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'कविता राष्ट्र विरोधी नहीं पुलिस को इसे पढ़ना और समझना चाहिए', इमरान प्रतापगढ़ी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला

Supreme Court ने कांग्रेस के राज्यसभा MP Imran Pratapgarhi की दायर की गई याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा है. उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई एक कविता को लेकर गुजरात पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR रद्द करने की मांग की थी.

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इमरान प्रतापगढ़ी ने सुप्रीम कोर्ट से FIR रद्द करने की मांग की थी. (इंडिया टुडे, फाइल फोटो)

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 3 मार्च को कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ( Imran Pratapgarhi) के खिलाफ इस साल की शुरुआत में एक इंस्टाग्राम पोस्ट को लेकर दर्ज की गई FIR को लेकर गुजरात पुलिस को फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा कि संविधान के अस्तित्व में आने के 75 साल बाद कम से कम अब तो पुलिस को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समझना होगा.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने इमरान प्रतापगढ़ी द्वारा याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. इस याचिका में उन्होंने गुजरात पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR रद्द करने की मांग की थी. अभियोजन पक्ष के मुताबिक, जामनगर में एक शादी समारोह में हिस्सा लेने के बाद इमरान प्रतापगढ़ी ने एक वीडियो इंस्टाग्राम पर अपलोड किया था. इसमें बैकग्राउंड में 'ऐ खून के प्यासे बात सुनो कविता' सुनाई दे रही थी. कविता के शब्दों को आपत्तिजनक मानकर इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ FIR दर्ज कराई गई थी.

जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस भुइयां की बेंच ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐ खून के प्यासे बात सुने कविता वास्तव में अहिंसा का संदेश दे रही है. साथ ही बेंच ने कहा कि पुलिस को  FIR दर्ज करने से पहले थोड़ी संवेदनशीलता दिखानी चाहिए थी. जस्टिस ओक ने कहा, 

यह वास्तव में अहिंसा को बढ़ावा देता है. इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है. इसका किसी भी राष्ट्र विरोधी गतिविधि से कोई लेना-देना नहीं है. पुलिस ने इस मामले में संवेदनशीलता की कमी दिखाई है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात स्टेट की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हो सकता है कि लोगों ने कविता का अर्थ अलग तरीके से समझा हो. इस पर जस्टिस ओक ने कहा कि यही समस्या है कि अब किसी को भी रचनात्मकता का सम्मान नहीं है. अगर आप इसे ठीक ढंग से पढ़े तो इसमें कहा गया है कि अगर आप अन्याय भी सहते हैं तो उसे प्यार से सहते हैं. जस्टिस ओक ने बताया, 

कविता का शाब्दिक अर्थ यह है कि जो खून के प्यासे हैं, वे हमारी बात सुनें. अगर न्याय की लड़ाई में अन्याय भी मिले तो हम उस अन्याय का जवाब प्यार से देंगे.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता का तर्क था कि कविता उनकी सोशल मीडिया टीम ने अपलोड की थी. हालांकि उन्हें टीम के किए गए काम की जिम्मेदारी लेनी चाहिए. जस्टिस ओक ने कहा, 

 पुलिस को इस मामले में संवेदनशीलता दिखानी चाहिए थी. उन्हें कम से कम पढ़ना और समझना चाहिए. संविधान के अस्तित्व में आने के 75 साल बाद कम से कम अब तो पुलिस भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समझना होगा.

इमरान प्रतापगढ़ी की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से गुजरात हाईकोर्ट के उस फैसले के बारे में टिप्पणी करने का आग्रह किया, जिसमें मामला रद्द करने से इनकार कर दिया गया था. तुषार मेहता ने इस पर विरोध जताया. सिब्बल ने कहा कि हाईकोर्ट जज क्या बोलते हैं इस पर भी माननीय जजों को कुछ कहना चाहिए. उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट को भी संवेदनशीलता दिखानी चाहिए. हाईकोर्ट का बचाव करते हुए  SG मेहता ने कहा,

 मैंने कोर्ट के प्रति निषपक्षता बरती है, लेकिन हाईकोर्ट के खिलाफ टिप्पणी करने से बचना चाहिए. मेरे मित्र कहते हैं कि देश किस ओर जा रहा है.

कपिल सिब्बल ने पलटवार करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट कई फैसलों की आलोचना करता है. इसमें गलत क्या है? पिछली सुनवाई के दौरान भी कोर्ट ने FIR पर सवाल उठाते हुए कहा था कि पुलिस और हाईकोर्ट ने कविता के वास्तविक अर्थ को नहीं समझा. इसके बाद जस्टिस ओक, तुषार मेहता और कपिल सिब्बल के बीच कविता को लेकर मजेदार बातचीत देखने को मिली.  तुषार मेहता ने कहा कि इमरान कहते हैं कि ये कविता फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ या हबीब जालिब की है. लेकिन ये उनका स्तर कभी नहीं हो सकता है. ये एक सड़कछाप कविता है.

इसके जवाब में कपिल सिब्बल ने कहा,

 मेरी कविताएं भी सड़कछाप है. 

इस पर तुषार मेहता ने कहा कि नहीं, नहीं इनकी कविताएं तो बहुत अच्छी हैं.  इस पर जस्टिस ओक ने कहा, 

मैंने मजाक में अपने भाई (जस्टिस भूईयां) से मज़ाक में कहा कि आप अपनी कविताओं को सड़कछाप न कहें. एक दिन आपको मेरे लिए भी कविता लिखनी होगी.

इसके बाद तुषार मेहता ने कहा, 

 मैं नहीं मानता कि ये (इमरान प्रतापगढ़ी द्वारा इस्तेमाल की गई कविता के बारे में बोलते हुए) कोई कविता है. शेर कभी अच्छा या बुरा नहीं होता है. शेर या तो होता है, या नहीं होता है. 

इसके बाद जस्टिस ओक ने तुषार मेहता से कहा कि अब आप कविता लिखने में उनसे प्रतिस्पर्धा करना चाहते हैं? इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि ये ये (तुषार मेहता) बस कोशिश नहीं कर रहे हैं, इनको इस फील्ड में बहुत ज्ञान है. इसके बाद तुषार मेहता मजाकिया अंदाज में कहते है ,

 नहीं, मेरे पास समय है. लेकिन लोग कहते हैं कि कवि बनने के लिए आपको प्रेम करना होगा. मैंने कभी नहीं किया.

गुजरात पुलिस ने विभिन्न धाराओं में दर्ज किया है केस

एक शिकायत के आधार पर गुजरात पुलिस ने 3 जनवरी को इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 196 (धर्म, जाति, बर्थ प्लेस, रेसीडेंस और भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 197 (राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचाना), 299 (धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से जानबूझकर किसी धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करना), 302 (किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से बोलना) और 57 (दस या दस से ज्यादा लोगों को अपराध के लिए उकसाना या समर्थन देना) के तहत मामला दर्ज किया था.

हाईकोर्ट ने FIR रद्द करने से मना किया था

इसके बाद इमरान प्रतापगढ़ी ने FIR रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट पहुंचे. यहां अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि कविता के शब्द स्पष्ट तौर पर स्टेट के खिलाफ भड़काने के संकेत देते हैं. और इस पोस्ट के बाद समुदाय के विभिन्न व्यक्तियों से आई प्रतिक्रिया निश्चित तौर पर संकेत देती है कि इसका परिणाम बेहद गंभीर है. और निश्चित रूप से सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ने वाला है.

कांग्रेस सांसद की याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था, 

कविता के भाव निश्चित तौर पर सिंहासन के बारे में कुछ संकेत देती है. और इस पोस्ट पर लोगों की आई प्रतिक्रियाओं से भी ये संकेत मिलता है कि संदेश को इस तरह से पोस्ट किया गया था जो सामाजिक सद्भाव को नुकसान पहुंचाने वाला है.

हाईकोर्ट ने आगे कहा था कि भारत के किसी भी नागरिक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह ऐसा आचरण करे जिससे सांप्रदायिक सद्भाव या सौहार्द्र खराब न हो. याचिकाकर्ता एक संसद सदस्य हैं उनसे ज्यादा संयमित आचरण की अपेक्षा की जाती है. हाईकोर्ट ने कहा, 

 FIR और मामले में लगाए गए कानूनी प्रावधानों को पढ़ने के बाद मेरी राय है कि इस मामले में आगे जांच की आवश्यकता है. इसके अलावा सरकारी वकील ने जैसा बताया कि याचिकाकर्ता ने 4 जनवरी 2025 को जारी नोटिस के अनुसार जांच की प्रक्रिया में सहयोग नहीं किया है. और फिर से उनको 15 जनवरी को उनको दूसरा नोटिस जारी किया गया जिसमें उन्हें संबंधित जांच अधिकारी के सामने 22 जनवरी 2025 को पेश होने के लिए कहा गया.

हाईकोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता संसद सदस्य होने के नाते कानून के निर्माता माने जाते है. और उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे जांच की प्रक्रिया में सहयोग करेंगे. और उचित तरीके से कानूनी प्रक्रिया के प्रति सम्मान दिखाएंगे.

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