सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि उर्दू विदेशी भाषा नहीं है, बल्कि भारत में जन्मी हुई भाषा है (Supreme Court on Urdu). कोर्ट ने हिंदी को हिंदुओं और उर्दू को मुसलमानों से जोड़ने के लिए औपनिवेशिक ताक़तों को दोषी ठहराया. साथ ही कहा कि उर्दू गंगा-जमुनी तहजीब या हिंदुस्तानी तहजीब का बेहतरीन नमूना है.
'उर्दू हमारी जमीन से जन्मी... इसे धर्मों में न बांटो', सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा, सबको सुनना चाहिए!
SC on Urdu: सुप्रीम कोर्ट ने हिंदी को हिंदुओं और उर्दू को मुसलमानों से जोड़ने के लिए औपनिवेशिक ताक़तों को दोषी ठहराया. साथ ही कहा कि उर्दू गंगा-जमुनी तहजीब या हिंदुस्तानी तहजीब का बेहतरीन नमूना है. ऐसी ही कई अहम टिप्पणियां कोर्ट ने महाराष्ट्र से दायर हुई एक याचिका पर की हैं.
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महाराष्ट्र के अकोला ज़िले के पातुर नगर परिषद भवन के साइनबोर्ड पर उर्दू के इस्तेमाल को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. पातुर कस्बे की ही पूर्व पार्षद वर्षताई संजय बागड़े ने इसके लिए याचिका दायर की थी.
याचिका में दावा किया कि महाराष्ट्र लोकल ऑथोरिटी (राजभाषा) एक्ट, 2022 के तहत उर्दू का इस्तेमाल अस्वीकार्य है. मांग की गई कि साइनबोर्ड में सिर्फ़ मराठी का ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए. लेकिन कोर्ट ने इस विचार से असहमति जताई.
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की दो जजों की बेंच 15 अप्रैल को मामले की सुनवाई कर रही थी. बेंच ने साइनबोर्ड पर उर्दू के इस्तेमाल को बरकरार रखा. साथ ही कहा कि संविधान के तहत उर्दू और मराठी को समान दर्जा हासिल है. अपने फ़ैसले में कोर्ट ने आगे कहा,
ये ग़लत धारणा है कि उर्दू भारत के लिए विदेशी है. बल्कि ये एक ऐसी भाषा है, जो इसी ज़मीन में पैदा हुई है. भाषा धर्म नहीं है. भाषा धर्म का प्रतिनिधित्व भी नहीं करती. भाषा एक समुदाय, एक क्षेत्र और उसके लोगों की होती है. किसी धर्म की नहीं.
बार एंड बेंच की ख़बर के मुताबिक़, कोर्ट ने कहा,
हमें अपनी ग़लतफहमियों और किसी भाषा के प्रति हमारे पूर्वाग्रहों को ख़ुद से परखना चाहिए. हमारी ताक़त कभी भी हमारी कमजोरी नहीं हो सकती. आइए हम उर्दू और हर भाषा से दोस्ती करें.
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अपने फ़ैसले में कोर्ट ने ये भी कहा,
औपनिवेशिक ताक़तों ने धर्म के आधार पर दो भाषाओं को बांटा. हिंदी को अब हिंदुओं की भाषा और उर्दू को मुसलमानों की भाषा समझा जाने लगा. ये वास्तविकता से और सार्वभौमिक भाईचारे की अवधारणा से बिल्कुल ही अलग है.
बताते चलें, 2020 में पूर्व पार्षद बागड़े ने उर्दू के इस्तेमाल को लेकर नगर परिषद में भी अपनी आपत्ति जताई थी. तब नगर परिषद ने उनकी बात को मानने से इनकार कर दिया. कहा था, ‘उर्दू का इस्तेमाल 1956 से किया जा रहा है और स्थानीय आबादी इसे व्यापक रूप से समझती है.’
फिर पूर्व पार्षद बागड़े ने उर्दू के इस्तेमाल को 2021 में बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी. 2021 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने उनकी चुनौती को खारिज कर दिया. फिर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
अब 15 अप्रैल को सुनवाई करते हुए जस्टिस सुधियांशु धूलिया ने कहा कि भाषा का सबसे पहला और प्राथमिक उद्देश्य संचार होता है. यहां उर्दू के इस्तेमाल का मकसद सिर्फ़ संचार है. नगर परिषद सिर्फ़ इतना चाहती थी कि प्रभावी संचार हो. ये भाषा का प्राथमिक उद्देश्य है, जिस पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने ज़ोर दिया है.
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