सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार (Bulldozer Action Supreme Court) को फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नागरिकों की आवाज़ को 'उनकी संपत्तियों को नष्ट करने की धमकी देकर दबाया नहीं जा सकता' और क़ानून के शासन वाले समाज में इस तरह के 'बुलडोज़र न्याय' के लिए कोई जगह नहीं है. सर्वोच्च अदालत ने ये भी कहा है कि किसी भी सभ्य न्याय व्यवस्था में बुलडोज़र के ज़रिए न्याय नहीं किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट में अपने आख़िरी दिनों में CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने ये फ़ैसला सुनाया. साथ ही, किसी घर को गिराने से पहले - सही से सर्वेक्षण, लिखित नोटिस और आपत्तियों पर विचार किया जाना - समेत 6 कदम उठाने के निर्देश दिए.
सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन के लिए यूपी सरकार को खूब सुनाया, 'नए नियम' भी बना दिए!
CJI DY Chandrachud की अध्यक्षता वाली पीठ ने Bulldozer Justice को लेकर कहा कि क़ानून के शासन वाले समाज में इसके लिए कोई जगह नहीं. साथ ही, कहा कि अगर इसकी मंजूरी दी गई, तो अनुच्छेद 300A के तहत संपत्ति के अधिकार की संवैधानिक मान्यता ख़त्म हो जाएगी.
हिंदुस्तान टाइम्स से जुड़े अब्राहम थॉमस की रिपोर्ट के मुताबिक़, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चाहे वो डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स ही क्यों ना हों, इन 6 कदमों का ध्यान रखा जाना चाहिए. इन कदमों में शामिल हैं,
पहला, अधिकारियों को पहले मौजूदा भूमि रिकॉर्ड और मानचित्रों की जांच करनी चाहिए. दूसरा, वास्तविक अतिक्रमणों की पहचान करने के लिए उचित सर्वेक्षण किया जाना चाहिए. तीसरा, कथित अतिक्रमण करने वालों को लिखित नोटिस जारी किया जाना चाहिए. चौथा, आपत्तियों पर विचार करके आदेश पारित किया जाना चाहिए. पांचवां, स्वेच्छा से अतिक्रमण हटाने के लिए उचित समय दिया जाना चाहिए और छठा, अगर ज़रूरी हो, तो अतिरिक्त भूमि क़ानूनी रूप से अधिग्रहित की जानी चाहिए.
इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा,
राज्य सरकार की ऐसी मनमानी और एकतरफा कार्रवाई बर्दाश्त नहीं की जा सकती… अगर इसकी मंजूरी दी गई, तो अनुच्छेद 300A के तहत संपत्ति के अधिकार की संवैधानिक मान्यता ख़त्म हो जाएगी. किसी भी इंसान के पास सबसे बड़ी सुरक्षा उसका घर है. कानून निस्संदेह सार्वजनिक संपत्ति पर अवैध कब्जे और अतिक्रमण को सही नहीं ठहराता. लेकिन सुरक्षा उपायों का पालन किया जाना चाहिए.
भारत के चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी मामले की सुनवाई में शामिल थे. बेंच ने इसे लेकर 6 नवंबर को फ़ैसला सुनाया था. 9 नवंबर की शाम एक विस्तृत आदेश जारी किया गया है, जिसमें इन निर्देशों का ज़िक्र किया गया है. जो सितंबर 2019 में यूपी के महाराजगंज ज़िले में पत्रकार मनोज टिबरेवाल आकाश के पैतृक घर को गिराए जाने से जुड़े एक मामले में सामने आए हैं.
इससे पहले, 6 नवंबर को अपने एक फ़ैसले में अदालत ने यूपी सरकार को मनोज को मुआवजे के रूप में 25 लाख रुपये देने का निर्देश भी दिया था. बताया गया कि मनोज का घर 2019 में सड़क चौड़ीकरण परियोजना के लिए उचित नोटिस दिए बिना ध्वस्त कर दिया गया था. अधिकारियों ने दावा किया कि नेशनल हाईवे के विस्तार के लिए ये करना ज़रूरी था. हालांकि, अदालत ने इसे राज्य की शक्ति के दुरुपयोग का उदाहरण बताया.
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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने जांच में पाया कि सरकारी ज़मीन पर अतिक्रमण करने वाली संपत्ति का सिर्फ़ 3.70 मीटर हिस्सा ही था. जबकि अधिकारियों ने बिना कोई लिखित नोटिस दिए 5-8 मीटर हिस्सा ध्वस्त कर दिया. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, पत्रकार मनोज ने आरोप लगाया कि ये तोड़फोड़ उस SIT जांच की मांग के ‘बदले’ के लिए की गई, जो उनके पिता ने 185 करोड़ रुपये की सड़क निर्माण परियोजना में कथित अनियमितताओं के लिए की थी.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने सीधे तौर पर इस दावे पर कोई टिप्पणी नहीं की. लेकिन ‘चुनिंदा सज़ा’ के तौर पर तोड़फोड़ के इस्तेमाल के खतरों का ज़िक्र ज़रूर किया. कोर्ट ने ये भी कहा कि इन दिशा-निर्देशों की कॉपियां सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेजी जाएं.
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