सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक नाबालिग लड़के की हत्या और यौन उत्पीड़न (Sexual harassment) के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति की मौत की सजा को रद्द कर दिया. और उसे बिना किसी छूट के 25 साल के कठोर कारावास की सजा भुगतने का आदेश दिया. दोषी शख्स ने साल 2016 में गुजरात के भरूच जिले में इस घटना को अंजाम दिया था. जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की तीन जजों की बेंच ने कहा कि दोषी के सुधार की संभावना को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य मूल्यांकन के अनुसार दोषी को अपने अपराध के लिए पश्चाताप महसूस हुआ था.
नाबालिग के यौन उत्पीड़न और मर्डर में मिली थी सजा-ए-मौत, सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद में बदला
Supreme Court ने कहा कि यह अपराध शैतानी प्रकृति का था. लेकिन ये मामला मृत्युदंड दिए जाने के लिए 'Rarest of Rare' की श्रेणी में नहीं आता.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि भले ही अपीलकर्ता शंभूभाई रायसंगभाई पढियार द्वारा द्वारा किया गया अपराध शैतानी प्रकृति का था. लेकिन ये मामला मृत्युदंड दिए जाने के लिए 'दुर्लभतम से भी दुर्लभतम' (Rarest of Rare) श्रेणी में नहीं आता. सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा,
इसमें कोई संदेह नहीं है कि अपीलकर्ता द्वारा किया गया अपराध शैतानी प्रकृति का था. समग्र तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए हम मानते हैं कि वर्तमान मामला ऐसा नहीं है जिसमें यह कहा जा सके कि सुधार की संभावना पूरी तरह से खारिज हो गई है. आजीवन कारावास का विकल्प भी समाप्त नहीं किया गया है.
कुछ अतिरिक्त कारकों पर विचार करने के बाद कोर्ट ने यह भी कहा कि आजीवन कारावास की सजा जो व्यवहारिक रूप से लगभग 14 साल की होगी. इस मामले में पर्याप्त नहीं है. इसलिए कोर्ट ने मौत की सजा को बिना किसी छूट के 25 साल के कठोर कारावास में बदल दिया.
याचिकाकर्ता को चार वर्षीय बालक की हत्या और यौन उत्पीड़न के लिए दोषी ठहराया गया था. जो 2016 में मृत पाया गया था. बच्चे का नग्न शव एक दरगाह के पीछे झील के पास मिला था. एक ट्रायल कोर्ट ने उसे अपराध का दोषी पाया. और उसे मौत की सजा सुनाई. अपराध की जघन्य प्रकृति को देखते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा.
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इसके बाद दोषी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की. जिसने रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों की जांच के बाद दोषसिद्धि को बरकरार रखा. सुप्रीम कोर्ट ने माना की अपीलकर्ता को दोषी साबित करने के लिए पर्याप्त और पूर्ण परिस्थितिजन्य साक्ष्य मौजूद थे. कोर्ट ने इस बात को ध्यान में रखते हुए कि घटना के समय उसकी उम्र मात्र 24 साल थी. और उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं था. दोषी की मृत्युदंड की सजा कम करने का फैसला किया.
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