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MP के इस गांव में मकान बनाने की होड़ क्यों लग गई? कनाडा-यूक्रेन वालों ने भी नहीं छोड़ा मौका

Madhya Pradesh: सिंगरौली में आसपास के राज्यों से लेकर विदेश में रहने वाले लोग भी घर बनवा रहे हैं. सिर्फ खानापूर्ति करने के लिए महज चार दीवारें खड़ी कर उन पर कॉन्क्रीट की छत डाल दी गई है, ताकी कोल कंपनी से मिलने वाला मुआवजा हासिल किया जा सके. पूरा मामला क्या है?

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कोल कंपनी से मुआवजा लेने के लिए हजारों फर्जी घर बनाए गए हैं (सांकेतिक तस्वीर: आजतक)

मध्य प्रदेश के सिंगरौली (Singrauli) जिले में कोल कंपनी से मुआवजा हासिल करने के लिए हजारों फर्जी घर बनाए गए हैं. ऐसे घर जिनमें न दरवाजे हैं न खिड़कियां हैं. जहां न पानी पहुंचता है न सड़क. लेकिन फिर भी यहां आसपास के राज्यों से लेकर विदेश में रहने वाले लोग भी घर बनवा रहे हैं. सिर्फ खानापूर्ति करने के लिए महज चार दीवारें खड़ी कर उन पर कंक्रीट की छत डाल दी गई है. ताकि कोयला कंपनी से मिलने वाला मुआवजा हासिल किया जा सके. 

क्या है पूरा मामला?

सिंगरौली का बंधा गांव कोल ब्लॉक के लिए आवंटित किया गया है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 14 जून 2021 को नोटिफिकेशन जारी हुई, जिसमें बिड़ला ग्रुप की कंपनी एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड (EMIL) के लिए बंधा कोल ब्लॉक की भूमि का परिसीमन आदेश जारी हुआ.

- नोटिफिकेशन के बाद किए गए पहले जनसंख्या अनुमान से पता चला कि कोयला ब्लॉक के लिए निर्धारित क्षेत्र में 550 परिवार हैं.

- इसके बाद 12 मई 2022 को जिला कलेक्टर ने धारा 11 लागू कर दी, जिसके बाद क्षेत्र में नए निर्माण पर रोक लग गई.

- 11 अप्रैल, 2023 को 4,784 संरचनाओं को पुनर्वास के लिए आधिकारिक तौर पर मंजूरी दे दी गई, जिससे वे मुआवजे के पात्र हो गए. 2,300 करोड़ रुपये की ‘ग्रीनफील्ड कॉमर्शियल कोल माइनिंग प्रोजेक्ट’ के लिए यहां रहने वालों को विस्थापित किया जाना था. इसके लिए ही मुआवजा भी दिया जाना था.

- 8 जून 2024 को EMIL ने सिंगरौली जिला कलेक्टर को पत्र लिखा और कंपनी द्वारा किए गए सर्वे में विसंगतियों का आरोप लगाया. इसमें कहा गया, 

“बंधा गांव में संपत्तियों की जांच के दौरान विसंगतियां पाई गईं. रिकॉर्ड में दर्ज कुछ घर साइट पर नहीं पाए गए, और अधूरे निर्माणाधीन घरों पर सर्वे किया गया. जहां अवैध रूप से भूमि अधिग्रहण लाभ प्राप्त करने के इरादे से धारा 11 के लागू होने के बाद निर्माण कार्य शुरू किया गया था.” 

- 8 नवंबर 2024 को कलेक्टर ने इन मकानों के निर्माण में कथित अनियमितताओं की जांच के लिए 20 सदस्यीय टीम गठित की.

मुआवजे के लिए अवैध निर्माण

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, एक मकान के मालिक प्रमोद कुमार ने दावा किया कि उन्होंने इसे बनाने में 10 लाख रुपये खर्च किए हैं. घर में दरवाजे, खिड़कियां और पानी की आपूर्ति नहीं है. उन्होंने कहा, 

“मैंने अपने बच्चों के लिए यह घर इस उम्मीद में बनाया था कि मुझे कुछ मुआवजा मिलेगा. किसी ने मुझे नहीं बताया कि यह अवैध है.”

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, जांच में पता चला है कि सिंगरौली के अलावा मध्य प्रदेश के कई जिलों के लोग यहां मकान बना रहे हैं. इतना ही नहीं, MP के आसपास के राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान जैसे प्रदेशों के लोग भी मुआवजा पाने के लिए यहां पर फर्जी मकान बनवा रहे हैं. कुछ नाम ऐसे भी हैं जो भारत से बाहर यूक्रेन और कनाडा में रहते हैं. उनके नाम से भी यहां नकली मकान बनाए गए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, लोकल प्रॉपर्टी दलाल लोगों से जमीन खरीदने को कहते हैं और फिर आधे-अधूरे मकान भी बनवा देते हैं. इसके बदले में कमीशन भी लेते हैं. 

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, स्थानीय बिल्डर कमलेश प्रसाद (31) का दावा है कि उन्होंने पिछले दो सालों में 30 से ज़्यादा घर बनाए हैं. प्रसाद ने बताया,

“बिना दरवाजे और खिड़कियों वाला एक कमरे वाला घर एक हफ़्ते में 1 लाख रुपए में बन जाता है. तीन कमरों वाला घर 5 लाख रुपए में और कई कमरों वाला एक एकड़ का बड़ा घर जिसे 'VIP घर' कहते हैं, उसे बनाने में 15 लाख रुपए से ज्यादा लगते हैं और इसे बनने में एक साल से ज्यादा का समय लग सकता है.”

फिलहाल, ये घर अब जिला प्रशासन की निगरानी में हैं. कोल कंपनी की आपत्ति के बाद कलेक्टर ने बंधा गांव में बने 3362 घरों को अवैध घोषित कर दिया है. 14 जून 2021 के बाद बने सभी निर्माणों को अवैध घोषित कर दिया गया है. कलेक्टर चंद्रशेखर शुक्ला ने बताया कि ऐसे मकान जो अवैध हैं, उनको मुआवजा लिस्ट से बाहर कर दिया गया है. ऐसे 3362 मकान चिह्नित किए गए हैं.

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