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घरेलू हिंसा कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा - 'पति को बेवजह परेशान करने का हथियार बनाया जा रहा'

सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की. कोर्ट ने IPC की धारा 498A को सबसे ज्यादा दुरुपयोग किए जाने वाले कानून में से एक बताया. कोर्ट ने क्यों ऐसा कहा?

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ये पहली बार नहीं है जब अदालत ने सेक्शन 498A के दुरुपयोग पर सवाल उठाए हैं | प्रतीकात्मक फोटो: आजतक

सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा से जुड़े कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताई है. कोर्ट ने बुधवार, 11 दिसंबर को कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है. कोर्ट ने ये टिप्पणी तेलंगाना से आए एक मामले की सुनवाई करते हुए की. इस मामले में पति की तरफ से तलाक के लिए सिविल मुकदमा दायर किया गया था. इसके बाद पत्नी ने पति और उसके परिवार के खिलाफ IPC की धारा 498A के तहत क्रूरता और दहेज उत्पीड़न का केस दर्ज करवा दिया था.

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि घरेलू हिंसा कानून का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को घरेलू हिंसा और उत्पीड़न से बचाना था, लेकिन, कुछ महिलाएं इसका दुरुपयोग कर रही हैं. वो इस कानून का डर दिखाकर अपने पति और उसके परिवार का शोषण कर रही हैं. और उन्हें अपनी अनुचित मांगें मानने के लिए मजबूर कर रही हैं.

बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक पीठ ने कहा कि अब ऐसे मामलों में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है. कोर्ट ने आगे कहा,

'पिछले कुछ सालों के दौरान देश में पति-पत्नी से जुड़े झगड़ों में बढ़ोत्तरी देखी गई है. और इसके साथ ही IPC के सेक्शन 498A के गलत तरह से इस्तेमाल में भी तेजी आई है. इस कानून का इस्तेमाल पति और उसके परिवार से अपनी पर्सनल खुन्नस निकालने या बदला लेने के लिए किया जा रहा है. तमाल घरेलू झगड़ों के दौरान अस्पष्ट और एक जैसे आरोप लगाने की, अगर जांच नहीं की गई, तो इससे कानून का और दुरुपयोग होगा और पत्नी द्वारा दबाव बनाने की रणनीति के इस्तेमाल को बढ़ावा मिलेगा.'

हालांकि इस दौरान पीठ ने यह भी साफ किया कि वह सेक्शन 498A के तहत दायर किए गए सभी मामलों पर ये टिप्पणी नहीं कर रहे हैं. उनकी चिंता बस कानून के दुरुपयोग को लेकर है.

तेलंगाना से आए मामले पर तमाम दलीलों को सुनने के बाद पीठ ने कहा कि ये साफ़ दिख रहा है कि इस मामले में पत्नी ने अपने व्यक्तिगत विवाद और बदले की भावना के तहत पति पर दहेज उत्पीड़न का केस किया था. इस टिप्पणी के साथ ही पीठ ने पति और उसके परिवार के खिलाफ पत्नी की तरफ से दर्ज करवाया गया क्रूरता और दहेज उत्पीड़न का मुकदमा रद्द कर दिया.

‘498A सबसे ज्यादा दुरुपयोग होने वाला कानून’

ये पहली बार नहीं है जब अदालत ने सेक्शन 498A के दुरुपयोग पर सवाल उठाए हैं. बीते सितंबर महीने में सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 498A और घरेलू हिंसा को सबसे ज्यादा दुरुपयोग किए जाने वाले कानूनों में से एक बताया था. जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने गुजारा भत्ता से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की थी.

जस्टिस गवई ने इस दौरान ऐसे ही एक पुराने मामले का जिक्र करते हुए कहा कि इस तरह के मामलों में छुटकारा मिलना सबसे सही चीज है. जस्टिस गवई ने कहा, ‘नागपुर में मैंने एक ऐसा मामला देखा था, जिसमें एक लड़का अमेरिका गया था और उसे शादी किए बिना ही 50 लाख रुपये देने पड़े थे. वो एक दिन भी साथ नहीं रहा था. मैं खुले तौर पर कहता हूं कि घरेलू हिंसा और धारा 498A का सबसे ज्यादा दुरुपयोग किया जाता है.’

इससे पहले अगस्त 2024 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने 498A के दुरुपयोग पर चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि इस कानून के तहत दादा-दादी और बिस्तर पर पड़े लोगों को भी फंसाया जा रहा है. वहीं, मई में केरल हाईकोर्ट ने कहा था कि पत्नियां अक्सर बदला लेने के लिए पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ ऐसे मामले दर्ज करवा देती हैं.

धारा 498A है क्या?

IPC की धारा 498A की जगह, भारतीय न्याय संहिता (BNS) में धारा 85 और 86 ने ले ली है. हालांकि, इसके प्रावधानों में कोई बदलाव नहीं हुआ है. अगर किसी शादीशुदा महिला पर उसके पति या उसके ससुराल वालों की ओर से किसी तरह की क्रूरता की जा रही है तो BNS की धारा 85 के तहत ये अपराध होगा.

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क्रूरता, शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की हो सकती है. शारीरिक क्रूरता में महिला से मारपीट करना शामिल है. वहीं, मानसिक क्रूरता में उसे प्रताड़ित करना, ताने मारना, तंग करना जैसे बर्ताव शामिल हैं. अगर जानबूझकर कोई ऐसा काम किया जाता है, जो पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाए, उसे भी क्रूरता माना जाता है. इसके अलावा पत्नी या उससे जुड़े किसी व्यक्ति से गैरकानूनी तरीके से किसी संपत्ति की मांग करना भी क्रूरता मानी जाती है.

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