हाल में रॉ के पूर्व चीफ एएस दुलत ने दी लल्लनटॉप के खास शो 'किताबवाला' में शिरकत की थी. इस दौरान उन्होंने पाकिस्तान के कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने की समस्या पर बात की. दुलत ने बताया कि कश्मीर हमेशा से एक ‘रिलीजियस प्रॉब्लम’ रहा है और समय के साथ ये बढ़ता जाएगा. इसके अलावा उन्होंने कश्मीर की समस्या से निपटने के लिए सरकार को कई अहम सुझाव दिए थे.
कश्मीर में कैसे खत्म होगा आतंकवाद? पूर्व रॉ चीफ एएस दुलत ने बताए दो तरीके
RAW Ex-Chief AS Dulat ने कहा कि शुरुआत से ही Kashmir देश के लिए एक रिलीजियस प्रॉब्लम रहा है. पहले यहां हिंदू और मुसलमान आपस में इकट्ठे थे, कोई गड़बड़ नहीं थी, कोई रिलीजियस इशू नहीं था. लेकिन समय के साथ ये रिलीजियस इशू बन गया.

एएस दुलत अपनी पांचवीं किताब ‘द चीफ मिनिस्टर एंड द स्पाई’ पर बातचीत के लिए शो में आए थे. इसी दौरान उन्होंने कई मुद्दों पर अपनी राय रखी जिनमें पाकिस्तान भी शामिल था. पूर्व रॉ चीफ ने कहा,
“मैंने जनरल जियाउल हक समेत कई पाकिस्तानी जनरलों में ये देखा है कि वे 1971 (1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध) को भूल नहीं सके. उनके दिमाग में हमेशा रहा कि हमें 1971 का बदला लेना है. मैं समझता हूं कि कश्मीर में जो कुछ हुआ वो इसीलिए शुरू हुआ. और इसके बदले पाकिस्तानी सेना ने कश्मीरी लोगों को आजादी दिलाने का प्रलोभन दिया.”
दुलत ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा,
“शुरुआत से ही कश्मीर देश के लिए एक रिलीजियस प्रॉब्लम रहा है. पहले यहां हिंदू और मुसलमान आपस में इकट्ठे थे, कोई गड़बड़ नहीं थी, कोई रिलीजियस इशू नहीं था. लेकिन समय के साथ ये रिलीजियस इशू बन गया. कोई माने या ना माने अब तो कश्मीरी खुल कर कहते हैं कि यहां तो हिंदू-मुसलमान का मसला है. और समय के साथ ये बढ़ता जाएगा.”
दुलत ने जम्मू कश्मीर के पूर्व CM डॉ. फारूक अब्दुल्ला से हुई एक बातचीत का जिक्र किया. उन्होंने बताया,
"कई कश्मीरियों के कहने पर मैंने शेख साहब (शेख अब्दुल्ला) से कहा था कि क्या आपने हिंदुस्तान के साथ रहकर गलती की? जिन्ना के साथ चले जाना चाहिए था. वहां ठीक रहते, एक जैसा धर्म होता. इसके जवाब मेें डॉक्टर साहब (फारूक अब्दुल्ला) ने कहा कि ऐसा रेडिकलाइज जमातियों का मानना है. जब कश्मीर ने हिंदुस्तान के साथ रहना तय किया, तब भी ये जमाती कहते थे कि यह कश्मीर का फैसला दो पंडितों (मतलब पंडित नेहरू और पंडित अब्दुल्ला) ने कर दिया है.”
वहीं मौजूदा केंद्र सरकार की कश्मीर नीति पर अपनी राय देते हुए दुलत ने बताया, “हमारी कश्मीर नीति कभी रही नहीं, साल 1947 से एक ही चीज कंसिस्टेंट रही कि कश्मीर को मेन स्ट्रीम कैसे किया जाए. कश्मीर के दिमाग से पाकिस्तान कैसे निकले? और मैं समझता हूं कि हम इसमें 80 से 90% कामयाब हो गए हैं. पाकिस्तान अब उतना प्रभावी नहीं रहा. लेकिन इसमें उतार-चढ़ाव आते रहे हैं.”
अपनी ही बात को और स्पष्ट करते हुए दुलत कहते हैं कि पाकिस्तान, कश्मीरियों के दिमाग में एक ‘फॉल बैक पोजीशन’ है, जब हिंदुस्तान उनके साथ फेयरली बिहेव नहीं करता है तो फिर उनके पास पाकिस्तान तो है ही. और वो इसका फायदा भी उठाता है.
कश्मीर में आतंकवाद के निपटारे के लिए दुलत ने दो समाधान बताए. उन्होंने कहा, “अगर आप कश्मीर की रीजनल पार्टी (नेशनल कांफ्रेंस) को सपोर्ट करें तो कश्मीर का मसला काफी हद तक हल हो जाएगा, अगर आप चाहते हैं कि वो कभी ऊपर-नीचे हो, तो फिर कश्मीर भी वैसे ही चलेगा. इसीलिए मैं कहता हूं पाकिस्तान से बात करनी जरूरी है. यही दूसरा तरीका है.”
आखिर में अनुच्छेद 370 को लेकर दुलत ने कहा, “उसकी कोई जरूरत ही नहीं थी. सभी को मालूम था इनको मौका मिलेगा तो यह हटा देंगे.”
दुलत ने साफ कहा कि 1975 में शेख अब्दुल्ला और इंदिरा गांधी के बीच हुए समझौते के बाद, 370 में कुछ नहीं बचा था. सब कुछ कंसील कर लिया गया था.
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