वक्फ (संशोधन) अधिनियम (Waqf Act 2025) की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चुनौती दी गई है. मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच के समक्ष ऐसी 73 याचिकाओं को लिस्ट किया गया है. आज यानी 16 अप्रैल की दोपहर दो बजे इन पर सुनवाई शुरू होगी.
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ अधिनियम पर सुनवाई आज, विरोध में 70 से ज्यादा याचिकाएं
Waqf Act 2025 को चुनौती देने वाली 73 याचिकाओं पर Supreme Court में सुनवाई होनी है. इस बीच सात राज्यों ने इस कानून के पक्ष में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है. वहीं केंद्र सरकार ने इस मामले में कैविएट दाखिल किया है.

सुप्रीम कोर्ट में दायर इन याचिकाओं में दो याचिकाएं ऐसी हैं जिसमें हिंदू पक्षकारों ने 1995 के मूल वक्फ अधिनियम को चुनौती दी है. शेष में हाल के संशोधन पर सवाल उठाए गए हैं. कुछ याचिकाओं में मांग की गई है कि कोर्ट का फैसला आने तक इस अधिनियम पर अंतरिम रोक लगा दी जाए.
याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, CPI, जगन मोहन रेड्डी की YSRCP, समाजवादी पार्टी, अभिनेता विजय की TVK, RJD, JDU, असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM, AAP और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग सहित विभिन्न दलों के नेता शामिल हैं.
चुनौती देने वाले नेताओं में हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी, AAP विधायक अमानतुल्ला खान, TMC नेता महुआ मोइत्रा, RJD सांसद मनोज कुमार झा और फैय्याज अहमद के साथ कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद जैसे लोग शामिल हैं.
इन याचिकाओं में कहा गया है कि ये कानून मुसलमानों के साथ भेदभाव करता है और उनके धार्मिक मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है.
7 राज्य अधिनियम के पक्ष में पहुंचे सुप्रीम कोर्टइस बीच, सात राज्यों ने अधिनियम के समर्थन में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है. उन्होंने इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है. उनका तर्क है कि ये अधिनियम संवैधानिक रूप से सही है. इसमें कोई भेदभाव नहीं है. उनका कहना है कि ये कानून वक्फ संपत्तियों के कुशल और जवाबदेह प्रशासन को सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है.
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केंद्र ने दाखिल किया कैविएटकेंद्र सरकार ने इस मामले में कैविएट दाखिल किया है. कैविएट एक कानूनी नोटिस होता है. इसका मतलब है कि कोर्ट कोई भी आदेश देने से पहले केंद्र सरकार का पक्ष सुनेगा.
संसद के दोनों सदनों में लंबी बहस के बाद, वक्फ बिल पारित हो गया. राज्यसभा में 128 सदस्यों ने इसके पक्ष में वोट किया तो वहीं 95 ने विरोध में. लोकसभा में इस अधिनियम के पक्ष में 288 वोट मिले और विरोध में 232. इसके बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिल गई. इस तरह ये बिल एक कानून बन गया.
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