वक्फ (संशोधन) कानून, 2025 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती (Waqf Act in Supreme Court) देने वाली 73 याचिकाओं पर सुप्रीम में सुनवाई चल रही है. बीते कुछ समय में केंद्र सरकार के कई कानूनों को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई. बात करेंगे कि इन मामलों में हुआ क्या?
मोदी सरकार के लाए वो कानून जिन पर अंतिम फैसला कोर्ट में हुआ, पर इन फैसलों में हुआ क्या?
Waqf Amendment Act से पहले इलेक्टोरल बॉन्ड, आर्टिकल 370, CAA, EWS और NJAC को भी Supreme Court में चुनौती दी गई थी. केंद्र सरकार के इन फैसलों पर शीर्ष अदालत ने क्या-क्या कहा था?
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शुरुआत इलेक्टोरल बॉन्ड से करेंगे. मोदी सरकार ने 2017 में इसकी घोषणा की. 29 जनवरी, 2018 को इसे लागू कर दिया गया. इसके तहत राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए SBI की कुछ शाखाओं से बॉन्ड खरीदे जा सकते थे. इससे चंदा देने वाले की पहचान छिपी रहती थी. इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. फरवरी 2024 में कोर्ट ने इस मामले पर अपना फैसला सुनाया. इस प्रावधान को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार, ECI और SBI के लिए कुछ सख्त कॉमेंट भी किए थे.
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जम्मू-कश्मीर को आर्टिकल 370 के जरिए विशेष दर्जा दिया गया था. अगस्त 2019 में केंद्र की भाजपा सरकार ने संसद से इस कानून को निष्प्रभावी बनाने का बिल पास करा लिया. इस तरह जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष दर्जा खत्म हो गया. ये मामला भी सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा. कोर्ट ने कहा कि इस मामले की सुनवाई उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक बेंच करेगी. मामला कोर्ट में लगभग 4 साल तक रहा. कोरोना की वजह से भी देरी हुई. अगस्त और सितंबर 2023 में कोर्ट ने 16 दिन इस केस को सुना. 11 दिसंबर 2023 को अदालत का फैसला सुनाया. उन्होंने केंद्र सरकार के इस फैसले को सही ठहराया.
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शीर्ष अदालत के इस फैसले पर समीक्षा की मांग की गई. मई 2024 में कोर्ट ने इन तमाम याचिकाओं को खारिज कर दिया. तत्कालीन CJI चंद्रचूड़ की बेंच ने ही दोनों फैसले सुनाए. कोर्ट ने कहा कि दिसंबर 2023 का फैसला सुनाने में शीर्ष अदालत से कोई गलती नहीं हुई थी.
11 दिसंबर, 2019 को केंद्र सरकार ने संसद से CAA पारित करा लिया. इसके जरिए 31 दिसंबर 2014 से पहले देश में आए, गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने की घोषणा की गई. इसके विरोध में देश भर में प्रदर्शन हुए. विरोध प्रदर्शन का केंद्र रहा दिल्ली. राष्ट्रीय राजधानी में महीनों तक प्रोटेस्ट चले. 2020 की शुरुआत में पूर्वोत्तर दिल्ली में हिंसक दंगे भी हुए. कई लोगों की जान चली गई, सैकड़ों लोग घायल भी हुए थे. फिर 11 मार्च, 2024 को केंद्र ने एक नोटिफिकेशन के जरिए इस कानून को पूरे देश में लागू कर दिया.
2020 में इस कानून पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में 140 से ज्यादा याचिकाएं दायर की गईं. कोर्ट ने इन सारी याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि इस पर फिलहाल कोई रोक नहीं लगाई जाएगी. लेकिन जरूरत पड़ने पर मामले को संविधान बेंच को सौंपा जा सकता है. अब भी शीर्ष अदालत में कुछ ऐसी याचिकाएं पेंडिंग हैं जिनमें CAA को चुनौती दी गई है.
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EWS
8 जनवरी, 2019 को केंद्र सरकार EWS के लिए आरक्षण वाले बिल को लोकसभा में पेश किया. 9 जनवरी को लोकसभा से और 10 जनवरी को ये राज्यसभा से पास हो गया. 12 जनवरी को इस पर तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस पर दस्तखत किए. एक गजट नोटिफिकेशन के जरिए, 14 जनवरी से ये पूरे देश में लागू हो गया.
इसके जरिए सरकारी शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण मिला. पात्रता है- वैसे सवर्ण जिनके परिवार की सालाना आय 8 लाख से कम है. मोदी सरकार के इस फैसले पर भी बहस हुई. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. कहा गया कि ये असंवैधानिक है.
7 नवंबर, 2022 को तत्कालीन CJI यूयू ललित के आखिरी कार्य दिवस पर शीर्ष अदालत ने अपना फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली संवैधानिक पीठ ने 3:2 के मत से EWS आरक्षण को संवैधानिक मान लिया. यानी कि तीन जजों ने EWS कोटे से सहमति जताई और दो ने असहमति. तत्कालीन CJI यूयू ललित ने असहमति जताई थी.
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NJACनेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन (NJAC) का प्रपोजल UPA सरकार में तैयार किया गया. लेकिन 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद इसे संसद में पास करा लिया गया. इसके तहत जजों की नियुक्ति के लिए मौजूद कॉलेजियम सिस्टम को खत्म होना था. इसके बाद जजों की भर्ती NJAC के तहत होती. 'सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन' (SCAORA) ने बिना किसी देरी के इसे शीर्ष अदालत में चुनौती दे दी. फैसला आया 16 अक्टूबर, 2015 को. कोर्ट ने इसे अंसवैधानिक घोषित कर दिया.
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