अमेरिका से डिपोर्ट किए गए 104 भारतीयों (Indians Deported by US) में से कई लोग पिछले महीने या दिसंबर के अंत में मैक्सिको-अमेरिका बॉर्डर पर पहुंचे थे. इंडियन एक्सप्रेस ने ये जानकारी डिपोर्ट हुए कई लोगों से बातचीत और पुलिस सूत्रों के हवाले से दी है. 5 फरवरी को अमेरिका का मिलिट्री एयरक्राफ्ट ‘C-17 ग्लोबमास्टर’ इन प्रवासी भारतीयों को लेकर अमृतसर पहुंचा.
"डंकी रूट पर लाखों खर्च करते हैं लेकिन एक ही साल में कमा भी लेते हैं" अवैध तरीके से अमेरिका क्यों और कैसे जाते हैं लोग?
America Deported Indians: अमेरिका ने 104 भारतीयों को डिपोर्ट किया है. रिपोर्ट है कि अभी हजारों भारतीयों को डिपोर्ट किया जाना बाकी है. सवाल है कि लोग मैक्सिको-अमेरिका बॉर्डर तक कैसे पहुंच रहे हैं? 'डंकी रूट' पर लाखों रुपये खर्च करके देश छोड़ने का कारण क्या है?

इन 104 लोगों में 30 पंजाब से हैं और 33 गुजरात से. और इनमें गुजरात और पंजाब के कम से कम पंद्रह-पंद्रह लोग ऐसे हैं जिनको मैक्सिको-अमेरिका बॉर्डर पर पकड़ा गया था. रिपोर्ट है कि ये लोग डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन के सख्त सीमा नियंत्रण के बीच अमेरिका में घुसने की कोशिश कर रहे थे.
डिपोर्ट हुए लोगों ने बताया कि उन्होंने अमेरिका पहुंचने के लिए 30 लाख रुपये से लेकर 1 करोड़ रुपये तक खर्च किए थे. इसमें अन्य खर्चों के साथ एजेंट का फीस भी शामिल है. अधिकांश लोगों ने ‘डंकी रूट’ से अमेरिका पहुंचने की कोशिश की थी. ‘डंकी रूट’ गैरकानूनी रास्ते होते हैं जिससे कई लोग चोरी-छिपे विदेश जाने की कोशिश करते हैं. ये रास्ते सिर्फ गैरकानूनी ही नहीं होते, बल्कि खतरनाक और मुश्किलों से भी भरे होते हैं. कई मामलों में इन रास्तों पर लोगों की हत्याएं और रेप हुए हैं. इस रूट में हर नए मोड़ पर नए एजेंट जुड़ते हैं और मोटा पैसा ऐंठते हैं.
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पंजाब के लोग कैसे पहुंचे अमेरिका?पंजाब के मोहाली के जुरैत गांव के रहने वाले 21 साल के प्रदीप सिंह छह महीने पहले घर से निकले थे. 42 लाख रुपये खर्च करने के बाद वो मैक्सिको-अमेरिका बॉर्डर तक पहुंच गए. लेकिन दो सप्ताह पहले उनको गिरफ्तार कर लिया गया.
ऐसे ही कई और उदाहरण भी हैं. फतेहगढ़ साहिब के काहनपुर गांव के 30 साल के जसविंदर सिंह पिछले साल अक्टूबर में घर से निकले थे. 50 लाख रुपये खर्च करने के बाद 15 जनवरी को वो बॉर्डर पर पहुंच गए. पटियाला के अहरू गांव के 18 साल के अमृत सिंह आठ महीने पहले रवाना हुए और जनवरी के मध्य में बॉर्डर पर पहुंचे. दोनों को वहीं पकड़ लिया गया.
एक उदाहरण 36 साल के जसपाल सिंह का भी है जो गुरदासपुर के हरदोवाल गांव के रहने वाले हैं. उन्होंने ब्राजील में छह महीने का वक्त बिताया और 30 लाख रुपये खर्च किए. इसके बाद 24 जनवरी को वो मैक्सिको-अमेरिका बॉर्डर पर गिरफ्तार कर लिए गए. होशियारपुर के टाहली गांव के 40 साल के हरविंदर सिंह ने 42 लाख रुपये खर्च किए और 15 जनवरी को अमेरिकी बॉर्डर पर पहुंचे. 21 साल की मुस्कान स्टडी परमिट पर इंग्लैण्ड में थीं. उन्होंने वहां से अमेरिका में प्रवेश करने की कोशिश की और 15 जनवरी को पकड़ी गईं. ऐसे ही राजपुरा और पटियाला के दो अन्य लोग भी पिछले साल घर से निकले थे. लेकिन दोनों पिछले महीने बॉर्डर पर गिरफ्तार कर लिए गए.
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महिलाएं भी गिरफ्तार हुईंकपूरथला जिले के भादस गांव की रहने वालीं लवप्रीत कौर 1 जनवरी को अपने नाबालिग बेटे के साथ निकली थीं. उन्हें अपने पति से मिलने जाना था. कानूनी तरीके से अमेरिकी बॉर्डर को पार करने के लिए उन्होंने कुछ समय के लिए मिलने वाले शेंगेन वीजा का इस्तेमाल किया. 27 जनवरी को अमेरिकी अधिकारियों ने उनको गिरफ्तार कर लिया. करीब 1 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद 5 फरवरी को उनको डिपोर्ट कर दिया गया.
गुजरात के लोगों की कहानीगुजरात के वडोदरा की रहने वालीं 29 साल की एक महिला को भी डिपोर्ट किया गया. वो जनवरी की शुरुआत में अपने घर से निकली थीं. उनकी मां ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उनकी बेटी ने उनसे कहा था कि सब कुछ ठीक चल रहा है. इसके बाद कई दिनों तक उनसे संपर्क नहीं हो सकता. फिर कुछ दिनों पहले पता चला कि उनको डिपोर्ट किया जा रहा है.
गुजरात पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि डिपोर्ट हुए गुजरात के परिवारों में कुछ ऐसे परिवार भी हैं जो काफी लंबे समय से अमेरिका में रह रहे थे. एक परिवार 6 महीने से अमेरिका में रह रहा था. जबकि एक दंपति को उनके एक नाबालिग बच्चे के साथ डिपोर्ट कर दिया गया जो लगभग 6 साल से वहां रह रहे थे. बच्चे का जन्म भी अमेरिका में ही हुआ था.
अधिकारी ने ये भी बताया कि एक परिवार ने यूरोपीय देशों के लिए कानूनी पर्यटक वीजा के लिए पैसे दिए थे. लेकिन फिर एजेंटों की सलाह पर अमेरिकी बॉर्डर पर पहुंच गए लेकिन बॉर्डर पार नहीं कर पाए.
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दलालों का नेटवर्क फैला हैशुरुआती जानकारी के आधार पर अधिकारी ने बताया कि 20 साल से अधिक उम्र के कुछ युवकों को दलालों ने निशाना बनाया. दलालों ने अधिकारियों के सामने उनको अपने मित्रों के समूह के रूप में दिखाया. और फिर अधिकांश को पर्यटक वीजा पर पहले यूरोपीय देशों में भेजा.
विदेशी शिक्षा सलाहकार विनय कुमार हरि का कहना है कि 104 भारतीयों का निर्वासन तो बस शुरुआत है. उन्होंने बताया कि वर्तमान में 20,000 से ज्यादा ऐसे भारतीय हैं जिनके पास दस्तावेज नहीं हैं और जो अमेरिका से निर्वासन की आशंका का सामना कर रहे हैं.
क्यों जाना चाहते हैं अमेरिका?भारतीय किसान यूनियन (क्रांतिकारी) की महासचिव सुखविंदर कौर ने कहा कि डॉलर और रुपये का अंतर ही विदेशी सपनों के पीछे भागने पर मजबूर कर देता है. ‘डंकी रूट’ पर लोग लाखों रुपये खर्च करते हैं लेकिन कई लोग एक साल में ही इस लागत को वसूल लेते हैं. वहीं कई लोगों को दो-तीन साल लग जाते हैं. उन्होंने कहा कि देश को ऐसी शर्मिंदगी से बचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को रोजगार के अवसर पैदा करने चाहिए.
लोक भलाई पार्टी के अध्यक्ष बलवंत सिंह रामूवालिया ने ट्रैवल एजेंटों पर लोगों का शोषण करने का आरोप लगाया. उन्होंने जनप्रतिनिधियों से उनके खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया.
पंजाब के एसोसिएशन ऑफ कंसल्टेंट्स फॉर ओवरसीज स्टडीज के कार्यकारी समिति के सदस्य नितिन चावला ने कुछ सवाल उठाए हैं. उन्होंने पूछा है कि आखिर माता-पिता अवैध प्रवास को क्यों प्रोत्साहित करते हैं. ऐसे बहुत से लोग ‘इंटरनेशनल इंग्लिश लैंग्वेज टेस्टिंग सिस्टम’ (IELTS) की परीक्षा पास नहीं कर पातें. उन्होंने कहा कि अगर उन्हें अंग्रेजी बोलने में दिक्कत होती है, तो वो विदेश में कैसे रह पाएंगे.
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