देशभर में दशहरे के दिन रावण के पुतले का दहन होता है. बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में रावण का पुतला जलाया जाता है. लेकिन राजस्थान के अलवर जिले के नौगांव में यह प्रथा अलग है. यहां पर रावण का दहन रामनवमी के बाद, खासतौर पर बारस के दिन (रामनवमी के दो दिन बाद) किया जाता है. इलाके के लोग कहते हैं कि यह अनोखी परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस बार 51 फीट ऊंचे रावण के पुतले का दहन किया गया है और पूरे कस्बे ने धूमधाम से यह उत्सव मनाया.
दशहरा छह महीने दूर है, अलवर में अभी क्यों हुआ रावण दहन?
Rajasthan में एक जगह ऐसी है, जहां रामनवमी के बाद रावण दहन की परंपरा है. यहां सभी धर्मों के लोग मिलकर रावण का दहन करते हैं.

इंडिया टुडे से जुड़े हिमांशु शर्मा की रिपोर्ट के मुताबिक, नौगांव की इस खास परंपरा में ना केवल हिंदू, बल्कि मुस्लिम, सिख और अन्य धर्मों के लोग भी भाग लेते हैं. इससे यह त्योहार एक साझा उत्सव बन जाता है. इस दिन यहां मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से लोग शामिल होते हैं. इस आयोजन में सभी धर्मों के लोग एक साथ जुटते हैं, जिससे एकता और भाईचारे का संदेश मिलता है.
इस साल रामनवमी महोत्सव 6 अप्रैल को शुरू हुआ. गांव वालों ने बताया कि ठाकुर जी की पालकी के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई. इसके बाद रामलीला कमेटी ने सनातन कमेटी और ग्रामीणों के सहयोग से विशाल कुश्ती दंगल का आयोजन किया. इसमें रामगढ़ के विधायक सुखवंत सिंह मुख्य अतिथि थे. इस दंगल में हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली से बड़े-बड़े पहलवानों ने अपना दमखम दिखाया.
कुश्ती खत्म होने के बाद शाम 6 बजे शोभा यात्रा निकाली गई. इस यात्रा का कस्बे के लोगों ने बड़े धूमधाम से स्वागत किया. इसके बाद रावण दहन हुआ. ‘भगवान राम’ बने शख्स ने ‘अग्निबाण’ चलाकर रावण के पुतले का दहन किया. और जैसे ही पुतला जलकर राख हुआ, पूरा कस्बा नारों से गूंज उठा.
नौगांव के बुजुर्गों का मानना है कि यह प्रथा सालों से चली आ रही है. अप्रैल महीने में रामनवमी के 2 दिन बाद बारस को यहां पर रावण दहन होता है. इस समय किसानों को फुर्सत रहती है और फसल बेचने के बाद पैसा भी रहता है. इससे वे त्योहार को धूमधाम से मना पाते हैं.
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