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'स्तन पकड़ना रेप के आरोप के लिए काफी नहीं' कहने वाले जज को हटाने की मांग, CJI को लिखी गई चिट्ठी

इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले को लेकर वरिष्ठ एडवोकेट शोभा गुप्ता ने स्वयं और वीदी वुमन ऑफ इंडिया नाम के संगठन की ओर से CJI को एक पत्र लिखा है. उन्होंने कहा कि इस आदेश ने कानून की उनकी समझ को झकझोर दिया है. वो गंभीर रूप से परेशान हैं और इस बारें में न्यूज देखने के बाद से टूट गई हैं.

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शोभा ने CJI से संबंधित जज को तत्काल प्रभाव से आपराधिक रोस्टर से हटाने पर विचार करने के लिए भी कहा है. (फोटो- X/इलाहाबाद हाईकोर्ट)

इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल में अपने एक फैसले में कहा कि 'पीड़िता के स्तनों को पकड़ना, उसकी पाजामी का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना', बलात्कार या बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए ‘पर्याप्त नहीं’ है. कोर्ट का फैसला सामने आया तो इसको लेकर खूब विवाद हुआ. अब इसको लेकर एक वरिष्ठ वकील ने CJI संजीव खन्ना को पत्र लिखकर मामले का स्वतः संज्ञान लेने को कहा है.

इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले को लेकर वरिष्ठ एडवोकेट शोभा गुप्ता ने स्वयं और वीदी वुमन ऑफ इंडिया नाम के संगठन की ओर से CJI को एक पत्र लिखा है. इंडिया टुडे से खास बातचीत में शोभा ने अपने पत्र के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि इस आदेश ने कानून की उनकी समझ को झकझोर दिया है. वो गंभीर रूप से परेशान हैं और इस बारें में न्यूज देखने के बाद से टूट गई हैं. 

शोभा ने CJI संजीव खन्ना से प्रशासनिक और न्यायिक, दोनों ही स्तरों पर मामले का स्वतः संज्ञान लेने का आग्रह किया. उन्होंने CJI से संबंधित जज को तत्काल प्रभाव से आपराधिक रोस्टर से हटाने पर विचार करने के लिए भी कहा है. शोभा ने अपने लेटर में लिखा,

“जज द्वारा की गई व्याख्या बहुत ही गलत है. इस विषय पर उनका दृष्टिकोण असंवेदनशील, गैर जिम्मेदाराना है और बड़े पैमाने पर समाज के लिए बहुत बुरा संदेश देता है. मैं ये पत्र सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाली एक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में, एक महिला के रूप में, और साथ ही ‘वी दी वूमेन ऑफ इंडिया’ नामक संगठन की ओर से अत्यंत पीड़ा और चिंता के साथ लिख रही हूं.”

केस की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने दो आरोपियों पर निचली अदालत की ओर से लगाए गए आरोपों में बदलाव के आदेश दिए थे. लाइव लॉ के मुताबिक, आरोपियों के नाम पवन और आकाश हैं. कासगंज की एक अदालत ने उनको भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (बलात्कार) और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम की धारा 18 के तहत दर्ज एक मुकदमे में समन किया था.

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