सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक टिप्पणी पर स्वत: संज्ञान लिया है. पिछले दिनों जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने कहा था, “पीड़िता के स्तनों को पकड़ना, उसके पाजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना… बलात्कार या बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है.”
'ब्रेस्ट पकड़ना रेप नहीं', अब सुप्रीम कोर्ट में इलाहबाद हाईकोर्ट की इस टिप्पणी पर होगी सुनवाई
Supreme Court ने वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता की चिट्ठी के आधार पर स्वत: संज्ञान लिया है. इससे पहले इस मामले को लेकर सर्वोच्च अदालत में एक जनहित याचिका डाली गई थी. जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस पीबी वराले की पीठ ने इस याचिका को खारिज कर दिया था.

कोर्ट की इस टिप्पणी पर विवाद खड़ा हो गया. सुर्खियां बनीं. लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र लिखा. शोभा 'वी द वूमेन ऑफ इंडिया' की संस्थापक भी हैं. इसी चिट्ठी के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लिया है. 26 मार्च को जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच के समक्ष इस मामले को लिस्ट किया जाना है.
मामला क्या है?उत्तर प्रदेश के कासगंज के पवन और आकाश पर साल 2021 में रेप के प्रयास के आरोप लगे. आरोप के मुताबिक, दोनों ने एक नाबालिग लड़की को लिफ्ट दिया. इसके बाद पीड़िता के ब्रेस्ट को छुआ, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ा और पुलिया के नीचे खींचा. पीड़िता को कुछ राहगीरों ने बचा लिया. आरोपी मौके से भागने पर मजबूर हो गए.
इन दोनों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (रेप) और POCSO एक्ट (बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से सुरक्षा कानून) की धाराओं के तहत केस दर्ज हुआ था. निचली अदालत ने दोनों को समन किया. आरोपियों ने हाईकोर्ट में इस समन को चुनौती दी. आरोपियों ने हाईकोर्ट में तर्क दिया कि उनके खिलाफ जिन धाराओं में केस दर्ज हुआ है, वो उन पर लगे आरोपों से ज्यादा हैं.
हाईकोर्ट ने भी इस पर सहमति दिखाई. 17 मार्च, 2025 को दिए आदेश में जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने कहा,
रेप के प्रयास का आरोप लगाने के लिए ये साबित करना होगा कि ये तैयारी के चरण से आगे की बात थी. अपराध करने की तैयारी और वास्तविक प्रयास के बीच अंतर होता है.
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“लेक्चरबाजी ना करें वकील…”ध्यान रहे कि इससे पहले भी इस मामले को लेकर सर्वोच्च अदालत में एक जनहित याचिका डाली गई थी. याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार और इलाहाबाद हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दे कि वो फैसले के इस विवादित हिस्से को हटा कर रिकॉर्ड में दुरुस्त करे. इसके साथ ही जजों की ओर से की जाने वाली ऐसी विवादित टिप्पणियों को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट अपनी तरफ से दिशानिर्देश जारी करे.
हालांकि, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस पीबी वराले की पीठ ने इस याचिका को खारिज कर दिया था. जस्टिस त्रिवेदी ने कहा कि वकीलों को इस तरह के मुद्दों पर ‘लेक्चरबाजी’ नहीं करनी चाहिए.
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