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आटा चक्की खोलने के लिए लेने पड़े 16 परमिट! सबको फ्रेम कराकर दुकान की दीवार पर टांगा

मजेदार बात! इन भाईसाहब ने सारी मंजूरियों के साथ-साथ भारत के संविधान की कॉपी भी फ्रेम कराकर टांग दी.

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चक्की चलाने के लिए 16 परमिट्स! ये तो वही बात हुई कि चाय की टपरी खोलने के लिए पहले ISRO से रॉकेट लॉन्चिंग का सर्टिफिकेट लाओ. (फोटो- X)

SBI ब्रांच की लाइन में खड़े में होना, और अलग-अलग विंडो में काम के लिए धकिया दिया जाना काफी आम है. लेकिन अगर आपको लगता है कि बैंक में एक फॉर्म जमा करने के लिए पांच विंडो के चक्कर काटना जंग जीतने जैसा है, तो आप गलत हो सकते हैं! पुणे के एक चक्की वाले भाईसाहब की कहानी सुनेंगे तो हैरान रह जाएंगे. इन्हें छोटी सी आटा चक्की खोलने के लिए 16-16 परमिट्स जुटाने पड़े. जिसे अब इन सज्जन ने चक्की की दीवार पर टांग दिया है. जैसे कोई ट्रॉफी गैलरी हो! ये कहानी 'अनईज ऑफ डूइंग बिजनेस' की है!

बात खुली जब पुणे के चार्टर्ड फाइनेंशियल एनालिस्ट नितिन धर्मावत ने X पर एक तस्वीर डाली. फोटो में चक्की की दीवार पर 16 फ्रेम्स में सजे परमिट्स, लाइसेंस और सर्टिफिकेट्स चमक रहे थे. मजेदार बात! इन भाईसाहब ने सारी मंजूरियों के साथ-साथ भारत के संविधान की कॉपी भी फ्रेम कराकर टांग दी, मानो जैसे कह रहे हों, "लो, ये रहा हमारा भारत रत्न!" नितिन ने तंज कसा, और लिखा,

"भारत में बिजनेस करना कितना आसान है, इसका बेस्ट नमूना!"

एक चक्की चलाने के लिए 16 परमिट्स! ये तो वही बात हुई कि चाय की टपरी खोलने के लिए पहले ISRO से रॉकेट लॉन्चिंग का सर्टिफिकेट लाओ. बेचारे चक्की वाले को सरकारी दफ्तरों में जूते घिस-घिसकर मैराथन दौड़नी पड़ी होगी, शायद! हर कदम पर नया पचड़ा – कोई लाइसेंस, कोई क्लियरेंस, कोई फीस. नितिन ने आगे लिखा,

“ये पड़ोस में एक छोटी आटा चक्की है. इसका मालिक एक मेहनती आदमी है. उसे अपनी दुकान शुरू करने के लिए 16 अलग-अलग परमिट लेने पड़े. एक साधारण आटा चक्की चलाने में उसे काफी समय लगा. उसने उन सभी परमिशन पेपर को फ्रेम करके अपनी दुकान की दीवार पर टांग दिया है. उनकी ठीक बगल में, उन्होंने भारत के संविधान की एक प्रति भी फ्रेम करके रखी है. इसमें बहुत बड़ा बदलाव होना चाहिए. दुर्भाग्य से, अभी तक ऐसा नहीं हुआ है.”

X पर नितिन का पोस्ट देख लोग भी मजे लेने लगे. एक ने लिखा,

“16 परमिशन गेहूं पीसने के लिए.”

एक अन्य सज्जन ने लिखा,

“उन्होंने बहुत मेहनत की और फिर भी लोग पैक किया हुआ गेहूं का आटा पसंद करते हैं. जीवन बिल्कुल भी न्यायपूर्ण नहीं है.”

राकेश नाम के यूजर ने मौज लेते हुए लिखा,

“गोयल जी को बोलता हूं अभी चार काम रह गए, कम से कम 20 तो पूरे करो. आखिर दुकानदार दुकानदारी कैसे कर सकता है बिना 20 लाइसेंस के.”

एक यूजर ने लिखा,

“यदि आप बिजनेस शुरू करना चाहते हैं, तो आपको तब तक परेशान किया जाएगा, जब तक आप हार नहीं मान लेते.”

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हालांकि ये कहानी हंसी-ठठ्ठे की नहीं, बल्कि छोटे बिजनेस शुरू करने वालों के पसीने की हकीकत है. नौकरशाही का जंगल, जहां हर कदम पर रुकावट और रिश्वत का डर है. फिर भी, हमारे चक्की वाले भाई ने हिम्मत नहीं हारी. सारे परमिट्स जुटाए और दीवार पर सजा दिए, जैसे कह रहे हों, "देखो, हमने कर दिखाया!" तो अगली बार आटा पिसवाने जाओ, तो चक्की वाले के जज्बे को एक ठो सलाम जरूर करिएगा!

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