सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम (Waqf Act 2025) को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं दायर की गई हैं. इस बीच 7 राज्यों ने इसके पक्ष में उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है. इन राज्यों ने इस मामले में हस्तक्षेप करने और कोर्ट के समक्ष अपनी दलीलें रखने की मांग की है. इनका तर्क है कि इस कानून से वक्फ संपत्तियों के मैनेजमेंट में सुधार होगा और पारदर्शिता बढ़ेगी.
वक्फ कानून के समर्थन में हैं 7 राज्य, सुप्रीम कोर्ट ने इन्होंने दलील क्या दी है?
Waqf Act 2025: सुप्रीम कोर्ट ऐसी 73 याचिकाओं पर सुनवाई करेगा जिनमें वक्फ कानून को चुनौती दी गई है. इस बीच 7 राज्य इस कानून के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं.

याचिकाओं में राज्यों की ओर से दी गई दलीलें इस प्रकार हैं-
मध्य प्रदेश सरकार ने इस कानून को लेकर भेदभाव, न्यायिक समीक्षा का अभाव और मनमानी के आरोपों को खारिज किया है. उन्होंने कहा है कि ये आरोप निराधार हैं. राज्य का ये भी कहना है कि ये अधिनियम जवाबदेही और शासन तंत्र की मजबूती को बढ़ाता है.
छत्तीसगढ़ की याचिका के अनुसार, अधिनियम का उद्देश्य वक्फ बोर्ड को अधिक समावेशी बनाना है. साथ ही ये सुनिश्चित करता है कि इससे वक्फ प्रशासन में विभिन्न मुस्लिम समुदायों का प्रतिनिधित्व हो. राज्य का मानना है की इस कानून से वक्फ मामलों में परिवर्तनकारी बदलाव आयेंगे.
असम सरकार का कहना है कि इस एक्ट में धारा 3E को शामिल किया गया है. इससे अनुसूचित या जनजातीय क्षेत्रों (पांचवीं या छठी अनुसूची में शामिल) में किसी भी जमीन को वक्फ घोषित नहीं किया जा सकेगा. असम में, कुल 35 में से आठ प्रशासनिक जिले संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत आते हैं.
राजस्थान सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि ये कानून पूरी तरह संवैधानिक है और इसमें कोई भेदभाव वाली बात नहीं है. बल्कि ये पारदर्शिता, निष्पक्षता और जवाबदेही के मूल्यों पर आधारित है. राज्य सरकार का कहना है कि ये धार्मिक संस्थाओं और जनता दोनों के हितों की रक्षा करने का काम करेगा. इस कानून को केवल गैरकानूनी दावों को रोकने के लिए लाया गया है. राजस्थान सरकार का कहना है कि इस एक्ट चुनौती देने वालों ने उस हकीकत को नहीं समझा है जो राज्य सरकार के सामने आती हैं.
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महाराष्ट्र, हरियाणा और उत्तराखंड ने भी ऐसी ही याचिका दायर की है. इनमें भी वही बातें दोहराई गई हैं कि इस कानून से पारदर्शिता आएगी और इससे वक्फ के कानूनी ढांचे को मजबूती मिलेगी. आज यानी 16 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में उन 73 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू होगी जिनमें इस कानून की संविधानिक वैधता को चुनौती दी गई है.
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