‘शर्मा जी की दुल्हन’ ने तो इंटरनेट ही लूट लिया! इंस्टाग्राम पर इन दिनों एक ही नाम हर रील, हर फीड और हर स्टोरी पर छाया हुआ है- ‘शर्मा जी की दुल्हन ब्याह के आई’. यही वो गाना है, जिस पर लोग अपनी शादी, हल्दी, मेहंदी से लेकर सिंगल लाइफ तक के किस्से बयां कर रहे हैं. कोई दूल्हा बनकर डांस कर रहा है. तो कोई सास की तरह आंखें तरेरता नज़र आ रहा है.
इंटरनेट पर छाई 'शर्मा जी की दुल्हन', फेविकोल के पुराने ऐड ने सबको चिपका दिया!
इंस्टाग्राम पर ये गाना ऐसा छाया है कि रीलों की बारात ही निकल पड़ी है. हर कोई अलग-अलग अंदाज़ में वीडियो बना रहा है. कोई खाना बनाते हुए, तो कोई मेकअप करते हुए. जो जैसे पा रहा है इस गाने पर झूमे जा रहा है.
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साल 2019 के एक फेविकोल ऐड से निकली ये धुन अब इंस्टाग्राम की रीलों में बाढ़ सी ले आई है. हर कोई अलग-अलग अंदाज़ में वीडियो बना रहा है — कोई खाना बनाते हुए, तो कोई मेकअप करते हुए. जो जैसे पा रहा है इस गाने पर झूमे जा रहा है. इस वीडियो में दो लड़कियां खाना खा रही हैं. इनमें से एक वेजिटेरियन है और दूसरी नॉन-वेजिटेरियन. इसके बाद नॉन-वेजिटेरियन लड़की, दूसरी लड़की की थाली से खाना निकालकर खाने लगती है. फिर वह अपनी थाली से खाने का इशारा करती है. इस पर दूसरी लड़की हंसते हुए उसे हल्का सा धक्का देती है.
इस वीडियो में देवरानी और जेठानी गुस्से में दिख रही हैं, जो एक-दूसरे को देखकर मुंह बनाती नज़र आ रही हैं.
इस वीडियो में एक आंटी स्टेज पर दूल्हे और दुल्हन को दिखाती हैं. जिनका जयमाला का कार्यक्रम चल रहा होता है. इसके बाद उनकी अलग-अलग तस्वीरें दिखाई जाती हैं.
यह गाना साल 2019 में बने एक फेविकोल ऐड से आया था. जिसे ओगिल्वी फर्म और पिडिलाइट ने मिलकर तैयार किया था. इस विज्ञापन में फेविकोल से बने सोफे को दिखाया गया है. सोफे ने साल 2019 में 60 साल पूरे किए थे. यह विज्ञापन 90 के दशक में बनी चीज़ों की याद दिलाता है. और यह भी बताता है कि कैसे फेविकोल ने 60 वर्षों में भी अपनी मजबूती और लचीलापन बनाए रखा है.
पूरे विज्ञापन का मुख्य आकर्षण सोफा ही है. जो साल 1959 से लेकर अब तक पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है. वीडियो की शुरुआत ब्लैक एंड व्हाइट सीन से होती है. जिसमें 1960 के दशक की ताल की धुन सुनाई देती है. दूल्हा-दुल्हन बैलगाड़ी में अपने नए घर की यात्रा करते हैं. सोफा नावों के जरिए लाया जाता है. जिसे दुल्हन को उसकी मां उपहार में देती है. 2 सीटर सोफा लॉबी में रखा जाता है और छत के दूसरी तरफ़ आंटियां गपशप करती नजर आती हैं.
इसके बाद वही ‘शर्मा जी की लड़की’ अपनी बेटी या बहन की शादी मिश्रा परिवार में करवाती है और उसे भी उपहार स्वरूप वही सोफा देती है. अब सोफे को रेशमी कपड़े से डिज़ाइन किया गया है. अगले दृश्य में मिश्रा जी का बेटा कलेक्टर बन जाता है. उनकी पत्नी साड़ी में, बच्चों के साथ टीवी देख रही होती है और नौकरानी उन्हें जूस सर्व कर रही होती है. अब सोफे को रबर जैसे नीले कपड़े से सिलाई मशीन द्वारा डिज़ाइन किया गया है.

इसके बाद कलेक्टर की बेटी बंगाली लड़के से प्रेम विवाह करती है और बंगाली स्टाइल में सोफे को नया लुक देती है. अब यह सोफा "बंगालियों का सोफा" बन जाता है. आख़िरकार सोफा कई घरों में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है और समय के साथ उसमें नए-नए कपड़ों और फैब्रिक का इस्तेमाल होता है.

गाने की अंतिम लाइन है कि ‘अब ये ब्याह कराए या ना कराए, पर कोई सोफा बने तो दिल से बने’. यह लाइन बताती है कि भले ही शादी अब ज़िंदगी का सबसे अहम पड़ाव न रह गई हो. लेकिन जो चीजें बनाई जाएं. वो दिल से, मज़बूती से और टिकाऊ बनाई जाएं – ठीक वैसे ही जैसे फेविकोल से बना यह सोफा.
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