पेप्सू ने जवाब दिया, “अब मुझे जाने दो.” कुछ देर बाद नीरज पेप्सू की मौत की खबर आई. परिवार, शव को लेकर फतेहपुरी बेरी स्थित आवास पर आ गया. फिर आए दृश्य, अथाह भीड़ और हर जगह से रोने की आवाज़ें.
परिजनों को नीरज की डेड बॉडी छूने तक का मौका मुश्किल से मिल रहा था. नीरज के फैंस और समर्थकों ने उसे घेरकर रखा था. घर से लेकर श्मशान तक. ऐसे तय हुआ नीरज पेप्सू का रास्ता. और अब हैं इंस्टाग्राम रील, नीरज पेप्सू को समर्पित गाने और उसके नाम को लेकर चल रहीं तमाम कॉनस्पिरेसी थ्योरीज़.
वीडियो: कहानी वायरल 'नीरज पेप्सू' की, जिनकी मौत लाखों फैंस को मायूस कर गई