सुप्रीम कोर्ट ने महिला सुरक्षा कानूनों के दुरुपयोग से जुड़ी एक याचिका खारिज कर दी. इसमें घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीड़न से जुड़े कानूनों में बदलाव करने की मांग की गई थी. याचिका में कहा गया था कि अदालत झूठे मामलों में पति और ससुरालवालों को परेशान ना किए जाने से संबंधित दिशा-निर्देश जारी करे. हालांकि कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया. उसने कहा कि अदालत इस मामले में कुछ नहीं कर सकती, समाज को ही बदलना होगा. कोर्ट ने ये भी कहा कि ऐसे मुद्दों के लिए संसद कानून बनाती है.
दहेज, घरेलू हिंसा कानूनों में बदलाव की मांग वाली याचिका खारिज, SC ने कहा- 'समाज को बदलना होगा'
विशाल तिवारी ने आगे कहा कि कोर्ट दहेज प्रथा को रोकने के लिए बनाए गए कानूनों और घरेलू हिंसा से जुड़े अदालती फैसलों की जांच करे. हालांकि, जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने उनकी मांग को स्वीकार नहीं किया और याचिका को खारिज कर दिया.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ता एडवोकेट विशाल तिवारी ने कोर्ट से केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की थी. उन्होंने कहा कि कोर्ट निर्देश दे कि सरकार प्रीति गुप्ता बनाम झारखंड सरकार (2010) और अचिन गुप्ता बनाम हरियाणा सरकार (2024) मामलों में उसकी दी गई टिप्पणी को लागू करे.
विशाल तिवारी ने आगे कहा कि कोर्ट दहेज प्रथा को रोकने के लिए बनाए गए कानूनों और घरेलू हिंसा से जुड़े अदालती फैसलों की जांच करे. हालांकि, जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने उनकी मांग को स्वीकार नहीं किया और याचिका को खारिज कर दिया. जब तिवारी ने कहा कि सही फोरम पर खुद का प्रतिनिधित्व करने के लिए सभी को आजादी होनी चाहिए, तब जस्टिस शर्मा ने उन्हें सचेत किया. उन्होंने कहा,
संसद सर्वोपरि है. वे कानून बनाते हैं. अब आप अवमानना के लिए दूसरी याचिका लेकर आएंगे कि वे आपके प्रतिनिधित्व को निर्धारित नहीं कर रहे हैं. आपका नाम अखबारों और मीडिया में आता रहेगा. हम कानून नहीं बना सकते हैं. कानून बनाना संसद का क्षेत्राधिकार है.
जस्टिस नागरत्ना ने कहा,
समाज को बदलना होगा. हम इस मामले में कुछ नहीं कर सकते. संसद ने कानून बनाए हुए हैं.
जस्टिस नागरथ्ना ने याचिकाकर्ता की तीसरी मांग में अन्तर्विरोध देखा. और कहा कि जब दहेज लेना गैरकानूनी है, तो याचिकाकर्ता शादी में मिले हुए तोहफों को रिकॉर्ड करने की मांग कैसे कर सकते हैं.
बताते चलें कि प्रीति गुप्ता बनाम झारखंड सरकार (2010) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 498a के दुरुपयोग पर टिप्पणी की थी. इस मामले में कथित तौर पर पत्नी ने पति और उसके घरवालों को घरेलू हिंसा के झूठे मामले में फंसाया था. इसलिए कोर्ट ने विधानमंडल को इन कानूनों में बदलाव करने का सुझाव दिया था.
वहीं, अचिन गुप्ता बनाम हरियाणा सरकार (2024) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संसद से विनती की थी कि वो भारतीय दंड संहिता की धारा 498a की समकक्ष धाराएं 85 और 86 (भारतीय न्याय संहिता) में संशोधन करने पर विचार करें. हालांकि, संसद ने भारतीय न्याय संहिता में इन प्रावधानों को नहीं हटाया था.
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