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"जिस अस्पताल से बच्चों की तस्करी हो, उसका लाइसेंस रद्द करो" सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगा दी

Supreme Court ने ये टिप्पणी एक मामले की सुनवाई के दौरान की. जिसमें Child Trafficking के आरोपियों को Allahabad High Court ने अग्रिम जमानत दे दी थी. इस दौरान कोर्ट ने उत्तर-प्रदेश सरकार को भी फटकार लगाई

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सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर-प्रदेश सरकार को भी फटकार लगाई (फोटो: आजतक)

सुप्रीम कोर्ट ने बाल तस्करी के मामले में बड़ा फैसला दिया है. कोर्ट ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि जिस अस्पताल से किसी नवजात की तस्करी होती है, उसका लाइसेंस रद्द कर दिया जाए (Supreme Court on Child Trafficking). इस दौरान कोर्ट ने उत्तर-प्रदेश सरकार को भी फटकार लगाई और ऐसे अपराधों को रोकने के लिए राज्यों को सख्त दिशा-निर्देश दिए. 

सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी एक मामले की सुनवाई के दौरान की. जिसमें बच्चों की तस्करी के आरोपियों को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अग्रिम जमानत दे दी थी. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में एक कपल ने बेटे की चाहत में बाल तस्करों से 4 लाख में एक बच्चा खरीद लिया था. आरोपियों की जमानत रद्द करते हुए सर्वोच्च कोर्ट ने “मामले से निपटने के तरीके” को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट और उत्तर प्रदेश सरकार दोनों को फटकार लगाई. जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने कहा, 

"आरोपी को बेटे की चाहत थी और उसने 4 लाख रुपये में बेटा खरीद लिया. अगर आप बेटे की चाहत रखते हैं...तो आप तस्करी किए गए बच्चे को नहीं खरीद सकते. वह (दंपत्ति) जानता था कि बच्चा चोरी हुआ है."

कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने जमानत आवेदनों पर "बेरहमी से" (callously) कार्रवाई की, जिसकी वजह से कई आरोपी फरार हो गए. कोर्ट ने आगे कहा,

"ये आरोपी समाज के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं. जमानत देते वक्त हाई कोर्ट से कम से कम यह अपेक्षित था कि वह हर हफ्ते पुलिस थाने में उपस्थिति दर्ज कराने की शर्त लगाता. इसके अलावा पुलिस सभी आरोपियों का पता लगाने में विफल रही."

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कोर्ट ने निचली अदालतों को आदेश दिया कि ऐसे मामलों की सुनवाई छह महीने के भीतर पूरी की जाए. साथ ही, अधिकारियों को निर्देश दिया कि अगर किसी नवजात की तस्करी होती है तो अस्पतालों के लाइसेंस रद्द कर दिए जाएं. सरकार की खिंचाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि वे पूरी तरह से निराश हैं कि कोई गंभीरता नहीं दिखाई गई. साथ ही पीठ ने चेतावनी दी कि किसी भी प्रकार की लापरवाही को गंभीरता से लिया जाएगा तथा इसे कोर्ट की अवमानना ​​माना जाएगा.

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