औरंगजेब की कब्र वाला बवाल अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि राणा सांगा (Rana Sanga) को लेकर देश में चकल्लस शुरू हो गई. सपा के सांसद रामली लाल सुमन (SP MP Ramji Lal Suman) ने राज्यसभा में राजपूत राजा राणा सांगा पर टिप्पणी की थी. उन्होंने राणा सांगा को 'बाबर को भारत में लाने वाला' और 'गद्दार' (Ramji Lal Suman on Rana Sanga) कहा तो तमाम संगठन भड़क गए. करणी सेना ने तो बुधवार को आगरा में रामजी लाल सुमन के घर पर हमला बोल दिया. इस बीच सवाल ये है कि राणा सांगा कौन थे और भारतीय राजाओं के इतिहास में उनका महत्व क्या है? और सबसे जरूरी बात कि क्या वो सच में गद्दार थे? क्या उन्होंने ही बाबर को भारत में आने का न्योता दिया था?
क्या 'गद्दार' थे राणा सांगा, सपा सांसद रामजी लाल सुमन के दावे में कितनी सच्चाई?
Rana Sanga को लेकर सपा सांसद रामजी लाल सुमन के बयान पर सियासी बवाल मचा है. उन्होंने राणा सांगा को गद्दार करार दिया था और कहा था कि उन्होंने बाबर को दिल्ली पर हमले का न्योता दिया था. इस पर इतिहासकारों की क्या है राय, जानते हैंः

बाबर भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना करने वाला राजा था. 1526 ईसवी में उसने इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली सल्तनत पर कब्जा कर लिया. बाद में बाबर का युद्ध राणा सांगा के साथ भी हुआ, जिसे खानवा के युद्ध के नाम से जाना जाता है. राणा सांगा मेवाड़ के राजा थे और उस महाराणा प्रताप के पूर्वज थे, जिन्होंने हल्दीघाटी की लड़ाई में एक अन्य मुगल बादशाह अकबर से लोहा लिया था. खानवा की लड़ाई में राणा सांगा मारे गए और इस तरह से मुगलों से राजपूतों की पराजय हुई.
बाबरनामा के हवाले से इतिहासकार बताते हैं कि राणा सांगा ने अपना एक दूत भेजकर बाबर को दिल्ली पर हमले का न्योता दिया था. सतीश चंद्रा के संपादन में छपी किताब 'मध्यकालीन भारत का इतिहास' में लिखा है,
‘1520-21 के आसपास की बात है. बाबर के पास दौलत ख़ान लोदी के पुत्र दिलावरख़ान के नेतृत्व में दूत पहुंचे. उन्होंने बाबर को भारत आने का निमंत्रण दिया और कहा कि इब्राहिम लोदी अत्याचारी शासक है और उसके सरदार अब उसके साथ नहीं हैं. ऐसे में बाबर को दिल्ली की गद्दी पर कब्जा कर लेना चाहिए.’
किताब में आगे लिखा है कि ऐसी संभावना है कि इसी समय राणा सांगा का दूत भी ऐसा ही प्रस्ताव लेकर बाबर के दरबार में पहुंचा था.
मेवाड़ पक्ष से क्या मिला?हालांकि, इस दावे पर इतिहासकार एकमत नहीं हैं. 'दी लल्लनटॉप' से बातचीत में इतिहासकार रीमा हूजा बताती हैं कि इतिहास में हम प्रमाण और साक्ष्य पर चलते हैं. बाबर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि राणा सांगा ने उसके पास अपना दूत भेजा था. उसे निमंत्रण दिया गया था. लेकिन मेवाड़ की तरफ से ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिलता. अगर कोई दूत गया होता तो कहीं न कहीं रिकॉर्ड होना चाहिए. जैसे बाबरनामा की प्रतियां मिलीं, इधर से भी कुछ मिलना चाहिए था.
हूजा ने आगे कहा,
अगर राणा ने दूत भेजने का सोचा भी होगा तो क्या उनकी सलाहकार समिति इस बात को स्वीकार करती कि राणा सांगा जैसे प्रतापी राजा जाकर बाबर से मदद मांगें. उन्हें दिल्ली चाहिए होती तो वह हमला करके ले सकते थे. उनको किसी के मदद की आवश्यकता नहीं थी. मेवाड़ संपन्न था. अगर उन्हें किसी मित्र की सहायता ही चाहिए थी तो यहीं बहुत सारे मित्र थे, जो समय-समय पर मेवाड़ में शरण लेते थे.
उन्होंने कहा कि इब्राहिम लोदी शक्तिशाली राजा था. उसके अपने खानदान के लोगों ने उनसे नाराजगी जाहिर करते हुए बाबर से संपर्क बनाया था. उस समय कई लोग ऐसा करते थे. दूसरे की सहायता लो. अपनी दाल गला लो और फिर पैसे देकर उसे वापस भेज दो. हालांकि, बाबर आया तो गया ही नहीं.
इतिहास के अध्येता राजवीर शेखावत 'दी लल्लनटॉप' से अपनी बातचीत में बताते हैं कि बाबर ने पहले भी दिल्ली पर आक्रमण किया था. अगर राणा सांगा ने उसे बुलाया होता तो उसके पहले के आक्रमण किस उद्देश्य से किए गए थे. 1505 में बाबरनामा में बाबर ये बातें क्यों लिख रहा है कि दिल्ली तैमूर का इलाका है और वो इसे प्राप्त करना चाहता है. उन्होंने कहा कि लोदी के दो रिश्तेदार दौलत खान और अलम लोदी बाबर को बुलाने जाते हैं. सांगा ने न्योता दिया था, इसका उल्लेख सिर्फ बाबर ने किया है. इसके अलावा कोई इतिहासकार इस बात का उल्लेख नहीं करता.
शेखावत कहते हैं कि इब्राहिम लोदी इतना बड़ा शासक नहीं था कि उसके लिए बाबर को बुलाया जाए. सांगा पहले भी लोदी को युद्ध में हरा चुके थे.
बाबर ने भेजा था संधिपत्रटीवी9 भारतवर्ष की एक रिपोर्ट में 'राष्ट्रीय राजनीति में मेवाड़ का प्रभाव' नाम की पुस्तक लिखने वाले डॉ. मोहनलाल गुप्ता के हवाले से बताया गया है कि बाबर ने अपना एक दूत राणा सांगा के यहां भेजा था. उसके दूत ने राणा से निवेदन किया कि बादशाह बाबर इब्राहिम लोदी से युद्ध करना चाहते हैं. इसलिए आपको यह संधि पत्र भेजा है. पत्र में बाबर ने लिखा कि मैं दिल्ली पर आक्रमण करूंगा और आप उधर से आगरा पर आक्रमण करें. इस प्रकार लोदी हमारी अधीनता स्वीकार कर लेगा. कई इतिहासकारों का मानना है कि महाराणा सांगा ने तब बाबर के प्रस्ताव पर अपनी स्वीकृति दे दी थी. कहा ये भी जाता है कि राणा सांगा ने यह मंजूरी इसलिए दी थी क्योंकि वह विदेशी शक्ति से ही विदेशी शासक का अंत चाहते थे.
कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि राणा सांगा ने बाबर को आमंत्रित किया था. उन्हें यह उम्मीद थी कि बाबर जीत के बाद भारत छोड़ देगा. बाबर ने अपनी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ में दावा किया है कि राणा सांगा ने उसके साथ एक समझौता किया था, लेकिन बाद में उसे धोखा दिया.
सांगा ने दिया था न्योता?जीएन शर्मा और गौरीशंकर हीराचंद ओझा जैसे इतिहासकारों के हवाले से दावा किया गया है कि बाबर ने भारत पर आक्रमण करने का मन पहले ही बना रखा था. इसकी कोशिश वह पहले भी कई बार कर चुका था. सबसे पहले उसने 1519 में पंजाब पर हमला किया था. 1526 में पानीपत की जीत से पहले बाबर ने दिल्ली पर 4 बार हमले का प्रयास किया था. बाबर की मजबूरी थी. उसे 1511-12 में समरकंद छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था. ऐसे में भारत की ओर भागने के सिवा उसके पास कोई दूसरा चारा नहीं था. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, इतिहासकार यदुनाथ सरकार राणा सांगा के बाबर को भारत आने का न्योता देने वाली बात खारिज करते हैं. उन्होंने बताया कि बाबर का आक्रमण उसकी अपनी महत्वाकांक्षाओं और लोदी विद्रोहियों के साथ गठबंधन से प्रेरित था.
कौन थे राणा सांगा?राणा सांगा मेवाड़ के शासक थे. अपने शासन काल में उन्होंने राजपूतों को एक किया और अपनी शक्ति बढ़ाई. कुछ ब्योरों के हिसाब से उन्होंंने 100 से भी ज्यादा लड़ाइयां लड़ीं. इसके चलते उनके शरीर पर 80 घाव हो गए थे. एक हाथ कट गया था और एक पैर ने भी काम करना बंद कर दिया था. इसके बावजूद उन्होंने दिल्ली, मालवा और गुजरात के शासकों को हराया और आज के राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर गुजरात, और अमरकोट, सिंध तक अपनी रियासत फैला दी थी. चित्तौड़ उनकी राजधानी थी. बाबरनामा में बाबर ने राणा सांगा के बारे में लिखा है कि हिंदुस्तान में राणा सांगा और दक्कन में कृष्णदेव राय से महान शासक कोई नहीं है.
वीडियो: Rana Sanga पर समाजवादी पार्टी के सांसद के बयान पर बवाल, तोड़फोड़, धमकियां और लाठीचार्ज...