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'घरेलू हिंसा से जुड़े कानून पति से पैसा वसूलने के लिए नहीं... ' एक शख्स को तलाक देते हुए SC ने कहा

सुप्रीम कोर्ट ने जिस मामले की सुनवाई करते हुए ये बातें कही हैं, उसमें पति-पत्नी शादी के तीन-चार महीने बाद ही अलग-अलग रहने लगे. पत्नी ने पति पर दहेज़ उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और रेप जैसे आरोप लगाए. इसके बाद पति को पुलिस ने अरेस्ट कर लिया और करीब एक महीने तक कस्टडी में रखा.

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शीर्ष अदालत ने पहली बार इस तरह के सवाल नहीं उठाए हैं | प्रतीकात्मक फोटो: आजतक

सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं द्वारा शादी से जुड़े कानूनों के दुरुपयोग को लेकर एक बार फिर चिंता जताई है. उसके मुताबिक ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ महिलाएं पतियों के साथ हिसाब बराबर करने के लिए इन कानूनों का इस्तेमाल कर रही हैं. शीर्ष अदालत ने कहा कि शादी को लेकर महिलाओं के लिए कानून में जो प्रावधान किए गए हैं, वो उनकी भलाई के लिए हैं न कि पतियों को धमकाने, दबंगई दिखाने या उनसे जबरन वसूली करने के लिए. गुरुवार, 19 दिसंबर को एक मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये टिप्पणी की है. कोर्ट ने और क्या कहा? आइए आगे जानते हैं. 

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की बेंच ने मामले की सुनवाई की. बेंच ने कहा,

‘आपराधिक कानून में किए गए प्रावधान महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए हैं, लेकिन कभी-कभी कुछ महिलाएं इनका इस्तेमाल उन उद्देश्यों के लिए ज्यादा करती हैं, जिनके लिए ये बनाए ही नहीं गए हैं. हाल के दिनों में, शादियों से जुड़ी ज्यादातर शिकायतों में एक बात कॉमन दिखती है, इन सभी में आईपीसी की धाराएं - 498ए, 376, 377, 506 - को मिलाकर पति और उसके परिवार के खिलाफ इस्तेमाल किया गया. आपको बता दें कि इस तरह की प्रैक्टिस की कई मौकों पर सुप्रीम कोर्ट ने आलोचना भी की है.’

सुप्रीम कोर्ट ने जिस मामले की सुनवाई करते हुए ये बातें कही हैं, उसमें पति-पत्नी शादी के तीन-चार महीने बाद ही अलग-अलग रहने लगे थे. इसके बाद पत्नी ने अपने पति पर दहेज़ उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और रेप जैसे कई आरोप लगाए थे. इन आरोपों को देखते हुए पति को पुलिस ने अरेस्ट कर लिया था और करीब एक महीने तक कस्टडी में रखा.

गुरुवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा,

‘गौर करने वाली बात ये है कि पत्नी द्वारा पति के खिलाफ रेप की FIR उसी दिन लिखाई गई, जिस दिन उसे कुछ घंटे बाद फैमिली कोर्ट में तलाक के केस की सुनवाई में पेश होना था, जो केस उसके पति ने कोर्ट में फाइल किया था.’

कोर्ट ने आगे कहा,

‘इसके अलावा पत्नी के बयानों में विरोधाभास भी दिख रहा है. एक तरफ तो वो अपने आप को अच्छी पत्नी बताते हुए कहती है कि वो पति के साथ खुशी-खुशी रह रही थी. जबकि दूसरी तरफ उसने अपने पति पर क्रूरता, शीलभंग, बलात्कार और धोखा देने जैसे गंभीर आरोप लगाते हुए एक आपराधिक शिकायत दर्ज करा दी.’

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि मामले को अच्छे से देखने के बाद ऐसा लगता है कि पत्नी और उसके परिवार वालों ने आपराधिक मामला पति और उसके परिवार से अपनी डिमांड पूरी करवाने के लिए दर्ज कराया है. कोर्ट ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि एक पक्ष ने पैसे में दूसरे पक्ष की बराबरी करने के मकसद से भरण-पोषण या गुजारा भत्ते की डिमांड की.

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए इस शादी को खत्म करने का आदेश सुना दिया.

'डिमांड पूरी कराने के लिए FIR में कुछ भी लिखवा रहे'

इससे पहले 11 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा से जुड़े कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताई थी. कोर्ट ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है. कोर्ट ने ये टिप्पणी तेलंगाना से आए एक मामले की सुनवाई करते हुए की. इस मामले में पति की तरफ से तलाक के लिए सिविल मुकदमा दायर किया गया था. इसके बाद पत्नी ने पति और उसके परिवार के खिलाफ IPC की धारा 498A के तहत क्रूरता और दहेज उत्पीड़न का केस दर्ज करवा दिया था.

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जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि घरेलू हिंसा कानून का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को घरेलू हिंसा और उत्पीड़न से बचाना था, लेकिन, कुछ महिलाएं इसका दुरुपयोग कर रही हैं. वो इस कानून का डर दिखाकर अपने पति और उसके परिवार का शोषण कर रही हैं. और उन्हें अपनी अनुचित मांगें मानने के लिए मजबूर कर रही हैं.

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