सऊदी अरब, नाम सुनते ही जेहन में सबसे पहले क्या आता है? मक्का और मदीना के पवित्र स्थल, शानदार सड़कों पर फर्राटा भरती सोने, हीरों से मढ़ी कारें, वहां का मशहूर फुटबॉल क्लब Al-Hilal SFC या पालतू कुत्ते की तरह तेंदुए को टहलाते शेख. ये सब है सऊदी अरब में. साथ इस देश के कड़े कानून भी अक्सर चर्चा में रहते हैं. साथ ही चर्चा में रहते हैं यहां के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान जिन्हें MBS के नाम से ख्याति प्राप्त है. तेल की खोज से पहले ये देश कुछ और था, लेकिन तेल मिलते ही इसकी काया पलटने लगी. तो समझते हैं कि तेल मिलने से पहले ये देश कैसा था? सऊदी राजघराना जिसे हाउस ऑफ सऊद कहा जाता है, क्या है इसका इतिहास?
रेगिस्तान से आलीशान महलों का सफर, क्या है सऊदी अरब के शाही परिवार का इतिहास?
Saudi Arabia के क्राउन प्रिंस Muhammad Bin Salman के पास सऊदी के अलावा फ्रांस में 300 मिलियन डॉलर का एक महल है. साथ 500 मिलियन डॉलर का एक Private Yacht भी है.


दुनिया के नक्शे पर देखें सऊदी अरब वेस्ट एशिया के मुहाने पर बसा है. क्षेत्रफल के लिहाज से ये वेस्ट एशिया का सबसे बड़ा देश है. पश्चिमी किनारे पर रेड सी माने लाल सागर है. लाल सागर के उस पार से शुरू हो जाता है अफ्रीका. सऊदी अरब की जमीनी सीमा आठ देशों से लगती है- जॉर्डन, इराक़, कुवैत, बहरीन, क़तर, यूएई, ओमान और यमन. जमीनी सीमा का विस्तार 4 हजार 272 किलोमीटर है, जबकि तटीय सीमा 2 हजार 640 किलोमीटर लम्बी है.

नक्शा समझ लिया तो अब थोड़ा आंकड़ों पर गौर कर लेते हैं. जैसे सऊदी अरब की कुल आबादी करीब तीन करोड़ साठ लाख है. आधिकारिक भाषा अरबी है. सऊदी में 93 फीसदी लोग इस्लाम धर्म को मानते हैं जिसमें अधिकतर सुन्नी हैं. 4 फीसदी ईसाई और बाकी बचे 3 प्रतिशत अन्य धर्मों के लोग हैं. राजधानी रियाद है और यही सबसे बड़ा शहर भी है.
इस देश की कहानी और पॉलिटिकल सिस्टम काफ़ी दिलचस्प है. सऊदी अरब में राजतंत्र है. इसे चलाने वाली फ़ैमिली को ‘हाउस ऑफ़ सऊद’ के नाम से जाना जाता है. इस शाही परिवार में 15 हज़ार से ज़्यादा सदस्य हैं. इन सदस्यों का ताल्लुक पहले सऊदी स्टेट के संस्थापक मोहम्मद बिन सऊद से है. सऊदी अरब में सबसे बड़ा पद राजा का है. उसके बाद क्राउन प्रिंस का नंबर आता है. क्राउन प्रिंस ही सऊदी अरब में अगले राजा बनते हैं. सऊदी अरब की पूरी लीडरशिप हाउस ऑफ़ सऊद से ही आती है. पर ये हाउस ऑफ़ सऊद क्या है? ये राजघराना मुहम्मद बिन सऊद अल मुकरिन के वंशजों से बना है. इसलिए इसे हाउस ऑफ़ सऊद कहते हैं.
इस्लाम से पहले
सऊदी अरब के इतिहास में जाएं तो यहां ज्यादातर लोग रेगिस्तान में रहते थे. उन्हें बद्दू कहते थे. बद्दू समुदाय के लोग कई गुटों में बंटे थे. ईसा के बाद लगभग तीसरी शताब्दी में बद्दू जनजाति में एक परिवर्तन हुआ. ये लोग एकजुट हुए और इनकी ताक़त में इज़ाफ़ा हुआ. इसके बाद इन्होंने सैन्य अभियान चलाने शुरू किए. बाकायदा पांचवी शताब्दी आते आते ये इतने ताकतवर हो गए कि इन्होंने सीरिया, फिलिस्तीन, जेरुसलम पर हमले भी दिए. फिर जब इस्लाम का उदय हुआ, इस इलाके पर मुस्लिम खलीफाओं का कब्ज़ा हो गया. अरब में दो हिस्से थे, हेजाज़ और नजद. हेजाज़ में मक्का मदीना और जेद्दा जैसे शहर आते हैं. वहीं नजद के इलाके में रियाद जैसे शहर आते हैं.
शुरुआत में मक्का और मदीना से इस्लामिक खिलाफत का शासन चलता था. लेकिन खिलात-ए-राशिदा खत्म होने के बाद इस्लामिक साम्राज्य का केंद्र दमिश्क और बगदाद जैसे शहरों में शिफ्ट हो गया. इस्लामिक खलीफाओं के बाद अरब पर मिस्र और ऑटोमन साम्राज्य ने शासन किया. साल 1557 में हेजाज़ पर तुर्कों का नियंत्रण हुआ. तुर्कों के सुल्तान सलीम ने खुद को मक्का का रक्षक कहा. पर अरब का दूसरा इलाका नजद आजाद रहा.

हाउस ऑफ़ सऊद
साल था 1744. ये वो दौर था जब सऊदी अरब में ऑटोमन साम्राज्य का शासन चलता था. यहां दिरिया नाम के इलाके में एक कबीलाई शासन चलता था. इस कबीले के लीडर थे मोहम्मद बिन सऊद, उनकी ऑटोमन से ज़रा भी नहीं बनती थी. वो ऑटोमन के राज से आज़ादी चाहते थे. इसके लिए उन्होंने मोहम्मद इब्न अब्दुल वहाब नाम के धर्म गुरु से हाथ मिलाया और दिरिया में ही अपना खुद का राज्य स्थापित कर दिया. मोहम्मद बिन सऊद खुद इसके अमीर यानि मुखिया बने. हालांकि राज्य में अब्दुल वहाब का प्रभाव बना रहा. अब्दुल वहाब इलाके में प्रसिद्ध धर्म गुरु थे.
अब्दुल वहाब के ऑटोमन से धार्मिक और राजनैतिक मतभेद थे. उन्होंने अपने पत्रों में बिना ऑटोमन का नाम लिए इसका ज़िक्र भी किया था. वो ऑटोमन से आज़ादी तो चाहते थे लेकिन उनसे सीधा पंगा भी नहीं लेना चाहते थे. उन्हें पता था कि अगर मुस्लिम दुनिया में अपना प्रभुत्व बढ़ाना है तो मक्का और मदीना का कंट्रोल ऑटोमन के हाथ से छीनना ज़रूरी होगा. इसी वजह से सऊद ने धीरे-धीरे दिरिया का विस्तार करना शुरू किया. इसकी भनक ऑटोमन को लगी और दोनों के बीच संघर्ष शुरू हो गया.
ये जंग 1811 से 1818 तक चली. इसमें सऊद बीस साबित हुए. जंग में उन्हें फतह मिली और इस तरह मोहम्मद बिन सऊद ने मक्का और मदीना का कंट्रोल अपने हाथों में ले लिया. लेकिन ऑटोमन ने हार नहीं मानी थी. उन्होंने पूरी तैयारी के साथ दिरिया में हमले का प्लान बनाया. अपने 50 हजार सैनिकों को दिरिया शहर भेजा. खूब काट मार हुई. पूरे शहर को तहस नहस कर दिया. जीते हुए इलाके के अमीर अब्दुल्लाह बिन सऊद को इस्तांबुल लाया गया जहां सबके सामने उनका सिर धड़ से अलग कर दिया गया.
पर ये सऊद के परिवार का अंत नहीं था. मोहम्मद बिन सऊद के बेटे अब्दुल्लाह बिन मोहम्मद अल सऊद किसी तरह ऑटोमन सिपाहियों से जान बचाकर दिरिया से निकलने में कामयाब रहे और कुछ साल बाद उन्होंने एक नए साम्राज्य की स्थापना की. इस नए साम्राज्य में पुराने दिरिया के भी कुछ इलाके थे. इस नए-नवेले अमीरात की राजधानी बनाया गया रियाद को. कुछ सालों तक सब सही चला फिर 1891 की लड़ाई में अब्दुल रहमान को रशीदी कबीले से हार का सामना करना पड़ा.
अब्दुल रहमान उस समय दिरिया के शासक थे. लड़ाई में अब्दुल रहमान अपने परिवार के साथ जान बचाने के इरादे से रेगिस्तान में चले गए और उन्होंने पहले बेदूइन कबीले और फिर आज के कुवैत में शरण ली. सन 1900 में लड़ाई हारने के बाद अब्दुल रहमान ने सत्ता और राजशाही की जगह अब्दुल वहाब की विचारधारा पर चलना सही समझा. इस तरह वो पूरे कबीले के राजा नहीं बल्कि धार्मिक नेता बन गए.

राजघराना
इसके बाद कहानी शुरू होती है आज के सऊदी राजघराने की. अब्दुल रहमान के बेटे अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल रहमान ने परिवार की कमान संभाली. इन्हें ही अब्दुल अज़ीज़ के नाम से भी जाना जाता है. 1901 से शुरू कर उन्होंने उन इलाकों को वापस से जीतना शुरू किया जिन पर कभी उनके पुरखों का शासन था. उन्होंने उन इलाकों पर भी वापस से कब्जा किया जो रशीदी कबीले के कब्जे में चले गए थे. पर अभी तक उनके कब्जे में राजधानी रियाद नहीं आई थी. रियाद अब भी रशीदियों के कब्जे में था. फिर साल 1902 में अब्दुल अज़ीज़ ने रशीदियों पर पूरी तरह फतह हासिल कर ली.
पूरी तरह कब्जा होने के बाद अब्दुल अज़ीज़ ने अपने राज्य को मजबूत करना शुरू किया. ऑटोमन के हमले हमेशा होते रहते थे लिहाज़ा उन्हें एक मजबूत डिफेंस की जरूरत थी. अभी ये सब चल ही रहा था कि पहला विश्वयुद्ध शुरू हो गया. इसमें हाउस ऑफ सऊद ने ब्रिटेन का साथ दिया. वजह, दोनों का दुश्मन एक था, ऑटोमन साम्राज्य. इस लड़ाई के बाद ब्रिटिश ने सऊद को खूब असलहा दिया. इसके बाद अब्दुल अज़ीज़ ने मक्का का कंट्रोल हाश्मियों से अपने हाथ ले लिया.

सब ठीक चल रहा था तभी 1927 में कहानी में एक और ट्विस्ट आया. अब्दुल वहाब के कट्टर समर्थकों ने हाउस ऑफ सऊद के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया. ये कहकर की वो बस धन इकट्ठा करने में मशगूल हैं और उनका इस्लाम से कोई मतलब नहीं रह गया है. लेकिन अब्दुल अज़ीज़ ने इस विरोध को दबा दिया. फिर साल आया 1932 और अब्दुल अज़ीज़ ने राज्य का विस्तार किया. आसपास के तीन राज्यों को मिलाकर स्थापना की गई एक सिंगल स्टेट की. इसी को आज 'किंगडम ऑफ सऊदी अरब' नाम से जाना गया.

तेल की खोज
कहते हैं किस्मत बदलने के एक पल ही बहुत है. यही हुआ सऊदी अरब के साथ. 1938 में एक ऐसी खोज हुई जिसने इस राजशाही का कद न सिर्फ उस क्षेत्र में बल्कि पूरी दुनिया में बहुत ज्यादा बढ़ा दिया. ये थी तेल की खोज. यहां एक के बाद एक तेल के इतने भंडार मिले जितने नॉर्थ और साउथ अमेरिका में मिलाकर भी नहीं थे. इसलिए सऊदी और अमेरिका ने मिलकर अरब अमेरिकन ऑयल कंपनी ARAMCO बनाई. 1947 आते-आते इसका प्रोडक्शन 4 लाख बैरल प्रतिदिन तक पहुंच गया.

इसी दौरान वर्ल्ड वॉर 2 भी छिड़ गया था. पर इस बार अब्दुल अज़ीज़ तटस्थ रहे. हालांकि उन्होंने मित्र देशों की सेनाओं को सपोर्ट तो किया पर वो खुद की सहभागिता से बचते रहे. पर राज इतनी आसानी से नहीं चलता. ये अरब में काफ़ी उथल-पुथल का दौर था. इजरायल का जन्म हो चुका था. मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल नासिर पूरे अरब वर्ल्ड को ये कह रहे थे कि यहां से निकलने वाले तेल पर पहला हक़ अरबों का हक है न कि अमरीकन या ब्रिटिश का.

साल 1953 में किंग अब्दुल अजीज़ की मौत के बाद उनके बेटे किंग बने. इनका नाम भी अब्दुल अज़ीज़ ही था. नए किंग का अपने भाई फैसल के साथ झगड़ा था. अब्दुल अज़ीज़ अपना इलाज कराने यूरोप गए थे, तभी उनके भाई प्रिंस फैसल ने कुछ धर्मगुरुओं की मदद से सत्ता पर कब्जा कर लिया. धार्मिक गुरुओं ने फैसल के पक्ष में एक फतवा जारी कर दिया जिससे वो सत्ता पर काबिज हो गए. अब्दुल अज़ीज़ को जबरन निर्वासन में भेज दिया. उन्होंने इस दौरान काफ़ी वक्त मिस्र में बिताया जहां से वो फैसल के ख़िलाफ़ खूब भाषण देते थे.
इधर सऊदी में फैसल ने बदलावों की शुरुआत की. वो सोशलिज़म और कम्युनिज़्म से नफरत करते थे इसलिए उन्होंने अरब में राजशाही को प्रमोट करना शुरू किया. साथ ही यमन में उन्होंने मिस्र के खिलाफ प्रॉक्सी वॉर भी लड़ना शुरू किया क्योंकि अब्दुल अज़ीज़ को शरण देने की वजह से वो मिश्र के नासिर से नाराज थे.
साल 1975 में फैसल को अमेरिका से लौटे उन्हीं के भतीजे ने पॉइंट ब्लैंक रेंज पर गोली मार दी. उसे भी सऊदी में सार्वजनिक फांसी दे दी गई. इसके बाद खालिद बिन अब्दुल अज़ीज़ अल सऊद , सऊदी अरब के नए राजा बने. वर्तमान में सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ अल सऊद, सऊदी अरब के राजा हैं और इन्हीं के बेटे मोहम्मद बिन सलमान सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस हैं. क्राउन प्रिंस ही सऊदी में अगले राजा बनते हैं.
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